RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पुलिस टुकड़ी को जाते देख युवक ने एक लम्बी संतोष की सांस ली—वहां केवल दो मिनट ठहरने के बाद रेंगती हुई ट्रेन आगे बढ़ गई—गति पकड़ने लगी—युवक के आसपास बैठे लोग उसी घटना के बारे में चर्चा करने लगे।
युवक का दिमाग ट्रेन की-सी गति के साथ ही विचारों में गुम था।
उसे लग रहा था कि फिलहाल तो वह बच गया , मगर आनन-फानन में कुछ-न-कुछ गलत जरूर हो गया है—गवाह के रूप में चटर्जी उसके साइन और एड्रेस ले गया है—बंगले का नम्बर गलत होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
लारेंस रोड पर पहुंचने के बाद किसी का भी न्यादर अली के बंगले पर जाना आसान है। अब इंस्पेक्टर के पास सबूत है कि आज की तारीख में हरिद्वार पैसेंजर से गाजियाबाद से देहली जा रहा था—भगवतपुरे में लगी आग से हरिद्वार पैसेंजर का टाइम सही टैली करेगा—यदि पुलिस के हाथ गजेन्द्र और रिक्शा वाला लग जाए तो पुलिस को मेरा हुलिया मिल जाएगा।
संयोग से यदि वह हुलिया इस काइयां इंस्पेक्टर के सामने आ गया तो मेरी याद आने में इसे एक पल भी नहीं लगेगा और उसी क्षण उसकी समझ में मेरे चेहरे पर उड़ती हवाइयों का अर्थ भी आ जाएगा—फिर उसे लारेंस रोड पहुंचने में देर नहीं लगेगी।
इन सब विचारों ने युवक को एक बार फिर उद्विग्न कर दिया।
आतंक की अधिकता के कारण एक बार फिर उसका दिल घबराने लगा—पुलिस कभी लारेंस रोड तक न पहुंच सके , एकमात्र इसी उद्देश्य से तो उसने जिन्दा रूपेश को जलाकर राख कर दिया था और अब , अपने पीछे वह खुद ही गाजियाबाद से लारेंस रोड तक की यात्रा के लिए पटरियां बिछाता जा रहा था।
इन सब विचारों में फंसकर अचानक ही उसे अपना लारेंस रोड जाना खतरनाक नजर आने लगा—यह बात उसके दिमाग में बैठती चली गई कि अब ‘सिकन्दर ' बनकर शेष जिन्दगी गुजारना उसके लिए बिल्कुल असम्भव है।
सारे सबूत बिछ चुके हैं , वह किसी भी क्षण पकड़ा जाएगा।
फिर कहां जाता?
एकाएक ही दिमाग में 'बस्ती ' का ख्याल उभर आया—फिर उसने जितना सोचा, यही बात जमी कि बस्ती चले जाना ही सुरक्षित है—यदि वह सचमुच जॉनी है , अगर वास्तव में रूबी ही उसकी पत्नी थी , तो बस्ती में उसके अपने मां-बाप हैं।
अपना घर है , छोटे भाई-बहन हैं।
अगर रूबी द्वारा सुनाई गई कहानी सही थी तो उसके बस्ती के पते का राज किसी को मालूम नहीं है। यह रहस्य अपनी पत्नी होने के नाते उसने केवल रूबी को ही बताया होगा , अतः बस्ती का ख्याल भी पुलिस के दिमाग में नहीं आ सकेगा।
मगर यदि रूबी द्वारा सुनाई गई कहानी काल्पनिक हुई ?
अगर वहाँ उसका कोई घर न हुआ तो ?
तो कम-से-कम वह यह तो समझ जाएगा कि रूबी झूठी थी। न्यादर अली नहीं—और फिर कम-से-कम यह बोझ तो उसके दिल पर से हट जाएगा कि उसने अपनी ही पत्नी की हत्या की है।
'लेकिन यदि ऐसा हुआ तो होगा क्या …फिर कहां जाऊंगा मैं ?'
