RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
सुबह के सात बजे थे।
सेठ न्यादर अली नाइट गाउन की डोरी बांधते हुए अपने कमरे से बाहर निकले। उनके दांतों में एक मोटा सिगार दबा हुआ था—पैरों में पड़े स्लीपर्स को घसीटते-से वे उस कमरे की तरफ बढ़े जिसमें सिकन्दर था।
नजदीक पहुंचकर बड़े आराम से उन्होंने बन्द दरवाजे पर दबाव डाला , किन्तु दरवाजा खुला नहीं—उन्होंने चौंककर दरवाजे को देखा , उनके ख्याल से दरवाजे को केवल उढ़का हुआ होना चाहिए था , अन्दर से बन्द नहीं—उन्होंने इस बार जोर से धकेला—पाया कि दरवाजा अन्दर से बन्द था।
उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी , साथ ही पुकारा—"सिकन्दर बेटे।"
अन्दर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी—जब वे दरवाजे को लगभग पीटने लगे और साथ ही चिल्ला-चिल्लाकर सिकन्दर को पुकारने लगे तो वहां उनके ढेर सारे नौकर इकट्ठे हो गए।
अचानक ही सेठ न्यादर अली बहुत विचलित और उत्तेजित नजर आने लगे , चीखकर अपने नौकरों को आदेश दिया—"दरवाजे को तोड़ दो।"
हड़बड़ाये-से नौकर उनके आदेश का पालन करने में जुट गए , जबकि स्वयं सेठ न्यादर अली उसके बराबर वाले कमरे को पीटते हुए चिल्लाए— "रूपेश—मिस्टर रूपेश।"
अजीब हड़कम्प-सा मच गया था वहां।
कुछ ही देर बाद हड़बड़ाए-से रूपेश ने अन्दर से दरवाजा खोला। चीखते हुए न्यादर अली ने सवाल ठोक दिया —“ सिकन्दर कहां है ?"
"अ.....अपने कमरे में ही होंगे, सेठ जी।" बौखलाए हुए रूपेश ने कहा।
तभी ‘भड़ाक ' की एक जोरदार आवाज गूंजी..... 'सिकन्दर ' वाले कमरे का दरवाजा टूट चुका था—न्यादर अली और उनके पीछे भागता हुआ रूपेश भी कमरे में दाखिल हुआ।
कमरा बिल्कुल खाली था।
लॉन की तरफ खुलने वाली खिड़की खुली पड़ी थी। सेठ न्यादर अली उस तरफ लपके—वह कमरा दूसरी मंजिल पर था और खिड़की से लॉन तक कपड़ों से बनाई गई रस्सी लटक रही थी। दांत भींचकर न्यादर अली गुर्रा उठे— "उफ्फ—वह भाग गया है।"
दूसरे नौकरों की तरह रूपेश भी अवाक्-सा खड़ा था।
सेठ न्यादर अली बिजली की-सी फुर्ती से घूमे , रूपेश पर बरस पड़े—"कहां गया वह ?"
“म......मुझे नहीं पता सेठ, जी।"
"तुम्हें क्या झक मारने के लिए रखा था हमने ?"
"म...मैँ सुबह चार बजे इस कमरे से गया था सेठ जी—तब वे सो रहे थे—मैंने सोचा कि थोड़ी देर अपनी कमर मैं भी सीधी कर लूं।"
"उफ्फ—तुम भी हमारे दूसरे नौकरों की तरह बेवकूफ ही निकले—मेरे बेटे की याददाश्त गुम है , पता नहीं उसके दिमाग में क्या है—जाने कहां-कहां भटकता फिरेगा बाहर? पुलिस का नम्बर डायल करो बेवकूफ , जल्दी।"
दो मिनट बाद ही वे पुलिस को अपना बेटा गुम होने की रपट लिखवा रहे थे। काश—वे रूपेश के होंठों पर थिरक रही रहस्यमय मुस्कान को देख सकते।
¶¶
उस वक्त करीब ग्यारह बज रहे थे , जब युवक गाजियाबाद में घण्टाघर के आसपास घूम रहा था—वह बहुत ध्यान से हरेक दुकान के मस्तक पर लगे बोर्ड को पढ़ रहा था। ‘बॉनटेक्स ' टेलर की दुकान खोजने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई।
मगर दुकान की तरफ बढ़ते समय अचानक ही उसका दिल धड़क उठा। शायद यह सोचकर कि अब अगले ही पल पता लग जाएगा कि मैं कौन हूं?
