RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"मैं अपने परिवार के साथ 'इण्डिया गेट' पर घूमने गई थी—वहीं आप भी बोटिंग कर रहे थे—यह आज से दो साल पहले की बात है , वहां मैं आपको देखती रह गई थी और आप मुझे—कहना चाहिए कि वहां हममें प्यार हो गया था—शाम को जब पिकनिक के बाद मैं अपने परिवार के साथ वहां से विदा हुई थी तो आपने महरौली स्थित हमारे घर तक पीछा किया था , फिर आपने यह भी पता लगा लिया था कि मैं कौन से कॉलेज में पढ़ती हूं—आप हर रोज मुझे मेरे कॉलिज के बाहर खड़े मिलने लगे थे , फिर एक दिन आपने मुझे पत्र दिया था—इस तरह हमारा प्यार परवान चढ़ने लगा था और हम अक्सर मिलने लगे थे।"
"फिर?”
बड़ी उम्मीद के साथ युवक की आंखों में झांकती हुई रूबी ने पूछा— “क्या आपको कुछ याद आ रहा है ?"
"न.....नहीं।"
रूबी के मुखड़े पर निराशा के बादल मंडराते नजर आए , फिर भी स्वयं को नियंत्रित करके उसने आगे कहा— "एक दिन मेरे पिता के किसी परिचित ने हमें 'कनॉट प्लेस' में घूमते देख लिया था—घर पर मुझ पर सख्ती की गई थी तो मैंने कह दिया था कि तुम्हीं से शादी करूंगी—उसके बाद तुमसे मिलने पर जब मैंने वे सब बातें बताई थीं तो तुम उदास हो गए थे—मेरे पूछने पर तुमने बताया था कि तुम मुझसे शादी नहीं कर सकते हो—तुमने कहा था कि तुम खुद को मेरे काबिल नहीं समझते—मेरे कारण पूछने पर ही तुमने अपने बचपन से लेकर चोर बनने तक के बारे में बताया था।"
"फिर क्या हुआ?"
"मैं सुनकर अवाक् रह गई थी , जानती थी कि मेरे घर वालों को अगर यह हकीकत पता लग गई तो वे हरगिज भी हमारी शादी नहीं करेंगे , जबकि तुम बहुत उदास और गमगीन हो गए थे। तब तक मैं तुमसे इतना प्यार करने लगी थी कि तुम्हारे बिना जीवित रहने की कल्पना तक नहीं कर सकती थी—सो , उस दिन की हमारी मुलाकात के बाद तय हुआ था कि तुम अपराधियों के उस दल से सम्बन्ध तोड़ लोगे , जिसके सदस्य के रूप में चोरी करते हो—सो तय हुआ कि तुम एक शराफत की जिन्दगी शुरू करोगे—उसी के तहत तुमने देहली से बाहर , यहीं यह मकान खरीदा था—आज से छ: महीने पहले मैं अपना घर छोड़ आई थी , गाजियाबाद कोर्ट में हमने शादी की थी और यहां रहने लगे थे—यहां हमारी इस कहानी को कोई नहीं जानता है।"
“म...मैंने यह मकान कैसे खरीद लिया—और जब मैंने चोरी छोड़ दी थी तो छ: महीने तक हमारा खर्चा कैसे चला ?"
"जब आपने उस गिरोह से सम्बन्ध विच्छेद किया था , तब आपके पास अपने पांच लाख रुपए थे , जिसमें से चार लाख का आपने यह मकान खरीद लिया था और बाकी एक लाख मेरी सलाह से ब्याज पर चला दिया था—हमें प्रति महीने उनसे छ: हजार ब्याज प्राप्त होता है , उसमें हमारा खर्च बहुत आराम से चलता है—उस एक लाख में से बीस इजार तो छ: परसेंट पर राजा भाइया पर ही हैं।"
"बाकी अस्सी हजार ?"