'तब की तब देखूंगा , फिलहाल यहां से बहुत दूर निकल जाना ही जरूरी है और बस्ती यहां से काफी दूर है , इस चक्कर में अतीत की तलाश भी हो जाएगी।'
'मैं देहली से सीधा बस्ती चला जाऊंगा।'
'इस यात्रा के लिए बस ही ठीक रहेगी , ट्रेन मेरे लिए सुरक्षित नहीं है—भले ही देहली से बस्ती तक मुझे दो-बार बसें बदलनी पड़ें , मगर यह लम्बी यात्रा बस से करनी ही सब से ज्यादा सुरक्षित है।'
'और इस ट्रेन में ज्यादा देर रहना भी ठीक नहीं है।'
'सम्भव है कि इंस्पेक्टर चटर्जी को मेरा हुलिया मिल जाए और वह तुरन्त ही वायरलेस पर हरिद्वार पैसेंजर से मेरे देहली पहुंचने की सूचना देहली पुलिस को दे दे।'
'उस अवस्था में मैं स्टेशन पर ही पकड़ लिया जाऊंगा।'
इस ख्याल के दिमाग में जाते ही वह कुछ और घबरा गया।
उसने शाहदरे में ही उतर जाने का निश्चय किया —शाहदरे से टू-सीटर द्वारा वह सीधा कश्मीरी गेट जाएगा और वहीं से बस्ती की तरफ जाने वाली बस पकड़ लेगा।
यह सोच-सोचकर उसकी हालत अजीब होने लगी कि रूबी की हत्या के बाद से उसके दिलो-दिमाग को एक मिनट के लिए भी आराम नहीं मिला था—प्रत्येक मिनट , हरेक पल बहुत ही दहशतनाक , उत्तेजक और संवेदनशील बना रहा था।
शाहदरे में ट्रेन रुकी।
वह उतर पड़ा। बहुत ध्यान से उसने अपने चारों तरफ देखा—दूर , एक पुलिस वाला खड़ा था , हालांकि उसका ध्यान युवक की तरफ बिल्कुल नहीं था , फिर भी वह रास्ता काटता हुआ निकास द्वार की तरफ बढ़ा।
द्वार पर खड़ा एक टी oटी o गुजरने वालों से टिकट कलेक्ट कर रहा था।
जेब से अपना टिकट निकालकर युवक भी निकलने वालों की भीड़ में शामिल हो गया , अचानक ही उसके मन को यह सवाल परेशान करने लगा कि क्या टी oटी o देहली के टिकट पर , उसके शाहदरा पर उतरने पर चौंकेगा ?
मगर वैसा कुछ नहीं हुआ।
टी oटी o ने उसका टिकट बिना देखे गड्डी में रख लिया। वह तेजी से सीढ़ियां उतरता चला गया—सड़क पर पहुंचा—वहां कोई थ्री-व्हीलर वाला नहीं था।
रिक्शा वाले जरूर खड़े थे , मगर उनसे उसका कोई मतलब हल होने वाला नहीं था। उसे मालूम था कि कश्मीरी गेट के लिए थ्री-व्हीलर राधू सिनेमा के आसपास से मिल जाएंगे।
वह पैदल ही तेजी के साथ राधू के सामने खुलने वाले चौराहे की तरफ बढ़ रहा था कि स्कूल के बच्चों से भरी एक रिक्शा उसके बराबर से गुजरी और उस रिक्शा में बैठा एक बच्चा जोर-जोर से चिल्ला उठा— "प...पापा...पापा।"
बच्चा कुछ इस तरह चिल्लाया था कि दूसरे राहगीरों के साथ ही युवक का ध्यान उधर चला गया और उस वक्त तो वह भौंचक्का ही रह गया , जब उसने महसूस किया कि बच्चा उसे ही पुकार रहा है—युवक ने घबराकर अपने आसपास देखा।
इस उम्मीद में कि शायद यह मेरे आसपास खड़े किसी व्यक्ति को पुकार रहा हो , मगर वहां कोई नहीं था—युवक ने चौंककर ढलान पर लुढ़ककर दूर जाती हुई रिक्शा की तरफ देखा , बच्चा अभी तक पागलों की तरह उसी को पुकार रहा था।
युवक के होश उड़ गए।
करीब आठ साल की आयु का वह गोरा-चिट्टा खूब स्वस्थ और गोल चेहरे वाला लड़का था। उसकी पलकें भूरी और आंखें नीली थीं। नीले रंग की हाफ पैन्ट पर वह फुल बाजू की लाल स्वेटर पहने था , रिक्शा के साथ ही उसकी आवाज दूर होती जा रही थी , मगर वह बराबर चीख रहा था— "प...पापा...पापा।"
इस तमाशे को सैंकड़ों राहगीरों ने देखा।
खुद युवक की नजर भी उस रिक्शा पर टिकी हुई थी और फिर अगले पल तो जैसे कमाल ही हो गया —चीखते हुए बच्चे ने चलती रिक्शा में से ही सड़क पर छलांग लगा दी थी , सड़क पर वह बेचारा घुटनों के बल गिरा।
जाने क्यों युवक के दिल में एक टीस-सी उठी।
अन्जाने में ही वह बच्चे की तरफ दौड़ पड़ा—उसने देख लिया था कि बच्चे के घुटने छिल गए थे , वहां से खून बहने लगा था , मगर उसकी परवाह किए बिना वह दीवानों की तरह अपनी दोनों नन्हीं बाहें फैलाए—"पापा...पापा”—चिल्लाता हुआ युवक की तरफ ही दौड़ता चला आया।
वे मिले।
जाने किस भावना से प्रेरित होकर युवक ने उस मासूम बच्चे को अपनी बांहों में भर लिया और उससे किसी बेल के समान लिपटा बच्चा सुबक-सुबककर रो रहा था— "आप कहां चले गए थे, पापा? बहुत गन्दे हैं आप—आपको याद करके मैं हमेशा रोता रहा हूं …और मम्मी भी …दादी तो पागल ही हो गई हैं।"
युवक की आंखें भर आई—दिमाग सुन्न पड़ता जा रहा था।
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