RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक नहीं जानता था कि मां का प्यार क्या होता है। यह भी मालूम नहीं था कि यह प्यार उसे कभी मिला है या नहीं , मगर उस बूढ़ी मां ने जो कुछ किया , जितना प्यार उस पर बरसाया , उसे महसूस करके कई बार उसकी आंखें भर आईं।
इच्छा हुई कि उस बूढ़ी के कलेजे में मुखड़ा छुपाकर फूट-फूटकर रो पड़े।
वह उसे अपने कमरे में ले आई थी—छोटी-छोटी कनस्तरियों से निकाल-निकालकर वह उसे जाने क्या-क्या खिलाने लगी—उसने बहुत इन्कार किया , मगर एक न चली—आखिर वह एक मां के हत्थे चढ़ गया था और उसे अपने हाथों से जाने कब की रखी सूखी मिठाइयां खिलाईं।
इतना प्यार पाने के बावजूद भी युवक का दिमाग बुरी तरह उलझा हुआ था—कहना चाहिए कि वहीं जाकर , इन नई उलझनों में फंसने के बाद यह भूल गया था कि आज हमें दिन में वह कितना जघन्य हत्याकांड कर चुका है।
इस वक्त तो उसके दिमाग में तीन ही नाम कौंध रहे थे।
सिकन्दर , जॉनी और सर्वेश।
इनमें से कौन है वह ?
कहीं इस बूढ़ी मां की बात ही तो ठीक नहीं हैं—कहीं सचमुच ऐसा ही तो नहीं है कि उस नन्हीं-सी अभागिन ने किसी अन्य की लाश को ही सर्वेश की लाश समझकर अपनी चूड़ियां तोड़ डाली हों—कहीं मैं सचमुच सर्वेश ही तो नहीं हूं ?
सोचते-सोचते युवक का दिमाग थक गया।
एकाएक ही कमरे में विशेष आया , उसके दोनों घुटनों पर पट्टी बंधी हुई थी। उसे देखते ही युवक खड़ा हो गया —उसके नजदीक जाते हुए विशेष के सुर्ख होंठों पर ऐसी प्यारी मुस्कान थी कि युवक के दिल में गुदगुदी-सी होने लगी।
उसके नजदीक आकर विशेष ने कहा—"पापा।"
"हां...हां बेटे।" दिल में कहीं संगीत-सा बज उठा।
“ आपको मम्मी ने ऊपर बुलाया है।"
एक बार को धक् से रह गया युवक का दिल.....फिर असामान्य गति से धड़कने लगा , कुछ वैसी ही घबराहट उसके दिलो-दिमाग पर हावी हो गई जैसी तब हुई थी , जब इंस्पेक्टर चटर्जी सबके हाथ सूंघ रहा था.....मस्तक पर कुछ ऐसी ही अवस्था में पसीना छलछला उठा , जैसा बन्द मकान में रूपेश के जाने पर छलछलाया था—हालांकि वह स्वयं रश्मि से बातें करने का इच्छुक था , परन्तु जाने क्यों रश्मि के इस सन्देश को पाकर घबरा-सा उठा—मुंह से स्वयं ही निकल गया—"क...क्यों ?"
"मम्मी पूछने लगीं कि आप मुझे कहां मिले थे …मैंने बता दिया —सुनकर मालूम नहीं क्या सोचने लगीं , फिर बोलीं कि मैं आपको ऊपर बुला लाऊं।"
युवक चुप रह गया।
वह पुनः विचारों के जंगल में भटकने लगा था। उसे लगा— “ शायद विशेष की बात सुनकर रश्मि ने यह महसूस किया है कि मैं यहाँ जानबूझकर नहीं आया हूं—मैं उलझन में हूं तो क्या मेरी शक्ल ने उसे भी उलझन में डाल रखा होगा ?'
'मुझसे बात करके शायद वह उस उलझन से निकलना चाहती है—मैं भी तो यही चाहता हूं—पता तो लगे कि आखिर ये सर्वेश का चक्कर क्या है ?'
