RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--25
गतान्क से आगे.....................
आदित्य ने बिना वक्त गवायें अपने होन्ट ज़रीना के थिरकते लबों पर टीका दिए. ज़रीना सर से लेकर पाँव तक सिहर उठी… ऐसा लग रहा था जैसे की आदित्य ने शितार के तार छेड़ दिए हों.
दोनो के होन्ट दहक्ते अंगारों की तरह एक दूसरे से टकरा रहे थे. दोनो के प्यार का पहला चुंबन उनके प्यार की ही तरह अद्वित्य और सुंदर था. वक्त जैसे थम सा गया था. बहुत देर तक दीवानो की तरफ चूमते रहे दोनो.
दोनो को ऐसा चुंबन करने का पूरा अधिकार था. प्यार जो करते थे बेन्तेहा एक दूसरे को. होंटो की भासा भी बहुत प्यारी होती है. इसे भी होन्ट ही बोलते हैं और होन्ट ही सुनते हैं. चुंबन के उन पलों में दोनो के होन्ट बहुत कुछ कह रहे थे एक दूसरे को. लबों की हर हरकत कुछ कहती थी जिसे दोनो अपनी आत्मा की गहराई तक महसूस कर रहे थे.
वैसे तो कुछ भी और कहना मुश्किल हो रहा है दोनो के इस पहले चुंबन के बारे में. मगर इतना ज़रूर कह सकता हूँ की प्यार ही प्यार था दोनो के बीच चुंबन के उन पलों में जो की दोनो के प्यार को एक और गहराई दे रहा था. ये बात किस करते वक्त दोनो ही बखूबी समझ रहे थे.
चुंबन में लीन ज़रीना और आदित्य दीन दुनिया सब कुछ भूल गये थे. वक्त का अहसास भी खो गया था. वो चुंबन किसी मेडिटेशन से कम नही था. जिस तरह मेडिटेशन में लीन हो कर हम अपने अंदर बहुत गहराई में उतर जाते हैं ठीक उसी तरह ज़रीना और आदित्य अपने अंदर भी उतर गये थे और एक दूसरे की आत्मा को भी छू रहे थे. ये एक अद्विद्य घटना थी. वैसे ये प्यार करने वालो के साथ रोज होती है.
जब दोनो की साँसे उखाड़ने लगी तो एक दूसरे से अलग हुवे. दोनो की आँखे नम थी और साँसे बहुत तेज चल रही थी. एक दूसरे की बाहों में बने हुवे थे दोनो और बड़े प्यार से एक दूसरे को देख रहे थे. साँसे एक दूसरे से टकरा रही थी.
“ज़रीना चाहे कुछ हो जाए…मुझसे जुदा होने की बात सोचना भी मत. तुम जानती हो ना…मर जाउन्गा तुम्हारे बिना मैं.”
“ओह आदित्य प्लीज़ ऐसा मत कहो…..”
दोनो ने एक दूसरे की आँखो में देखा. आँखो ही आँखो में जाने क्या बात हुई. दोनो की आँखे नम हो गयी देखते-देखते और अचानक दोनो के होन्ट फिर से खुद-ब-खुद एक दूसरे से जुड़ गये.
किसी ने सच ही कहा है, भावनाओ में बह कर दो प्रेमियों में जो प्यार होता है वो होश में रहकर कभी नही हो सकता. प्यार की गहराई में उतरने के लिए दीवानेपन की बहुत ज़रूरत होती है.
अचानक आदित्य को कुछ ध्यान आया और उसने ज़रीना के होंटो से अपने होन्ट हटा लिए. “हाथ पर क्या किया तुमने?”
“चाकू से चीर दिया था.”
“पागल हो गयी थी क्या तुम… रूको मैं अभी आता हूँ.”
“आदित्य कही मत जाओ प्लीज़…हो जाएगा ठीक अपने आप.”
आदित्य ने ज़रीना की बात को अनसुना कर दिया और कमरे से बाहर आ गया. कुछ देर बाद वो वापिस आ गया. वो केमिस्ट से मरहम-पट्टी ले आया था.
“लाओ हाथ आगे करो.”
“नही डेटॉल मत लगाना बहुत जलन होती है इस से….प्लीज़” ज़रीना छोटे बच्चे की तरह गिड़गिडाई.
“हाथ चीरते वक्त सोचना चाहिए था ये…ये लगाना ज़रूरी है. लाओ हाथ आगे करो.”
“नही प्लीज़…” ज़रीना गिड़गिडाई.
आदित्य ने हाथ पकड़ा ज़बरदस्ती और घाव को डेटॉल से सॉफ किया.
“आअहह….धीरे से बहुत जलन हो रही है.”
“दुबारा ऐसा मत करना कभी…समझी”
“समझ गयी.” ज़रीना ने मासूमियत से कहा.
डेटॉल से घाव साफ करने के बाद आदित्य ने बेटडिन लोशन लगा कर पट्टी बाँध दी हाथ पर. “सब ठीक हो जाएगा.”
“आदित्य मैं सिमरन से मिलना चाहती हूँ.”
“छ्चोड़ो अब ज़रीना…क्या अपनी और ज़्यादा बेज़्जती करवाना चाहती हो.”
“सिमरन ने मुझे कुछ नही कहा ऐसा आदित्य. मुझे उस से मिलकर सॉरी तो बोलना चाहिए ना. प्लीज़ कुछ करो…मैं उस से मिलना चाहती हूँ.”
“वो तो देल्ही के लिए निकल रही थी. शायद एरपोर्ट पहुँच भी गयी हो.”
“तो हम एरपोर्ट ही चलते हैं. वही मिल लेंगे.”
“ठीक है फिर चलो जल्दी…वैसे तुम्हारा सॉरी बोलना नही बनता है क्योंकि सारी ग़लती मेरी है. फिर भी तुम कहती हो तो चलो.”
दोनो तुरंत होटेल से बाहर आए और एरपोर्ट के लिए टॅक्सी लेकर चल दिए. जैसे ही वो दोनो एरपोर्ट पहुँचे सिमरन अपनी टॅक्सी से उतर रही थी. आदित्य की नज़र उस पर पड़ गयी.
“वो रही सिमरन. अछा हुवा की यही बाहर ही मिल गयी..आओ जल्दी” आदित्य ने ज़रीना से कहा.
वो दोनो तुरंत टॅक्सी से निकल कर सिमरन की तरफ बढ़े.
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