RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--18
गतान्क से आगे.....................
ज़रीना उठ गयी और सुबक्ते हुवे बड़े प्यार से बोली, “मुझे चुंबन लेना आता भी नही है. तुमने अचानक ये बात करके मुझे डरा दिया.”
“अछा ठीक है बाबा. मेरी जान सच में बहुत मासूम है. वैसे चुंबन लेना मुझे भी नही आता. बस यू ही तुम्हारी आँखो में देखते-देखते मन बहक गया. चलो छ्चोड़ो ये सब ये बताओ खाओगि क्या कुछ. मुझे तो भूक लग रही है.”
“तुम खा लो, मुझे सच में भूक नही है.”
“चलो ठीक है. मैं खा कर आता हूँ. तुम आराम करो.”
“यही मंगा लो ना खाना. मेरे पास रहो. मुझसे दूर मत जाओ प्लीज़.”
“अछा ठीक है, यही मंगा लेता हूँ.” आदित्य ने ज़रीना के चेहरे पर हाथ रख कर कहा.
आदित्य और ज़रीना के प्यार की मासूमियत होटेल के उस कमरे में हर तरफ बिखरी पड़ी थी. ये ऐसा मासूम प्यार था, जो कि बहुत कम लोगो को नसीब होता है. और जिनको ये नसीब होता है वो आदित्य और ज़रीना की तरह प्यार के फरिस्ते बन जाते हैं.
आदित्य ने रूम में ही खाना खाया. खाना खाने के बाद दोनो ने खूब बाते की. बातों में हमेशा की तरह प्यार भी था और तकरार भी. ज़रीना बेड पर ही सोई. बिस्तर छ्चोड़ने को तैयार नही हुई वो. खैर आदित्य भी नही चाहता था कि वो नीचे सोए. इश्लीए चुपचाप फर्स पर चादर बीचा कर सो गया.
सुबह 6 बजे उठ गये दोनो. पहले ज़रीना घुस गयी नहाने. नहा कर जीन्स और टॉप पहन कर निकली बाहर.
“वाउ तुम ज़रीना ही हो या कोई और. बहुत प्यारी लग रही हो इन कपड़ो में.” आदित्य ने कहा.
“मज़ाक मत करो. जीन्स थोड़ी सी लूज है. बेल्ट भी नही है मेरे पास. दिक्कत रहेगी चलने में.” ज़रीना ने मायूसी भरे लहज़े में कहा.
“अब अंदाज़ा हर बार तो सही नही हो सकता. तुमने कभी अपनी फिगर बताई ही नही मुझे.”
“बता दूँगी लिख कर. अभी ये बताओ क्या करूँ अब मैं.”
“अपना चुरिदार ही पहन लो. जीन्स पहन-ने के बहुत मोके आएँगे जींदगी में. पहली बार नही घूम रहे हम साथ. आगे भी घूमते रहेंगे. अभी पूरा भारत पड़ा है घूमने के लिए.”
“क्या हम पूरा भारत घूम लेंगे.” ज़रीना झूम उठी ये सुन कर.
“बिल्कुल. मेरी तो बचपन की इच्छा है ये. तुम्हारे साथ घूमने का मज़ा ही कुछ और होगा. चलो जल्दी से चेंज कर्लो. मैं नहा कर आता हूँ. नास्ते का ऑर्डर कर दिया है मैने.” आदित्य ने कहा और वॉश रूम में घुस गया.
ठीक 8 बजे निकल दिए वो दोनो होटेल से. एरपोर्ट बहुत नज़दीक था महिपालपुर से. कोई 20 मिनिट में ही एरपोर्ट पहुँच गये वो दोनो.
बोरडिंग पास लेकर, सेक्यूरिटी चेक करवा कर वो बोरडिंग के इंतेज़ार में बैठ गये.
“जान मुझे विंडो सीट मिली है. पर क्योंकि तुम पहली बार सफ़र कर रही हो प्लेन से इश्लीए अपनी विंडो सीट तुम्हे दे दूँगा.”
“शुक्रिया आपका इस मेहरबानी के लिए. वैसे इस अहसान के लिए मुझे क्या करना होगा.” ज़रीना ने कहा.
“अब आप इतना अहसान मान रही हैं तो घर जाते ही सबसे पहले एक कप चाय दे देना. तरस गया हूँ तुम्हारे हाथ की चाय के लिए.”
तभी बोरडिंग की अनाउन्स्मेंट हुई और वो दोनो बोरडिंग के लिए चल दिए.
आदित्य और ज़रीना के पास एक लेडी आ कर बैठ गयी. बैठते ही वो बोली, “क्या आप वडोदरा में ही रहते हैं.”
“जी हां, हम वही रहते हैं.” आदित्य ने कहा.
“आपका शुभ नाम?”
“जी मेरा नाम आदित्य है.”
“ओह शूकर है. आक्च्युयली मैं पहली बार गुजरात जा रही हूँ. सुना है कि वाहा का माहॉल बहुत खराब है. ये टेररिस्ट लोग पता नही कब बक्सेंगे हम हिंदुस्तानियों को.”
“टेररिस्ट…गुजरात में कोई टेररिस्ट नही हैं.” आदित्य ने कहा.
“अरे यार मासूम मत बनो. तुम जानते हो मैं क्या कह रही हूँ.”
ज़रीना से ये सब बर्दास्त नही हुवा और वो बोली, “क्या आप कृपया करके शांति से बैठेंगी. हमें डिस्टर्बेन्स हो रही है.”
“ये कौन है आपके साथ. रिक्ट तो ऐसे कर रही है जैसे कि मैने इसे कुछ कहा है.”
“ये मेरी पत्नी है और इसका नाम ज़रीना है.”
“हे भगवान.” उस लेडी ने अपने मूह पर हाथ रख लिया. उसने तुरंत एर होस्टेस्स को बुलाया और अपनी सीट चेंज करने की रिक्वेस्ट की.
उस लेडी के जाने के बाद ज़रीना ने कहा, “देखा आदित्य, इस तरह से लेगी दुनिया हमारे प्यार को. कैसे चिड कर भाग गयी यहा से. कितनी नफ़रत है दुनिया में प्यार के लिए लोगो के दिलो में.”
“वो पागल थी और पागल की बातों को दिल से नही लगाते. उसकी मेंटल कंडीशन ठीक होती तो ऐसी बाते ही ना करती. चलो छ्चोड़ो ये सब…बाहर झाँक कर देखो बादल कितनी प्यारी चित्रकारी कर रहे हैं.”
“ओह वाउ…ग्रेट. ये तो ऐसा लग रहा है जैसे की हम जन्नत में उड़ रहे हैं. बहुत सुंदर है ये नज़ारा आदित्य. थॅंक यू वेरी मच.”
“जान ये थॅंक यू बोल कर तमाचा मत मारो मेरे गाल पर. तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ मैं.” आदित्य ने कहा.
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