RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--22
गतान्क से आगे.....................
निशा के जाने के बाद चाची ने कहा, “बेटा क्या ये सच है कि तुम गोना नही करना चाहते. सिमरन को छ्चोड़ देना चाहते हो.”
“चाची जी मैने चाचा जी को सब बता दिया है.”
“हां इन्होने बताया है मुझे…मगर मैं तुमसे सुन-ना चाहती हूँ.”
“हां ये सच है. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता. मैने कभी इस शादी को शादी नही माना.”
“मतलब हम सब बडो की कोई परवाह नही तुम्हे. तुम्हारे मम्मी, पापा जींदा होते तो पता नही क्या हाल होता उनका ये सब सुन कर. क्या तुम्हे अंदाज़ा भी है कि क्या ठुकराने जा रहे हो तुम. अरे हीरा है सिमरन हीरा. लाखो में एक है वो.”
“मैं किसी और से प्यार करता हूँ और उसे अपनी पत्नी मानता हूँ. मैं ये गुड्डे-गुडियों का खेल नही निभा सकता.” आदित्य ने कहा.
“ये सुनते ही चाचा और चाची की आँखे फटी रह गयी.”
“मुझे तो पहले से ही शक था इस बात का. बहुत बढ़िया बेटा.” चाचा ने कहा.
“कौन है वो करम जली जो हमारी सिमरन का घर उजाड़ने पर तुली है.” चाची ने कहा.
चाची बहुत गुस्से में थी इश्लीए आदित्य ने चुप रहना ही सही समझा.
“मतलब की तुम्हारा फ़ैसला अटल है.” चाचा ने कहा.
“जी हां…मैं शादी करूँगा तो अपनी मर्ज़ी से और वो भी उस से जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ.इस बाल-विवाह को मैं नही मानता.” आदित्य ने कहा.
“जाओ बेटा ये सब खुद ही कहो सिमरन से जाकर. हम ये सब नही बोल पाएँगे.” रघु नाथ ने कहा और निशा को आवाज़ दी ज़ोर से “निशा!”
निशा मूह लटकाए वापिस आई वाहा और बोली, “जी पापा.”
“आदित्य को ले जाओ सिमरन के पास. ये कुछ ज़रूरी बात करना चाहता है उस से.”
“आओ भैया…” निशा ने कहा.
आदित्य चुपचाप उठ कर चल दिया वाहा से.
“भैया कौन सी ज़रूरी बात है?” निशा ने पूछा.
“छ्चोड़ वो सब…तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है.”
“अच्छी चल रही है. लीजिए आ गया भाभी का कमरा. आप दोनो बात करो मैं मम्मी, पापा के पास बैठती हूँ.” निशा कह कर चली गयी.
आदित्य कमरे में दबे पाँव दाखिल हुवा. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. सिमरन बेड के पास खड़ी थी नज़रे झुकाए. अंजाने में ही आदित्य की निगाह सिमरन के चेहरे पर पड़ी. वो देखता ही रह गया उसे. एक आकर्षक नयन नक्स पाया था सिमरन ने. चेहरे पर प्यारी सी मासूमियत थी.
आदित्य ने उसके कदमो की तरफ देखा और बोला, “कैसी हैं आप.”
“मैं ठीक हूँ. आप कैसे हैं.” सिमरन भी आदित्य के कदमो को ही देख रही थी.
“क्या खेल खेला ना किस्मत ने. कितनी जल्दी हम दोनो की शादी हो गयी थी. उस उमर में हमें शादी का मतलब भी नही पता था. बहुत रो रही थी आप, याद है मुझे. पता नही क्या ज़रूरत थी इतनी जल्दी ये सब करने की.” आदित्य ने अपनी बात कहने के लिए भूमिका तैयार की.
“हां हमारे अपनो ने बचपन में ही हमें इस रिश्ते में बाँध दिया.”
“आप ही बतायें बाल-विवाह कहा तक जायज़ है. गैर क़ानूनी है ये. फिर भी हम लोग नही मानते.”
“बाल-विवाह बिल्कुल जायज़ नही है.”
“तो आप मानती हैं कि हम लोगो के साथ ग़लत हुवा. देखिए अब हम बड़े हो चुके हैं. और हमें अपना जीवन साथी चुन-ने का हक़ होना चाहिए. मैं अब घुमा फिरा कर नही कहूँगा. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता हूँ. आप भी इस बंधन से खुद को आज़ाद समझिए.”
ये सुनते ही सिमरन के पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल गयी. बहुत कुछ कहना चाहती थी वो मगर कुछ नही बोल पाई. होन्ट जैसे सिल गये थे उसके. आदित्य का दिल भी बहुत ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. वो फ़ौरन वाहा से भाग जाना चाहता था.
“मुझसे कोई भूल हुई हो तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा प्लीज़. चलता हूँ मैं.” आदित्य मूड कर जाने लगा
“सुनिए…” सिमरन ने हिम्मत करके आवाज़ दी.
आदित्य वापिस मुड़ा और बोला, “कहिए…मैं आपकी बात सुने बिना नही जाउन्गा यहा से.”
“बेशक बाल-विवाह ग़लत है और रहेगा. उस वक्त मैने भी वो खेल एंजाय नही किया. मगर मेरी परवरिश कुछ इस तरह की गयी कि आपको एक देवता बना कर मेरे दिल में बैठा दिया गया. बचपन से यही सिखाया गया कि पति परमेस्वर होता है इश्लीए आदित्य तुम्हारा परमेश्वर है. मैं सब कुछ स्वीकार करती गयी खुले मन से. कब आपसे प्यार हो गया…पता ही नही चला. और इतना प्यार कर बैठी आपसे कि अपने पेरेंट्स से लड़ बैठी आपके लिए. वो नही चाहते थे कि मैं आपके लिए मुंबई आउ. मगर मैं अपनी ज़िद पर आडी रही और उन्हे मुझे भेजना पड़ा आपके पास. मुझे एक मोका तो दे दीजिए प्लीज़. बाल-विवाह तो ग़लत है मगर मेरा प्यार ग़लत नही है. शादी चाहे जैसे भी हुई हो मगर मैं आपको तन,मन धन से अपना पति मानती हूँ.”
“ये सब कह कर तो गुनहगार बना दिया आपने मुझे. काश ये धरती फॅट जाए और मैं इसमें समा जाउ.” आदित्य सर पकड़ कर बैठ गया बिस्तर पर.
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