RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
आदित्य होंटो पर मुश्कान लिए घर से बाहर निकला. वो ऐसी मुश्कान थी जिस में प्यार ही प्यार बसा था. उसके घर के बिल्कुल सामने घनश्याम मोदी रहते थे. उन्होने आदित्य को देख लिया. तुरंत भाग कर आए उसके पास और बोले, “अरे आदित्य बेटा, कहा थे तुम. सब कुशल मंगल तो है. दीखाई नही दीए काफ़ी दिन से.”
“क्या आपको नही पता कि मुझ पर हमला हुवा था. मेरे घर के बाहर ही.”
“नही बेटा मुझे तो कुछ नही पता. कब हुवा ये सब.”
“एक साल पहले हुवा था.” आदित्य ने मोदी को पूरी बात बताई. मगर आदित्य ने जानबूझ कर ये नही बताया कि झगड़ा ज़रीना के कारण हुवा था.
“ओह बहुत दुख हुवा जान कर. दरअसल उन दिनो माहॉल बहुत खराब था बेटा. शाम ढलते ही घरो में घुस जाते थे हम सभी. तभी शायद किसी को पता नही चला तुम्हारे बारे में. शूकर है कि अब सब सुख शांति है यहा. बहुत बुरा वक्त देखा है हम सभी ने यहा वडोदरा में.”
“मुझे जल्दी कही जाना है अंकल बाद में मिलते हैं.” आदित्य ने कहा.
“हां बिल्कुल बेटा. अछा लगा तुम्हे इतने दिनो बाद देख कर. मिलते हैं तस्सली से तुम हो आओ. हां पर एक बात बतानी थी तुम्हे.”
“हां बोलिए.”
“अब्दुल शेख की जो बेटी थी ज़रीना…उसे अक्सर देखा मैने तुम्हारे घर में कुछ डालते हुवे. वैसे अछा लगा उसे जींदा देख कर. उसका पूरा परिवार तो ख़तम हो गया था. बस वही बची है. कुछ दिन पहले मैने उस से बात करनी चाही मगर वो मेरे आवाज़ देने पर भाग गयी.”
“ह्म्म वो डर गयी होगी अंकल…”
“वैसे तुम दोनो परिवारों में तो बिल्कुल नही बनती थी. उसका तुम्हारे घर में कुछ डालना मुझे अजीब लगा.”
“बाद में बात करूँगा अंकल. अभी बहुत जल्दी में हूँ.” आदित्य एक मिनिट भी रुकने को तैयार नही था. तड़प ही कुछ ऐसी थी.
आदित्य ने गली से बाहर आ कर एक ऑटो पकड़ा और चल दिया अहमद चाचा के स्कूल की तरफ. जैसे-जैसे स्कूल नज़दीक आ रहा था वैसे-वैसे उष्की बेचैनी बढ़ रही थी. “आखरी खत 1.04.2003 को लिखा था उसने. 1 से लेकर 21 तक कोई खत नही डाला उसने. नॉर्मली उसने हर हफ्ते एक खत डाला है. मेरी ज़रीना ठीक तो है ना भगवान. अब और कोई प्राब्लम नही चाहिए मुझे अपनी जींदगी में. मुझे पता है आप इतने निर्दयी नही हो सकते. मगर फिर भी ना जाने क्यों दिल घबरा रहा है” अनायास ही ख्याल आ गया था आदित्य को इन बातों का. दिल घबराने लगा था उसका.
ऑटो वाले ने उतार दिया आदित्य को मस्ज़िद के बाहर. “कितने पैसे हुवे भैया.”
“50 रुपीज़.”
आदित्य ने पर्स निकाल कर उसे 50 र्स पकड़ाए और उस से पूछा, “क्या आपको अहमद चाचा के स्कूल का पता है कि वो कहा हैं.”
“मुझे ऐसे किसी स्कूल का नही पता. किसी और से पूछ लीजिए.” ऑटो वाले ने कहा और चला गया वाहा से.
आदित्य ने चारो तरफ नज़र दौड़ाई. कोई स्कूल नज़र नही आया उसे वाहा. ना कोई स्कूल का बोर्ड था ना ही बच्चो का शोर. वह मस्ज़िद के पास गया और उसके बाहर खड़े एक व्यक्ति से पूछा, “भाई ये अहमद चाचा का स्कूल कहा है.”
“स्कूल तो मस्ज़िद के पिछली तरफ है. मगर अभी वो बंद है.”
“बंद है, क्यों बंद है भाई.”
“मुझे नही पता इस बारे में.” वो आदमी बोल कर वाहा से चला गया.
आदित्य को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वो तुरंत गया मस्ज़िद के पीछे. एक मैदान था वाहा जिसके चारो तरफ चार दीवारी थी. 8 कमरे बने थे वाहा. मगर सभी पर ताले टँगे थे एक को छ्चोड़ कर.”
आदित्य तुरंत मुख्य द्वार खोल कर अंदर आया. कोई भी दीखाई नही दे रहा था. एक कमरा जो खुला था वो तुरंत उसकी और बढ़ा. अंदर एक कुर्सी पर एक बुजुर्ग बैठा था. उसके सामने एक टेबल रखी हुई थी.
“एक्सक्यूस मी क्या ये अहमद चाचा का ही स्कूल है.”
“हां बिल्कुल वही स्कूल है. क्या काम है तुम्हे बेटा.”
