RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--15
गतान्क से आगे.....................
आदित्य थोड़ा पहले पहुँच गया. वो मंदिर के बाहर उसी पेड़ से कंधा लगा कर खड़ा हो गया जहा वो 2 घंटे पहले ज़रीना के साथ खड़ा था.
जब उसने ज़रीना को आते देखा तो एक प्यार सी हँसी बिखर गयी उसके होंटो पे. उसकी निगाहे बस ज़रीना पर ही फिक्स हो गयी.
ज़रीना आदित्य को अपनी तरफ एक-तक देखते हुवे शर्मा गयी. नज़रे झुकानी पड़ गयी उसे आदित्य के कारण. जब वो पास आई तो आदित्य से बोली, "ऐसे क्यों देख रहे थे मुझे"
"क्यों क्या मैं अपनी जान को देख नही सकता?"
"देख सकते हो पर टकटकी लगा कर देखता है क्या कोई." ज़रीना ने कहा.
"मैं तो अपनी ज़रीना को ऐसे ही देखूँगा" आदित्य ने कहा.
"इस बॅग में क्या है?" ज़रीना की नज़र आदित्य की पीठ पर टँगे बॅग पर गयी.
"है कुछ समान. हाथ आगे करो"
"क्यों क्या बात है. और तुमने क्या छुपा रखा है अपने हाथ में पीछे"
"हाथ करो ना आगे ज़रीना प्लीज़"
"अछा लो बाबा" ज़रीना ने हाथ आगे कर दिए.
आदित्य ने एक पॉलितेन बॅग ज़रीना के हाथ पर रख दिया.
"क्या है ये?"
"खोल कर देखो" आदित्य ने मुश्कूराते हुवे कहा.
"वाउ जीन्स...तुम मेरे लिए जीन्स लाए." ज़रीना की आँखे चमक उठी.
"हां, पसंद है ना तुम्हे बहुत. यही पहन कर चलना"
"लेकिन इसके उपर क्या पहनूँगी मैं."
"उसका भी इंटेज़ाम है." आदित्य ने अपनी पीठ से बॅग उतारा और उसे खोल कर एक ब्लू कलर का टॉप ज़रीना को थमा दिया.
"वाउ...तुम्हारी चाय्स तो बहुत अछी है."
"जीन्स मुंबई में खरीदी थी. टॉप यही से लिया." आदित्य ने कहा.
"पर पहनूँगी कहा ये कपड़े. कोई जगह तो होनी चाहिए."
"ओह...इस बात पर ध्यान नही दिया मैने. जीश होटेल में रुका था वाहा से चेक आउट भी कर लिया."
"चलो कोई बात नही. मुझे जल्दी ले चलो घर. मैं तड़प रही हूँ उस ताले को खोलने के लिए."
"यहा से हम देल्ही जाएँगे. एक टॅक्सी बुक करा ली है. रात देल्ही में उसी होटेल में रुकेंगे जहा पीछले साल रुके थे. कल सुबह 10 बजे की फ्लाइट है."
"ह्म्म ठीक है."
"चलें मेरी जान. लेट हो रहे हैं"
"हां चलो...पर टॅक्सी कहा है."
"टॅक्सी थोड़ी दूर खड़ी है. यहा तक नही आ सकती थी. आओ चलें." आदित्य ने ज़रीना का हाथ थाम लिया.
"मेरा हाथ क्यों पकड़ लिया. छ्चोड़ो कोई देख लेगा." ज़रीना ने कहा.
"देख लेने दो. अपनी जान का हाथ थामा है किसी गैर का नही."
"एक बात शन लो. ये जीन्स उस जीन्स के बदले में है जो तुमने मेरे उपर कीचड़ उछाल कर गंदी कर दी थी. अभी बस हिसाब बराबर हुवा है."
"पता है मुझे. उस दिन के कारण जीन्स ड्यू थी मुझ पर. तुम कहोगी तो हमारी फॅक्टरी में सिर्फ़ तुम्हारे लिए जीन्स बनेगी."
"अछा" ज़रीना ने हंसते हुवे पूछा.
"हां." आदित्य ने भी हंसते हुवे कहा.
कुछ ही देर में वो टॅक्सी तक पहुँच गये और बैठ गये एक दूसरे के साथ.
"ज़रीना एक ज़रूरी बात थी. कब से दिमाग़ में घूम रही है. पर तुमसे बाते करते हुवे इतना खो जाता हूँ कि वो बात ध्यान से निकल जाती है."
"बोलो आदित्य."
"मैं कोमा से उठ कर तुम्हारी मौसी के घर गया तो उन्होने बताया कि तुम गायब हो. एमरान का भी कुछ आता पता नही किसी को. क्या बताओगि मुझे कि क्या हुवा था उस दिन. और एमरान कहा है?"
"आदित्य घर चल कर बात करें" ज़रीना ने कहा.
आदित्य समझ गया कि ज़रीना ड्राइवर के सामने बात नही करना चाहती.
टॅक्सी प्यार में डूबे दो दीवानो को लिए देल्ही की ओर बढ़ रही थी. रास्ते में एक ढाबा दीखाई दिया तो आदित्य ने ड्राइवर से कहा," भैया रोक दो इस ढाबे पर."
ड्राइवर ने ढाबे पर कार रोक दी.
"आओ ज़रीना कुछ खा लेते हैं."
"हां बिल्कुल...मुझे बहुत भूक लगी है."
बैठ गये एक टेबल पर आदित्य और ज़रीना.
"चिकन कढ़ाई खाएँगे आज हम दोनो."
"क्या पागल हो गये हो तुम. मैं नही खाउन्गि. मैने लिखा था ना तुम्हे कि मैने नोन-वेज छ्चोड़ दिया है"
"हां तो मैने भी तो बताया था कि मैने नोन-वेज शुरू कर दिया है."
"आदित्य प्लीज़. कोई ज़रूरत नही है तुम्हे ये सब करने की. अब खाने के उपर कोई बहस नही चाहती मैं. उस दिन की लड़ाई के बाद आज मिले हैं हम. कुछ सीखना चाहिए हमें इन बातो से."
"मज़ाक कर रहा हूँ जान.हां अब हम इस बात पर लड़ाई नही करेंगे. अछा तुम ऑर्डर दो."
ज़रीना ने मिक्स वेज और दाल मखनि ऑर्डर कर दी.
|