Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
05-16-2020, 02:24 PM,
#65
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
पांच दिन और गुजर गये ।
वह पांच दिन कमाण्डर के ऊपर हद से ज्यादा भारी गुज़रे ।
तीसरे दिन ही उसकी खाद्य सामग्री पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी । सूखे मेवे से लेकर मिल्क पाउडर तक उसके पास कुछ नहीं बचा । आगामी दो दिन उसने सिर्फ एक खरगोश को खाकर गुजारे, जिसे उसने जंगल में से पकड़ लिया था और सूखी लकड़ियों पर उसका मांस भूनकर खाया ।
उस मासूम जानवर को मारते हुए उसके हाथ कांपे ।
मगर मजबूरी थी । इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता न था ।
इन पांच दिनों में वो बहुत चोरी छिपे जंगल की चार बस्तियों को भी देख चुका था, परंतु असाल्ट ग्रुप के योद्धा उसे वहाँ कहीं नजर न आये ।
उधर !
वह योद्धा जिस बस्ती में ठहरे हुए थे, पांच दिन वहाँ भी बड़ी सनसनीखेज स्थिति में गुजरे ।
जबसे ग्रेंडी गायब हुई थी, तबसे जंगलियों का सरदार तो लगभग बिल्कुल ही पागल हो गया था ।
वह अक्सर रात को भी सोते-सोते चीखकर उठ जाता और फिर ‘ग्रेंडी’ को जोर-जोर से आवाज देता हुआ उसे ढूंढने निकल जाता । वह जंगल में दूर-दूर तक निकल जाता ।
एक बार तो वह रात के समय ग्रेंडी को ढूंढता-ढूंढता एक जंगली गुरिल्ले की मांद में ही जा घुसा, जहाँ गुरिल्ले ने उसके ऊपर हमला बोल दिया ।
उस रात सरदार बस मरने से बाल-बाल बचा ।
ग्रेन्डी के बाद उन योद्धाओं को भी भोजन की किल्लत का सामना करना पड़ा था ।
यूं तो कई जंगली औरतें उनके लिए भोजन पकाने को तैयार थीं, लेकिन उनका पकाया भोजन योद्धाओं को पसंद न था । तब हवाम ने वो जिम्मेदारी संभाली ।
हवाम !
जो एक चीनी था ।
वैसे भी चीनी भोजन पकाने में माहिर होते हैं ।
अलबत्ता उनके कपड़े वगैरा अभी भी जंगली औरतें धोती थीं ।
☐☐☐
पूरी बस्ती में रात की गहरी निस्तब्धता फैली थी ।
कोई एक बजे का समय था ।
अपने-अपने झोंपड़े में जहाँ तमाम जंगली गहरी नींद सोये हुए थे, वहीं ‘असाल्ट ग्रुप’ के सभी छः यौद्धाओं की आँखों में उस वक्त नींद नहीं थीं । वह सरदार के झोंपड़े मे सिर-से-सिर जोड़े बैठे थे ।
सरदार झोंपड़े में नहीं था ।
वह मुश्किल से आधा घण्टा पहले ही ‘ग्रेन्डी-ग्रेन्डी’ करके चीखता हुआ उठा था और फिर उसी प्रकार उसे आवाज देता हुआ झोंपड़े से बाहर निकल गया ।
“इस बेचारे सरदार के साथ सचमुच बहुत बुरा हुआ है ।” अबू निदाल थोड़ा अफसोसनाक लहजे में बोला ।
“कुछ भी बुरा नहीं हुआ ।” मास्टर झल्लाया- “सब अपनी-अपनी किस्मत की बात है ।”
“लेकिन तुम शायद भूल रहे हो ।” रोनी बोला- “कि इसकी ऐसी बुरी किस्मत खुद तुमने लिखी है । अगर तुम सरदारनी को न मारते, तो आज यह इस पागलों जैसी हालत में न पहुँचता ।”
“और यह क्यों नहीं कहते कि मैंने ऐसी चरित्रहीन औरत से पीछा छुटाकर इसका भला किया है ।”
