RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
उसे महसूस हो रहा था कि रूबी की हत्या करके उसने शायद अपनी जिन्दगी का सबसे ज्यादा मूर्खतापूर्ण काम किया है—यह उसकी पत्नी हो या न हो , मगर इसकी हत्या के जुर्म से बचना एकदम नामुमकिन है , कानून उसे फांसी पर लटका देगा।
तो क्या अब वह खुद को कानून के हवाले कर दे ?
सजा का ख्याल आते ही उसके समूचे जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई—उसके दिमाग ने कहा कि—“नहीं , तुझे रूबी का खून करने से भी बड़ी यह मूर्खता नहीं करनी चाहिए।
फिर क्या करूं मैं ?
इस हत्या के जुर्म से बचने की कोशिश!
कैसे ?
दिल के अन्दर छुपे किसी शैतान ने कहा—हत्या करते तुझे देखा ही किसने है , सिर्फ एक बिल्ली ने और वह किसी को कुछ नहीं बता सकती—इस राज को भी केवल दो ही व्यक्ति जानते हैं कि तू यहां आया है—रूपेश और राजाराम।
'ग.....गजेन्द्र भी तो जानता है ? वह बड़बड़ाया।'
'चलो मान लिया। उसी शैतान ने कहा …म...मगर वे तेरा कर क्या सकेंगे—तू खुद अपने आपको नहीं जानता , फिर वे तेरे बारे में पुलिस को क्या बता सकेंगे-वे केवल तुझे जॉनी के नाम से जानते हैं , तू यहां से भाग जा।'
'क.......कहां?'
'कहीं भी , दुनिया बहुत बड़ी है—तू किसी दूसरे नाम से रह सकता है।'
'म....मगर—रूपेश तो आने ही वाला होगा ?'
'इसीलिए तो कहता हूं कि जल्दी से भाग जा यहां से , अगर वह आ गया तो फिर बच निकलने का यह आखिरी मौका भी तेरे हाथ से जाता रहेगा।'
'पुलिस मेरा फोटो अखवार में छपवा देगी।'
'अभी समय है , यहां मौजूद अपने सभी फोटुओं को जलाकर राख कर दे बेवकूफ।'
ऐसे संवेदनशील समय में इंसान के दिमाग में जब भी द्वन्द होता है , तब उसके अन्दर छुपे शैतान की ही जीत होती है—ऐसे हर क्षण में इंसान की आत्मा मर जाया करती है और वैसा ही इस युवक के साथ भी हुआ—वह अपने अतीत की तलाश में निकला था और शायद अतीत की ही किसी गुत्थी के कारण रूबी की हत्या कर बैठा।
अब उसके लिए अपने अतीत को तलाश करना उतना महत्वपूर्ण नहीं था , जितना इस हत्या के जुर्म में गिरफ्तार होने से खुद को बचाना—अतीत की तलाश में भटकते जो गुत्थियां उसके सामने पेश आई थीं , वे गुत्थियां ही रह गईं और दिलो-दिमाग से पूरी तरह चौकन्ना होकर अब वह खुद को बचाने की कोशिश में जुट गया।
उसने निश्चय कर लिया था कि इस मकान में वह अपना एक भी फोटो नहीं छोड़ेगा , इसीलिए सारे मकान की तलाशी ले डाली—अपने और रूबी के ढेर सारे फोटुओं से भरी एक एलबम मिली उसे—इस एलबम के चन्द फोटुओं को देखकर उसे विश्वास-सा होने लगा कि मैं सचमुच जॉनी ही हूं और रूबी मेरी पत्नी थी।
मगर इस विषय में अब विस्तारपूर्वक सोचने के लिए उसके पास समय नहीं था। एलबम को फर्श पर डालकर उसने आग लगा दी और उस क्षण उसके दिमाग में एक बहुत ही भयानक ख्याल उभरा।
यह कि क्यों न वह रूबी की लाश को भी जलाकर राख कर दे ?
अब उसे अपने इन भयानक ख्यालों से डर नहीं लग रहा था। दौड़कर किचन में पहुंचा—थोड़ी-सी कोशिश के बाद ही उसे तेल से भरी एक कनस्तरी मिल गई।
कनस्तरी को उठाकर वह कमरे में ले आया।
फर्श पर बिखरे रूबी के सारे कपड़े समेटकर उसने लाश के ऊपर डाले। कनस्तरी खोलकर मिट्टी का तेल लाश के ऊपर—सारे कमरे में मिट्टी के तेल की दुर्गन्ध फैल गई।
उसने माचिस के मसाले पर रगड़कर तीली जलाई।
अभी उसे लाश की तरफ उछालने ही वाला था कि स्वयं ही उछल पड़ा—सारे मकान में कॉलबेल के बजने की आवाज़ बड़े जोर से गूंजी थी।
युवक थरथरा उठा। तीली बुझ गई।
बिजली की-सी तेजी से उसके दिमाग में यह विचार कौंधा था कि कौन हो सकता है ?
