RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
जंगल में जैसे ही सुबह की प्रकाश रश्मियां फैलीं, कमाण्डर करण सक्सेना ने अपनी आखें खोल दीं ।
उसने सारी रात एक पथरीली गुफा में गुजारी थी, जिसका दहाना उसने एक काफी बड़े पत्थर से बंद कर लिया था । इस वक्त कमाण्डर के घुटने में काफी तेज दर्द था । पेराशूट से गिरने पर जिसे वो मामूली खरोंच समझ रहा था, वह दरअसल गहरी चोट थी, जो उसके घुटने में लगी थी और जिसका अहसास उसे अब आकर हो रहा था ।
कमाण्डर ने गुफा के दहाने पर रखा पत्थर हटाया और वो धीमी चाल से चलता हुआ बाहर निकला ।
रोशनी अब चारों तरफ फैली थी । सामने उसे एक नदी नजर आयी, जो उसकी जानकारी के मुताबिक बर्मा की प्रसि़द्ध इरावती नदी थी । कमाण्डर करण सक्सेना ने गुफा से बाहर आते ही अपने बायें हाथ को हल्का-सा जर्क दिया ।
उसके हाथ में भी थोड़ी दु़ःखन थी, लेकिन घुटने में दर्द ज्यादा था ।
‘पहले मुझे अपने घुटने पर कोई दवाई लगानी चाहिये ।” कमाण्डर होंठों-ही-होंठों में बुदबुदाया- “परन्तु उससे भी पहले मेरे लिये एक दूसरा काम करना ज्यादा जरूरी है ।”
कमाण्डर अब वहीं नदी के किनारे हरी-हरी घास पर ध्यान की मुद्रा में बैठ गया ।
पिछले काफी वर्षों से एक बेहद खतरनाक जीवन जीते रहने के कारण और दुश्मनों से चौकस रहने की वजह से कमाण्डर की छठी इन्द्री काफी विकसित हो चुकी थी । वह खतरे को तो मानो मीलों दूर से भांप लेता था ।
ध्यान की मुद्रा में बैठते ही कमाण्डर ने अपने नथुने सिकौड़ लिये और वह अपने आसपास के वातावरण में फैली गंध लेने का प्रयास करने लगा ।
“ऐसा अहसास हो रहा है ।” काफी देर तक गंध लेने के बाद वो पुनः बुदबुदाया- “जैसे यहाँ से कोई तीन सौ मील दूर उत्तर-पश्चिम में साठ डिग्री ऐंगिल पर कुछ लोग हैं, पता नहीं वह दोस्त हैं या दुश्मन ! लेकिन हवा में ऐसी गंध आ रही है, जैसे वह सुबह का नाश्ता बना रहे हों ।”
कमाण्डर करण सक्सेना काफी देर तक और इधर-उधर की गंध लेने का प्रयास करता रहा ।
फिर उसने अपनी आंखे खोल दीं ।
स्नायु तन्त्र भी ढीले छोड़ दिये ।
अगर वहा से तीन सौ मीटर दूर उसके दुश्मन मौजूद थे, तो उनसे उसे टक्कर लेनी पड़ेगी ।
परन्तु उससे पहले अपने आपको चाक-चौबंद करना भी ज्यादा जरूरी था ।
करण सक्सेना ने एक-एक करके अपने कपड़े उतारने शुरू किये, शीघ्र ही वो सिर्फ एक अण्डरवियर में खड़ा था ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने अपने घुटने को देखा, वहाँ काफी सारा खून जमा हुआ था और घुटने को छूते ही दर्द होता था ।
“लगता है कि एक-आध इंजेक्शन भी लेना होगा ।”
फिर उसने अपने हैवरसेक बैग में से फर्स्ट-एड के सामान की पूरी किट निकाली ।
उसके बाद उसने दर्द कम करने के दो इंजेक्शन लिये ।
घुटने पर दवाई लगायी, उपर से रूई का फाहा रखा और चौड़ी टेप चिपका ली ।
कहने की आवश्यकता नहीं, जिस तरह हर जासूस को मैडिकल की थोड़ी-बहुत ट्रेनिंग हासिल होती है । वैसी ही ट्रेनिंग कमाण्डर करण सक्सेना को भी हासिल थी ।
“अब थोड़ी-बहुत देर में घुटने का दर्द कम हो जाना चाहिये ।” कमाण्डर ने घुटने पर चिपके टेप को थोड़ा और कसा ।
सचमुच वह मिशन कई मायनों में खतरनाक था । जैसे कमाण्डर को इस बार किसी की मदद भी हासिल नहीं थी, जो अक्सर हर मिशन के दौरान उसे हासिल होती है ।
इस बार तो वह अकेला था ।
तन्हा !