“अब इन सब बातों को छोड़ो ।” जैक क्रेमर उन सबसे ही थोड़ी सख्त जबान में बोला- “जो हादसा घट चुका है, अब उस पर जिरह करने से कोई फायदा नहीं है । इससे हम लोगों के बीच बेमतलब तल्खाहट ही और बढ़ेगी । माइक !” फिर जैक क्रेमर ने गुमसुम से बैठे माइक की तरफ देखा- “तुम शाम के वक्त कह रहे थे कि तुम्हें कुछ जरूरी बात करनी है ।”
“यस सर !” माइक थोड़ा सचेत होता हुआ बोला- “मुझे सचमुच कुछ जरूरी बात करनी है । मगर मैं अपनी बात तो तब कहूँ, जब यह लोग पहले आपस में झगड़ना बंद करें ।”
“इन्होंने झगड़ना बंद कर दिया । तुम जो कहना चाहते हो, कहो ।”
“सर !” माइक बोला- “हम लोगों को इस बस्ती में रहते हुए आज पांच दिन गुजर चुके हैं, पांच दिन ! मैं समझता हूँ, जंगल में भटकते-भटकते कमाण्डर करण सक्सेना की फिलहाल काफी बुरी हालत हो चुकी होगी और वो समय आ गया है, जब हमें कमाण्डर के ऊपर हमला करना चाहिये । अब यहाँ ज्यादा समय गुजारने से कोई फायदा नहीं है ।”
“वाकई सर !” हवाम जो अभी तक चुप बैठा था, वह भी बोला- “हमें सचमुच अब कमाण्डर करण सक्सेना पर हमला कर देना चाहिये ।”
जैक क्रेमर ने जैसे ही कुछ कहने के लिए मुंह खोला, तभी झोपड़े में बाहर हल्की आहट की आवाज सुनकर वो चौंका ।
“य... यह कौन है ?” जैक क्रेमर फुसफुसाया ।
“लगता है, सरदार वापस आ गया है ।”
“लेकिन सरदार इतनी जल्दी वापस कैसे आ सकता है ?” जैक क्रेमर बोला ।
“मैं देखता हूँ ।”
अबू निदाल जल्दी से अपनी जगह छोड़कर खड़ा हुआ और बाहर की तरफ बढ़ा ।
पर्दे तक जाकर ही वो वापस लौट आया । उसके चेहरे पर रहस्यमयी भाव फैले हुए थे ।
“क्या हुआ ?”
“सरदार ही है ।” वो बहुत धीमी आवाज में फुसफुसाया- “फावड़ा लेकर वापस जा रहा है ।”
“हाँ ।”
सब यौद्धाओं की निगाहें एक-दूसरे से टकराई ।
“लेकिन इतनी रात को फावड़े से वो क्या करेगा ?” रोनी स्तब्ध भाव से बोला ।
“चलो !” जैक क्रेमर तुरंत अपने स्थान से खड़ा हुआ- “सब उसका पीछा करते हैं ।”
फौरन सारे योद्धा खड़े हो गये और बाहर की तरफ बढ़े ।
सरदार झोंपड़े से निकल चुका था और अब पीछे जंगल की तरफ बढ़ रहा था ।
“यह कहाँ जा रहा है सर ?”
“खामोशी से देखते रहो ।”
सरदार फावड़ा हाथ में झुलाता हुआ झोंपड़े के बिल्कुल पीछे पहुँच गया और वहाँ जाकर एक जगह खुदाई करने लगा ।
“अरे !” अबू निदाल के नेत्र दहशत से बुरी तरह फटे- “यह तो बिल्कुल उसी जगह खुदाई कर रहा है, जहाँ हमने सरदारनी की लाश को दफन किया था ।”
“हाँ ।”
सब यौद्धाओं के शरीर में झुरझुरी दौड़ी ।
“हमें इसे रोकना चाहिये ।” मास्टर ने झटके के साथ अपना ‘हंसिया’ कमर से अलग किया ।
“नहीं ।” जैक क्रेमर ने उसका हाथ वहीं पकड़ा- “अब उसे रोकने से कोई फायदा नहीं ।”
“लेकिन... ।”
“उसे शक हो चुका है । जरूर गड्ढा भरने में हमसे कोई चूक हुई है या फिर मिट्टी हमने ढंग से नहीं भरी । अगर ऐसे में हम उसे रोकेंगे, तो उसका शक और भी बढ़ेगा ।”
“फिर हम क्या करें ?”
