Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
05-16-2020, 02:19 PM,
#46
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
आधी रात का समय था ।
एक जीप जंगल में बड़ी तेज स्पीड से दौड़ी जा रही थी ।
वह जिधर-जिधर से भी गुजर जाती, वहीं जंगल में चारों तरफ उसकी हैडलाइटों का प्रकाश फैल जाता ।
जीप ‘मास्टर’ चला रहा था ।
मास्टर, जो इजराइल का नागरिक था । यहूदी था और जिसका असली नाम जैक दी लेविस था । मास्टर की उम्र कोई पैंतीस साल के आसपास थी और वो हमेशा काउ-ब्वाउ स्टाइल के नौजवानों की तरह अस्त-व्यस्त था । वह यूं तो शेडो वारफेयर (छाया युद्ध) का महारथी था । लेकिन उसकी जिंदगी में एक ऐसी घटना घट गयी थी, जिसने उसे बेहद खूंखार और दरिंदा इंसान बना डाला था । वह इजराइल में ही कभी एक लड़की से बड़ी पाक मौहब्बत करता था, जो उसी की तरह यहूदी थी । सोते-जागते वह बस एक ही सपना देखता, उस लड़की को खुश रखने का सपना । उससे शादी करने का सपना । लेकिन उस लड़की ने उसे धोखा दिया और दूसरे युवक से शादी कर ली ।
कहते हैं, तब मास्टर ने अपनी जिदंगी का पहला कत्ल किया । वह हंसिया लेकर दनदनाता हुआ उस लड़की के सुहाग-कक्ष में जा घुसा । उस वक्त दोनों पति-पत्नी निर्वस्त्र थे और अभिसारतः थे । मास्टर ने सबसे पहले तो हंसिंये से उसके पति की गर्दन धड़ से अलग कर डाली । फिर उसने हंसिये से ही लड़की के गुप्तांग फाड़ डाले । उसकी छातियां काट डालीं और उसके बाद उसने इतनी नृशंसतापूर्वक उसके जिस्म की बोटी-बोटी काटी कि कसाई भी इतनी बुरी तरह मांस के टुकड़े नहीं करता है । वह दिन है और आज का दिन है, तब मास्टर के दिल में औरतों के प्रति जो नफरत बैठी थी, वह आज भी कायम थी । मास्टर का कहना था, दुनिया का ऐसा कोई मुल्क नहीं है, जहाँ की औरत के साथ उसने सहवास न किया हो या फिर अपने हंसिये से उसके गुप्तांग को न फाड़ डाला हो । हंसिया उसका प्रिय हथियार था, जिसे वो हमेशा अपनी बेल्ट के साथ रिवॉल्वर वाली जगह बांधकर रखता था ।
रात के अंधेरे में मास्टर की जीप जंगलियों की बस्ती के नजदीक पहुँचकर रूकी ।
फिर उसमें से मास्टर नीचे उतरा और बड़े दबे-पांव बस्ती की तरफ बढ़ा ।
वह बिल्कुल चोरों तरह चल रहा था ।
इधर-उधर देखता ।
हरेक आहट को भांपता ।
उस पूरी बस्ती में जंगलियों के सरदार का झोंपड़ा सबसे ज्यादा बड़ा था । मास्टर उसी झोंपड़े के नजदीक पहुँचकर रूका ।
फिर उसने दरवाजा खटखटाया ।
“कौन ?” अंदर से बड़ी बारीक आवाज उभरी ।
“मैं !”
मास्टर का धीमा स्वर ।
फौरन झोंपड़े का दरवाजा खुल गया ।
मास्टर जल्दी से अंदर दाखिल हुआ । उसके दाखिल होते ही झोंपड़े का दरवाजा वापस बंद हो गया था ।
उसके सामने एक बड़ी सुंदर जंगली औरत खड़ी थी ।
जिसका रंग दमकता हुआ था और वहाँ की दूसरी औरतों के मुकाबले काफी साफ-सुथरा था ।
उम्र भी ज्यादा नहीं थी ।
मुश्किल से पच्चीस साल !
ऊपर से नैन-नक्श तीखे ।
आँखों में चमक ।
वह सरदार की बीवी थी । उस औरत की सबसे बड़ी खूबी ये थी कि वह सलीकेमंद थी और जंगलियों की तरह अर्द्धनग्न नहीं रहती थी ।
अलबत्ता सरदार की और उसकी उम्र में जमीन-आसमान का फर्क था ।
वह उसकी बेटी जैसी उम्र की थी ।
“आने में बड़ी देर लगा दी ।” औरत फुसफुसाये स्वर में बोली ।
“हाँ, हैडक्वार्टर में थोड़ा काम अटक गया था ।”
“काम-काम ।” औरत झुंझलाई- “जब देखो हर समय काम की बात करते हो ।”
“मेरी जान जिस मिशन के लिये हम तमाम योद्धा अपना-अपना देश छोड़कर इस जंगल में पड़े हुए हैं, वह मिशन हमारे लिये कहीं ज्यादा जरूरी है ।”
“क्या मुझसे भी ज्यादा जरूरी ?” सरदारनी अब बड़ी वेधक निगाहों से मास्टर की आँखों में झांकने लगी ।
मास्टर से एकाएक कोई जवाब देते न बना ।
“सरदार कहाँ है ?”
