RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
हाथ में रूल लिए इंस्पेक्टर दीवान गैलरी में बेचैनी से टहल रहा था।
एक तरफ दो सिपाही सावधान की मुद्रा में खड़े थे।
कमरे का दरवाजा खुला और डॉक्टर भारद्वाज के बाहर निकलते ही उसकी तरफ दीवान झपट-सा पड़ा , बोला—"क्या रहा डॉक्टर ?"
"उसे होश तो आ गया था, लेकिन...। "
"लेकिन?"
“मैंने इंजेक्शन लगाकर पुन: बेहोश कर दिया है। ”
"म...मगर क्यों? क्या आपको मालूम नहीं था कि यहां मैं खड़ा हूं ? आपको सोचना चाहिए था डॉक्टर कि उसका बयान कितना जरूरी है।"
"मेरा ख्याल है कि वह अब आपके किसी काम का नहीं रहा है ?"
“क्यों?”
"वह शायद अपनी याददाश्त गंवा बैठा है , अपना नाम तक मालूम नहीं है उसे।"
"डॉक्टर?"
"अब आप खुद ही सोचिए कि एक्सीडेण्ट के बारे में वह आपको क्या बता सकता था? वह तो खुद पागलों की तरह बार-बार अपना नाम पूछ रहा था। दिमाग पर और ज्यादा जोर न पड़े, इसीलिए हमने उसे बेहोश कर दिया। दो-तीन घण्टे बाद यह पुन: होश में आ जाएगा और होश में आते ही शायद पुन: अपना नाम पूछेगा। उसकी बेहतरी के लिए उसके सवालों का जवाब देना जरूरी है मिस्टर दीवान , इसीलिए अच्छा तो यह होगा कि इस बीच आप उसके बारे में कुछ पता लगाएं।"
दीवान के चेहरे पर उलझन के अजीब-से भाव उभर आए। मोटी भवें सिकुड़-सी गईं , बोला— "कहीँ यह एक्टिंग तो नहीं कर रहा है डॉक्टर ?"
“क्या मतलब ?" भारद्वाज चौंक पड़ा।
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि एक्सीडेण्ट की वजह से वह घबरा गया हो, पुलिस के सवालों और मिलने वाली सजा से बचने के लिए...।"
"एक्टिंग सिर्फ चेतन अवस्था में ही की जा सकती है—अचेतन अवस्था में नहीं। और वह बेहोशी की अवस्था में भी यही बड़बड़ाए जा रहा था कि में कौन हूं, इस मामले में अगर आप अपने पुलिस वाले ढंग से न सोचें तो बेहतर होगा , क्योंकि वह सचमुच अपनी याददाश्त गंवा बैठा है। "
"हो सकता है! ” कहकर दीवान उनसे दूर हट गया , फिर वह गैलरी में चहलकदमी करता हुआ सोचने लगा कि इस युवक के बारे में कुछ पता लगाने के लिए उसे क्या करना चाहिए। दाएं हाथ में दबे रूल का अंतिम सिरा वह बार-बार अपनी बाईं हथेली पर मारता जा रहा था। एकाएक ही वह गैलरी में दौड़ पड़ा—दौड़ता हुआ ऑफिस में पहुंचा।
फोन पर एक नम्बर रिंग किया।
जिस समय दूसरी तरफ बैल बज रही थी , उस समय दीवान ने अपनी जेब से पॉकेट डायरी निकाली और एक नम्बर को ढ़ूंढने लगा , जो उस गाड़ी का नम्बर था , जिसमें से बेहोश अवस्था में युवक उसे मिला था।
दूसरी तरफ से रिसीवर के उठते ही उसने कहा— "हेलो , मैं इंस्पेक्टर दीवान बोल रहा हूं—एक फियेट का नम्बर नोट कीजिए , आर oटी oओ o ऑफिस से जल्दी-से-जल्दी पता लगाकर मुझे बताइए कि यह गाड़ी किसकी है ?"
