RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
'भगवतपुरा' में स्थित वह मकान न बहुत ज्यादा बड़ा था , न छोटा—जिसके बन्द दरवाजे पर राजाराम ठिठका , चौखट के ऊपरी भाग पर दाई तरफ साइड में कॉलबेल का बटन लगा था और राजाराम ने उसी बटन पर उंगली रख दी।
तभी एक आवाज ने उसकी विचार श्रृंखला भंग की। बहुत निकट से उभरने वाली इस आवाज ने कहा—"हैलो जॉनी …बहुत दिन बाद नजर आए—कहां थे ?"
बौखलाकर युवक ने उसकी तरफ देखा।
वह उसी की आयु का एक युवक था। हाथ मिलाने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा रखा था। हड़बड़ाकर जल्दी से हाथ मिलाते हुए उसने कहा— “ जरा बाहर गया था.....।”
"अब तो आ गए हो ?" उसने आंख मारकर पूछा।
"हां।" युवक का बुरा हाल था।
बड़ी कातर दृष्टि से देखते हुए उसने पूछा— “फिर कब जम रहे हो ?"
युवक का दिल चाहा कि उससे इस बात का मतलब पूछ ले मगर फिर यह सोचकर रुक गया कि मतलब पूछना बड़ा अटपटा लगेगा। इसकी बातों से लग रहा है कि यह मेरा कोई घनिष्ट है , अत: उसने यूं ही कह दिया— “अभी तो आया हूं यार , जम जाएंगे।"
"आज शाम को हो जाए? "
"हां।" युवक ने बिना सोचे-समझे कह दिया।
"ओ oके o।" कहने के साथ ही उसने अपनी उंगली से युवक की हथेली खुजलाई और आगे बढ़ गया। युवक कुछ देर तक तो दूर जाते उस व्यक्ति को देखता रहा , फिर उसने राजाराम से पूछा— "यह कौन था, राजा ?”
“मैं नहीं जानता साहब , आपका कोई दोस्त होगा।"
"मालूम पड़ता है कि यह मेरा कोई बहुत घनिष्ट दोस्त है , पता नहीं किस चीज के लिए 'जमने ' को कह रहा था?"
और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था।
घण्टाघर से यहां तक वह राजाराम के साथ रिक्शा में आया था—रास्ते में बहुत-से लोगों ने उससे नमस्कार की थी—हालांकि उसके लिए हर चेहरा अजनबी था , मगर फिर भी वह सबकी नमस्कार कबूल करता गया था—भगवतपुरे में दाखिल होने के बाद नमस्कारों का दौर कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था।
कई ने उसे दूर से हाथ हिलाकर कहा था— "हैलो जॉनी , हाऊ आर यू?"
उलझे हुए युवक ने उन सभी को जवाब दिया था।
"शायद सो रहीं हैं, भाभीजी।" बड़बड़ाते हुए राजाराम ने पुन: कॉलबेल दबा दी—युवक पुन: चौंककर दरवाजे की तरफ देखने लगा , एकाएक ही यह सोचकर उसका दिल असामान्य गति से धड़कने लगा कि अब—अगले किसी भी क्षण दरवाजा खुलेगा।
एक स्त्री उसके सामने होगी।
यह उसे अपना पति कहेगी।
मगर क्या मैं सचमुच उसका पति हूं …क्या मैं जॉनी हूं ?
क्या में न्यादर अली का लड़का सिकन्दर नहीं हूं—यदि यह बात है तो फिर मुझे सिकन्दर साबित करके वह अपने किसी उद्देश्य की पूर्ति करना चाहता था …और यदि मैं सिकन्दर हूं तो फिर यहां लोग मुझे 'जॉनी ' क्यों कह रहे हैं ?
अगर यह षड्यन्त्र है तो क्या ?
दरवाजे के दूसरी तरफ से किसी के चलने की आवाज ने युवक की विचार श्रृंखला भंग की , वह सतर्क हो गया , जिस्म में जाने क्यों स्वयं ही तनाव उत्पन्न हो गया , मगर 'धक्-धक्' करता हुआ दिल अब किसी हथौड़े की तरह पसलियों पर चोट कर रहा था।
दूसरी तरफ से सांकल खुलने की आवाज उभरी। युवक के मस्तक पर पसीना उभर आया।
दरवाजा खुला—‘धक् ' की एक जोरदार आवाज के बाद मानो दिल ने धड़कना बंद कर दिया।
एक नारी की आवाज— “ अरे राजा भईया , तुम आए हो ?"
"हां भाभी , और देखो , किसे लाया हूं।" कहने के साथ ही राजाराम ने युवक की बांह पकड़कर उसे दरवाजे के सामने कर दिया। उस पर नजर पड़ते ही युवती के मुंह से चीख-सी निकल पड़ी— "अ...आप ?”