"इसी तरह बंटा हुआ है , आप फिक्र न करें—मुझे सब मालूम है।"
"क्या उस गिरोह के लोगों ने मेरा पीछा नहीं किया , जिसका मैं सदस्य था?"
"किया होगा , मगर कम-से-कम आज तक वे यहां नहीं पहुंचे हैं।"
"अगर यहां हमारी लाइफ इतनी सैट हो गई थी तो फिर मैं तुम्हें यहां छोड़कर दो महीने पहले भाग क्यों गया था?" युवक ने पूछा।
"मेरी ही बेवकूफी से—मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं, जॉनी।"
चौंकते हुए युवक ने पूछा —“मैं कुछ समझा नहीं?"
"ओह , मैं बार-बार क्यों भूल जाती हूं जॉनी कि तुम्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा है—याद करने की कोशिश करो , प्लीज—दिमाग पर जोर डालो—याद करो कि मैंने कितनी मुश्किल से तुम्हें तुम्हारे माता-पिता के घर यानि बस्ती चलने के लिए राजी किया था। तुम तैयार हो गए थे—हम वहां जाने के लिए बाजार में शॉपिंग करने गए—सर्राफे में मेरी नजर एक नेकलेस पर पड़ी।"
"न...नेकलेस ?” युवक उछल पड़ा।
“हां , यह कम्बख्त नेकलेस ही तो सारे कलह की जड़ था।"
“कैसे ?”
"जाने ऐसा क्या हुआ कि वह नेकलेस मेरे दिमाग पर बहुत ज्यादा चढ़ गया और मैं तुमसे उसे खरीद लेने की जिद करने लगी , उसकी कीमत दो लाख थी—तुमने कहा कि उसे खरीदने की फिलहाल हमारी पोजीशन नहीं है। तुम्हें कुछ याद आ रहा है, जॉनी ?"
"फिर क्या हुआ ?"
"तुम्हारा इन्कार करना मुझे बुरा लगा था—वहां से तो गुस्से में भरी मैं चुपचाप चली आई थी , मगर यहां आकर झगड़ने लगी थी—तुम मुझे समझाने की कोशिश करने लगे थे , पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि तुम्हारी एक न सुनी थी—गुस्से में जाने क्या-क्या कहने लगी थी , अन्त में तुम्हें भी गुस्सा आ गया था और गुस्से में ही तुम यहां से यह कहकर चले गए थे कि अब मुझे तभी शक्ल दिखाओगे जब वह नेकलेस तुम्हारे पास होगा—मेरे दिमाग में तब भी यह बात नहीं आई थी कि जो शख्स दस साल की आयु में एक छोटी-सी बात के कारण घर से ऐसा निकला कि चोर बन गया , मगर घर नहीं लौटा , वह सचमुच मुझे भी छोड़ सकता है—यह बात तो दिमाग में तब आई थी जब उस सारी रात तुम नहीं आए—फिर ज्यों-ज्यों समय गुजरता गया था , मुझे लगने लगा था कि अब तुम कभी नहीं आओगे , अपने घर वालों ही तरह ही हमेशा के लिए मुझे भी छोड़ गए हो , मगर मैं यहां से निकलकर कहीं जा भी तो नहीं सकती थी, जॉनी—इस उम्मीद में यहीं पड़ी-पड़ी रोती रहती थी कि शायद तुम्हें कभी मेरी याद आए , मुझ पर तरस आए तुम्हें।"
युवक ने जेब से वही नेकलेस निकाला , जो दीवान ने न्यादर अली को और न्यादर अली ने पुन: उसे दे दिया था। बिना कुछ कहे उसने नेकलेस रूबी की तरफ बढ़ा दिया।
"अरे , यह तो वही नेकलेस है—तु.....तुम इसे लेकर ही आए हो ?"
"श...शायद।"
"क......क्या तुम्हें सब कुछ याद आ रहा है, जॉनी? सच बोलो।" बड़ी ही अधीरता के साथ रूबी ने पूछा— “तुम्हें कुछ याद आया है न ?"
