RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
"ज़रीना जब तक खाना आए तब तक तुम मेरे सवाल का जवाब दे सकती हो."
ज़रीना ने आस पास नज़र दौड़ाई.
"चिंता मत करो कोई नही सुनेगा हमारी बातें." आदित्य ने कहा.
"सुनो फिर" ज़रीना ने कहा.
ज़रीना के शब्दो में:-
"मैं मौसी के घर से निकल कर छुपते-छुपाते रेलवे पहुँच गयी. मुझे बहुत डर लग रहा था. मुझे एमरान का डर था. जब ट्रेन आई तो चुपचाप चढ़ गयी मैं. मुझे लगा ख़तरा टल गया है. मैं टाय्लेट करने के लिए उठी. सोचा फ्रेश हो कर आराम से सो जाउन्गि अपनी सीट पर. लेकिन जब मैं टाय्लेट पहुँची तो मेरे होश उड़ गये. एमरान खड़ा था वाहा. वो शायद दूसरे डिब्बे से आया था. मुझे देखते ही वो आग बाबूला हो गया.
"मेरी मुहब्बत को भुला कर उस काफ़िर के साथ ब्याह रचाने का प्लान है तेरा हा. तुझे जींदा नही छ्चोड़ूँगा मैं. देखता हूँ कैसे जाती है तू उस काफ़िर के पास."
उसने मेरा गला दबोच लिया आदित्य. मेरा दम घुटने लगा था. मेरी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा था. बिल्कुल दरवाजे के पास ही दबोच रखा था उसने मुझे. मगर आदित्य मुझे उसके हाथो मरना मंजूर नही था. मेरी जींदगी पर तो तुम्हारा हक़ है ना आदित्य.
मैने पूरा ज़ोर लगा कर उसे पीछे ढकैला. किसी को कुछ नही पता था कि वाहा क्या हो रहा है. मैं अकेली जूझ रही थी उस से.
मैने उसे पूरा ज़ोर लगा कर इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वो लूड़क गया और वो संभाल नही पाया. केले का छिलका पड़ा था वाहा उस पर शायद पाँव पड़ गया था उसका. वो…वो…ट्रेन से बाहर फिसल गया आदित्य. मैं बस देखती रही. सब कुछ इतना अचानक हुवा कि मैं कुछ भी नही कर पाई. जब तक मैं आगे बढ़ कर उसे संभालने की कोशिस करती तब तक वो ट्रेन से नीचे गिर चुक्का था. ट्रेन फुल स्पीड पर थी. मुझे नही पता कि क्या हुवा होगा एमरान का. शायद…शायद वो…” ज़रीना सूबक पड़ी.
“बस….बस…जो हुवा उसके लिए खुद को दोषी मत मानो. सब होनी का खेल है.”
“पर मैने उसे धक्का दिया था आदित्य.”
“तुम अपने आप को बचा रही थी. तुम्हारी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता. हां मुझे भी दुख है एमरान के लिए. उसकी बहन से मिल कर आया था मैं. उसका घर बिखर गया है.”
“मैं कातिल तो नही हूँ ना?”
“पागल हो क्या. किसी और को तो नही बताई तुमने ये बात”
“नही बस आज तुम्हे बताई है. इस बात के कारण मैने मौसी को भी कोई खत नही लिखा. डर था कि कही मुझे खूनी ना करार दिया जाए.”
“भूल जाओ सब कुछ. जो होना था सो हो गया. लो खाना आ गया. आँसू पोंछ लो अपने और खाने का आनंद लो. भगवान सब भली करेंगे. वैसे तुम यहा जीन्स पहन सकती हो. लॅडीस टाय्लेट में जाओ और चेंज करके बाहर आ जाओ.”
"देखती हूँ. पहले खाना खा लूँ."
आदित्य को सब कुछ बता कर ज़रीना का मन हल्का हो गया. मगर वो अंदर ही अंदर इस बात से परेशान हो रही थी कि उसके कारण एमरान का परिवार बिखर गया.
“ज़रीना खाना ठंडा हो रहा है, छ्चोड़ो भी अब, जो होना था सो हो गया. मुझे भी दुख है…पर अब हम कर भी क्या सकते हैं.”
“मेरे कारण एमरान के घर में तबाही आ गयी. मैं पूरा साल इस बात को लेकर परेशान रही हूँ कि मेरे कारण एमरान ट्रेन से नीचे गिर गया. अब जब तुमने बताया कि एमरान गायब है उसी दिन से तो अब तो ये पक्का ही है कि वो अब इस दुनिया में नही है. मैने उसे मार दिया आदित्य. ये ठीक नही हुवा.”
“बहुत कुछ हुवा हम दोनो के साथ ज़रीना जो की ठीक नही था. मेरे पेरेंट्स गोधरा कार्नेज में मारे गये, क्या वो ठीक था. उसके बाद दंगे भड़क गये और तुमने अपने पेरेंट्स और छोटी बहन को खो दिया..क्या वो सब ठीक था.”
“वो सब तो ठीक है पर..”
“क्या पर, हम दोनो का प्यार हुवा और फिर हम छोटी सी बात पर लड़ कर जुदा हो गये…क्या वो सब ठीक था.”
“तुम नही समझ सकते आदित्य, मेरी आँखो के सामने गिरा था वो ट्रेन से नीचे और मैं कुछ भी नही कर पाई थी.”
“तो कर लेती कुछ…बचा लेती उसे…वो तुम्हारा शुक्रिया नही करता बल्कि तुम्हे मार देता. उसकी इंटेन्षन बिल्कुल ठीक नही थी. हां मैं मानता हूँ कि जो भी हुवा ग़लत हुवा. पर उस वक्त तुम कर भी क्या सकती थी. अपनी जान बचाने के लिए तुमने उसे धक्का दिया. तुम्हारी जगह कोई भी होता तो वो ऐसा ही करता. अब वो फिसल गया ट्रेन से तो इसमें तुम्हारी ग़लती नही है.”
“अछा छ्चोड़ो आदित्य चलो खाना खाते हैं…सच में ठंडा हो रहा है खाना.” ज़रीना ने मुश्कूराते हुवे कहा.
“आ गयी याद खाने की अब…” आदित्य भी मुश्कुरा दिया.
“हां चलो जल्दी खाते हैं. मेरे ख्याल से काफ़ी लंबा सफ़र बाकी है अभी.”
“हां अभी तो सारा ही सफ़र बाकी है. लेकिन खाना आराम से खाते हैं.” आदित्य ने कहा.
क्रमशः...............................
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