RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
अब उस कमरे में युवक अकेला था।
बेड की पुश्त के साथ रखे डनलप के तकियों पर सिर रखे वह बेड पर लगभग लेटा हुआ था , किचन की तरफ से आवाजें आ रही थीं—कमरे की छत को घूरता हुआ वह न्यादर अली और रूबी द्वारा सुनाई गई कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा था।
थोड़ा सोचने के बाद उसे लगा कि—रूबी की कहानी ज्यादा सशक्त है और आत्मविश्वास से भरी है—इसने जो कुछ कहा है, उसमें ऐसे 'छिद्र ' हैं , जिनके जरिए सुनाई गई कहानी की पुष्टि की जा सकती है।
रूबी के बताए अनुसार वह महरौली स्थित उसके घर जा सकता है—वह बस्ती भी जा सकता है , जहां रूबी के कथनानुसार उसके माता-पिता और छोटे भाई-बहन रहते हैं—यहां , यानि भगवतपुरे में उसे बहुत-से लोग जॉनी के नाम से जानते हैं—उसके दोस्त भी हैं।
पुष्टि बड़ी सरलता से हो सकती है।
सबसे विशेष बात यह थी कि नेकलेस , पर्स और फोटो आदि का सम्बन्ध स्वयं ही रूबी की कहानी से जुड़ गया था , जबकि रूबी को यह मालूम भी नहीं था कि यह सब सामान उसकी जेब से निकला है।
न्यादर अली की कहानी में ऐसे छिद्र या तो थे ही नहीं या बहुत कम थे , जिनके जरिए वह अपने सिकन्दर होने की पुष्टि कर सके—इन्वेस्टिगेशन करके अब उसे पहले इस नतीजे पर पहुंचना था कि जॉनी और सिकन्दर में से वह क्या है ?
वह इन्हीं ख्यालों में भटकता रहा और रूबी उसके लिए चावल बना लाई—स्टील की प्लेट में चावल लिए जब उसने कमरे में प्रवेश किया तो पीले रंग के गर्म चावलों में से भांप उठ रही थी , किन्तु भूख के बावजूद वह तश्तरी की अपेक्षा रूबी की तरफ ज्यादा आकर्षित हुआ।
इस वक्त रूबी बेहद खूबसूरत लग रही थी।
चावल बनाने के बीच ही या तो वह नहाई थी या मुंह-हाथ धोए थे—मुखड़े पर पूरा मेकअप था। उसके मस्तक पर लगी सिन्दूरी बिन्दिया को देखता ही रह गया वह—बाल संवरे हुए थे—सिन्दूर से लबालब भरी मांग—साड़ी के स्थान पर नाइट गाउन पहना था उसने।
अपने होंठों के समान ही गुलाबी रंग का झीना गाउन—ऐसा कि युवक को उसकी ब्रेजरी और अण्डरवियर साफ नजर आए—युवक ने पहली बार ही महसूस किया कि रूबी का जिस्म सख्त और गठा हुआ है—टांगें लम्बी और गोल थीं , पुष्ट वक्ष कसी हुई ब्रेजरी से मानो निकल पड़ने के लिए बेताब हों।
युवक देखता ही रह गया उसे।
जाने कहां से यह विचार उसके दिमाग में जा टकराया कि अगर रूबी सचमुच मेरी पत्नी है तो यह मुझे पसन्द है—वह वाकई खूबसूरत थी—एकटक युवक उसे देखता ही रह गया , वह स्वयं भी तो उसे प्यार से , आंखों में चमक लिए उसे निहार रही थी।
युवक की सांसें तेज हो गईं—दिल के धड़कने की गति बढ़ गईं—मस्तक पर पसीना उभर आया और अपना हलक सूखता-सा महसूस किया उसने—बिल्कुल नजदीक आकर रूबी ने उसे कातर दृष्टि से देखते हुए पूछा—"इस तरह क्या देख रहे हैं ?"
"क...कुछ नहीं।" युवक हड़बड़ा गया।
"कुछ तो ?" कहती हुई रूबी ने झुककर चावलों की प्लेट बेड पर रखी तो युवक की नज़रें ब्रेजरी से झांकते उसके पुष्ट वक्ष पर स्वयं ही पड़ गईं।
"त...तुम बहुत सुन्दर लग रही हो।" कहीं सोया-सा युवक कह उठा।
धीमें से बैठती हुई रूबी ने कहा— “जब भी मैं यह लिबास पहनती हूं, आप तभी यह कहते हैं—स्वयं आपको इस लिबास के बारे में भी कुछ याद नहीं है ?"
“न.....नहीं तो ?"
"इसे आप मेरे लिए विशेष रूप से लाए थे , सुहागरात के लिए।"
हक्का-बक्का-सा वह केवल रूबी के दमकते मुखड़े को देखता रहा। एकाएक ही उसे अपने होंठ तक सूखते महसूस हुए , बोला— “क्या मुझे एक गिलास पानी मिलेगा ?"
