RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
ज़रीना पूरे सफ़र में बस विंडो से बाहर ही देखती रही. बादलों की बनती बिगड़ती चित्रकारी में खो गयी थी वो. कभी हँसती थी कभी मुश्कूराती थी और कभी एक तक बस देखे जाती थी.
अचानक उसने खिड़की से सर लगा कर नीचे की ओर देखा और बोली,“आदित्य देखो…वो नीचे क्या कोई नदी है…” पर आदित्य का कोई रेस्पॉन्स नही आया. वो सो गया था.
ज़रीना ने आदित्य को कोहनी मारी, “मुझे खिड़की पर बैठा कर सो गये, शरम नही आती तुम्हे.”
“ओह…जान नींद आ गयी थी…क्या हुवा” आदित्य ने आँखे मलते हुवे कहा
“कोई नदी दीखाई दे रही थी शायद. अब तो निकल गयी वो…अब क्या फ़ायडा.” ज़रीना ने गुस्से में कहा.
“हाहहाहा…एक नदी नही है भारत में. हज़ारों हैं. दूसरी आ जाएगी…परेशान क्यों हो रही हो.”
“हज़ारों हैं तो क्या एक की अहमियत कम हो जाएगी. पहली बार आकाश से देखा मैने किसी नदी को. कितनी सुंदर लग रही थी.”
“मुझे तो इस वक्त तुम बहुत सुंदर लग रही हो. बिल्कुल बच्ची बन गयी हो. लगता है बच्चो को पढ़ाते-पढ़ाते खुद भी बच्ची बन गयी तुम.” आदित्य ने हंसते हुवे कहा.
“कोई बुराई तो नही है ना इसमें, ज़्यादा हँसो मत वरना दाँत तौड दूँगी तुम्हारे अभी.”
“भाई जो भी है मुझे तो डर कर रहना पड़ेगा तुमसे. एक बार गमला मार चुकी हो सर पर, एक बार हॉकी मार चुकी हो पेट में…अब मेरे दाँतों के पीछे पड़ी हो. भगवान भली करे.”
“मैं क्या इतनी बुरी हूँ. अगर ऐसा था तो क्यों आए थे वापिस मेरे पास.” ज़रीना ने भावुक आवाज़ में कहा.
“अरे मज़ाक कर रहा हूँ जान. तुम भी ना. तुम तो जींदगी हो मेरी. तुम्हारे पास नही आता तो कहा जाता मैं.” आदित्य ने कहा.
तभी प्लेन में अनाउन्स्मेंट हुई कि प्लेन वडोदरा में लॅंड करने वाला है, सभी यात्री सीट बेल्ट बाँध लें.
“हरे हम पहुँच गये अपने घर.” ज़रीना ने कहा.
“हां बस थोड़ी ही देर में हम अपने उसी घर में होंगे जहा हमें प्यार हुवा था.” आदित्य ने ज़रीना का हाथ थाम लिया और दोनो प्यार से एक दूसरे की तरफ देखते-देखते खो गये.
“लॅंडिंग के वक्त खींचाव महसूस होगा जान. घबराना मत” आदित्य ने कहा.
“तुम साथ हो तो डर काहे का. बिल्कुल नही घबरवँगी.” ज़रीना ने कहा.
कह तो दिया था ज़रीना ने की नही घबराएगी मगर लॅंडिंग के वक्त उसके पाँव काँपने लगे और चेहरे पर डर सॉफ दीखाई देने लगा. आदित्य उसे देख कर मध्यम-मध्यम मुश्कुरा रहा था.
प्लेन से उतरने के बाद आदित्य ने ज़रीना को छेड़ा, “तुम तो मेरे होते हुवे भी घबरा रही थी. कितनी डरपोक हो तुम.”
“पहली बार आई हूँ मैं प्लेन से, मुझे नही पता था कि ऐसा होगा. ज़्यादा हासोगे तो लड़ाई हो जाएगी अब.”
“अभी नही जान, घर चल कर लड़ना आराम से.” आदित्य ने कहा.
आदित्य ने एक टॅक्सी की और ज़रीना को लेकर घर की तरफ चल दिया. दोनो बहुत खुश थे. पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे दोनो के.
“आदित्य आस-पाडोश में किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देखा तो, क्या कहोगे उन्हे मेरे बारे में.”
“किसी को कुछ एक्सप्लेन करने की ज़रूरत नही है. और कहना भी पड़ा किसी को कुछ तो बोल दूँगा कि तुम मेरी पत्नी हो… सिंपल.”
“काश हम शादी करके ही घर जाते. फिर कोई उंगली नही उठा पाता.”
“हां ये तो है…पर जान हमें साथ रहने के लिए किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नही है. और हम एक-दो दिन में ही शादी कर लेंगे, तुम किसी बात की चिंता मत करो.”
“चिंता नही है किसी बात की बस यू ही सोच रही थी.” ज़रीना ने कहा.
लेकिन ये अछा हुवा कि जब वो घर पहुँचे तो किसी ने उन्हे नही देखा. दोपहर का वक्त था और सभी लोग घरो में थे. ज़रीना ने अपने हाथ से ताला खोला और झट से अंदर आ गयी.
“ये ताला नही चाहिए मुझे अब. इसे फेंक दो. बहुत परेशान किया है इस ताले ने मुझे.” ज़रीना ने कहा.
“बिल्कुल फेंक दूँगा. अब जब तुम इसे खोल कर घर में परवेश कर गयी हो तो इसका कोई काम नही है.”
“घर तो चमका रखा है तुमने. इतनी मेहनत करने कि क्या ज़रूरत थी. मैं कर देती ना सफाई.” ज़रीना ने कहा और सोफे पर बैठ गयी.
“मैं अपनी जान को क्या धूल-मिट्टी से भरे घर में लाता.” आदित्य ने कहा.
“छाए लओन तुम्हारे…”
“दूध नही है…चाय कैसे बनाओगी…थोड़ी देर रूको मैं मार्केट से ले आउन्गा. पहले थोड़ा बैठ लेते हैं.” आदित्य ने कहा.
आदित्य बैठा ही था सोफे पर की घर की बेल बज उठी.
“कौन हो सकता है?” ज़रीना ने पूछा.
“तुम अपने कमरे में जाओ. मैं देखता हूँ.” आदित्य ने कहा.
क्रमशः...............................
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