फिर उतनी ही तेजी से यह कि—रूपेश—शायद वह रूपेश ही होगा।
उफ्! यह कम्बख्त दस-पन्द्रह मिनट बाद नहीं आ सकता था। युवक बुरी तरह हड़बड़ा गया। एकदम से वह कुछ फैसला नहीं कर सका—अभी हक्का-बक्का-सा वह यथास्थान खड़ा ही था कि कॉलबेल पुन: घनघना उठी।
युवक की सिट्टी-पिट्टी गुम।
बौखलाकर उसने अपने चारों तरफ देखा और फिर दौड़ता हुआ किचन में आया—कुछ सोचकर ठिठका , दबे पांव गैलरी पार की। दरवाजे के समीप पहुंचकर धीमे से बोला—“कौन है ?"
"मैं रूपेश हूं, दरवाजा खोलो।"
युवक की खोपड़ी रूपेश की आवाज को सुनने के बाद हवा में नाच उठी।
उसके दिमाग में बिजली के समान कौंध-कौंधकर ये सवाल उठ रहे थे कि एकमात्र रूपेश ही वह व्यक्ति है , जो यह जानता है कि मैं ही सिकन्दर भी हूं—वह पुलिस को बता सकता है कि मैं यहां कहां से , कैसे और क्यों आया था ?
उसके बयान के आधार पर पुलिस न्यादर अली के यहां से मेरा फोटो हासिल कर लेगी और फिर मेरा वह फोटो एक हत्यारा कहकर अखबारों में छाप दिया जाएगा।
दुनिया के किसी भी कोने में , किसी भी नाम से मेरा सुरक्षित रहना दूभर हो जाएगा।
यदि रूपेश न हो , तब मैं बिल्कुल सुरक्षित हूं।
बाहर से पुन: रूपेश की आवाज उभरी— "क्या बात है जॉनी , दरवाजा खोलो।"
"ए....एक मिनट ठहरो , अभी खोलता हूं।" युवक ने जल्दी से कहा और फिर दबे पांव तेजी से गैलरी पार करके आंगन में पहुंच गया।
अचानक ही उसे लगने लगा था कि एकमात्र रूपेश ही है , जो मेरा सम्पूर्ण रहस्य जानता है। जब तक यह रहेगा , कानून नाम की धारदार तलवार मेरी गर्दन पर लटकती रहेगी और यही न रहे तो फिर मैं सुरक्षित हूं।
दुनिया का कोई भी कानून मुझ तक नहीं पहुंच सकेगा।
“ उसे मार दो—अगर खुद इस दुनिया में रहना चाहते हो तो उसे मारना तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है। ” शैतान उसके कान में फुसफुसाया।
"म...मतलब एक कत्ल और ?" बड़बड़ाकर युवक ने चारों तरफ देखा , रसोई के एक कोने में पड़ी पत्थर के कोयलों को तोड़ने के काम में आने वाली लोहे की एक भारी हथौड़ी पर उसकी नजर स्थिर हो गई।
शैतान फुसफुसाया— “यह कत्ल करे बिना तुम पहले कत्ल की सजा से बच नहीं सकोगे , बचने के लिए यह एक और हत्या तुम्हें करनी ही होगी।"
झपटकर वह रसोई में पहुंचा। हथौड़ी उठा ली उसने।
इस वक्त युवक बहुत ही खूंखार नजर आ रहा था। हथौड़ी संभाले आंगन पार करके वह गैलरी में पहुंचा। दरवाजे से थोड़ा इधर ही गैलरी की दीवार में एक आला था—युवक ने हथौड़ी उसी में रख दी।
दरवाजे पर दस्तक हुई , साथ ही रूपेश की आवाज—“इतनी देर से तुम क्या कर रहे हो जॉनी , दरवाजा खोलो।"
"खोलता हूं।" युवक के मुंह से अजीब-सी आवाज निकली और आगे बढ़कर उसने सांकल खोल दी—दरवाजा खोलते ही उसका दिल जोर से धड़का।
"धक्क्!”