“मुझे ज़रीना से मिलना है…क्या आप बता सकते हैं कि वो कहा है.”
वो बुजुर्ग तुरंत अपनी कुर्सी से उठा और बोला, “कही तुम आदित्य तो नही”
“जी हां मैं आदित्य ही हूँ. आप कैसे जानते हैं मुझे.”
उस बुजुर्ग ने तुरंत आगे बढ़ कर आदित्य को गले लगा लिया और बोला, “अल्लाह का शूकर है कि तुम आ गये. बेटा बहुत ख़ुसी हुई तुम्हे देख कर. मैं ही हूँ अहमद चाचा और मैं ही चला रहा हूँ ये स्कूल.”
“ज़रीना कहा हैं…मुझे प्लीज़ उस से मिलवा दीजिए.”
“5 दिन इंतेज़ार करना होगा तुम्हे बेटा. ज़रीना मसूरी गयी हुई है बच्चो को लेकर. 20 दिन का टूर बनाया था बच्चो के लिए.”
“मसूरी!.” आदित्य उदास हो गया. मगर मन ही मन खुस था कि सब कुशल मंगल है.
“हां बेटा…5 दिन बाद लौट आएगी वाहा से. वो तो जाना ही नही चाहती थी. बड़ी मुश्किल से भेजा उसे.”
“आपने बताया नही कि आप कैसे जानते हैं मुझे.”
“ज़रीना तो गुम्सुम रहती थी बेटा. बताती नही थी कुछ. मगर रोज निकल जाती थी स्कूल से ये कह कर कि कुछ काम है. चिंता रहती थी मुझे उसकी. एक दिन गया उसके पीछे चुपचाप. गया तो पाया कि वो तुम्हारे घर जाती है चिट्ठी डालने. बहुत पूछने पर बताया उसने. बता कर बोली कि नही बताना चाहती थी क्योंकि कोई समझेगा नही. बेटा तुम दोनो के बारे में सुन कर यही लगा कि इंसानियत की मिशाल हो तुम दोनो. जो तुमने ज़रीना के लिए किया वो कोई आम इंसान नही कर सकता.”
“मसूरी में कहा रुके हैं वो लोग.” आदित्य ने पूछा
“क्या तुम जाना चाहते हो वाहा.”
“जी हां जाए बिना कोई चारा नही है. हम दोनो कुछ ऐसी हालत में हैं कि मिले बिना गुज़ारा नही है. आपको शायद ये पागल पन लगेगा मगर हमारी हालत ही कुछ ऐसी हो रही है.”
“समझ सकता हूँ बेटा. ज़रीना नही बताती मुझे तो कभी नही समझ पाता.”
अहमद चाचा ने उस जगह का अड्रेस दे दिया जहा ज़रीना बच्चो के साथ रुकी हुई थी.
“अछा मैं चलता हूँ चाचा जी. आपने मेरी अनुपस्थिति में ज़रीना के लिए जो भी किया उसके लिए बहुत आभारी हूँ.”
“कैसी बात करते हो बेटा. मैने कुछ नही किया. बल्कि उसके आने से स्कूल चलाने में बहुत मदद मिली मुझे. बच्चे उसके कंट्रोल में रहते हैं. बस उसी की सुनते हैं. बिल्कुल एक आइडीयल टीचर बन गयी है ज़रीना. बहुत मदद मिली मुझे उसके आने से.”
“ठीक है चाचा जी मैं चलता हूँ.”
“मसूरी जाओगे तुम अब.”
“जी हां और कोई चारा नही है.” आदित्य ने कहा और वाहा से चल दिया.
आदित्य स्कूल से घर आया और एक बेग पॅक किया. उसमें उसने कुछ कपड़े रख लिए. ज़रूरत का और समान भी रख लिया और निकल दिया वडोदरा एरपोर्ट के लिए. देल्ही की फ्लाइट ली उसने. शाम के 5 बजे देल्ही पहुँच गया वो. देल्ही से उसने मसूरी के लिए टॅक्सी की. रात के 2 बजे पहुँचा वो मसूरी. उस टाइम ज़रीना के पास जाने का कोई मतलब नही था. और रात को अड्रेस ढूँडने में भी दिक्कत थी. टॅक्सी वाले ने सॉफ बोल दिया था कि वो लाइब्ररी पॉइंट पर छ्चोड़ देगा. मसूरी का ज़्यादा कुछ नही पता था ड्राइवर को. लाइब्ररी पॉइंट पर बहुत सारे होटेल्स थे. रुक गया आदित्य एक होटेल में.
बहुत थक गया था लंबे सफ़र से आदित्य. कोमा से उठने के बाद वो बस इधर उधर भाग दौड़ में लगा था. आराम किया ही कहा था उसने. बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ गयी आदित्य को.
“तुम आ गये आदित्य…कितनी देर कर दी तुमने. मैं अगर मर जाती तो” ज़रीना मुश्कुराइ.
“ज़रीना! ऐसा मत कहो” उठा गया आदित्य सपने से. उसने लाइट जलाई और देखा की सुबह के 5 बज रहे हैं.
“पहली बार सपने में आई तुम ज़रीना. धन्य हो गया मैं अपने भगवान को सपने में देख कर. अब हक़ीक़त में देखने का भी वक्त आ गया है ज़रीना. आज हम हर हाल में मिल कर रहेंगे.” आदित्य फ़ौरन उठ गया बिस्तर से.
क्रमशः...............................
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