RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--20
गतान्क से आगे.....................
“ज़रीना किसी ने तुम्हे देखा नही है यहा आते हुवे. तुम चुपचाप यहा रह सकती हो. क्यों इतना कुछ सोच रही हो.” आदित्य ने कहा.
“आदित्य मैं जाना नही चाहती हूँ यहा से…पर यहा रुकना भी बहुत अजीब लग रहा है.” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.
आदित्य आगे बढ़ा. वो ज़रीना को गले लगाना चाहता था. मगर ज़रीना पीछे हट गयी और भाग कर अपने कमरे में आ गयी और दरवाजा बंद कर लिया.
आदित्य भाग कर आया उसके पीछे, “जान दरवाजा खोलो यू परेशान होने से कुछ हाँसिल नही होगा. और तुम ये घर छ्चोड़ कर नही जाओगी. अगर गयी तो मैं मर जाउन्गा.”
ज़रीना ने दरवाजा खोला और चिल्ला कर बोली, “चुप करो ऐसी बाते नही करते. मैं नही जा रही हूँ कही. मैं बस अपने क्न्सर्न बता रही थी. तुम एक औरत की मजबूरी नही समझ सकते.”
“समझ रहा हूँ जान मगर तुम ये घर छ्चोड़ कर नही जाओगी. ऐसा करते हैं, तुम यहा टेनेंट बन जाओ. मैं उपर वाला कमरा झूठ मूट में दुनिया को दीखाने के लिए तुम्हे दे देता हूँ. रहोगी तुम यही नीचे हर वक्त. किसी को क्या पता चलेगा. बस बाहर से सीढ़ियाँ डलवा देता हूँ. बाहर की सीढ़ियों से उपर जाना और पीछे की सीढ़ियों से नीचे आ जाना. मैं इस बाल-विवाह के झांजाट को जल्द से जल्द ख़तम करने की कोशिस करूँगा. चाहे कुछ हो जाए तुम रहोगी यही. बस मुझे रेंट देती रहना.”
“हां ये ठीक है. इस से हम साथ भी रहेंगे और दुनिया मुझे ग़लत भी नही समझेगी. पर ये रेंट का क्या चक्कर है.” ज़रीना अपने आँसू पोंछते हुवे बोली.
“रेंट तो भाई तुम्हे देना ही पड़ेगा.”
“हां पर कैसा रेंट.”
“रोज इस ग़रीब को अच्छा-अच्छा खाना बना कर दे देना यही रेंट है.”
“वो तो वैसे भी मैं दूँगी ही. मैं नही बनाउन्गि तो कौन बनाएगा खाना यहा” ज़रीना ने कहा.
“अच्छा जान तुम आराम करो मैं मार्केट से राशन ले आता हूँ. और बाहर से सीढ़ियाँ डलवाने का काम भी कल से शुरू करवा दूँगा. एक दिन में ही हो जाएगा सारा काम. फिर 4-5 दिन उसे मजबूत होने में लगेंगे फिर तुम दुनिया की नज़रो में टेनेंट बन जाना. तब तक छुप कर रहो.”
“ठीक है…क्या कुछ लाओगे”
“तुम लिस्ट बना दो मैं तब तक फ्रेश हो लेता हूँ.”
“ओके…” ज़रीना मुश्कुरा कर बोली.
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रघु नाथ पांडे निराश-हताश घर पहुँच गया मुंबई. उनकी बीवी उन्हे देखते ही भाग कर आई उनके पास, “क्या हुवा कुछ पता चला की आदित्य कहा है.”
“हां पता चला…” रघु नाथ बोलते-बोलते रुक गया क्योंकि उन्हे सिमरन आती दीखाई दी उसकी ओर.
“चाचा जी क्या हुवा सब ठीक तो है?” सिमरन ने कहा
“हां बेटा सब ठीक है. आदित्य बिल्कुल ठीक है. आएगा तुझसे मिलने वो जल्दी ही.”
“कहा हैं वो?” सिमरन ने पूछा.
“गुजरात में ही है बेटा. कुछ बहुत ज़रूरी काम था उसे जिसके कारण उसे जाना पड़ा बिना बताए.”
ये सुनते ही सिमरन के चेहरे पर मुश्कान बिखर गयी. उसने मन ही मन कहा, “शुक्र है सब ठीक है.”
“चाचा जी पापा उनसे मिलने को बोल रहे थे. उन्हे मैने बताया नही है अभी की वो यहा नही हैं. आपने मना किया था ना अभी बताने से इश्लीए उन्हे कुछ नही बताया, बस यही बताया है कि उन्हे होश आ गया है. अब बतायें कि क्या कहूँ पापा को. वो तो कल ही मुंबई आने को बोल रहे हैं और वो यहा नही हैं.”
“बेटा थोड़ा बैठते हैं पहले. आराम से सोचते हैं कि क्या करना है.”
“ठीक है चाचा जी. आप बैठिए आराम से, मैं चाय लाती हूँ आपके लिए… इलायची वाली.” सिमरन ने कहा और कह कर चली गयी.
“कैसे बताउन्गा इस मासूम को कि जिसके लिए तुम इतना परेशान हो, जिसकी तुमने दिन रात सेवा की वो तुम्हे अपनाना ही नही चाहता. नही बता पाउन्गा इसे कुछ भी. ये काम आदित्य को ही करना होगा.इस फूल सी बच्ची को मैं ये सब अपने मूह से नही बता सकता.” रघु नाथ पांडे ने मन ही मन कहा.
सिमरन किचॅन में चाय बनाती हुई बस आदित्य को ही सोच रही थी, “आपको नींद में ही देखा मैने पूरा साल. रोज आपके चरण छू कर दिन की शुरूवात करती थी. यही दुवा करती थी मैं कि आप इस गहरी नींद से उठ जायें और आपकी गहरी नींद मुझे लग जाए. देखना चाहती थी आपको उठे हुवे. पर आप नींद से जाग कर चले भी गये यहा से और मुझे पता भी नही चला. इस से बुरा नही कर सकते थे भगवान मेरे साथ. काश देल्ही नही जाती तो आपको देख पाती और आपके चर्नो में बैठ कर कहती की मुझे बहुत ख़ुसी हुई आपको जागे हुवे देख कर. पता नही आप मेरे बारे में सोचते हैं कि नही पर मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ. बचपन से ही बस आपको ही बैठा रखा है दिल में.”
“अरे सिमरन चाय उबल गयी बेटा कहा खोई हो” चाची ने आवाज़ दी.
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