RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
कमाण्डर करण सक्सेना झाड़ियों में पड़ा हुआ था ।
उसकी सांसे जोर-जोर से चल रही थीं, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कई मील लम्बी मैराथन दौड़ में हिस्सा लेकर आ रहा हो । उसे अपनी टांगे सुन्न और बेजान पड़ती महसूस हुईं ।
कमाण्डर करण सक्सेना न जाने कितनी देर तक इसी तरह झाड़ियों में पड़ा हाँ फता रहा ।
उससे थोड़ा ही फासले पर आठ फुट लम्बे अनाकोंडा की खून में लथपथ लाश पड़ी थी ।
हैवरसेक बैग अब कमाण्डर के पास था । परन्तु वो महसूस कर रहा था कि फिलहाल वो जंगल में आगे चलने योग्य नहीं रहा है । कमाण्डर करण सक्सेना को इसी बात को लेकर आशंका थी कि इस वक्त वो अपने पैरों पर खड़ा भी हो पायेगा या नहीं । अनाकोंडा ने अपने उस बंधन को और ज्यादा नहीं कस दिया, वरना कमाण्डर के पैरों की तमाम हड्डियां चकनाचूर हो गयी होतीं और फिर शायद ही वो कभी जीवन में अपने पैरों पर चलने योग्य रहता ।
तभी कमाण्डर को ऐसा लगा, जैसे बेहोशी उसके ऊपर छाती जा रही है ।
उसने खुद को बेहोश होने से रोकने की बेपनाह कौशिश की, लेकिन जब वो अपनी उस कौशिश में कामयाब होता न दिखाई दिया, तो उसने हैवरसेक बैग में से निकालकर ‘कैमोफ्लाज किट’ अपने ऊपर डाल ली, जो उन झाड़ियों में बिल्कुल घुल-मिल गयी ।
फिर कमाण्डर करण सक्सेना कब बेहोश हो गया, यह खुद उसे भी न मालूम हुआ ।
वह न जाने कितनी देर तक उसी अवस्था में पड़ा रहा ।
कमाण्डर करण सक्सेना को सिर्फ इतना अहसास था कि वो काफी देर बाद होश में आया था ।
आधा घण्टा । एक घण्टा या फिर उससे भी ज्यादा ।
अलबत्ता उसकी टांगे अब उतना दर्द नहीं कर रही थीं । उसने अपनी टांगों को इधर-उधर हिलाया, तो वह आसानी से हिल गयीं । सिर भी भारी-भारी नहीं था ।
कुछ देर की बेहोशी ने उसकी काफी थकान मिटा दी थी ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने देखा, कैमोफ्लाज किट अभी भी उसके ऊपर थी । अलबत्ता जंगल में अब आसपास से काफी लोगों के चलने की आवाजें आ रही थीं । ऐसा मालूम होता था, जैसे काफी सारे लोग जंगल में वहीं आसपास थे ।
कमाण्डर ने थोड़ी सी कैमोफ्लाज किट हटाकर बाहर झांका ।
अगले ही पल वो सन्न रह गया ।
सामने ही उसे काफी सारे हथियारबंद गार्ड नजर आये, जो अभी वहाँ पहुंचे थे । उन्हीं के बीच उसे छरहरे बदन और अभूतपूर्व तेजयुक्त चेहरे वाला समुराई फाइटर भी चमका, जिसकी लम्बी समुराई कमर से बंधी हुई अंधेरे में भी अलग नजर आ रही थी ।
“यह क्या ?” ली मारकोस वहाँ पहुँचते ही चौंका- “अनाकोंडा की लाश ।”
“ऐसा लगता है मारकोस साहब !” एक गार्ड बोला- “इस जगह कमाण्डर और अनाकोंडा के बीच जमकर द्वंद्वयुद्ध हुआ था ।”
“हूँ ।”
ली मारकोस वहीं अनाकोंडा की लाश के नजदीक बैठ गया और फिर उसे काफी गौर से देखने लगा ।
“सचमुच वो काफी बहादुर है ।” ली मारकोस धीमे स्वर में बुदबुदाया- “जिस तरह उसने अनाकोंडा का सामना किया है और फिर उसके पेट तथा गर्दन को फाड़ा है, ऐसा दिलेरी से भरा काम कोई जबरदस्त फाइटर ही अंजाम दे सकता है । वरना कोई साधारण आदमी तो अनाकोंडा का देखकर ही दहशत से मर जायेगा ।”
“वाकई !” एक अन्य गार्ड बोला- “अब तो मुझे भी लगने लगा है कि हमारी एक खतरनाक आदमी से मुठभेड़ होने वाली है ।”
वहाँ अभी सिर्फ ली मारकोस वाली टुकड़ी पहुंची थी । जबकि बार्बी वाली जो टुकड़ी जंगल में दूसरी तरफ आगे बढ़नी शुरू हुई थी, वह अभी भी आगे बढ़ रही थी और उनसे काफी फासले पर थी ।
“लेकिन एक बात समझ में नहीं आयी मारकोस साहब !”
“क्या ?”
“जब कमाण्डर करण सक्सेना और अनाकोंडा की इस स्पॉट पर मुठभेड़ हुई थी, तो फिर कमाण्डर करण सक्सेना हमें उसी रास्ते पर कहीं टकराना चाहिये था, जिस रास्ते में हम होकर आ रहे हैं । जबकि हमने उसे वहाँ कहीं भी नहीं देखा ।”
“इसके पीछे एक दूसरी वजह भी हो सकती है ।” ली मारकोस, अनाकोंडा के पास से खड़े होकर गंभीर मुद्रा में बोला ।
“क्या?”
“अनाकोंडा को मरे हुए अभी कोई ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है ।” ली मारकोस की निगाहें अनाकोंडा पर ही टिकी थीं- “खून बिल्कुल ताजा है और काला नहीं पड़ा है । ऐसी परिस्थिति में यह भी मुमकिन है कि कमाण्डर करण सक्सेना यहीं कहीं आसपास मौजूद हो । जख्मी हालत में हो या फिर काफी थका हुआ हो ।”
“हाँ , यह संभव है ।”
तमाम गार्डों को ली मारकोस की बात में दम लगा ।
“यानि !” एक अन्य गार्ड बोला- “हमें यहाँ फौरन कमाण्डर करण सक्सेना को तलाश करना चाहिये ।”
“बिल्कुल !”
तुरंत सारे गार्ड इधर-उधर फैलने शुरू हो गये ।
अपनी राइफलें अब उन्होंने मुस्तैदी से पकड़ ली थीं । जबकि कुछ के हाथ में लाइट मशीनगनें भी थीं ।
जिन्हें एल0एम0जी0 कहते हैं ।
|