"क्यों नहीं , मैं अभी लाई।" कहकर वह उठी , घूमी और फिर तेजी के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गई—युवक की दृष्टि उसके नितम्बों पर चिपककर रह गई। तेजी से चलने के कारण उनमें कुछ ऐसा लोच उत्पन्न हुआ था कि युवक के मन में गुदगुदी-सी हुई।
एक ही पल में वह नजर आनी बन्द हो गई।
एकाएक उसके दिमाग में विचार उठा कि क्या रूबी इस उत्तेजक लिबास को पहनकर मुझे किसी जाल में फंसा रही है या एक पत्नी दो महीने से गुम अपने पति का स्वागत कर रही है ? वह ठीक से निर्णय नहीं कर सका कि सच्चाई क्या है?
एक जग में पानी और दूसरे हाथ में खाली गिलास लिए वह आ गई—गिलास में पानी भरकर उसने युवक को दिया , युवक एक ही सांस में गिलास खाली कर गया —पानी पीने के बाद उसने गिलास के ऊपरी सिरे पर लिखा 'जॉनी ' देखा।
हलक अब भी सूखा-सा महसूस हो रहा था।
"एक गिलास और...।" युवक ने कहा।
"पानी से ही पेट भर लेंगे तो चावल क्या खाएंगे ?" कहती हुई रूबी ने उसके हाथ से गिलास लिया और उसे जग के समीप रखती हुई बोली— “ चावल खाइए।"
युवक ने चुपचाप प्लेट में रखी एक चम्मच उठा ली।
रूबी ने दूसरी चम्मच संभाल ली थी और अब वे चावल खाने लगे—युवक अपने मन-मस्तिष्क को नियंत्रण में रखने की भरपूर चेष्टा कर रहा था , परन्तु फिर भी रह-रहकर उसका ध्यान गाउन के अन्दर चमक रहे उसके गदराए जिस्म की तरफ चला ही जाता था।
उसे डर था कि दिलो-दिमाग में कहीं वे ही विचार न उठने लगें , जो नर्स को देखकर उठे थे—वे चावल खा चुके तो रूबी सारे बर्तन किचन में रख आई। उसके नजदीक बेड पर बैठती वह बोली—“अभी तक आपका वह नया दोस्त नहीं आया , क्या नाम बताया था आपने ?"
"रूपेश—वह शायद शाम तक ही आएगा।"
"आप नहा लीजिए , मैं आपके लिए कपड़े निकाल देती हूं।" कहने के साथ ही रूबी उठी और सेफ की तरफ बढ़ गई—युवक की दृष्टि उसके जिस्म ही पर थिरक रही थी।
वह सेफ के कपड़ों को खंगालने में व्यस्त थी।
युवक की दृष्टि उसकी गर्दन पर चिपक गई।
बड़े ही विस्फोटक ढंग से उसके दिमाग में विचार टकराया— "यदि रूबी के तन से गाउन , ब्रेजरी और अण्डरवियर उतार दिये जाएं तो वह कैसी लगेगी ?"
खूबसूरत।
एक नग्न युवती उसके सामने आ खड़ी हुई।
युवक रोमांचित हो उठा।
उसकी मुट्ठियां कस गईं—दिल चाहा कि अपनी सभी उंगलियां फैलाकर हाथ बढ़ाए और रूबी की गर्दन दबोच ले— “ अगर ऐसा कर दूं तो क्या होगा ?”
