RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
कमाण्डर उसी तरफ बढ़ा, जिधर से उसे थोड़ी देर पहले नाश्ता बनने की गंध मिली थी ।
उसे अब उस तरफ से कुछ और आवाजें भी आ रही थीं ।
जैसे कहीं ढोलक बज रही हो या किसी और चीज पर थाप दी जा रही हो ।
कमाण्डर समझ न सका, क्या चक्कर है । अलबत्ता अब वो बहुत सावधानी के साथ उस दिशा में बढ़ रहा था ।
जब वह आवाज और ज्यादा जोर-जोर से आने लगी, तो कमाण्डर करण सक्सेना नजदीक की झाड़ियों में घुस गया ।
फिर वह झाड़ियों में रेंगते हुए ही आगे बढ़ा ।
इस समय वो सर्प की मानिन्द रेंग रहा था ।
बिल्कुल बेआवाज !
निःशब्द !
कमाण्डर ने काफी आगे जाकर देखा कि वह एक जंगली आदमी था-जो पेड़ों के झुण्ड के नीचे बैठा था और बड़ी तन्मयता से नगाड़े पर थाप दे रहा था ।
वह बर्मी युवक था ।
उसके इतनी जोर-जोर से नगाड़ा बजाने की वजह कमाण्डर करण सक्सेना न समझा ।
सामने ही एक छोटी सी झोपड़ी बनी थी, जो जरूर उसी बर्मी युवक की थी ।
झोंपड़ी के बाहर मिट्टी का चूल्हा बना था ।
वहीं एक पतीली रखी थी ।
चूल्हें में आग अभी भी थी ।
जरूर उसी चूल्हे पर उसने सुबह का नाश्ता तैयार किया था और फिर नगाड़ा बजाने बैठ गया था । कमाण्डर ने इधर-उधर नजर दौड़ाई, तो उसे वहाँ आसपास उस बर्मी युवक के अलावा दूसरा कोई आदमी नजर नहीं आया ।
उसी क्षण झाड़ियों में लेटे कमाण्डर को ऐसी अनुभूति हुई, जैसे कोई बिल्कुल निःशब्द ढंग से उसके पीछे आकर खड़ा हो गया है ।
कमाण्डर झटके से पलटा ।
एकदम !
परंतु वह कुछ न कर सका ।
उसने फौरन ही एक बहुत तेज धार वाले भाले को अपनी तरफ तनें पाया । उसके सामने अब एक और बर्मी युवक खड़ा था ।
“खबरदार !” कमाण्डर के पलटते ही उस बर्मी युवक ने भाला बिल्कुल उसकी गर्दन पर रख दिया- “खबरदार ! अगर तुमने कोई भी हरकत की, तो अभी तुम्हारी यह गर्दन कटकर अलग जा पड़ेगी ।”
उस युवक ने वह शब्द विशुद्ध ‘बर्मी भाषा’ में कहे थे ।
कमाण्डर बर्मी भाषा खूब अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस युवक की धमकी को अच्छी तरह समझ गया ।
वह लम्बा-तगड़ा था । उसकी कलाई भी काफी चौड़ी थी । कमाण्डर करण सक्सेना भांप गया, अगर वह कोई गलत हरकत करेगा, तो उससे मुकाबला आसान नही होगा ।
वैसे भी कमाण्डर उस समय लड़ाई-झगड़े के मूड में नहीं था ।
फिलहाल तो वो यही जानना चाहता था कि वह लोग कौन हैं और क्या कर रहे हैं ?
“अपने हाथ ऊपर करो ।” वह बर्मी युवक पुनः गुर्राया- “और सीधे खड़े हो जाओ ।”
कमाण्डर ने विरोध नहीं किया ।
वह अपने दोनों हाथ ऊपर करके झाड़ियों में सीधा खड़ा हो गया ।
हैवरसैक बैग अभी भी उसकी पीठ पर था ।
दूसरा बर्मी युवक भी अब नगाड़ा बजाना बंद कर चुका था और बेहद आश्चर्यभरी निगाहों से उन्हीं दोनों की तरफ देख रहा था । फिर वह आसन से उठकर उन्हीं दोनों के नजदीक आ गया ।
“क्या तुम बर्मी भाषा जानते हो ?” पहले वाला युवक कमाण्डर करण सक्सेना की गर्दन पर भाला ताने-ताने बोला- “अगर जानते हो, तो मुझे बताओ ।”
“हाँ , मैं बर्मी भाषा जानता हूँ ।” कमाण्डर ने विशुद्ध बर्मी भाषा में ही जवाब दिया ।
उन दोनों युवक की आँखें चमक उठीं ।
उन्हें यह देखकर अच्छा लगा कि उनके सामने खड़ा वह अजनबी आदमी उनकी जबान में ही बात कर रहा था ।
“तुम कौन हो ?” उस युवक ने पुनः गुर्राकर कहा- “और इतने घने जंगल में क्या कर रहे हो ?”