सपाट और निर्भाव चेहरे वाले युवक ने कहा— “ नहीं।"
रूबी का चेहरा एकदम इस तरह फक्क पड़ गया , जैसे उसे कोई जबरदस्त आघात लगा हो। घोर निराशा में डूबे स्वर में उसने कहा— "फ.....फिर यह नेकलेस ?”
"शायद इसे तुम्हें देने की धुन में ही मैंने अमीचन्द के गैराज से कार और फिर खरीदने की हैसियत न होने के कारण दुकान से यह नेकलेस चुराया था—वह पुलिस इंस्पेक्टर कहता था कि मेरी जेब में इसे खरीदने से सम्बन्धित कोई रसीद नहीं निकली थी।"
"म...मगर आप रोहतक रोड पर कैसे पहुंच गए ?"
"एक चोर कहीं भी पहुंच सकता है।"
"ऐसा मत कहिए , आप चोर नहीं हैं—अब मैं आपको कभी चोरी नहीं करने दूंगी।"
"खैर।" युवक ने गम्भीरतापूर्वक सोचते हुए पूछा— "क्या तुम बता सकती हो रूबी कि जब मैँ यहां से गया था तो मेरी जेब में कितने पैसे थे ?”
"तीस हजार के करीब।"
"मगर मेरी जेब में कुल बाइस हजार....ओह , बाकी के रुपए शायद मैं एक्सीडेण्ट होने से पहले खर्च कर चुका था। खैर...क्या मेरी जेब में कोई पर्स रहता था रूबी ?"
“हां , वही पर्स जिसमें आपकी मां का फोटो है।"
"म...मां का फोटो ?" युवक भौंचक्का रह गया।
"जी हां , कहां है वह पर्स ?"
“ले......लेकिन वह मेरी मां कैसे हो सकती है—वह तो किसी युवती का फोटो है।"
"वह आपका नहीं , आपके पिता का पर्स है—जब आप घर से भागे थे तो उनकी जेब से यह पर्स निकालकर भागे थे—वह आपकी मां की शादी से पहले का फोटो है , उस पर्स को पिता की और फोटो को मां की निशानी समझकर आपने हमेशा अपने साथ रखा , कभी मिस नहीं किया उसे—क्या आपको यह भी याद नहीं है कि आप अक्सर दीवानों की तरह अपनी मां के फोटो से बातें किया करते हैं ?"
आश्चर्य के कारण युवक का बुरा हाल था। उसने जेब से पर्स निकाला—खोलकर ध्यान से उस युवती के फोटो को देखने लगा—उस फोटो को जिसे न्यादर अली ने उसकी बहन सायरा का फोटो बताया था , अब—यह रूबी इसी फोटो को उसकी मां का फोटो कह रही है।
बुरी तरह उलझ गया युवक।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि सच्चाई क्या है ?
सेठ न्यादर अली के बंगले से वह यह सोचकर भागा था कि शायद अपने अतीत की गुत्थी को सुलझा सके—खुद ही को शायद वह तलाश कर सके , मगर यहां आकर तो गुत्थी कुछ और ज्यादा उलझ गई थी। युवक का दिमाग बुरी तरह झनझना रहा था।
"हां , यही पर्स है वह और यही मांजी हैं।" रूबी की आवाज ने उसकी विचार श्रखंला तोड़ दी , उसने चौंककर रूबी की तरफ देखा—हैरत और उलझन की रस्सियों से बंधा कुछ देर तक वह शान्त भाव से रूबी को देखता रहा , फिर बोला— “यह फोटो और साथ में मेरा फोटो भी पुलिस ने अखबार में छपवाया था , उसे देखकर तुम मेडिकल इंस्टीट्यूट में क्यों नहीं आईं ?"
"क.....कौन-से अखबार में , मैंने तो नहीं देखा।"
"नहीं देखा ?"
"कैसी बात कर रहे हैं आप? यदि देखा होता तो क्या मैं आती नहीं ?"
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