RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
“जितना प्यार तुम मुझे करती हो उतना कोई फरिस्ता ही कर सकता है किसी को. पूरे एक साल तक तुमने मेरा इंतेज़ार किया. कोई और होता तो कब का मुझे भूल कर नयी दुनिया शुरू कर चुका होता. जब मुझे होश आया और पता चला कि एक साल बाद आँख खुली है मेरी तो यही लगा मुझे कि मैने अपनी ज़रीना को खो दिया. मगर जब तुम्हारे खत पढ़े तो अहसास हुवा कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति प्यार कम होने की बजाय और बढ़ गया है. क्या ऐसा कोई मामूली इंसान कर सकता है. तभी तुम्हे भगवान मान लिया है मैने.”
“तुम्हारे लिए एक साल तो क्या पूरी जींदगी भी इंतेज़ार कर लेती. नयी दुनिया बसाने का तो सवाल ही नही उठता. मुझे यकीन था कि तुम आओगे एक दिन और देखो तुम आ गये. ये बस हम दोनो के प्यार की ताक़त है जिसने हमें संभाले रखा.”
“जो भी हो मेरे लिए तो तुम ही मेरी भगवान हो.”
“ठीक है फिर, वादा करो वत्स कि मेरी हर बात मानोगे.”
“वो तो वैसे भी मानता ही हूँ, इसमे वादे की क्या बात है.” आदित्य ने कहा.
एक पल को दोनो की नज़रे टकराई तो दोनो खड़े खड़े बस एक दूसरे की निगाहों में खो गये. कुछ बहुत ही गहरी बाते हुई आँखो ही आँखो में दोनो के बीच. इन बातों को शब्दो में पिरोना मुश्किल है क्योंकि आँखो की भासा सिर्फ़ आँखे ही बोलती हैं और आँखे ही समझती हैं. वक्त जैसे थम सा गया था.
“क्या देख रहे हो मेरी आँखो में आदित्य.”
“जो तुम देख रही हो मेरी आँखो में वही मैं देख रहा हूँ तुम्हारी आँखो में.” आदित्य ने हंसते हुवे कहा.
और फिर अचानक ही आदित्य ज़रीना की ओर बढ़ा. ज़रीना समझ गयी कि आदित्य का क्या इरादा है वो फ़ौरन वाहा से भाग कर बिस्तर पर लेट गयी करवट ले कर, “मुझे सोने दो अब. सोने से सर दर्द भाग जाएगा.”
आदित्य मुस्कुराता हुवा बिस्तर के कोने पर बैठ गया और नोट पॅड उठा कर उस पर कुछ लिखने लगा. लिख कर उसने आवाज़ की, “उह…उह”
ज़रीना ने मूड कर देखा तो पाया कि उसके पीछे एक काग़ज़ पड़ा था.
उस पर लिखा था, “इतना प्यार करते हैं हम दोनो. पूरे एक साल बाद मिले हैं. एक चुंबन तो बनता ही है हमारा. तुम क्यों भाग आई, कितना अछा अवसर था एक चुंबन के लिए.”
ज़रीना ने बिना आदित्य की तरफ देखे उसी काग़ज़ पर नीचे कुछ लिख कर आदित्य की तरफ सरका दिया और करवट ले कर लेट गयी.
आदित्य ने वो काग़ज़ उठाया.
उस पर लिखा था, “प्यार का मतलब क्या ये है कि हम चुंबन में लीन हों जायें. भूलो मत अभी हम कुंवारे हैं. शादी नही हुई है हमारी. ये सब शादी के बाद ही अछा लगता है, उस से पहले नही. प्लीज़ बुरा मत मान-ना पर ये सब अभी नही.”
आदित्य ये पढ़ कर थोड़ा भावुक हो गया. उसने दूसरा काग़ज़ लिया नोट पॅड से और उस पर कुछ लिख कर ज़रीना के बगल में रख कर बिना आवाज़ किए वाहा से उठ कर खिड़की पर आ कर खड़ा हो गया. ज़रीना को ये अहसास भी नही हुवा की आदित्य ने कुछ लिख कर उसकी बगल में रख दिया है.
वैसे ज़रीना पड़ी तो थी चुपचाप करवट लिए पर वो बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्या के जवाब का. जब काफ़ी देर तक आदित्य की कोई आवाज़ उसे सुनाई नही दी तो उसने मूड कर देखा और पाया कि आदित्य खिड़की के पास खड़ा है और उसकी बगल में एक काग़ज़ पड़ा है.
ज़रीना ने तुरंत वो काग़ज़ उठाया.
उष पर लिखा था, “सॉरी जान मैं भूल गया था कि अभी हम कुंवारे हैं. आक्च्युयली कभी ध्यान ही नही दिया इस बात पर. कुछ ज़्यादा ही अधिकार समझ बैठा तुम पर. सॉरी आगे से ऐसा नही होगा. शादी कर लेंगे जाते ही हम.”
ज़रीना फ़ौरन बिस्तर से उठ कर आई और आदित्य के कदमो में बैठ गयी.
“अरे ये क्या कर रही हो उठो. पागल हो गयी हो क्या.”
“मुझे माफ़ कर दो आदित्य. मेरी अम्मी और अब्बा ने जो मुझे संस्कार दिए हैं वो मुझपे हावी हो गये थे. तुम्हारा तो शादी के बिना भी हक़ है मुझपे. मुझसे भूल हो गयी जो कि वो सब लिख दिया. मैं अपने आदित्य को ऐसा कैसे कह सकती हूँ.”
“अरे उठो पागल हो गयी हो तुम. माफी तो मुझे माँगनी चाहिए. मैं शायद बहक गया था. पहली बार हुवा है मेरे साथ ऐसा. और तुम्हारे अम्मी और अब्बा ने बहुत अछी शिक्षा दी है तुम्हे. अछा लगा ये देख कर कि तुम इतना आदर करती हो उनकी बातों का. उठो अब, ग़लती मेरी ही थी जो कि इस रिश्ते में अचानक एक झलाँग लगाने की सोच रहा था.”
क्रमशः...............................
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