RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
काफी कोशिश के बावजूद भी वह फोटो में ऐसी कोई कमी तलाश नहीं कर पाया था , जिससे इस नतीजे पर पहुंचता कि फोटो ट्रिक फोटोग्राफी से तैयार किया गया है—उसे वापस दराज में रखते हुए उसने एक नजर उस कमरे पर डाली , जिसके अन्दर रूबी और राजाराम गए थे—फिर उसने जल्दी से ड्राज खोली।
ड्राज में अन्य घरेलू सामान के अतिरिक्त एक बैंक की पासबुक पड़ी थी। युवक ने फुर्ती से पढ़ा—वह मेरठ रोड पर स्थित पंजाब नेशनल बैंक की पासबुक थी और एकाउंट नम्बर था—सत्तावन सौ नौ। पढ़ने के बाद फुर्ती से उसने पासबुक ड्राज में रख दी—एक नजर पुन: उस कमरे की तरफ डालने के बाद कमरे के एक कोने में खड़ी सेफ की तरफ बढ़ा। सेफ की चाबी उसमें लगी हुई थी—युवक ने जल्दी से लॉक खोला।
फिर उसने देखा कि सेफ में जितने भी कपड़े थे , सब पर ‘बॉंनटेक्स ' की चिटें थीं—अभी वह सेफ को ही खंगाल रहा था कि रूबी और राजाराम उस कमरे में दाखिल हुए—युवक हड़बड़ाकर सेफ के नजदीक से हटा और उनकी तरफ देखने लगा।
चुपचाप , अवाक्-सी खड़ी रूबी उसे विचित्र दृष्टि से देख रही थी—उसके मुखड़े पर उलझन , आश्चर्य , अविश्वास और वेदना के संयुक्त भाव थे—वह एकटक युवक को देखे जा रही थी। युवक की दृष्टि भी सिर्फ उसी पर स्थिर हो गई।
"मैं चलता हूं, साहब।" एकाएक राजाराम ने कहा।
युवक की तन्द्रा भंग हुई , उसने जल्दी से कहा—"स.....सुनो राजा …तुम किसी से भी मेरे और मेरी अवस्था के बारे में जिक्र मत करना—शाम तक दुकान पर रूपेश नाम का एक युवक आएगा , उसे यहां भेज देना।"
"र...रूपेश कौन है, साहब ?"
"वह मेरा एक नया दोस्त है , दुकान पर आकर वह तुमसे केवल एक ही वाक्य कहेगा , यह कि मेरा नाम रूपेश है।"
"ठीक है, साहब।" कहकर राजाराम कमरे से बाहर निकल गया। रूबी भी उसके पीछे ही चली गई थी—युवक अवाक्-सा वहीं खड़ा रहा—कुछ देर बाद उसने मकान के मुख्य द्वार की सांकल अन्दर से बन्द होने की आवाज सुनी।
वह समझ सकता था कि राजाराम जा चुका है। दरवाजा बन्द करके रूबी अब यहीं आने वाली है। युवक रूबी का सामना करने और उससे बात करने के लिए खुद को तैयार करने लगा। अब यह विचार उसके दिमाग में हथौड़े की तरह चोट कर रहा था कि इस मकान में रूबी के साथ वह अकेला है।
क्या रूबी सचमुच मेरी पत्नी है ?
वह निश्चय ही मेरे साथ वही व्यवहार करेगी , जो एक पत्नी पति के साथ करती है , लेकिन यदि मैं जॉनी न हुआ—यदि वह वास्तव में मेरी पत्नी न हुई तो ?
यही सब सोचते-सोचते उसके मस्तक पर पसीना उभर आया और फिर अचानक ही उसके दिमाग में यह ख्याल जा टकराया कि यहां वह अकेली नारी के साथ है।
कहीं वे ही ख्याल दिमाग में न उभर आएं जो हॉस्पिटल के उस कमरे में अकेली नर्स को देखकर उभरे थे—यदि वैसा ही सब कुछ यहां हो गया तो यहां इस बन्द स्थान के अन्दर रूबी को कोई बचाने वाला भी नसीब नहीं होगा।
तो क्या मैं उसे मार डालूंगा ?
इन ख्यालों में ड़ूबे युवक के हाथ-पांव सर्द पड़ गए—जिस्म के सभी मसामों ने बर्फ के समान ठण्डा पसीना उगल दिया—अजीब-सी अवस्था में अभी वहीं खड़ा था कि …।
रूबी कमरे के अन्दर दाखिल हुई।
दरवाजे ही पर ठिठक गई वह—मुखड़े पर वही संयुक्त भाव थे—नजरें एक-दूसरे से चिपककर रह गईं—यह सोचकर युवक बुरी तरह घबरा रहा था कि दिलो-दिमाग में कहीं वे ही विचार न उठने लगें। एकाएक उसकी तरफ बढ़ती हुई रूबी ने बड़े प्यार से पूछा— "क्या राजा भाइया ठीक कह रहे थे, जॉनी , तुम्हें कुछ भी याद नहीं है ?"
"न...नहीं।" युवक को अपनी ही आवाज फंसी-सी महसूस हुई।
रूबी उसके बहुत नजदीक आकर बोली— “ क्या तुम्हें मैं भी याद नहीं हूं ?"