“उसे मैंने अफीम का एक काफी बड़ा अंटा देकर सुला दिया । अब कल सुबह तक भी उसे होश आ जाये, तो शुक्र समझना ।“
“यानि रास्ता साफ है ।”
मास्टर ने फौरन सरदारनी के भरे-भरे जिस्म को अपनी बांहों के दायरे में समेट लिया ।
“एक मिनट !” सरदारनी बोली ।
“क्या हुआ ?”
“मैं काढ़ा लेकर आती हूँ ।”
मास्टर मुस्कराया ।
“अभी काढ़े की भी जरूरत है ?”
“तुम नहीं जानते ।” सरदारनी के चेहरे पर चित्ताकर्षक भाव पैदा हुए- “काढ़ा पीने के बाद मजा ही कुछ और आता है । एक-एक नस चटकने लगती है । क्या मैं कुछ गलत कह रही हूँ ?”
“मेरे से ज्यादा तो यह बात तुम्हें बेहतर मालूम होगी मेरी जान ! आखिर इस गेम में मुझसे ज्यादा मजा तो तुम्हीं लूटती हो ।”
सरदारनी के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गयी ।
फिर वह लम्बे-लम्बे डग रखती हुई झोंपड़े के अंदर वाले हिस्से में चली गयी ।
काढ़ा उन जंगलियों का मनपसंद सैक्स टॉनिक था, जिसे वो कई तरह की जड़ी-बूटियों से मिलाकर बनाते थे । इसमें कोई शक नहीं काढ़ा पीने के बाद मास्टर को भी यह अहसास होता था कि उसकी नसों में तनाव आ गया है और उसकी ताकत कुछ बढ़ गयी है ।
मास्टर इंतजार करने लगा ।
जल्द ही सरदारनी की वापसी हुई ।
उसके हाथ में पकी मिट्टी के दो चौड़े प्याले थे, जिनमें काढ़ा भरा हुआ था ।
“लो !” सरदारनी ने नजदीक आकर एक प्याला मास्टर की तरफ बढ़ा दिया- “पीओ !”
“और दूसरा प्याला ?”
“दूसरे प्याले का काढ़ा मैं पिऊंगी ।”
मास्टर ने प्याला पकड़ लिया ।
उसमें से जंगली जड़ी-बूटियों की अजीब-सी गंध आ रही थी । वह एक ही सांस में उस पूरे प्याले को खाली कर गया । उसी प्रकार सरदारनी ने भी काढ़ा पिया ।
फिर थोड़ी ही देर बाद वो दोनों वहीं बिछी एक चारपाई पर लेटे थे ।
सरदारनी एक ढीला-ढाला लहंगा और तंग चोली पहने हुए थी । लंहगे में से उसके भरे-पूरे नितम्ब बड़े ही जानलेवा अंदाज में मुखर हो रहे थे ।
कुछ ऐसा ही हाल उसकी तंग चोली का था ।
उसके दोनों उरोज चोली को फाड़कर मानो बाहर निकलने को आतुर थे ।
मास्टर ने उसे अपने सीने के साथ सटा लिया ।
उसके धधकते होंठ सरदारनी की गर्दन पर जाकर ठहर गये और हाथ धीरे-धीरे उसकी पीठ पर सरसराने लगे ।
“लगता है काढ़े का असर हो रहा है ।” सरदरानी हंसी ।
“क्या तुम्हारे ऊपर नहीं हो रहा ?”
“कुछ-कुछ ।”
“सिर्फ कुछ-कुछ ?”
“तुम जब बहुत कुछ करने लगोगे मेरे सैंया !” सरदारनी उससे बड़े अनुरागपूर्ण ढंग से कसकर चिपट गयी- “तो मेरे ऊपर भी बहुत कुछ होने लगेगा ।”
मास्टर मुस्कराया ।
अब उसके हाथ पीठ पर सरसराते हुए एक जगह ठहर गये थे । वहीं चोली की गांठ लगी थी ।
मास्टर धीरे-धीरे अब उस गांठ को खोलने लगा ।
जल्द ही उसकी चोली उतरकर एक तरफ जा गिरी और उसके दूधिया उरोज बिल्कुल नग्न हो गये ।
मास्टर ने अब उसे बिल्कुल चित कर दिया, फिर उसके हाथ धीरे-धीरे उसके उरोजों पर सरसराने लगे ।
सरदारनी के मुंह से तीव्र सिसकारी छूटी ।
उसने दांतों से होंठ कुचलते हुए सख्ती से अपनी आँखें बंद कीं ।
“क्या कर रहे हो ?”
