RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
उस ट्रांसमीटर कॉल के पहुँचते ही गुफा में हलचल मच गयी ।
“मारकोस जिंदा है !” बार्बी बदहवासों की तरह बोली- “जरूर वो जख्मी है, हमें फौरन उसकी मदद के लिये आगे जाना चाहिये ।”
वहीं जैकब भी था ।
जैकब !
जैक क्रेमर का खास आदमी ।
वह मुख्य तौर पर नारकाटिक्स का काम देखता था ।
“लेकिन मौजूदा हालात में हमारा आगे बढ़ना ठीक नहीं है मैडम !” जैकब बोला ।
“क्यों ?”
“क्योंकि यह दुश्मन की कोई चाल भी हो सकती है । यह भी हो सकता है कि कमाण्डर करण सक्सेना ने हम सबको फंसाने के लिये यह कोई षडयंत्र रचा हो ?”
“तुम इस बात का दूसरा पहलू भी देखो जैकब !”
“कौन-सा पहलू ?”
“यह भी तो हो सकता है कि मारकोस को सचमुच हमारी मदद की जरूरत हो । वह सचमुच हमें मदद के लिये पुकार रहा हो । अगर ऐसा हुआ और हम उसकी मदद के लिये न पहुंचे, तो कितना गलत होगा ।”
जैकब लाजवाब हो गया ।
चुप !
उलझन गहरी थी ।
“हमें जल्दी से कोई फैसला लेना चाहिये ।” एक अन्य गार्ड बोला ।
“मैडम, हमें कोई ऐसी तरकीब सोचनी होगी ।” वह शब्द जैकब ने कहे- “जो अगर यह कमाण्डर करण सक्सेना की चाल हो, तो हम उसकी चाल में न फंसें ।”
“ऐसी क्या तरकीब हो सकती है ?”
“फिलहाल यही सोचना है ।”
बार्बी के माथे पर सिलवटें पड़ गयीं ।
इस वक्त उसके दिमाग में एक ही बात थी, अगर मारकोस जख्मी है, तो उसे उसकी हर हालत में मदद करने के लिये पहुचंना चाहिये ।
“दुश्मन की चाल में न फंसने का एक तरीका है ।” बार्बी बोली ।
“क्या ?”
“हम अपनी इस एक टुकड़ी को भी दो हिस्सों में बांटेंगे । इस वक्त हमारे पास पच्चीस आदमी हैं । बीस आदमी हमारी टुकड़ी में आगे पैदल चलेंगे और उनसे कोई सौ मीटर पीछे बेहद धीमी गति से एक जीप चलेगी, जिसमें बाकी पांच जने होंगे । मैं भी जीप में रहूँ गी । अगर यह कमाण्डर करण सक्सेना की चाल हुई, तो कमाण्डर पहले हमारे बीस आदमियों पर हमला करेगा । उसके हमला करते ही हमें पता चल जायेगा कि यह वास्तव में उसका प्लान था । तुरन्त ही हम लोग पीछे से उस पर अटैक कर देंगे ।”
गुफा में मौजूद तमाम गार्डों की आँखें चमक उठीं ।
“गुड आइडिया !” जैकब ने भी उसके प्लान की तारीफ की ।
“तो फिर चलें ?”
“चलो ।”
☐☐☐
कमाण्डर उस समय पेड़ पर चढ़ा हुआ था ।
दूरबीन उसकी आँखों से चिपकी थी और वह जंगल का दूर-दूर तक का नजारा कर रहा था ।
फिलहाल ‘इन्फ्रारेड लैंसों’ से उसे काफी मदद मिल रही थी । उन्हीं की बदौलत वो उस घने अंधेरे में भी दूर-दूर तक देख पा रहा था ।
तभी कमाण्डर करण सक्सेना चौंका- एकाएक उसे काफी सारे लोग दिखाई दिये, जो उसी तरफ बढ़े चले आ रहे थे ।
सब पैदल थे ।
सबके हाथों में राइफलें !
