RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पहले तो राजाराम अपनी दुकान में दाखिल होते पुलिस इंस्पेक्टर को देखते ही हड़बड़ा गया था और उस वक्त तो उसके चेहरे पर हवाइयां ही उड़ने लगीं , जब एक कमीज काउण्टर पर डालते हुए इंस्पेक्टर ने सवाल किया —“ क्या तुम इसे पहचानते हो ?"
"ज...जी—मैं समझा नहीं, साहब।"
"याद करके बताओ , यह कमीज तुमने कब और किसके लिए सिली थी ?"
"ए...ऐसे कहीं याद रहता है साहब ?"
"बको मत—तुम्हें याद करना होगा , यह एक हत्या का मामला है।"
"ह.....हत्या.....किसकी हत्या हो गई है साहब ?" कहते हुए राजाराम का न केवल चेहरा ही फक्क पड़ गया था , बल्कि उसकी आवाज भी बुरी तरह कांप गई थी—कदाचित् इस वजह से आंग्रे को शक हो गया कि राजाराम कुछ छुपा रहा है , झपटकर उसने दोनों हाथों से राजाराम का गिरेबान पकड़ा और उसे आतंकित करने के उद्देश्य से दांत भींचकर गुर्राया— “अगर तुमने सब कुछ सच-सच नहीं उगल दिया तो इस हत्या के जुर्म में मैं तुम्हीं को फंसा दूंगा—बोलो।"
"व...वो साहब , बात ऐसी है कि एक औरत तीन दिन पहले मुझसे एक ही नाप के ढेर सारे कपड़े सिलवाकर ले गई थी , वे सभी कपड़े मर्दाना थे—यह कमीज उन्हीं में से एक है।"
इंस्पेक्टर आंग्रे की आंखें अजीब-से अन्दाज में सिकुड़ गईं , बोला— “क्या उसके साथ वह आदमी नहीं था , जिसके नाप के कपड़े सिले थे ?"
"जी नहीं।"
"उस औरत का हुलिया?”
जवाब में राजाराम ने जो बताया , वह वही हुलिया था , जो इंस्पेक्टर आंग्रे को भगवतपुरे में स्थित दुर्घटनाग्रस्त मकान के आस-पड़ोसियों ने बताया था। किसी गहरी सोच में ड़ूबते हुए आंग्रे ने पूछा— “क्या तुमने उससे यह नहीं पूछा कि एक साथ इतने कपड़े वह क्यों सिलवा रही है—और जिसके वे कपड़े हैं , वह कहां है ?"
"स...साहब...।"
"सब कुछ बिल्कुल साफ-साफ बताओ। अगर तुमने कुछ छुपाया और आगे चलकर मुझे इस बारे में कोई जानकारी मिली तो मुजरिम को बचाने के आरोप में मैं तुम्हें भी फंसा दूंगा।”
"स...साहब , कपड़ों की सिलाई के अलावा उसने मुझे दस हजार रुपए भी दिए थे।"
"दस हजार रुपए ?" आंग्रे की आंखें सिकुड़कर बिल्कुल गोल हो गईं। उत्सुकतापूर्वक उसने पूछा— "ये रुपए उसने तुम्हें किसलिए दिए थे ?"
"उसने कहा था साहब कि एक आदमी मेरी दुकान पर यह पूछता हुआ अएगा कि ‘मैं कौन हूं'—मैं उसे पहचानने का नाटक करूं , साथ ही जॉनी कहकर उसे पुकारूं—यानि मैं उसे यह बताऊं कि उसका नाम जॉनी है और वह भगवतपुरे के एक मकान में रहने वाली रूबी नामक एक स्त्री का पति है। उस औरत ने अपना नाम रूबी ही बताया था।"
"क्या बकवास कर रहे हो , दुनिया में ऐसा भला कौन होगा , जो खुद को न जानता हो ?"
"जब रूबी नाम की औरत मुझे यह सब कुछ समझा रही थी , तब मैंने भी उससे यही पूछा था , जवाब में उसने बताया कि उसका पति अपनी याददाश्त गंवा बैठा है , वह उसे अपनी पत्नी मानने से ही इन्कार करता है , उसे विश्वास आ जाए , इसीलिए वह मुझे गवाह बना रही है और दस हजार रुपए इस बात के दे रही है कि मैं इस सारे मामले का जिक्र किसी अन्य से न करूंगा—मुझे लालच आ गया साहब , दस हजार के फेर में पड़ गया मैं—सोचा कि यदि मुझे दस हजार मिलते हैं और मेरी मदद से किसी को अपना खोया हुआ पति मिलता है तो इसमें बुराई क्या है, म...मुझे नहीं मालूम था साहब कि बात इतनी बढ़ जाएगी।"
"विस्तार से वह सब कुछ बताओ , जो तुमने उस औरत के कहने पर किया।"
राजाराम ने युवक के अपनी दुकान पर पूछने से लेकर उसे भगवतपुरे के मकान में पहुंचाने तक की सारी घटना विस्तारपूर्वक बता दी। सुनकर हालांकि खुद आंग्रे को अपना दिमाग किसी तेजी से घूमने वाली फिरकनी के समान महसूस हो रहा था , परन्तु फिर भी उसने सवाल क्रिया।
"क्या तुम उस युवक से दुआ-सलाम करने वालों में से किसी को जानते हो ?"
"नहीं साहब।"
इंस्पेक्टर आंग्रे बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने लगा , कुछ देर शांत रहने के बाद बोला—“मेरे साथ चलो।"
"क...कहां साहब ?" राजाराम का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया।
"जॉनी या रूपेश में से एक अस्पताल में है , तुम्हें बताना है कि वह दोनों में से कौन है ?"
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