RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--27
गतान्क से आगे.....................
प्यार हमें हर तरह के रंग दीखता है. लड़ाता भी है, हँसाता भी है, रुलाता भी है और कभी-कभी प्यारी सी नोक झोंक पैदा कर देता है रिश्ते में. प्यार का हर रंग अनमोल और अद्विद्या है. चुंबन का भी अपना ही महत्व है. चुंबन तो बस एक बहाना है प्यार का मकसद हमें ऐसी जगह ले जाना है जहा हम बस एक दूसरे में खो जायें. क्योंकि प्यार एक दूसरे में खो कर ही होता है…अपने आप में होश में रह कर नही………
आदित्य नहा कर चुपचाप दबे पाँव बाहर निकला वॉशरूम से. ज़रीना बिस्तर पर आँखे बंद किए पड़ी थी.
“खाने का ऑर्डर कर दिया क्या?”
“हां कर दिया…आता ही होगा?” ज़रीना ने कहा.
आदित्य ज़रीना के पास आकर बैठ गया और बोला, “क्या हुवा फिर से चेहरे पर 12 बजा रखे हैं…अब कौन सी नयी समस्या है तुम्हारी.”
“कुछ नही…बस सोच रही थी की सिमरन के घर वाले मान तो जाएँगे ना.”
“बातचीत करने से हर मसला हाल हो जाता है ज़रीना. हम एक कोशिस करेंगे बाकी भगवान की मर्ज़ी.”
“आदित्य तुम मुझे चिढ़ा क्यों रहे थे…तुम्हे शरम नही आती ऐसा बोलते हुवे. मैं तुमसे नाराज़ हूँ.”
“उफ्फ अभी तक नाराज़ हो. जाओ नहा कर आओ फटाफट… दीमाग ठंडा हो जाएगा. और किसी बात की चिंता मत करो सब ठीक होगा.” आदित्य ने कहा.
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अगली सुबह आदित्य और ज़रीना मुंबई एरपोर्ट के लिए निकल पड़े. दोपहर 12 बजे वो देल्ही में थे. सिमरन कारोल बाग में रहती थी. उन्होने कारोल बाग में ही एक होटेल में रूम ले लिया.
कुछ घंटे रेस्ट करने के बाद ज़रीना को होटेल में ही छ्चोड़ कर आदित्य सिमरन के घर आ गया. सिमरन घर में सब कुछ बता चुकी थी इश्लीए आदित्य का कोई ख़ास स्वागत नही हुवा.
“तो तुम अब जले पर नमक छिड़कने आए हो” सिमरन के पापा ने कहा. सिमरन एक तरफ खड़ी सब सुन रही थी.
“जी नही मैं माफी माँगने आया हूँ. आप मुझे माफ़ कर दीजिए. सिमरन ने आपको सब कुछ बता ही दिया है. हम सभी के लिए यही अछा है कि हम बैठ कर आपस में ही इसका हल निकाल लें. कोर्ट जाने से हमारा वक्त ही बर्बाद होगा. मानता हूँ मेरा स्वार्थ है इसमें पर इसमें आप लोगो का भी भला ही है”
सिमरन के पापा कुछ बोले बिना उठ कर चले गये. सिमरन ने आदित्य को इशारा किया मैं समझाती हूँ इन्हे तुम चिंता मत करो.
आदित्य चुपचाप वही बैठा रहा. कोई एक घंटे बाद सिमरन सिमरन कमरे में दाखिल हुई.
“आप अभी जाओ…कल इसी वक्त आ जाना तब तक मैं पापा को मना लूँगी. वो मेरी बात नही टालेंगे.”
“ठीक है सिमरन…सॉरी तुम लोगो को डिस्टर्ब करने के लिए पर मेरे पास कोई चारा नही था. ये मामला कोर्ट में पता नही कब तक लटका रहेगा. तुम तो लॉ स्टूडेंट हो ये बात बखूबी समझ सकती हो.”
“हां मैं समझ रही हूँ. पापा भी समझ जाएँगे. कल से आगे नही जाएगी बात.”
“थॅंक यू सिमरन…चलता हूँ मैं.”
“ज़रीना कहा है?”
“साथ ही आई है. होटेल में छ्चोड़ कर आया हूँ. वो अकेले मुझे कही जाने ही नही देती.”
“ये तो अच्छी बात है ना. उसे देल्ही घूमाओ आप आज. कल आएँगे तो निराश नही जाएँगे यहा से.”
“जानता हूँ. आपके होते हुवे निराशा हो ही नही सकती. चलता हूँ मैं.” आदित्य घर से बाहर निकल आया.
अगले दिन जब आदित्य सिमरन के घर पहुँचा तो सिमरन के पापा ने उसे देख कर गहरी साँस ली और बोले, “ठीक है मैं कुछ लोगो को बुलाता हूँ. आज ही ये किस्सा निपटा देते हैं. और ये मैं तुम्हारे लिए नही बल्कि अपनी बेटी के लिए कर रहा हूँ. इसका भी इस बंधन से आज़ाद होना ज़रूरी है ताकि हम इसका घर बसाने की सोच सकें तुमने तो उजाड़ने में कोई कसर नही छ्चोड़ी.”
आदित्य ने चुप रहना ही सही समझा.जब आप मूह तक पानी में डूबे हों तो मूह बंद ही रखना चाहिए वरना दिक्कतें और ज़्यादा बढ़ सकती हैं. आदित्य ये बात बखूबी समझ रहा था.
कुछ लोग इकट्ठा हुवे उस घर में और स्टंप पेपर पर आदित्य और सिमरन को वैवाहिक संबंध से आज़ाद कर दिया. स्टंप पेपर की एक कॉपी सिमरन के पापा ने रख ली और एक आदित्य को थमा दी.
आदित्य अपनी खुशी छुपा नही पाया और सिमरन के पापा के पाँव छू लिए आगे बढ़ कर, “ये अहसान मैं जींदगी भर नही भूलूंगा.”
“हम भी तुम्हे जींदगी भर नही भूलेंगे.”
आदित्य को सिमरन कही दीखाई नही दे रही थी. वो उसे बाइ करना चाहता था जाने से पहले. उसने सिमरन के बारे में पूछना सही नही समझा क्योंकि माहॉल गरम था. वो स्टंप पेपर को लेकर चुपचाप बाहर आ गया.
बाहर आकर उसने पीछे मूड कर देखा तो पाया की सिमरन छत पर खड़ी थी. जैसे ही दोनो की नज़रे टकराई सिमरन ने हंसते हुवे हाथ हिला कर अलविदा कहा.
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