RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
रात का समय था ।
तमाम योद्धा झोंपड़े के अंदर वाले हिस्से में लेटे हुए थे और अब सोने की तैयारी कर रहे थे ।
मगर !
मास्टर की आँखों में नींद नहीं थी ।
उसकी आँखों के गिर्द बार-बार सरदारनी का चेहरा चक्कर काट रहा था ।
उसकी बेहद मजबूत भुजाये उसे अपने अंदर समेट लेने के लिए आतुर थीं ।
मास्टर उस वक्त जितना सरदारनी के बारे में सोच रहा था, उतनी ही उसकी सांसे भभकती जा रही थीं ।
वाकई वो एक लाजवाब औरत थी ।
कहीं से शोला, कहीं से शबनम ।
पूरा जिस्म मानों किसी पारे से बना हुआ ।
उस वक्त वो सरदार के साथ झोंपड़ी के बाहर वाले हिस्से में लेटी हुई थी । मास्टर की निगाहें बार-बार उस पर्दे पर जाकर टिक जातीं, जो पर्दा उस झोंपड़ी को दो हिस्सों में बांटने का काम कर रहा था ।
सरदारनी के जिस्म की महक उसकी सांसों में समाती जा रही थी ।
वो उसके साथ सहवास के लिए छटपटाने लगा ।
तभी उसने पर्दे के पीछे कुछ आहट सुनी । मास्टर चौंका, उसी क्षण पर्दा एक तरफ सरकाकर सरदार वहाँ आ पहुँचा ।
“शायद इस वातावरण में आप लोगों को नींद नहीं आ रही है ?” सरदार बोला ।
“ऐसी कोई बात नहीं ।” हवाम बोला- “हमें थोड़ा देर से ही सोने की आदत है, लेकिन तुम्हारा कैसे आना हुआ ?”
“दरअसल अभी-अभी बस्ती में एक बूढ़े आदमी की मौत हो गयी है ।” सरदार ने बताया- “वह दमे का मरीज था । मुझे एकाएक वहाँ जाना पड़ रहा है, अब शायद सुबह तक ही मेरी वापसी होगी ।”
“ओह !”
“मैंने सोचा जाने से पहले इस बारे में आप लोगों को भी सूचित कर दूं ।”
“ठीक किया ।”
“अच्छा, अब मैं चलता हूँ ।”
“ओके ।”
सरदार चला गया ।
सरदार के जाते ही मास्टर के दिल की रफ्तार और तेज हो गयी ।
यह ख्याल ही उसकी सांसों को भभकाने लगा कि अब सरदारनी झोंपड़ी के बाहर वाले हिस्से में अकेली थी ।
बिल्कुल तन्हा ।
मास्टर काफी देर तक अपनी भावनाओं पर काबू किये वहीं शांत लेटा रहा । जब उसके तमाम साथी योद्धा गहरी नींद में डूब गये और उनके खर्राटे वहाँ गूंजने लगे, तब मास्टर बहुत आहिस्ता से अपना स्थान छोड़कर उठा ।
उसने एक नजर फिर अपने साथियों पर डाली ।
उनमें से कोई नहीं जाग रहा था ।
मास्टर दबे पांव चलता हुआ पर्दा हटाकर झोंपड़ी के बाहर वाले हिस्से में पहुँचा ।
अगले ही पल वो बुरी तरह चौंका ।
हैरान !
सरदानी अपने बिस्तर पर नहीं थी ।
झोंपड़ी का पूरा हिस्सा खाली पड़ा था ।
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