RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
“कितने अच्छे लोग थे सभी. आलोक भैया तो बहुत एमोशनल हो रहे थे कन्यादान के वक्त.” ज़रीना ने कहा.
“हां इन लोगो के आने से जो रोनक लगी उसे हम जींदगी भर नही भूल पाएँगे. हम तो तन्हा चले थे होटेल से लोग जुड़ते गये कारवाँ बनता गया.”
“आदित्य बहुत खर्चा किया लोगो ने हमारे लिए. हमें कुछ तो देना चाहिए था उन्हे.”
“मैने पंडित जी से पूछा था पर उन्होने मना कर दिया. उन्होने कहा कि हमारे प्यार के बदले में तुम हमें कुछ दोगे तो ये व्यापार बन जाएगा. प्लीज़ इसे प्यार ही रहने दो.”
“ह्म्म बहुत अच्छा लगा इन लोगो का साथ.”
“हां सही कहा.”
अचानक बाते करते करते ज़रीना बिल्कुल खामोश हो गयी. उसने अपना चेहरा खिड़की की तरफ घुमा लिया.
“क्या हुवा जान…अचानक चुप क्यों हो गयी.”
ज़रीना ने आदित्य की तरफ मूड कर देखा. उसकी आँखे नम थी. वो ख़ुसी के आँसू नही लग रहे थे.
आदित्य ने ज़रीना के हाथ पर हाथ रखा और बोला, “क्या बात है जान…क्या मुझसे कोई भूल हो गयी.”
“नही आदित्य तुमसे कोई भूल नही हुई. बस यू ही उदास हूँ.”
आदित्य ने टॅक्सी में होने के कारण कुछ और पूछना सही नही समझा. जब वो होटेल पहुँचे तो कमरे में आते ही ज़रीना फूट पड़ी. रोते हुवे वो सोफे पर बैठ गयी.
“क्या हुवा जान…कुछ बताओ तो सही.”
“अम्मी-अब्बा और फ़ातिमा की याद आ रही है आज आदित्य. अपने अम्मी-अब्बा के गले लग कर रोना चाहती थी मैं आज पर वो इस दुनिया में नही हैं. कितनी बदनसीब हूँ मैं.”
आदित्य ज़रीना के सामने फार्स पर बैठ गया और उसका हाथ थाम कर बोला, “जान तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ. हम दोनो ने अपने पेरेंट्स को एक साथ खोया है. अगर तुम्हारे अम्मी अब्बा और मेरे मम्मी पापा जींदा होते तो बहुत ज़्यादा नाराज़ होते हम दोनो से. मगर मुझे यकीन है कि हम एक ना एक दिन मना ही लेते उनको.”
“हां आदित्य वही तो. वो नाराज़ रहते मगर इस दुनिया में तो रहते. कभी ना कभी हम उन्हे मना ही लेते. तुम्हे नही पता कैसे संभाला मैने खुद को मंदिर में. ये दंगे क्यों होते हैं आदित्य. कोई इन्हे रोकता क्यों नही.”
“भीड़ जब पागल हो जाती है तो उसे रोकना बहुत मुश्किल हो जाता है. और जब भीड़ किसी के बहकावे में आ जाए तो स्तिथि और भी गंभीर हो जाती है. ये दंगे क्यों होते हैं नही कह सकता क्योंकि इतना ज्ञानी नही हूँ मैं. हां इतना ज़रूर कह सकता हूँ क़ि दंगे इंसान को हैवान बना देते हैं. मैने तुम्हे बताया था ना कि जब मुझे अपने मम्मी पापा की मौत का पता चला तो मेरा खून खोल उठा था. मेरे अंदर बदला लेने की आग भड़क उठी थी. मैं भी भीड़ में शामिल हो जाना चाहता था. लेकिन फ़ातिमा का रेप नही देख पाया ज़रीना. मुझे यही लगा कि किसी के साथ ऐसा नही होना चाहिए. 5 लोग भूके भेड़ियों की तरह नोच रहे थे उसे.”
“बस आदित्य बस प्लीज़ चुप हो जाओ…नही सुन सकती ये सब. बहुत प्यार करती हूँ मैं फ़ातिमा से. उसके बारे में ऐसा कुछ नही सुन सकती.”
“सॉरी जान तुमने सवाल किया तो बातों बातों में ये बात आ गयी ज़ुबान पर. छ्चोड़ो अब ये सब. मैं हूँ ना तुम्हारे साथ.”
“हां तुम हो तभी तो जींदा हूँ आदित्य.”
“आज इतने ख़ुसी के दिन क्या ऐसे उदास रहोगी.”
“सॉरी अचानक ख़याल आया तो रोक नही पाई मैं खुद को. मंदिर में सब लोग थे तो खुद को संभाले हुवे थी. सबके सामने नही रोना चाहती थी. तुम्हारे सामने खुद को संभाल नही पाई क्योंकि पता है मुझे की तुम संभाल लोगे मुझे.”
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