योद्धाओं की आतंकित निगाहें पुनः एक-दूसरे से टकराई ।
“शांति से देखते रहें, वो कहाँ तक खुदाई करता है ।”
“मैं अभी आया ।” एकाएक अब निदाल व्यग्रतापूर्वक बोला ।
“तुम कहाँ जा रहे हो ।”
“बस आया ।”
अबू निदाल वापस झोंपड़े की तरफ दौड़ पड़ा ।
कोई कुछ नहीं समझ सका । वो क्या करने गया है ।
सरदार काफी जल्दी-जल्दी फावड़ा चला रहा था । हालांकि उन्होंने लाश को बहुत नीचे दफन किया था । परन्तु सरदार ने गड्ढे को वहीं तक खोद डाला और सरदारनी की बिल्कुल निर्वस्त्र लाश को उसमें से खींचकर बाहर निकाल लिया ।
सरदारनी की लाश देखते ही उसके सब्र का बांध टूट गया और वो उससे लिपटकर बहुत जोर-जोर से हिड़कियों के साथ रोने लगा ।
उसी क्षण उसने कुछ कदमों की आवाजें सुनी, जो उसके करीब आ रही थीं ।
सरदार ने रोते हुए ही अपनी गर्दन ऊपर उठाई । वह सभी छ योद्धा थे, जो उसके चारों तरफ आकर खड़े हो गये । अबू निदाल भी उनमें शामिल था । वह दरअसल झोंपड़े में-से अपनी ‘स्नाइगर राइफल’ लेने गया था ।
अबू निदाल एक पाकिस्तानी अपराधी था और बहुत खतरनाक निशानेबाज था । ज्यादातर वो अपनी ‘स्नाइपर’ राइफल से ही गोली चलाना पसंद करता था और वो आदमी की गर्दन के एक ऐसे खास प्वाइंट पर गोली मारता था कि उसकी गर्दन धड़ से कटकर हवा में ऊपर उछल जाती ।
“क्रेमर साहब ।” यौद्धाओं को देखते ही सरदार की रूलाई और भी ज्यादा फूट पड़ी- “किसी ने मेरी ग्रेन्डी को मार डाला । यह देखिए, किसी ने मेरी प्यारी ग्रेन्डी का क्या हश्र किया है ।”
सरदार जोर-जोर से हिड़कियों के साथ रो रहा था ।
उसकी रूलाई की आवाजें तेज होने लगी ।
मगर यौद्धा चुप थे ।
खामोश !
“अ... आप लोग कुछ बोलते क्यों नहीं ?” सरदार ने एकाएक शक भरी निगाहों से उन सबकी तरफ देखा- “अ... आप खामोश क्यों हैं ?”
फिर चुप्पी ।
“ल...लगता है ।” सरदार ने अब लाश को अपनी गोद में-से नीचे रख दिया- “लगता है, मेरी ग्रेन्डी का यह हश्र आपमें से ही किसी यौद्धा ने किया है ।”
“हाँ, सरदार !” जैक क्रेमर दो कदम आगे बढ़ा- “मुझे अफसोस है कि यह सब हमारी वजह से हुआ है ।”
“साले हरामजादे ।”
सरदार एकदम झटके के साथ खड़ा हो गया और फावड़ा लेकर बड़े खूनी अंदाज में जैक क्रेमर की तरफ झपटा ।
मगर वो जैक क्रेमर के करीब भी पहुँच पाता, उससे पहले ही अबू निदाल ने अपनी ‘स्नाइपर’ राइफल उसकी तरफ तान दी और ट्रेगर दबा दिया ।
सरदार की करूणादायी चीख निकल गयी ।
स्नाइपर राइफल की गोली उसकी गर्दन के ठीक ‘खास प्वाइंट’ पर जाकर लगी ।
गोली लगी और फिर गर्दन में अंदर-ही-अंदर घूमती चली गयी ।
आश्चर्य !
सरदार की गर्दन सचमुच धड़ से अलग होकर हवा में उछलती हुई नजर आयी, फिर वो गड्ढे के पास जाकर गिरी ।
फिर उसका धड़ भी गिरा ।
“किस्सा खत्म !” जैक क्रेमर ने गहरी सांस छोड़ी- “यह बेचारा भी पिछले पांच दिन से बहुत परेशान था । अब इसे भी सकुन मिल जायेगा ।”
“अब तो आप समझ ही गये होंगे ।” अबू निदाल अपनी ‘स्नाइपर’ राइफल नीचे करता हुआ बोला- “कि मैं झोंपड़े में क्या करने गया था ।”
“समझ गये ।”
सब प्रशंसनीय निगाहों से अबू निदाल की तरफ देखने लगे ।
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RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार - by hotaks - 05-16-2020, 02:24 PM

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