इस बार युवक के कण्ठ से आवाज नहीं निकली , इन्कार में गर्दन हिलाकर रह गया वह।
“म....मुझे माफ कर दो, जॉनी।" बड़े प्यार से युवक के सीने पर हाथ रखती हुई रूबी ने कहा— “मुझे कुछ नहीं पता था , आते ही तुमसे लड़ने लगी , मगर क्या करती—मैं बहुत परेशान थी जॉनी , तुम उस जरा-से झगड़े की वजह से मुझे अचानक ही छोड़ गए।"
"झ......झगड़ा ?”
"हां।”
"कैसा झगड़ा ?"
"ओह , तुम्हें तो वह भी याद नहीं है , मगर तुम घबराना नहीं, जॉनी—फिक्र मत करना , मुझे चाहे जो करना पड़े—तुम्हारी याददाश्त वापस लाकर रहूंगी—अब इस दुनिया में ऐसी कोई बीमारी नहीं रही , जिसका इलाज न हो।"
"म.....मगर? "
"आओ , तुम आराम करो।" कहने के साथ ही उसने युवक को बेड की तरफ खींचा—युवक हिचकिचाया , रूबी ने उसकी एक न सुनी और फिर जिद भी उसने कुछ इतने प्यार से , अपनत्व के साथ की थी कि वह इन्कार न कर सका।
एक बहुत प्यार करने वाली पत्नी के समान ही उसने युवक को लिटाया , तकिए लगाए—उसकी अंगुलियों को सहलाती हुई बोली— “ कैसे और कहां हो गया तुम्हारा एक्सीडेण्ट?”
"सच्चाई तो यह है कि मैं विश्वासपूर्वक कुछ भी नहीं कह सकता , केवल वही जानता हूं और वही बात बता सकता हूं , जो औरों ने मुझे बताया है।"
"वही बताइए।"
"डॉक्टर और एक पुलिस इंस्पेक्टर ने मेरे होश में आने पर बताया कि मैं फियेट चला रहा था और एक ट्रक से , रोहतक रोड पर मेरी फियेट टकरा गई।"
"फ...फियेट आपके पास कहां से आ गई ?"
"पता लगा कि यह प्रीत विहार में रहने वाले किसी अमीचन्द जैन की थी।"
"ओह , इसका मतलब ये कि आपने फिर चोरी की ?"
"च...चोरी ?” युवक उछल पड़ा— "त...तुम्हें कैसे मालूम कि मैंने चोरी की थी ?"
"साफ जाहिर है , कार किसी अमीचन्द की थी—आप उसे चला रहे थे।"
"म...मगर तुमने एकदम से ही यह अनुमान कैसे लगा लिया कि यह कार मैंने चुराई ही होगी , सम्भव है कि अमीचन्द मेरा दोस्त रहा हो—किसी काम के लिए मैंने कार उससे मांगी हो ?"
"मैं जानती हूं कि प्रीत विहार में आपका कोई दोस्त नहीं है …और फिर क्या मैं आपकी चोरी की आदत से परिचित नहीं हूं ? एक इसी काम में तो आप एक्सपर्ट हैं।"
"क.....क्या मतलब?" युवक की खोपड़ी घूम गई—“क्या मैं चोर हूं ?"
"हो नहीं , थे—मगर मुझसे वादा करने के बाद भी चोरी करके आपने अच्छा नहीं किया।"
"म.....मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं? जाने क्या कह रही हो तुम? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मेरे बारे में तुम मुझे सब कुछ विस्तार से बताओ , हो सकता है रूबी कि उसे सुनते-सुनते मेरी सोई हुई याददाश्त वापस लौट आए?"
"मैं वही कोशिश कर रही हूं।"
"तो बताओ , मैं कौन हूं—क्या हूं ?"
"मूल रूप से आप बस्ती जिले के रहने वाले हैं , आपके पिता का नाम जॉनसन है—और वहां आपके पिता की कपड़े की एक फैक्ट्री है , मगर आप बचपन से ही अपने घर से भाग आए थे , उस वक्त आपकी उम्र सिर्फ दस साल थी।"
हैरत में ड़ूबे युवक ने पूछा— "मैँ क्यों भाग आया था ?"
"आप बहुत खुद्दार किस्म के और विद्रोही प्रवृत्ति के थे—बचपन में आपका अपने ही छोटे भाई-बहनों से झगड़ा हो गया था—गलती आपकी नहीं थी , जबकि आपके पिता के सामने सारा झगड़ा कुछ इस तरह पेश हुआ था कि उन्होंने आप ही की पिटाई की थी और गुस्से में उसी रात आपने अपना घर छोड़ दिया था और आज तक पलटकर वहां नहीं गए हैं, क्योंकि कच्ची उम्र में ही आप चोर बन चुके थे—शुरू में तो विद्रोही होने के कारण आपने कुछ सोचा ही नहीं और जब यह विचार आपके दिमाग में आया तो अपराध के दलदल में इस कदर फंस चुके थे कि आप अपने घर जाने से कतराने लगे थे।"
"म...मगर मैं चोर कैसे बन गया ?"
"एक दस साल का बच्चा घर से भागकर और कर भी क्या सकता है—भूख ने आपको चोर बना दिया था , आप एक ऐसे गिरोह के साथ लग गए थे जो बच्चों से चोरी-चकारी और भीख मांगने का धंधा कराता था—जैसा वातावरण आपको मिला , वही आप बन गए।"
"तब फिर तुम मेरी जिन्दगी में कहां से आ गईं ?"
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