RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
उधर !
भारत में समुद्रतट के किनारे बसा शहर मुम्बई !
और मुम्बई में भी एक कई मंजिला ऊंचा रॉ का वह विशालतम हैडक्वार्टर, जहाँ इस समय अफरा-तफरी जैसा माहौल था ।
आधी रात के समय भी पूरे हैडक्वार्टर की लाइटें जली हुई थीं ।
वह फिल्म-रूम था । जहाँ इस समय गंगाधर महन्त और काफी सारे रॉ एजेंट बैठे हुए थे । सामने पैंतीस मिलीमीटर की स्क्रीन जगमगा रही थी । इस वक्त फिल्म रूम में जितने भी व्यक्ति मौजूद थे, सबकी आँखें आश्चर्य और दहशत की वजह से फटी हुई थीं । उस वक्त स्क्रीन पर एअर इण्डिया का वो थ्री सीटर विमान मंडराता हुआ नजर आ रहा था । जो कमाण्डर को छोड़ने बर्मा के जंगल में गया था ।
तभी उस विमान का दरवाजा खुलता हुआ सभी ने देखा और फिर दरवाजे पर पैराशूट बांधे कमाण्डर करण सक्सेना नजर आया ।
कमाण्डर की पीठ पर हैवरसेक बैग बंधा था ।
चेहरे पर दृढ़ता के भाव !
क्या मजाल जो वह जरा भी डरा हुआ हो ।
फिर उन सबके देखते-देखते उसने उड़ते हुए हवाई जहाज में से नीचे जंगल में छलांग लगा दी ।
उसके बाद वो नजरों के सामने से ओंझल होता चला गया ।
“हैलो-हैलो !” गंगाधर महन्त अब ट्रांसमीटर सैट पर जोर-जोर से चिल्लाने लगे- “तुम इस वक्त कहाँ हो करण ? क्या तुम सुरक्षित रूप से नीचे उतर चुके हो ?”
शीघ्र ही उन्हें कमाण्डर की आवाज ट्रांसमीटर पर सुनाई दी ।
उनके बीच बातें हुई ।
और फिर कमाण्डर ने यह कहकर वो बातचीत खत्म कर दी कि अब उस पूरे मिशन के दौरान उनके बीच कोई वार्तालाप नहीं होगा ।
“हे भगवान, कितना जांबाज है यह लड़का !” गंगाधर महन्त आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोले- “अब सारे विश्व से इसका सम्पर्क कट चुका है । अब कोई इसकी मदद नहीं कर सकता । अब बर्मा के खौफनाक जंगलों में यह बिल्कुल अकेला है ।”
“लेकिन कमाण्डर ने यह क्यों कहा है ।” तभी रचना मुखर्जी नाम की एक रॉ एजेंट बोली- “कि वह पूरे मिशन के दौरान आपसे ट्रांसमीटर पर भी बातचीत नहीं करेंगे?”
“क्योंकि कमाण्डर जानता है कि उन बारह यौद्धाओं के पास मॉडर्न गैजेट हैं ।” गंगाधर महन्त की आवाज भावुक हो उठी- “अगर उनमें से कोई भी योद्धा ट्रांसमीटर पर होने वाली हमारी उन बातचीत को सुन लेगा, तो उसी पल हमारा यह मिशन फेल हो जायेगा । उसी पल उसके ऊपर संकट के बादल मंडराने लगेंगे । इसीलिए उस जांबाज लड़के ने इतनी बड़ी मुश्किल में फंसने के बावजूद भी उस रास्ते को ही बंद कर दिया है, जिससे खतरा पैदा हो ।”
“लेकिन कमांडर का यह डिसीज़न गलत भी हो सकता है चीफ !”
“तुम शायद नहीं जानतीं, करण राईट डिसीज़न लेने में बिलीव नहीं करता । वह पहले डिसीज़न लेता है, फिर उसे राईट करता है । यही करण की सबसे बड़ी खासियत है । करण फाउंडर है, फॉलोवर नहीं ।”
रचना मुखर्जी की आँखों में आंसू छलछला आये ।
जबकि गंगाधर महन्त ने बड़े जोश के साथ खड़े होकर स्क्रीन पर धुंधलाती कमाण्डर की तस्वीर को जोरदार सैल्यूट मारा था ।
“तुम सचमुच महान हो कमाण्डर, सचमुच महान हों । यह गंगाधर महन्त भी तुम्हारी बहादुरी के लिए तुम्हें सैल्यूट करता है ।”
और !
भीगती चली गयी थीं गंगाधर महन्त की आँखें ।
उस क्षण फिल्म रूम में बैठे तमाम रॉ एजेंटों की आँखें नम थीं ।
वह सब उसकी बहादुरी से अभिभूत थे ।
“काश !” रचना मुखर्जी ने गहरी सांस छोड़ी- “काश कमाण्डर के साथ मुझे भी इस मिशन पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होता । काश उनके साथ-साथ मैं भी अपनी जिंदगी का यह दांव खेल पाती ।”
उसकी आवाज हसरत से भरी थी ।
उसे अफसोस था, उसे यह मौका क्यों नहीं मिला ।
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