युवक कुछ बोल नहीं सका। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—और वह युवती जिसका नाम रूबी था , अवाक-सी उसे देख रही थी। उसके चेहरे पर वेदना थी—आंखें सूजी हुई थीं उसकी—जैसे पिछले हफ्ते से लगातार रोई हो।
वह सुन्दर थी—थोड़ा सांवला रंग , तीखे और आकर्षक नाक-नक्श वाली रूबी के उलझे हुए बालों के बीच सिन्दूर की रेखा नजर आ रही थी—छोटी-सी नथ पहने थी वह और इस नथ ने उसके सौन्दर्य को कुछ ज्यादा ही निखार दिया था।
"अ.....आ गए आप ?" उसने फंसी-सी आवाज में कहा था।
युवक किंकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रहा।
अचानक ही उस वक्त वह बुरी तरह बौखला गया , जब रूबी ने बिजली की-सी तेजी से झुककर उसके चरण स्पर्श किए और फिर उसी तेजी के साथ फूट-फूटकर रोती हुई अन्दर की तरफ भाग गई—राजाराम ने युवक की तरफ देखा , युवक के चेहरे पर हैरत का सैलाब-सा उमड़ा पड़ा था। हक्का-बक्का-सा उसने राजाराम से पूछा— "ये क्या बात हुई ?"
"भाभी शायद आपसे नाराज हैं।"
"म...मगर क्यों ?"
"यह भला मैं कैसे जान सकता हूं, साहब , मगर आपके एक दोस्त ने कुछ ही देर पहले जो कुछ कहा था , उससे लगता है कि आप यहां बहुत दिन बाद आए हैं , भाभी शायद इतने दिन यहां से आपके दूर रहने की वजह से नाराज हैं।"
युवक कुछ बोला नहीं , उसे भी यही बात महसूस हो रही थी।
राजाराम ने कहा— "जाइए।"
"तुम नहीं चलोगे?" चौंकते हुए युवक ने पूछा।
"मैं आप पति-पत्नी के बीच क्या करूँगा ?"
"न...नहीं, राजा।" घबराकर युवक ने एकदम से उसकी बांह पकड़ ली और बोला— “तुम भी मेरे साथ अन्दर चलो , उसे मेरे साथ हुई दुर्घटना के बारे में बताना।"
“ओह , अच्छा चलिए। ” हालात की आवश्यकता को समझते हुए राजाराम ने कहा , और फिर वे दोनों एक साथ ही अन्दर दाखिल हो गए। एक छोटी-सी गैलरी को पार करके वे आंगन में पहुंचे—आंगन के ऊपर लोहे का मजबूत जाल पड़ा हुआ था।
एक तरफ बाथरूम और टायलेट था—दूसरी तरफ किचन।
एक कमरे के अन्दर से रूबी के हिचकियां ले-लेकर रोने की आवाज आ रही थी—युवक के दिल की हालत बड़ी अजीब हो गई—अपने हाथ-पैर सुन्न-से पड़ते महसूस हो रहे थे उसे। उसकी बांह पकड़े राजाराम कमरे में दाखिल हो गया।
डबलबेड पर उल्टी पड़ी रूबी रो रही थी।
युवक की दृष्टि डबलबेड की साइड ड्राज के ऊपर रखे पोस्टकार्ड साइज के एक फोटो पर चिपककर रह गई। खूबसूरत फ्रेम में जड़े उस फोटो में रूबी के साथ वह खुद भी था।
रूबी पूरे श्रृंगार में थी।
युवक का दिमाग जाम-सा हो गया।
वह समझ नहीं सका कि अपने आपको सिकन्दर माने या जॉनी—सच्चाई वह है जो यहां नजर आ रही है अथवा वह जो न्यादर अली के बंगले में थी ?
"भाभीजी.....भाभाजी।" राजाराम रह-रहकर रूबी को पुकार रहा था— “सुनिए तो सही …प्लीज , आपको एक बहुत जरूरी बात बतानी है।"
अचानक ही वह बिजली की तरह चमककर उठी। आंसुओं से सारा चेहरा तर था—बोली—“इनसे पूछो राजा भईया , मुझ अभागिन की याद कैसे आ गई इन्हें ?"
"ओफ्फो भाभी , तुम समझ नहीं रही हो। ”
"मैं सब समझती हूं—ये मुझसे शादी करके पछता रहे हैं , तभी तो इस तरह मुझे बिना बताए गुम हो गए , आज दो महीने बाद ही मेरी याद क्यों आई है ?"
"मैं...मैं कहां गुम हो गया था ?" बौखलाए-से युवक ने पूछा।
"मैं क्या जानूं? अब मालूम पड़ा कि आप मुझे कितना प्यार करते हैं ?"
युवक एकदम राजाराम की तरफ घूमकर बोला—“प्लीज राजा , इसे किसी दूसरे कमरे में ले जाओ और बताओ कि मैं किस अवस्था में हूं?"
रूबी रोती रही।
"यह लड़ने का वक्त नहीं है भाभी। जॉनी साहब के साथ एक बड़ी दुर्घटना घट गई है।" राजाराम ने रूबी की कलाई पकड़कर उसे एक अन्य कमरे में ले जाते हुए कहा— “ मेरी बात सुन लीजिए , उसके बाद यदि आप चाहें तो इनसे जी भरकर लड़ लेना।"
वे अन्दर वाले कमरे में चले गए।
युवक ने झपटकर खूबसूरत फ्रेम में जड़ा फोटो उठाया और उसे ध्यान से देखने लगा।
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