RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
आदित्य की आँखे नम हो गयी सिमरन को देख कर. “मुझे माफ़ करना सिमरन. तुम्हारे सच्चे प्यार को ठुकरा दिया मैने. लेकिन कोई चारा नही था सिमरन. मेरे रोम-रोम में ज़रीना बस चुकी है. मैं चाहूं तो भी खुद को ज़रीना से जुदा नही कर सकता क्योंकि मर जाउन्गा उस से जुदा होते ही. यही दुवा करता हूँ की हमेशा खुस रहो तुम. जींदगी में कोई भी गम या दुख तुम्हारे पास भी ना भटक पाए. हे भगवान सिमरन को हमेशा खुश रखना.”
आदित्य आँखो में नमी लिए आगे बढ़ गया. होटेल तक पहुँचते-पहुँचते आँखो की नमी सूख चुकी थी और धीरे-धीरे उनमें एक अद्भुत चमक उभरने लगी थी. अब आदित्य और ज़रीना की शादी में कोई रुकावट नही थी. आदित्य ये बात सोच-सोच कर झूम रहा था. पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे उसके.
आदित्य होटेल की तरफ बढ़ते हुवे ये गीत गुनगुना रहा था:
♫♫♫♫…….ऐसा लगता है मैं हवाओ में हूँ….आज इतनी ख़ुसी मिली है
आज बस में नही है मन मेरा…आज इतनी ख़ुसी मिली है……♫♫♫♫
आदित्य ने जब होटेल के कमरे की बेल बजाई. ज़रीना ने भाग कर दरवाजा खोला.
“क्या हुवा आदित्य?”
“तुम्हे क्या लगता है…”
“जल्दी बताओ ना प्लीज़…मेरी साँसे अटकी हुई हैं जान-ने के लिए.”
आदित्य ने जेब से निकाल कर स्टंप पेपर दिखाया और बोला, “अब हमारी शादी में कोई रुकावट नही है जान. हम जब जी चाहे शादी कर सकते हैं.”
“सच!” ज़रीना उछल पड़ी ये बात सुन कर.
“हां अब तुम जी भर कर खेलना मेरे होंटो से…जितना जी चाहे उतना झुलसा देना इन्हे अपने अंगरो से. मैं उफ्फ तक नही करूँगा. तुम्हारी किस का कोई जवाब नही.”
“आदित्य तुम मार खाओगे अब मुझसे.”
“अपने होने वाले पति को मारोगी तुम.”
“पागल हो क्या…मज़ाक कर रही हूँ.”
“पता है मुझे…अब ये बताओ कब बनोगी मेरी दुल्हनिया.”
“आज, अभी…इसी वक्त…बनाओगे क्या बोलो.”
“ख़ुसी-ख़ुसी……बस एक बात बात बताओ हिंदू रीति रिवाज से शादी करना चाहोगी या फिर मुस्लिम रीति रिवाज से.”
“उस से कुछ फरक पड़ेगा क्या?”
“बिल्कुल भी नही?”
“फिर क्यों पूछ रहे हो.”
“यू ही तुम्हारा व्यू लेना चाहता था इस बारे में.”
“मेरा कोई व्यू नही है इस बारे में सच कह रही हूँ मैं. तुम मुझे जैसे चाहो अपनी दुल्हन बना लो. वैसे तुम्हारे भगवान के मंदिर में शादी करना चाहती हूँ मैं तुमसे. तुम मुझे एक साल बाद मंदिर में ही तो मिले थे.”
“पक्का…”
“हां पक्का.”
“ठीक है फिर. हम देल्ही से ही शादी करके चलते हैं. तुम अब अपने घर में मेरी दुल्हन बन कर ही प्रवेश करोगी.”
“आज जाकर दिल को शुकून मिला है. अल्लाह अब कोई और मुसीबत ना डाले हमारी शादी में.”
“कोई मुसीबत नही आएगी. बी पॉज़िटिव. जींदगी में उतार चढ़ाव तो चलते रहते हैं. तुम्हारी मौसी को भी बुला लेंगे हम.”
“नही…नही मौसी को मत बुलाओ. किसी को वाहा भनक भी लग गयी तो तूफान मचा देंगे लोग. तुम नही जानते उन्हे. जीतने कम लोग हों उतना अच्छा है.”
“ह्म्म बात तो सही कह रही हो.”
“जान बस और वेट नही होता मुझसे. मैं अभी सब इंटेज़ाम करके आता हूँ. हम कल सुबह शादी कर लेंगे”
“हां आदित्या बस अब और नही. मुझे मेरा हक़ दे दो ताकि दुनिया के सामने सर उठा कर जी सकूँ.”
आदित्य निकल तो दिया होटेल से शादी का इंटेज़ाम करने के लिए पर उसे इस काम में बहुत भाग दौड़ करनी पड़ी. मंदिरों के पुजारी तैयार ही नही थे शादी करवाने के लिए.आदित्य दरअसल हर जगह ज़रीना का नाम ले कर ग़लती कर रहा था. ज़रीना का नाम सुनते ही पुजारी मना कर देते थे. लेकिन दुनिया में हर तरह के लोग रहते हैं. एक जगह पुजारी ना बल्कि तैयार हुवा शादी करवाने को बल्कि बहुत खुश भी हुवा हिंदू-मुस्लिम का ये प्यार देख कर.
“बेटा मैं तो शोभाग्य समझूंगा अपना ये शादी करवा कर. तुम लोग सुबह ठीक 11 बजे आ जाना यहा.”
“पंडित जी हम दोनो यहा किसी को नही जानते. कन्या दान कैसे होगा..कोन करेगा.”
“उसका इंटेज़ाम भी हो जाएगा. मेरे एक मित्र हैं वो ख़ुसी ख़ुसी कर देंगे ये काम. तुम चिंता मत करो बस वक्त से पहुँच जाना. दोपहर बाद मुझे एक पाठ करने जाना है.”
“धन्यवाद पंडित जी. आप चिंता ना करें. हम वक्त से पहुँच जाएँगे.”
मंदिर में शादी का इंटेज़ाम करने के बाद आदित्य कपड़ो के शोरुम में घुस गया और ज़रीना के लिए लाल रंग की एक सारी खरीद ली. सारी लेकर वो ख़ुसी ख़ुसी होटेल की तरफ चल दिया.
होटेल पहुँच कर उसने ज़रीना को सारी दीखाई तो ज़रीना ने कुछ ख़ास रेस्पॉन्स नही दिया.
“क्या हुवा…क्या सारी पसंद नही आई?”
“मैं ये नही पहन सकती. ये शेड मुझे पसंद नही”
“हद है इतने प्यार से लाया हूँ मैं ज़रीना और तुम ऐसे बोल रही हो.” आदित्य सारी को बिस्तर पर फेंक कर वॉशरूम में घुस गया.
आदित्य वॉशरूम से बाहर आया तो ज़रीना उस से लिपट गयी.
क्रमशः...............................
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