“तुम्हें ‘बहुत कुछ’ का अहसास करा रहा हूँ ।”
“तुम सचमुच बहुत बदमाश हो ।” सरदारनी ने मास्टर का चेहरा अपने उरोजों के साथ कसकर भींच लिया ।
मास्टर की जीभ अब उसके उरोजों पर घूमने लगी थी ।
सरदारनी के होठों से पुनः मादक सिसकारी छूटी और अब उसने उसके बाल अपनी मुट्ठी में कसकर जकड़ लिये । थोड़ी ही देर में मास्टर भी कमर से ऊपर बिल्कुल नग्न हो गया ।
दोनों की आँखों में वासना के डोरे खिंच गये थे ।
वह बेतहाशा एक-दूसरे के चुम्बन लेने लगे ।
दीवानावार आलम में ।
जैसे जन्म-जन्मांतर से एक-दूसरे के प्रेमी हों ।
“वाकई तुम मुझे पागल कर देते हो मास्टर !” उसने मास्टर के गाल का एक कसकर चुम्बन लिया ।
“मगर कभी-कभी मैं एक बात सोचता हूँ ।” मास्टर के हाथ सरसराते हुए उसके लहंगे तक पहुँच चुके थे ।
“क्या ?”
“अगर किसी दिन हमारी इन हरकतों के बारे में सरदार को पता चल गया, तो क्या होगा ?”
“बात भी मत करो उस बूढ़े-खूसट की ।”
मास्टर के हाथ अब उसके भारी नितम्बों पर थे और अब वहीं सरसराहट पैदा कर रहे थे ।
सरदारनी के मुंह से पुनः सिसकारी छूटी ।
“तुमने सचमुच मेरी जिंदगी बिल्कुल बदल डाली है मास्टर, मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगी हूँ, बहुत ज्यादा ।”
मास्टर ने अब उसका लहंगा भी खोल डाला ।
फिर उस लहंगे को उसकी दोनों टागों से नीचे उतार दिया ।
वह अब बिल्कुल निर्वस्त्र थी ।
उसका एक-एक अंग साफ चमक रहा था ।
उसने मास्टर के गले में बड़े प्यार से दोनों बांहे पिरो दीं और फिर उसके गहरे चुम्बन लिये ।
वो अब काफी उत्तेजित हो चुकी थी ।
फिर वो उसकी पेण्ट की बेल्ट पकड़कर बुरी तरह खींचने लगी ।
मास्टर समझ गया, सरदारनी क्या चाहती है ।
उसने उसे ज्यादा नहीं तरसाया । जल्द ही उसकी इच्छापूर्ति की और अपनी पेण्ट भी उतार डाली । अब वह दोनों ही निर्वस्त्र थे ।
मास्टर काफी देर तक उसके अंगों के साथ खेलता रहा ।
अठखेली करता रहा ।
कुछ ऐसी ही हरकतें सरदारनी भी कर रही थी ।
अब उन दोनों की सासें इस तरह धधक रही थीं, जैसे मिल के बायलर हों ।
उनके शरीर ‘अंगारा’ बन चुके थे ।
उसी क्षण सरदारनी ने अपनी दोनों टांगें फैलाकर मास्टर को सुविधा प्रदान की और तभी एक नश्तर उसके अंतर में तेज खलबली मचाता चला गया ।
सरदारनी के मुंह से धीमी चीख निकली ।
उसकी गर्दन अकड़ गयी ।
दांतों में निचला होंठ कस गया और मास्टर के बाल एक बार फिर उसकी मुट्ठी में कसकर जकड़ गये ।
अब वह दोनों एक-दूसरे को बुरी तरह बाहों में जकड़े हांफ रहे थे ।
उनकी सांसे अव्यवस्थित थीं ।
“तुम्हारी मर्दानगी सचमुच कमाल है मास्टर, कोई भी औरत खुशी-खुशी अपना सर्वस्व तुम्हारे ऊपर लुटा सकती है ।”
मास्टर मुस्कराया ।
“मैं चाहती हूँ, मेरी हर रात तुम्हारी बाहों में गुजरे ।”
“चिन्ता मत करो ।” मास्टर बोला- “एक बार इस बर्मा पर हम योद्धाओं का कब्जा हो जाने दो, फिर यहाँ की हर चीज हमारी होगी ।”
यही वो क्षण था, जब उन्हें झोपड़े के अंदर से हल्की आहट की आवाज सुनाई दी ।
“लगता है ।” मास्टर हड़बड़ाया- “सरदार की आँख खुली गयी ।”
“नहीं ।” सरदारनी ने उसे कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया- “उसकी आँख इतनी आसानी से खुलने वाली नहीं है ।”
“लेकिन... ।”
तभी एक बिल्ली म्याऊं-म्याऊं करती हुई उनके बराबर में से निकलकर भागी ।
वह दोनो मुस्कुराते हुए पुनः एक-दूसरे की बांहों में समा गये ।
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RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार - by hotaks - 05-16-2020, 02:19 PM

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