RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
“क्या नही समझा तुम्हारे बारे में जान जो ये सब बोल रही हो. तुम्हारे दिल में उठी हर हलचल मेरे दिलो दिमाग़ में तूफान मचा देती है. तुम ना भी कहो तब भी समझ सकता हूँ तुम्हारे दर्द को…क्योंकि हम जुड़ चुके हैं एक दूसरे से. जो चोट तुम्हारे दिल पर लगी है आज वही चोट मेरे दिल पर भी लगी है. खुद को मुझसे जुदा करके मत देखो. हम दो जिश्म एक जान है ज़रीना. तुम मुझसे दूर गयी तो मर जाउन्गा. मान लो की सिमरन को अपना भी लूँ तो भी कभी उसे खुश नही रख पाउन्गा. घुट-घुट कर जीएगी वो मेरे साथ. क्योंकि मेरी आत्मा तुम हो जान. मेरे दिल के मंदिर में तुम्हे भगवान बना कर बैठा चुका हूँ. उष मंदिर में किसी और की तस्वीर नही लगा पाउन्गा. सिमरन और मेरा रिश्ता इस समाज ने बनाया था पर तुम्हारा और मेरा रिश्ता भगवान ने बनाया है. भगवान के फ़ैसले का ही आदर करना होगा हमें. और सिमरन अब समझ गयी है. उस से मेरी बात हो गयी है. अब कोई रुकावट नही है हमारी शादी में.”
“उसकी आँखो में बेन्तेहा प्यार देखा है मैने तुम्हारे लिए. अभी हम किसी बंधन में नही बँधे हैं. तुम आराम से उसके साथ अपनी जींदगी की शुरूवात कर सकते हो.” ज़रीना ने कहा.
“मेरी आँखो में देख कर कहना ज़रा ये बात.” आदित्य ने कहा.
“अदित्य तुम कुछ भी कहो…पर मैं ये प्यार नही निभा सकती. किसी के पति को छीन-ने का इल्ज़ाम नही लेना चाहती अपने सर पर. ना ही ये इल्ज़ाम लेना चाहतीं हू की किशी लालच के कारण पड़ी हूँ मैं पीछे तुम्हारे.”
“बंद करो ये बकवास तुम.”
“ये बकवास नही है. अपने दिल पर पत्थर रख कर बोल रही हूँ.”
“मुझे खुद से दूर करने की बजाए एक खंजर गाढ दो मेरे सीने में तो ज़्यादा अछा होगा. अरे मैं कैसे निभा लूँ शादी सिमरन से जबकि मेरे मन मंदिर में तुम हो. तुम मेरी जींदगी हो जान. नही जी सकता हूँ तुम्हारे बिना. मर जाउन्गा तुमसे अलग हो कर तो पता चलेगा तुम्हे की क्या हो तुम मेरे लिए.”
ज़रीना कदमो में बैठ गयी अदित्य के और रोने लगी, “मैं भी कहा जी सकती हूँ तुम्हारे बिना. सोच कर भी डर लगता है.पता नही ये उलझन क्यों आ गयी हमारे जीवन. बड़ी मुश्किल से तो एक साल बाद मिले थे. अभी शांति से प्यार के मीठे दो बोल भी नही बोल पाए थे एक दूसरे को की ये सब हो गया. ऐसा क्यों हो रहा है हमारे साथ अदित्य.”
“उठो पहले तुम. मेरे कदमो में अछी नही लगती तुम.” आदित्य ने ज़रीना को कंधे से उठाते हुवे कहा.
“क्या हम सिमरन के गुनहगार नही बन जाएँगे. उस से मिली नही थी तो कुछ फरक नही पड़ता था. उस से मिली तो उसकी आँखो में तुम्हारे लिए प्यार देखा. खुद को एक लुटेरा महसूस कर रही हूँ. जिसने अचानक तुम्हारी जींदगी में आकर तुमको सिमरन से छीन लिया. मैं मर जाना चाहती थी आज. पर पता नही क्यों रुक गयी. क्योंकि मेरी जींदगी पर तुम्हारा हक़ है इश्लीए शायद खुद को मार नही पाई.”
“जान अगर मैं भी सिमरन को चाहता तो तुम्हारा सोचना सही होता. मैने कभी इतने सालो में सिमरन को सोचा तक नही…चाहने की तो दूर की बात है. अब वो मुझसे प्यार कर बैठी तो इसमे मेरा तो कोई कसूर नही है. मैं तो उस से मिला तक नही. और एक बात बता दूं. मम्मी, पापा की मौत के बाद मैं भी बिखर चुका था. तुम मिली मुझे तो जीने का हॉंसला सा हुवा. हम दोनो की हालत एक जैसी थी जब हम मिले थे. हम मिले और दो कदम साथ चल कर हमें एक दूसरे से प्यार हो गया. जान हम किसी कीमत पर जुदा नही हो सकते. ये तुम भी जानती हो और मैं भी जानता हूँ.”
ज़रीना अदित्य के सामने थी और अदित्य की आँखो में देख रही थी. दोनो खो गये थे एक दूसरे में. कब आँसू टपक गये दोनो के एक साथ उन्हे पता ही नही चला.
“बोलो ज़रीना क्या जी पाओगि मेरे बिना?”
“ऐसा सोच भी नही सकती अदित्य….मत पूछो ऐसी बात.” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.
“फिर क्यों भाग आई थी मुझे छ्चोड़ कर वाहा से तुम.”
“मरने के लिए निकली थी वाहा से…जीने के लिए नही.”
आदित्य ने आगे बढ़ कर बाहों में जाकड़ लिया ज़रीना को, “ओह जान कभी छ्चोड़ कर मत जाना मुझे चाहे कुछ हो जाए. नही जी सकता हूँ तुम्हारे बिना ये बात समझ लो आछे से आज.”
“मैं भी कहा जी सकती हूँ तुम्हारे बिना. क्या हाल हुवा मेरा तुम्हे थप्पड़ मार कर सिर्फ़ मैं ही जानती हूँ. मुझे माफ़ कर दो प्लीज़.”
“माफी ऐसे नही मिलेगी”
“क्या करना होगा मुझे?”
आदित्य ने ज़रीना के चेहरे को अपने दोनो हाथो में थाम लिया. ज़रीना सिहर उठी. वो समझ गयी थी कि अदित्य क्या करना चाहता है. उसने अपनी आँखे बंद कर ली. उसके होन्ट खुद-ब-खुद थिरकने लगे.
आदित्य ज़रीना के थिरकते होंटो को देख कर मुश्कुरा उठा, “क्या चूम लूँ इन थिरकते लबों को.”
“मुझसे मत पूछो…कुछ भी नही कह पाउन्गि.” ज़रीना आँखे बंद किए हुवे ही बोली.
क्रमशः...............................
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