RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक सुबह आठ बजे सोकर उठा।
वह वार्ड-ब्वॉय तब भी कमरे में था , जिसे रात की घटना के बाद यहां उसकी देखभाल करने के लिए छोड़ दिया गया था—उस वार्ड-ब्वॉय को देखकर एक पल के लिए भी उसके दिमाग में कोई बुरा ख्याल नहीं आया था।
उस वक्त साढ़े नौ बजे थे , जब यह बेड पर पड़ा आज के अखबार में डूबा हुआ था। उसने अभी-अभी अपने तथा अपने पर्स से मिली युवती के फोटो के समीप लिखी इबारत पढ़ी थी।
क्या इस विज्ञापन को पढ़कर मेरा कोई अपना मुझे लेने आएगा?
यह विचार अभी उसके दिमाग में उभरा ही था कि उसके कान में किसी की आवाज पड़ी। किसी ने जाने किसको ‘सिकन्दर ' कहकर पुकारा था।
उसने अखबार एक तरफ हटाकर कमरे के दरवाजे की तरफ देखा , क्योंकि आवाज उसी दिशा से आई थी—वहां एक बहुत अमीर नजर आने वाला अधेड़ व्यक्ति खड़ा था।
उसके दाएं-बाएं इंस्पेक्टर दीवान और भारद्वाज भी थे।
अधेड़ के चेहरे पर वेदना थी , आंखों में वात्सल्य का सागर।
युवक प्रश्नवाचक नजरों से उनकी तरफ देखने लगा , जबकि अधीरतापूर्वक उसकी ओर लपकते-से अधेड़ ने कहा— "तुझे क्या हो गया है बेटे ?”
युवक के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए।
न्यादर अली ने बांहों में भरकर उसे अपने सीने से चिपटा लिया था। हालांकि युवक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था , मगर उसे देखते ही न्यादर अली के धैर्य का बांध मानो टूट पड़ा। फफक-फफककर रोते हुए उन्होंने कहा— "यह सब कैसे हो गया, सिकन्दर? तू कल मिल क्यों नहीं गया था, बेटे? तेरी कैडलॉक कहां है , किसी अमीचन्द की फियेट भला तेरे पास कहां से आ गई , जिससे बाद में एक्सीडेण्ट ?"
इस प्रकार भावुकता में डूबे मिस्टर न्यादर अली जाने क्या-क्या कहते चले गए , जबकि प्लास्टिक के बने किसी बेजान खिलौने की तरह युवक खामोश रहा। उसके चेहरे और आंखों मेँ एक ही भाव था—उलझन!
सवालिया निशान।
चश्मा उतारकर न्यादर अली ने आंसू पौंछे , चश्मा पुन: पहना और खुद को थोड़ा संभालकर बोले— “क्या तुमने हमें भी नहीं पहचाना बेटे?"
अपनी सूनी आंखों से उन्हें देखते हुए युवक ने इन्कार में गर्दन हिलाई।
"क्या कह रहा है, बेटे ?" न्यादर अली के लहजे में तड़प थी—"क्या हो गया है तुझे? क्या तू हमें भी नहीं पहचानता , हम तेरे अब्बा हैं!"
“अ......अब्बा?"
“हां , याद करने की कोशिश कर—तेरा नाम सिकन्दर है , तेरी बहन का नाम सायरा था—तेरी एक गत्ता मिल है—तेरे पास कैडलॉक गाड़ी थी।"
"म...मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है।"
“तू.......तू फिक्र मत कर , सब याद आ जाएगा—तू ठीक हो जाएगा बेटे—तेरे इलाज के लिए डॉक्टरों की लाइन लगा देंगे हम , अगर जरूरत पड़ी तो हम तुझे विदेश...।"
“म......मगर.... ?"
“हां-हां—बोल , क्या बात है ?"
"मैँ कैसे विश्वास करूं कि आप ही मेरे पिता हैं ?"
एक बार फिर फूट-फूटकर रो पड़े मिस्टर न्यादर अली , बोले—"कैसे अभागे बाप हैं हम कि कदम-कदम पर तुम्हें अपना बेटा साबित करना पड़ रहा है—खैर , हमारे पास सबूत है, बेटे। यह एलबम देखो—तुम्हारे फोटुओं से भरी पड़ी है यह।"
युवक एलबम को देखने लगा।
उस एलबम की मौजूदगी में उसे मानना पड़ा कि वह वही है जो यह बूढ़ा कह रहा है , मगर उलझन के ढेर सारे भाव युवक के चेहरे पर अब भी थे।
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"मैं सिकन्दर को यहां से ले जाना चाहता हूं, डॉक्टर।"
"वैसे तो वही होगा , जो आप चाहते हैं , मगर मेरा ख्याल था कि यदि वह हफ्ता-दस दिन यहीं रहता तो उचित था—शायद इलाज से अपनी सामान्य स्थिति में आ सके।"
"मैं उसका इलाज अपनी कोठी पर ही कराना चाहता हूं।"
कन्धे उचकाकर डॉक्टर भारद्वाज ने कह दिया— “ जैसी आपकी मर्जी।"
"क्षमा कीजिए, मिस्टर न्यादर अली।" इंस्पेक्टर दीवान ने कहा—"फिलहाल वह पुलिस कस्टडी में है , एक्सीडेण्ट करने और कार चुराने के जुर्म में , अत: उसे घर ले जाने के लिए पहले आपको उसकी जमानत करानी होगी।"
“मैं जमानत कराने के लिए तैयार हूं।"
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