"नम्बर प्लीज।" दूसरी तरफ से कहा गया।
"डी oवाई o एक्स-तिरेपन-चव्वन।" नम्बर बताने के बाद दीवान ने कहा— “ मैं इस वक्त मेडिकल इंस्टीट्यूट में हूं, अत: यहीं फोन करके मुझे सूचित कर दें।" कहने के बाद उसने इंस्टीट्यूट का नम्बर भी लिखवा दिया।
रिसीवर रखकर वह तेजी के साथ ऑफिस से बाहर निकला और फिर दो मिनट बाद ही वह डॉक्टर भारद्वाज के कमरे में उनके सामने बैठा कह रहा था— “मैं एक नजर उसे देखना चाहता हूं डॉक्टर।”
"आपसे कहा तो था , उसे देखने से क्या मिलेगा ?"
"मैं उसकी तलाशी लेना चाहता हूं—ज्यादातर लोगों की जेब से उनका परिचय निकल आता है।"
"ओह , गुड!" डॉक्टर को दीवान की बात जंची। एक क्षण भी व्यर्थ किए बिना वे खड़े हो गए और फिर कदम-से-कदम मिलाते उसी कमरे में पहुंच गए—जहां युवक अभी तक बेहोश पड़ा था।
दीवान ने बहुत ध्यान से युवक को देखा।
फिर आगे बढ़कर उसने बेहोश पड़े युवक की जेबें टटोल डाली, मगर हाथ में केवल दो चीजें लगीं—उसका पर्स और सोने का बना एक नेकलेस।
इस नेकलेस में एक बड़ा-सा हीरा जड़ा था।
दीवान बहुत ध्यान से नेकलेस को देखता रहा , बोला—"इसके पास कार थी , जिस्म पर मौजूद कपड़े , घड़ी , अंगूठी और यह नेकलेस स्पष्ट करते हैं कि युवक काफी सम्पन्न है।”
"यह नेकलेस शायद इसने किसी युवती को उपहार स्वरूप देने के लिए खरीदा था, वह इसकी पत्नी भी हो सकती है और प्रेमिका भी। " थोड़ी-बहुत जासूसी झाड़ने की कोशिश डॉक्टर ने भी की।
“प्रेमिका होने के चांस ही ज्यादा हैं।"
“ऐसा क्यों ?"
"आजकल के युवक पत्नी को नहीं , प्रेमिका को उपहार देते हैं और पत्नी को देते भी हैं तो वह इतना महंगा नहीं होता।"
डॉक्टर भारद्वाज और कमरे में मौजूद नर्सें धीमे से मुस्कराकर रह गईं।
"यदि नेकलेस इसने आज ही खरीदा है तो इसकी रसीद भी होनी चाहिए!" कहने के साथ ही दीवान ने उसका पर्स खोला। पर्स की पारदर्शी जेब में मौजूद एक फोटो पर दीवान की नजर टिक गई—वह किसी युवती का फोटो था। युवती खूबसूरत थी।
दीवान ने फोटो बाहर निकालते हुए कहा—"ये लो डॉक्टर, उसका फोटो तो शायद मिल गया है , जिसके लिए इसने नेकलेस खरीदा होगा।"
कन्धे उचकाकर डॉक्टर ने भी फोटो को देखा। दीवान ने उलटकर फोटो की पीठ देखी , किन्तु हाथ निराशा ही लगी—शायद उसने यह उम्मीद की थी कि पीठ पर कुछ लिखा होगा , मगर ऐसा कुछ नहीं था।
दीवान उलट-पुलटकर बहुत देर तक फोटो को देखता रहा। जब वह उससे ज्यादा कोई अर्थ नहीं निकाल सका , जितना समझ चुका था तो शेष पर्स को टटोल डाला। बाइस हजार रुपए और कुछ खरीज के अलावा उसके हाथ कुछ नहीं लगा। नेकलेस से सम्बन्धित रसीद भी नहीं।
अंत में एक बार फिर युवती का फोटो उठाकर उसने ध्यान से देखा। अभी दीवान यह सोच ही रहा था कि इस फोटो के जरिए वह इस युवक के विषय में कुछ जान सकता है कि ऑफिस से आने वाली एक नर्स ने कहा—"ऑफिस में आपके लिए फोन है इंस्पेक्टर।"
सुनते ही दीवान रिवॉल्वर से निकली गोली की तरह कमरे से बाहर निकल गया।
|