वो भी इतने खौफनाक जंगल में ।
कमाण्डर ने भागते हुए नदी में जम्प लगा दी और फिर वह अपने शरीर को अच्छी तरह मल-मलकर नहाता रहा । नदी में जम्प लगाने से पहले कमाण्डर ने एक महत्वपूर्ण कार्य और किया था ।
उसने अपने पूरे शरीर पर वीटा एक्स स्प्रेन नाम का एक गुलाबी लोशन लगा लिया था । वह गुलाबी लोशन ऐसा था, जिसे शरीर पर मलने के बाद अगर पानी में विष भी मिला हुआ हो, तो उस विष का भी कैसा कोई असर शरीर पर नहीं पड़ता था ।
खूब अच्छी तरह मल-मलकर नहाने के बाद कमाण्डर ने स्वयं को तरो-ताजा अनुभव किया ।
तब तक इंजेक्शन का असर भी दिखाई पड़ने लगा था । घुटने में अब काफी कम दर्द था ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने अपने सारे कपड़े दोबारा पहने ।
फिर रिवाल्वर चैक किये ।
स्प्रिंग ब्लेड चैक किये ।
हैवरसेक बैग चैक किया ।
सारा सामान अपनी जगह दुरूस्त था ।
थोड़ी देर बाद ही कमाण्डर पूरी तरह चाक-चौबंद खड़ा था ।
“माई ब्वाय ।” उसे गंगाधर महन्त के शब्द याद आये, जो मिशन पर रवाना होने से पहले उन्होंने कमाण्डर से कहे थे- “इस मिशन में तुम्हारे मरने के चांस निन्यानवे प्रतिशत हैं और बचने के चांस सिर्फ एक प्रतिशत हैं ! यूँ समझो-हिन्दुस्तान के सबसे होनहार सपूत की जिंदगी को हम लोग जानबूझकर दांव पर लगा रहे हैं ।”
मिशन पर रवाना होने से पहले माननीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी उसकी मुलाकात हुई थी ।
वह बहुत भावुक क्षण थे ।
जज्बातों से भरे हुए ।
देश की उन दोनों सर्वोच्च ताकतों ने कमाण्डर को अपने गले से लगा लिया था ।
“कमाण्डर, तुम्हें इस मिशन पर भेजना हमारी मजबूरी है । बहुत जरूरत है ।” प्रधानमंत्री महोदय बोले- “सिर्फ बर्मा सरकार के अनुरोध की वजह से ही हम तुम्हारी जिंदगी खतरे में नहीं डाल रहे हैं बल्कि इसमें कहीं-न-कहीं भारत का निजी स्वार्थ भी शामिल है । दरअसल अमरीका जैक क्रैमर के कंधे पर बंदूक रखकर बर्मा में एक बहुत खतरनाक खेल, खेल रहा है । वह उन बाहर यौद्धाओं की मदद से बर्मा पर कब्जा करके वहाँ एशिया में अपना सबसे बड़ा फौजी अड्डा कायम करना चाहता है और बर्मा में अपना फौजी अड्डा कायम करने के बाद उसका अगला निशाना भारत होगा । भारत की आर्थिक और सैन्य व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करना होगा । इसलिए इससे पहले कि अमरीका अपने नापाक इरादों में सफल हो, तुमने बर्मा के जंगलों में जाकर उन सभी बारह योद्धाओं को मार डालना है ।”
“कमाण्डर, एक बार फिर तुम्हें एक बहुत भारी जिम्मेदइारी सौंपी जा रही है ।” वह शब्द राष्ट्रपति महोदय ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहे- “यह मिशन इतना ज्यादा खतरनाक हैं कि इसे हम तुम्हारे अलावा किसी दूसरे जासूस को सौंपने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे । तुम इस मिशन में सफल होकर लौटो या फिर असफल होकर लौटो कमाण्डर, लेकिन मैं आज ही तुम्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित करता हूँ ।”
गर्व से वह शब्द कहते हुए राष्ट्रपति की आँखों में आंसू छलछला आये थे ।
भारत रत्न !
सचमुच कमाण्डर करण सक्सेना उसी सम्मान के योग्य था ।
वास्तव में ही वो भारत का सबसे बड़ा रत्न था ।
यह बातें ही बता रही थीं कि जिस मिशन पर कमाण्डर को इस बार भेजा गया था, वह कितना डेंजर था ।
कितना जानलेवा था ।
बहरहाल कमाण्डर करण सक्सेना ने इरावती नदी में स्नान करने और पूरी तरह तरोताजा होने के बाद अपने हैवरसेक बैग में से हॉट-पॉट निकाला, जो टिफिन कैरियर की शक्ल में था और फिर उसने उसमें से निकाल-निकालकर जैम और बटर स्लाइस्ड इत्यादि का सेवन किया और फलों का काफी सारा जूस पिया ।
उसके बाद उसने जंगल में आगे का सफर शुरू कर दिया था ।
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