बस , अन्तिम बार धड़ककर दिल मानो शान्त हो गया।
हक्का-बक्का—किसी मूर्ति के समान खड़ा रह गया था वह , और उसकी ऐसी हालत रूपेश के साथ गजेन्द्र को देखकर हुई थी।
रूपेश के साथ गजेन्द्र भी दरवाजे पर खड़ा था।
युवक का चेहरा एकदम फक्क पड़ गया—हवाइयां उड़ने लगीं—जुबान तालू में चिपक गई। लाख चाहकर भी मुंह से वह कोई आवाज नहीं निकाल सका।
"हैलो जॉनी।" गजेन्द्र ने कहा।
"ह......हैलो।" अपनी ही आवाज उसे कहीं बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी। होश फाख्ता थे उसके—रूपेश उसे देखकर मुस्करा रहा था।
युवक के होठों पर अजीब मूर्खता-भरी मुस्कान थिरक गई।
"क्या बात है ?" रूपेश ने पूछा— “दरवाजा खोलने में इतनी देर कैसे लग गई?"
कुछ अटपटा-सा जवाब देने के लिए युवक ने अभी मुंह खोला ही था कि उसकी बगल में खड़े गजेन्द्र ने कहा— "भाभी से दो महीने बाद मिला है , व्यस्त होगा …क्यों जॉनी ?”
रूपेश धीमे से हंस दिया।
बौखलाकर युवक ने भी खीसें निपोर दीं , जबकि रूपेश के साथ खड़े गजेन्द्र ने बताया , "तुम्हारे यह दोस्त सारे भगवतपुरे में तुम्हारा मकान तलाशते फिर रहे थे जॉनी , मुझे टकरा गए और मैं इन्हें यहां ले आया।"
"थ...थैंक्यू। ” यह शब्द उसके मुंह से बड़ी कठिनाई से निकल सका।
“ओ oके o जॉनी, चलता हूं। ” कहने के साथ ही उसने हाथ आगे बढ़ा दिया। युवक ने जल्दी से हाथ मिलाया। जाते हुए गजेन्द्र ने कहा— "तो शाम को जम रहे हो न ?"
"हां...हां—क्यों नहीं!"
"अपने इस दोस्त को भी लाना।" कहता हुआ गजेन्द्र एक तरफ को चला गया—हक्का-बक्का-सा खड़ा युवक अभी उसे जाता देख ही रहा था कि रूपेश ने कहा— "क्या बात है दोस्त , तुम कुछ 'एबनॉर्मल ' से लग रहे हो ?"
"न...नहीं तो …ऐसी कोई बात नहीं है , मगर तुम उसे यहां क्यों ले आए?"
“राजाराम ने मुझे यहीं का पता दिया था , भगवतपुरे में पहुंचने के बाद इस मकान के नम्बर के बारे में पूछने लगा तो वह मेरे साथ हो लिया।"
“खैर—आओ।" कहता हुआ युवक दरवाजे के बीच से हटा तो रूपेश गैलरी में आ गया। युवक ने जल्दी से दरवाजा बन्द करके सांकल चढ़ाई , रूपेश ने पूछा— "कहो , यहां आने के बाद किस नतीजे पर पहुंचे ?"
"वह सब मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा रूपेश , पहले तुम बताओ कि वहां क्या हुआ—मेरे गायब होने की सेठ न्यादर अली पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी ?"
"वह बुरी तरह परेशान हो गया था , चीखने-चिल्लाने लगा—नौकरों पर और सबसे ज्यादा मुझ पर बरस पड़ा—कहने लगा कि मैंने तुम्हें रखा किसलिए था—अपना बेटा गुम होने की रपट भी लिखवा दी है उसने।"
"तुमने राजाराम को तो सिकन्दर वाली कहानी नहीं बताई है ?"
"मेरा दिमाग खराब था क्या ?"
"गुड़ , अन्दर चलो …मैं तुम्हें रूबी से मिलाता हूँ।"
रूपेश आगे बढ़ गया। युवक उसके पीछे था—इस वक्त उसका दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहा था , किन्तु निश्चय कर चुका था कि रूपेश के आला पार करते ही वह आले के समीप पहुंचेगा , हथौड़ी उठाएगा और उसके सिर पर दे मारेगा।
उस वक्त युवक ने अपनी नसों में दौड़ता खून एकदम रुक गया-सा महसूस किया , जब आले के समीप पहुंचकर रूपेश खुद ही रुक गया—वह लम्बी-लम्बी सांसें लेता हुआ बोला— “क्या बात है , यहां मिट्टी के तेल की बदबू क्यों फैली हुई है ?"