धड़कते दिल से वह तेजी के साथ दुकान की तरफ बढ़ गया—दुकान का मुख्य दरवाजा पारदर्शी शीशे का था और सजावट की दृष्टि से फर्नीचर भी अच्छा इस्तेमाल किया गया था—युवक ने हैंडिल पकड़कर दरवाजा खोला।
उसने अन्दर कदम रखा ही था कि एक स्वर उसके कानों से पड़ा— “ अरे, जॉनी साहब , आप? आइए , बहुत दिन बाद दर्शन दिए ?"
युवक के मस्तिष्क को एक तीव्र झटका लगा।
यहां तेजी से उसके दिमाग में यह विचार कौंधा कि क्या उस व्यक्ति ने 'जॉनी ' कहकर मुझे ही पुकारा है ? क्या मेरा नाम जॉनी है ?
अपने सवाल का जवाब पाने के लिए उसने पुकारने वाले की तरफ देखा—नि:सन्देह उपरोक्त वाक्य उसने उसी से कहा था। तेजी के साथ काउंटर के पीछे से निकलकर उसने एक स्टूल साफ करते हुए कहा—"इस पर बैठिए जॉनी साहब।"
अब युवक को कोई शक नहीं रहा कि वह जॉनी कहकर उसे पुकार रहा है—अजीब असमंजस में पड़ा युवक धड़कते दिल से आगे बढ़ा। पूरी खामोशी के साथ वह स्टूल पर बैठ गया। टेलर ने कहा— "क्या इस नाचीज की दुकान का रास्ता बिल्कुल ही भूल गए थे, जॉनी साहब—आज आप पूरे दो महीने में आए हैं।"
टेलर का बार-बार जॉनी साहब कहना , जाने क्यों दिमाग में किसी शूल के समान चुभने लगा , मगर उसने कोई विरोध प्रकट नहीं किया—दुकान के अन्दर पांच-छ: कारीगर अपने काम में व्यस्त थे। युवक को लगा कि जो बातें उसे करनी हैं , वे इन कारीगरों के सामने करना बहुत विचित्र लगेगा। अभी यह इस समस्या से छुटकारा पाने की कोई तरकीब सोच ही रहा था फि टेलर ने उनमें ते एक को दौड़कर 'कैम्पा ' लाने के लिए कहा।
युवक के बार-बार इन्कार करने पर भी वह नहीं माना और अंत में लड़का ‘केम्पा ' लेने चला गया। तब युवक ने टेलर से कहा—"मैं तुमसे बिल्कुल अकेले में कुछ बातें करना चाहता हूं।”
"आइए , अन्दर वाले केबिन में चलते हैं।" टेलर ने कहा—और फिर कुछ ही देर बाद वे उस छोटे-से केबिन में आमने-सामने स्टूलों पर बैठे थे , जो लेडीज के लिए बनाया गया था—लड़का कैम्पा देकर जा चुका था।
"और सुनाइए जॉनी साहब।" टेलर ने पूरी आत्मीयता के साथ पूछा— “भाभीजी ठीक हैं ?"
युवक के दिमाग को बड़ा ही जबरदस्त झटका लगा।
उसके दिमाग में बड़ी तेजी से विचार कौंधा— “क्या मैं शादीशुदा हूं ?"
इतने पर भी उसने बहुत धैर्य से काम लिया , फिर उसने पहला सवाल किया— “ क्या तुम ही इस दुकान के मालिक हो ?"
चौंक पड़ा टेलर , बोला— "कैसी बात कर रहे हैं साहब , आप ही की दुकान है।"
“क्या नाम है तुम्हारा ?"
इस बार उछल ही पड़ा वह। पूरी तरह से चौंककर युवक की तरफ देखने लगा , बोला— “ कैसी बात कर रहे हैं साहब , कहीं आप मुझसे मजाक तो नहीं कर रहे हैं ?”
"नहीं।" युवक ने पूरी गम्भीरता के साथ कहा— “ मैं सचमुच तुम्हारा नाम भूल गया हूं और अब उसे जानना चाहता हूं—प्लीज , अपना नाम बताओ।"
"राजाराम है, साहब।" आश्चर्य के सागर में डूबे टेलर ने कहा।
"क्या तुम मुझे जानते हो ?"