रूबी मर जाएगी।
पहले इसका चेहरा लाल-सुर्ख होगा , बन्धनों से निकलने के लिए छटपटाएगी , मगर मैँ इसे छोडूंगा नहीं—इसके मुंह से गूं-गूं की आवाज निकलने लगेगी—इसकी आंखें और जीभ बाहर निकल आएंगी—कुतिया की तरह जीभ बाहर लटका देगी वह।
तब , मैं इसकी गर्दन और जोर से दबा दूंगा।
मुश्किल से दो ही मिनट में यह फर्श पर गिर जाएगी—चेहरा बिल्कुल निस्तेज होगा —सफेद कागज-सा....उस अवस्था में कितनी खूबसूरत लगेगी वह—हां , इसे मार ही डालना चाहिए—उस अवस्था में यह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लगेगी।
उन भयानक विचारों से पूरी तरह अनभिज्ञ रूबी सेफ में से उसके पहनने के लिए कपड़ों का 'सलेक्शन ' कर रही थी—वह क्या जानती थी कि एक दरिन्दा उसे अपनी खूनी आंखों से घूर रहा है—मौत उस पर झपटने ही वाली है।
युवक के दिमाग में रह-रहकर कोई चीख रहा था— “ इसे मार डालो—मारने के बाद फर्श पर पड़ी वह बेहद खूबसूरत लगेगी—इसकी गर्दन दबा दो , जल्दी।
आंखों में बेहद हिंसक भाव उभर आए। चेहरा खून पीने के लिए किसी आदमखोर पशु के समान क्रूर और वीभत्स हो गया—आंखों में—अजीब-सा जुनून सवार हो गया उस पर। सारा जिस्म कांप रहा था....मुंह खून के प्यासे भेड़िए की तरह खुल गया—लार टपकने लगी-उंगलियां किसी लाश की उंगलियों के समान फैलकर अकड़ गईं।
बहुत ही डरावना नजर आने लगा वह।
अचानक ही वह उठा , किसी दरिन्दे की तरह फर्श पर खड़ा-खड़ा वह खूनी आंखों से रूबी को घूरने लगा। मुंह से लार टपककर उसके कपड़ों पर गिर रही थी—पंजे खोलकर उसने अपनी दोनों बांहें फैला रखी थीं।
बिल्कुल अनभिज्ञ , सेफ ही में मुंह गड़ाए मासूम रूबी ने पूछा—"आज आप ब्राउन सूट पहन लीजिए।"
एकाएक ही युवक के मुंह से किसी भेड़िये की-सी गुर्राहट निकली— “ कपड़े उतारो।"
रूबी एकदम चौंककर उसकी तरफ घूमी।
युवक की अवस्था देखकर बरबस ही उसके कण्ठ से चीख उबल पड़ी—डरकर पीछे हटी , चेहरा सफेद पड़ चुका था , बोली— “ क्....क्या हुआ—क्या हो गया है आपको ?"
"हूं-हूं-हूं-।" की डरावनी आवाज अपने मुंह से निकालता हुआ वह बांहें फैलाए रूबी की तरफ बढ़ा। लार टपके जा रही थी , वह चीखा— "मैं कहता हूं कपड़े उतारो। "
“ज.....जॉनी....जॉनी।" दहशतनाक अन्दाज में रूबी चीख पड़ी— "क...क्या हो गया है तुम्हें ? प...प्लीज़ , मुझे इस तरह मत ड़राओ।"
“हरामजादी—सुनती नहीं मैंने क्या कहा , कपड़े उतार!"
और अब , हलक फाड़कर रूबी चिल्ला उठी— “ बचाओ.....ब.....बचाओ।"
मगर इस बन्द स्थान के अन्दर से उसकी चीखें शायद बाहर नहीं जा सकीं—युवक झपटा—रूबी चीख पड़ी...और वह खूबसूरत झीना गाउन फटता चला गया —रूबी चीखती रही—किसी पागल कुत्ते की तरह वह बार-बार गाउन पर झपटता रहा।
गाउन के टुकड़े फर्श पर बिखर गए।
ब्रेजरी और अण्डरवियर में ही चीखती हुई रूबी दरवाजे की तरफ भागी।
दरिन्दे ने झपटकर पीछे से उसे दबोच लिया। लगातार चीखती हुई रूबी उसकी गिरफ्त से निकलने के लिए छटपटाई—युवक ने अपना खुला मुंह उसकी पीठ की तरफ बढ़ाया और इस वक्त बहुत पैने-से नजर आने वाले दांत उसकी ब्रेजरी के हुक में फंसाए।
भेड़िए की तरह उसने एक झटका दिया।
ब्रेजरी फर्श पर गिर गई।
बंधनों में जकड़ी रूबी को घुमाकर उसने बेड की तरफ फेंका , चीखती हुई रूबी बेड पर जा गिरी—युवक घूमकर उसी खूनी अन्दाज में पंजे फैलाए बेड की तरफ बढ़ा।
उससे बुरी तरह आतंकित रूबी हाथ जोड़कर रोती हुई गिड़गिड़ा उठी— “ म.....मुझे माफ कर दो—म-मुझे मत मारो—म...मैं..।"
युवक पुन: उस पर झपट पड़ा।
इस बार कपड़े का वह आखिरी रेशा भी जिस्म से अलग हो गया। निर्वस्त्र रूबी बेड से कूदकर दरवाजे की तरफ भागी—हड़बड़ाहट के कारण गिरी , फिर उठी , मगर इस बार उठते ही युवक के हाथ उसने अपनी गर्दन पर महसूस किए।
हलक से अभी तक की सबसे जोरदार चीख निकली।
मगर दांत भींचे युवक उसकी गर्दन दबाता ही चला गया—उसकी गिरफ्त से मुक्त होने की रूबी की हर कोशिश नाकाम रही। श्वांस क्रिया रुकने लगी—युवक का वीभत्स और डरावना चेहरा उसकी आंखों के बहुत नजदीक था। मुंह से टपकती हुई लार रूबी के मुंह में गिर रही थी—रूबी की जीभ बाहर निकलने लगी—चेहरा लाल-सुर्ख पड़ गया।
बोलने के प्रयास में गूं-गूं कर रही थी वह।
आंखें पलकों के किनारे से बाहर उबलने लगीं।
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