सुन्न पड़ गया युवक का दिमाग।
हड़बड़ाकर बोला—“क.....कोई विशेष बात नहीं है , स्टोव में डालते वक्त रूबी से ही थोड़ा तेल बिखर गया था।"
एकाएक ही चौंकते हुए रूपेश ने पूछा— "क्या बात है—तुम इतने घबराए हुए क्यों हो ?"
"भ.....भगवान के लिए चुप रहो—अगर रूबी ने कुछ सुन लिया तो सब गड़बड़ हो जाएगा—प्लीज , चुपचाप अन्दर चलो रूपेश।"
वह आगे बढ़ गया।
आले के समीप पहुंचते ही युवक ने हथौड़ी उठा ली।
रूपेश कह रहा था—“राजाराम की बात सुनने के बाद तो मैं कुछ ज्यादा ही , आह...।"
सिर पर भारी हथौड़ी की ऐसी जोरदार चोट पड़ी कि हलक से एक चीख निकल पड़ी। आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाचे और फिर उसकी आंखों के सामने घना काला अंधेरा छाता चला गया।
युवक हथौड़ी वाला हाथ ऊपर उठाए दूसरा वार करने के लिए तैयार खड़ा था , जबकि दोनों हाथों से अपना सिर पकड़े रूपेश किसी शराबी के समान लड़खड़ाने के बाद कटे वृक्ष-सा युवक के पैरों के नजदीक गिर गया।
दांत पर दांत जमाए युवक अपने स्थान पर खड़ा कांपता रहा।
फिर उसने हथौड़ी एक तरफ फेंकी , जल्दी से नीचे बैठकर रूपेश की नब्ज देखी, नब्ज चल रही थी , मतलब यह कि वह केवल बेहोश हुआ था।
युवक ने जल्दी से उसकी दोनों टांगें पकड़ीं और फिर पूरी बेरहमी के साथ उसके जिस्म को घसीटता हुआ आंगन में से गुजरकर उसी कमरे में ले आया , जिसमें रूबी की लाश पड़ी थी।
युवक ने रूपेश के बेहोश जिस्म को उठाकर रूबी की लाश के ऊपर डाला और जेब से माचिस निकाल ली।
तीली को मसाले पर रगड़ते वक्त उसके चेहरे पर बहुत सख्त भाव थे। चेहरा किसी खुरदरे पत्थर-सा महसूस हो रहा था—ढ़ूंढने पर भी उसके चेहरे पर से इस वक्त दया अथवा वेदना का कोई चिन्ह नहीं मिल सकता था—फर्...र्र...र्र...से तीली के सिरे पर मौजूद मसाला जला।
युवक की आंखों में हिंसक भाव थे।
सच ही कहा है किसी ने—अपने प्राण हर व्यक्ति को हर कीमत से कहीं ज्यादा प्यारे होते हैं …अगर किसी को यह पता लग जाए कि सारी दुनिया में आग लगाने से उसके अपने प्राण बच सकते हैं तो वह सारी दुनिया को जलाकर राख करने में एक पल के लिए भी नहीं हिचकेगा।
और फिर इस युवक को तो सिर्फ एक लाश और दूसरे जिन्दा शरीर को आग के हवाले करना था। अगर मैं यह लिखूं कि वह हिचका था तो वह गलत होगा—एक पल के लिए भी तो नहीं हिचका वह। हां …यह सोचकर दिल जरूर कांपा था कि वह कितना भयानक काम कर रहा है , मगर दिमाग में इस ख्याल के उठते ही कि उसके जीवित रहने के लिए इन दोनों का राख होना जरूरी है , उसने तीली उछाल दी।
मिट्टी के तेल से तर रूबी की लाश ने 'फक्क' से आग पकड़ ली—चेहरे पर हिंसक भाव लिए युवक दरवाजे के समीप खड़ा सब कुछ देखता रहा—आधे मिनट में ही उन दोनों जिस्मों ने एक छोटी-सी होली का रूप ले लिया।
कमरे में गोश्त के जलने की दुर्गन्ध फैलने लगी।
युवक तब चौंका जब उसने रूपेश के जिस्म में हल्की-सी हरकत महसूस की—उस वक्त तो उसके रोंगटे ही खड़े हो गए , जब रूपेश के कण्ठ से घुटी-घुटी-सी चीख निकली—जिस्म के आग में जलने से शायद उसकी चेतना लौट रही थी।
लपलपाती आग ने बेड का किनारा पकड़ लिया।
चेहरे पर वही कठोरता लिए युवक तेजी से घूमा , कमरे से बाहर निकला और दरवाजा भड़ाक से बन्द करके उसने सांकल चढ़ा दी।
बहुत तेजी के साथ उसने आंगन और गैलरी पार की।
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