"म...मैं भला आपको क्यों नहीं जानूंगा?"
"कौन हूं मैं ?"
"प...पता नहीं आज आप कैसी बातें कर रहे हैं, साहब ?" एकाएक ही राजाराम उसे इस तरह देखने लगा था , जैसे उसके सिर पर सींग निकल आए हों— “ आपके सारे ही सवाल बड़े अजीब हैं! भला ये भी कोई बात हुई कि आप कौन हैं! जॉनी साहब हैं आप।"
युवक को लगा कि यदि राजाराम वाकई उसका कोई परिचित है तो निश्चय ही अब तक किए गए उसके हर प्रश्न से न केवल उसे हैरत हुई होगी , बल्कि मानसिक कष्ट भी हुआ होगा और आगे भी वह जो कुछ पूछेगा , वह सब भी ऐसा ही कुछ होगा—हैरत के कारण राजाराम का बुरा हाल हो जाएगा , अत: वह बोला— “ देखो राजाराम...।"
"आपको क्या हो गया है, जॉनी साहब ?" उसकी बात बीच में ही काटकर परेशान राजाराम कह उठा—"आप मुझे हमेशा 'राजा ' कहते हैं , आखिर बात क्या है ?"
"बात यह है राजा कि मैं अपनी याददाश्त गंवा बैठा हूं।"
"क...क्या ?” राजाराम के कण्ठ से चीख निकल गई। हैरतवश मुंह खुला रह गया था उसका। आंखें तो फट पड़ी थीं , जैसे सामने उसके किसी प्रिय की लाश पड़ी हो।
"मैं कौन हूं—क्या हूं मुझे कुछ याद नहीं है—तुम्हारी या किसी अन्य की बात ही छोड़ो , मुझे अपना नाम तक मालूम नहीं है—पहली बार तुम ही ने मुझे जॉनी कहकर पुकारा है , इसीलिए सोचता हूं कि शायद मेरा नाम जॉनी ही है। "
हैरत के कारण ही राजाराम का बुरा हाल था—उसे लग रहा था कि जो कुछ यह देख-सुन रहा है , वह सब ख्वाब की बात है—हकीकत नहीं हो सकती। बड़ी मुश्किल से खुद को नियंत्रित करके उसने पूछा— "आपको कुछ भी याद नहीं है ?”
"नहीं राजा , मेरा एक्सीडेण्ट हुआ था , जिसके परिणामस्वरूप मैं अपनी याददाश्त गंवा बैठा। अपने बारे में मालूम करने अस्पताल से सीधा यहां आया हूं। ”
"जब आपको कुछ भी याद नहीं है तो मेरी दुकान...।"
"अपने कपड़ों पर लगी तुम्हारी दुकान की चिट पढ़कर यहां आया हूं—यह सोचकर कि शायद तुम मुझे जानते हो ?"
"मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं, साहब—आप जॉनी साहब हैं , मगर आपका एक्सीडेण्ट कब और कैसे हो गया—मुझे तो आपकी बातें बड़ी अजीब लग रही हैं।"
"उन्हें छोड़ो राजा। यह बताओ कि मेरे नाम से ज्यादा तुम मेरे बारे में क्या जानते हो ?"
"मैं समझ नहीं पा रहा हूं साहब कि क्या बताऊं? क्या आपको भाभीजी के बारे में भी कुछ याद नहीं है ?"
"क्या मैं शादीशुदा हूं ?"
चकित दृष्टि से उसे देखते हुए टेलर ने कहा— “जी हां , भाभी जी का नाम रूबी है।"
"क्या मेरे बच्चे भी हैं ?"
"जी नहीं , आपकी शादी को छ: महीने ही तो हुए हैं।"
"कहां रहता हूं मैं—क्या तुम्हें मेरा घर भी मालूम है ?"
“क्यों नहीं साहब , भाभीजी का नाप लेने कई बार जा चुका हूं—आप भगवतपुरे में रहते हैं , अच्छा-खासा मकान है आपका।"
"क्या तुम मुझे वहां ले चल सकते हो ?"
“क्यों नहीं, जॉनी साहब! अब मैं आपको अकेला नहीं छोड़ूंगा—वह तो अच्छा हुआ कि मेरी चिट देखकर आप यहां चले आए , वरना इस अवस्था में तो जाने आप कहां-कहां भटकते रहते , आपको तो सचमुच ही कुछ याद नहीं है।"
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