RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--19
गतान्क से आगे.....................
ज़रीना दिल में बेचैनी सी लिए वाहा से उठ गयी, “क्या किसी ने हमें देख लिया. मेरे अल्लाह हमारे प्यार में अब और कोई रुकावट मत डालना.”
आदित्य ने दरवाजा खोला, “चाचा जी आप.”
“हां बेटा मैं. तुम तो बिना बताए चले आए. क्या बीती है मुझपे और तेरी चाची पर कह नही सकता.”
“आईए चाचा जी… अंदर आईए”
“अंदर तो आ जाउन्गा पहले ये बताओ कि ऐसा क्या हो गया था कि तुम हमें बिना बताए चले आए मुंबई से. ऐसा कोई करता है क्या अपनो के साथ.”
“चाचा जी आप बैठिए तो सही. मेरी कुछ मजबूरी थी, जिसके कारण मुझे तुरंत वाहा से जाना पड़ा…क्या आप मुझे नही जानते. कोई कारण रहा होगा तभी मैं बिना बताए चला आया. आप मुझे कभी नही जाने देते और मेरा जाना बहुत ज़रूरी था.”
ज़रीना सब सुन रही थी दिल थामे.
“बेटा हमारा तो चलो कुछ नही पर सिमरन का क्या.” रघु नाथ पांडे ने कहा.
“सिमरन का क्या… मतलब?” आदित्य ने हैरानी में कहा.
“बेटा डॉक्टर ने कहा था कि ऐसी कोई बात ना कहें तुम्हारे सामने जिस से तुम्हे दुख पहुँचे. इश्लीए सिमरन का जिकर नही किया हमनें. तुम्हे ये शादी बिल्कुल पसंद नही थी. पर है तो वो तुम्हारी पत्नी ना.”
“ये आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नही आ रहा.” आदित्य बेचैन हो उठा.
ये सब सुन कर ज़रीना की भी हालत खराब हो गयी. उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था.
“बेटा जब तक तुम कोमा में थे सिमरन मुंबई में ही रही हमारे पास. खूब सेवा की उसने तुम्हारी. हम सब अपने काम में बिज़ी हो जाते थे पर वो हर वक्त तुम्हारे पास बैठी रहती थी. एक तरह से वही तुम्हारी नर्स थी पूरा साल. जिस दिन तुम्हे होश आया उस से दो दिन पहले ही गयी थी वो देल्ही अपने घर. वो वापिस आई तो तुम चले गये. बहुत रोई वो तुम्हारे लिए. देखो बेटा 7 साल हो चुके हैं शादी को. शादी के वक्त 7 साल के बाद गोने की बात हुई थी. अब वक्त आ गया है कि तुम अपनी पत्नी को घर ले आओ. भैया जींदा होते तो वो भी यही कहते जो मैं कह रहा हूँ.”
“चाचा जी…मैने उस शादी को ना तब माना था और ना अब मानूँगा. वो सब दादा जी ने कर दिया था. मम्मी, पापा भी इसके खिलाफ थे. मुझे सिमरन से कोई नाराज़गी नही है पर मैं ये बॉल-विवाह नही निभा सकता.”
“बेटा बेसक भैया भाभी भी राज़ी नही थे इस शादी के लिए पर शादी तो हुई ना और पूरे हिंदू ऋतु रिवाज से हुई. तुम जल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो. ठंडे दिमाग़ से सोच लो. सिमरन बहुत अच्छी लड़की है. जितनी सेवा उसने की है तुम्हारी उतनी कोई नही कर सकता. तुम्हारे बारे में पता चलते ही वो अपनी पढ़ाई-लिखाई सब कुछ छ्चोड़ कर मुंबई आ गयी थी. उसने अपना पत्नी धरम निभाया, तुम नही देख पाए लेकिन हमने देखा है. उसे ठुकराने की भूल मत करना…बहुत प्यारी बच्ची है वो. तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी.”
“बस चाचा जी प्लीज़. रहने दीजिए ये सब. मैं इस बाल-विवाह को कभी स्वीकार नही करूँगा.”
“हां बेटा मैं कौन होता हूँ, जिसकी बात तुम मानोगे.”
“नही चाचा जी आपकी हर बात मानूँगा मगर ये नही मान सकता. 7 साल पहले शादी हुई…तब मुझे होश भी नही था. बहुत बुरा लगा था मुझे उस वक्त भी कि ये क्या मज़ाक हो रहा है. पर मेरी किसी ने नही सुनी. मैने इस शादी को कभी स्वीकार नही किया और ना ही करूँगा.”
“तुम्हारे स्वीकार करने या ना करने से क्या होता है. शादी पूरे समाज के सामने हुई थी और पूरे रीति रिवाज से हुई थी. और एक बात सुन लो तुम. सिमरन मुंबई अपने घर वालो से लड़ कर आई थी. किसी को उम्मीद नही थी कि तुम कोमा से निकलोगे. मगर सिमरन ने उम्मीद नही छ्चोड़ी. वो इतना प्यार करती है तुम्हे, पत्नी के सारे फ़र्ज़ निभाए उसने और तुम ऐसी बाते कर रहे हो. जब उसे पता लगेगा ये सब तो वो तो मर ही जाएगी. क्या कमी है उसमे जो कि तुम ऐसी बाते कर रहे हो.”
“बात कमी की नही है. मैं उस से मिलूँगा और समझा दूँगा उसे.”
“बेटा सिमरन के पेरेंट्स ने किसी विश्वास के साथ भेजा था उसे मुंबई. सिमरन की ज़िद्द थी वरना वो उसे कभी ना भेजते, अब तुम ऐसा बर्ताव करोगे तो तूफान आ जाएगा. वो लोग चुप नही बैठेंगे.”
“चाचा जी मुझे किसी से गिला शिकवा नही है. सिमरन से मैं कभी नही मिला. बस शादी के वक्त देखा था उसे. ना ही उसके परिवार वालो से मुलाक़ात हुई बाद में कभी. मैं उनसे माफी माँग लूँगा. रिश्ते ज़बरदस्ती नही जोड़े जाते. दादा जी ने ग़लत किया था ये बाल विवाह करवा कर और मैं इस ग़लती को जींदगी भर नही धो सकता.”
“ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. मेरा फ़र्ज़ तो तुम्हे समझाना था. भैया भाभी जींदा होते तो वो भी यही समझाते.”
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