“मैं भारतीय वायु सेना का सब पायलेट हूँ ।” कमाण्डर ने फौरन ही उपयुक्त जवाब सोच लिया- “ओर कल रात मैं अचानक उड़ते हुए जहाज में से नीचे गिर पड़ा ।”
दोनों बर्मी युवक चौंके ।
“नीचे गिर पड़े ।” इस मर्तबा दूसरे बर्मी युवक ने हैरानीपूर्वक कहा- “परन्तु इस तरह कोई भी उड़ते हुए हवाई जहाज में से नीचे कैसे गिर सकता है ?”
“आप लोगों का कहना बिल्कुल ठीक है । लेकिन कल रात मेरे साथ ऐसा ही एक हादसा पेश आया । दरअसल मैं भारतीय वायु सेना का सब-पायलट हूँ और शौकिया फोटोग्राफर हूँ, मैं कहीं भी कोई मनोरम दृश्य देखता हूँ, तो उस दृश्य को अपने कैमरे में कैद करने की इच्छा संवरित नहीं कर पाता । कल भी ऐसा ही हुआ । कल रात जब हमारा विमान बर्मा के इन घने जंगलों के ऊपर से गुजरा, तो मैं इन खौफनाक जंगलों के दृश्य अपने कैमरे में कैद करने लगा । परन्तु विमान की ग्लास विण्डों के पीछे से फोटोग्राफ खींचने में मुझे ज्यादा आनंद नहीं आ रहा था, इसलिए मैंने एक खतरनाक कदम उठा लिया ।”
“कैसा खतरनाक कदम ?”
दोनों बर्मी युवक सस्पैंसफुल मुद्रा में खड़े थे ।
“मैंने विमान का दरवाजा खोल लिया और हवा के जोरदार थपेड़े सहता हुआ नीचे झुककर फोटो खींचने लगा । तभी यह घटना घटी । मैं फोटोग्राफ खींचने में इतना मग्न हो गया था कि मुझे पता नहीं चला कि कब मेरा पैर स्लिप हुआ और कब मैं धड़ाम से नीचे गिरा ।”
उन दोनों ने स्तब्ध भाव से एक-दूसरे की तरफ देखा ।
वह एकाएक उस कहानी पर यकीन नहीं कर पा रहे थे ।
“इसमें कितनी बात सच है ?”
“सारी ही बात सच है ।” कमाण्डर बोला- “झूठ का मतलब ही नहीं और वैसे भी मैं तुम लोगों से झूठ क्यों बोलूंगा ?”
“यानि तुमने सिर्फ फोटो खींचने के लिए उड़ते हुए विमान का दरवाजा खोल लिया था ।”
“हाँ ।”
दूसरे बर्मी युवक ने पहले वाले साथी की तरफ देखा- “दोस्त, तुम्हें आता है इसकी बात पर यकीन ?”
“मुझे नहीं आता ।”
“यकीन न आने की कोई वजह नहीं है ।” कमाण्डर करण सक्सेना पुरजोर लहजे में बोला- “मैंने बताया न, मैं एक शौकिया फोटोग्राफर हूँ और ऐसे मनोरम दृश्यों से बेइंतहा प्यार करता हूँ । यह कोई फोटोग्राफर ही बता सकता है कि ऐसे दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए कोई शौकिया किस हद तक जा सकता है ।”
उन दोनों के चेहरे पर असमंजसपूर्ण भाव छा गये ।
जो बर्मी युवक नगाड़े पर थाप दे रहा था, वह अब कमाण्डर करण सक्सेना के शरीर को ऊपर से नीचे तक बड़े गौर से देखने लगा ।
“इस तरह क्यों देख रहे हो ?”
“तुम कह रहे थे कि तुम उड़़ते हुए विमान में से नीचे गिरे हो ?”
“हाँ ।”
“लेकिन तुम्हारे शरीर पर कोई टूट-फूट नजर नहीं आती । जबकि इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद तो तुम्हारे जिस्म की कोई भी हड्डी साबुत नहीं बचनी थी ।”
“कम से कम इस मामले में किस्मत ने मेरा बहुत साथ दिया ।”
“कैसे ?”
“मैं दरअसल रेतीली जमीन पर आकर गिरा था, इसलिए मेरी तमाम हड्डिया सलामत रहीं । फिर भी घुटने में काफी चोट लगी थी और हाथ में भी कुछ जर्क आ गया था । यह देखो ।” कमाण्डर ने अपनी पतलून ऊपर करके घुटने की चोट उन दोनों को दिखाई ।
उन दोनों ने फिर एक-दूसरे की तरफ देखा ।
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