कमाण्डर की निगाहें अभी उन हथियारबंद गार्डों पर ही टिकी हुई थीं, तभी उसे उन गार्डों से और बहुत पीछे एक काला धब्बा-सा नजर आया ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने दूरबीन के लैंसों को घुमाया ।
उन्हें और फोकस किया ।
तुरन्त ही वह धब्बा भी स्पष्ट हो गया ।
वह एक जीप थी, जो उन गार्डों से काफी फासला बनाकर आगे बढ़ रही थी ।
कमाण्डर उनकी चाल भांप गया ।
वह शीघ्रतापूर्वक पेड़ से नीचे उतरा ।
पेड़ के नीचे उतरते ही उसने भी अपनी ‘चालाकी के पत्ते’ फैलाने शुरू कर दिये ।
उसने सबसे पहले वहाँ इधर-उधर बिखरी लाशों को उठाकर नजदीक की झाड़ियों में डाला, जिससे एकाएक किसी की नजर उन लाशों पर न पड़े ।
फिर वो एक गुफा की तरफ बढ़ा ।
थोड़ी देर पहले ही कमाण्डर करण सक्सेना ने वो गुफा देखी थी ।
वो बहुत संकरी-सी गुफा थी और काफी खतरनाक थी ।
उस गुफा का दहाना तो जरा-सा था, जिसमें कोई एक आदमी भी बड़ी मुश्किल से दाखिल हो सकता था, लेकिन अंदर से वो गुफा काफी बड़ी थी ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने गुफा में पहुँचते ही वहाँ डायनामाइट फिट करने शुरू कर दिये ।
उसने कुल चार ‘डायनामाइट छड़ें’ उस गुफा के अंदर फिट कीं ।
उनके टाइम-पैनल में कमाण्डर ने पंद्रह मिनट बाद का टाइम भरा ।
फिर कमाण्डर करण सक्सेना ने अपने हैवरसैक बैग में से एक पॉकिट साइज टेपरिकॉर्डर निकाला और उस टेपरिकॉर्डर में कुछ ऐसी आवाजें भरीं, जैसे कोई बुरी तरह कराह रहा हो ।
फिर उस टेपरिकॉर्डर को ऑन करके तथा उसे गुफा में ही रखकर वो बाहर निकल आया । अब गुफा में से किसी के बुरी तरह कराहने की आवाजें आ रही थीं ।
कमाण्डर करण सक्सेना फौरन नजदीक की झाड़ियों में छिप गया ।
तभी बीस हथियारबंद गार्डों का दस्ता भी वहा आ पहुँचा ।
किसी के कराहने की आवाज सुनते ही गार्ड ठिठके ।
“यह कैसी आवाज है ?”
“लगता है, मारकोस साहब यहीं कहीं हैं ।” दूसरा गार्ड स्तब्ध भाव से बोला- “यह उन्हीं के कराहने की आवाज हैं ।”
“हाँ , यह मारकोस साहब ही कराह रहे हैं ।”
सब इधर-उधर देखने लगे ।
“लगता है ।” तभी एक अन्य गार्ड बोला- “कराहने की यह आवाज गुफा के अंदर से आ रही है ।”
सब गुफा की तरफ झपटे ।
आवाज सचमुच उसी के अंदर से आ रही थी । उस आवाज को सुनते ही तमाम गार्ड गुफा के अंदर दाखिल हो गये ।
कमाण्डर तुरन्त हरकत में आया ।
वह झाड़ियों में से निकलकर गुफा की तरफ झपटा ।
वहीं गुफा के दहाने के ऊपर एक पत्थर कुछ इस अंदाज में रखा हुआ था कि अगर उसके नीचे का एक छोटा सा पत्थर हटा दिया जाता, तो वह विशालकाय पत्थर धड़ाम से दहाने के सामने आ गिरता ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने वही किया ।
उसने वो पत्थर हटा दिया ।
तत्काल उसके ऊपर रखा विशालकाय पत्थर गुफा के दहाने के सामने आकर गिरा और वह दहाना बिल्कुल इस तरह बंद हो गया, जैसे उसके पीछे कोई गुफा थी ही नहीं ।
अब वह सभी बीस आदमी उस गुफा में फंस गये थे ।
जल्द ही उनकी घुटी-घुटी चीखों की आवाजें गुफा के अंदर से आने लगी ।
कमाण्डर ने बिल्कुल उसी तरह दो-तीन विशालकाय पत्थर और ऊपर से गिराये ।
गुफा का दहाना अब और ज्यादा कसकर बंद हो गया ।
गार्डों के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आनी भी बंद हो गयीं । उसके बाद कमाण्डर करण सक्सेना ‘मौत का फरिश्ता’ बना हुआ जीप की तरह बढ़ा ।
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