'म...मगर अकेले में कहीं मुझ पर पुन: वही जुनून सवार न हो जाए।'
इस एकमात्र विचार ने उसे अन्दर तक हिलाकर रख दिया—रूबी की लाश आंखों के सामने चकरा उठी और घबराकर बोला— "त...तुम भी चलो बेटे।"
"मम्मी ने भी तो यही कहा था कि मैं आपके साथ आऊं।" विशेष ने कहा।
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"जिस मकान में दुर्घटना घटी है , उसके मालिक का कहना है कि उस औरत ने , जिसने अपना नाम रूबी बताया था , मकान चार दिन पहले ही किराए पर लिया था।"
"केवल चार दिन पहले ही ?"
"हां।" आंग्रे ने बताया— “ पड़ोसियों के बयान से भी यही स्पष्ट हुआ है—उनका कहना है कि तीन दिन पहले ही यह औरत मकान में जाकर बसी थी—कोई उसका नाम तक नहीं जानता है। जब से वह मकान में आई थी , तब से मकान में ही रही—मजे की बात ये है कि खुद मकान मालिक भी औरत का नाम बताने से ज्यादा और कुछ नहीं बता सका।”
"यानि मकतूल खुद एक अत्यन्त रहस्यमय व्यक्तित्व की है। खैर , आगे बढ़ो।"
"इसके बाद मैं घंटाघर पर स्थित राजाराम की दुकान पर पहुंचा।" कहने के बाद आंग्रे ने उसे राजाराम से हुई बातें , रूपेश की शिनाख्त आदि सभी बातें बता दीं।
चटर्जी ने एक सिगरेट सुलगाई , धुआं छोड़ता हुआ बोला— “अब पूछो प्यारे , ऐसी क्या बात है , जो तुम्हारी बुद्धि के किसी भी 'खांचे' में 'फिक्स ' नहीं हो रही है ?"
"अगर भगवतपुरे में रूबी और जॉनी को कोई भी नहीं जानता था तो रास्ते में जॉनी से दुआ-सलाम किन लोगों ने की थी......जॉनी से 'जमने ' के लिए किस युवक ने कैसे कह दिया था ?"
"वे सभी राजाराम की तरह के लोग थे—रूबी से पैसे लेकर अभिनयकर्ता।"
"इस सबका मतलब तो यह हुआ कि कथित रूबी एक याददाश्त खोए व्यक्ति के दिमाग में यह बात बैठाना चाहती थी कि वह उसका पति जॉनी है।"
“करेक्ट।"
"जाहिर है कि रूबी एक खतरनाक षड़्यन्त्र रच रही थी—फिलहाल नजर आता है कि हत्यारा याददाश्त भूला व्यक्ति ही है.......वह कौन है—कहां गया —उसने हत्या क्यों की ?"
"तुम जरा याददाश्त खोए व्यक्ति का वह हुलिया बयान करो जो राजाराम ने तुम्हें बताया होगा।"
आंग्रे हुलिया बयान करता चला गया और चटर्जी की आंखें दो बहुत ही कीमती हीरों की तरह चमकने लगी थीं , आंग्रे के चुप होने पर वह बहुत ही उत्तेजित अवस्था में चीख पड़ा—“ओह! माई गॉड!”
"आखिर बात क्या है ?"
"इस काण्ड के मुजरिम से शायद मैं मिल चुका हूं।"
"क.....क्या कह रहे हो तुम? वह तुम्हें भला कहां मिल गया ?"
"हरिद्वार पैसेंजर में।""
"व...वह भला वहां क्या कर रहा था ?"
"इस जघन्य हत्याकाण्ड को करने के बाद शायद भाग रहा था वह।" चटर्जी ने कहा और फिर खुद ही से बड़बड़ाकर बोला—"अब मेरी समझ में उसके फक्क चेहरे , हड़बड़ाहट और नर्वसनेस का अर्थ आ रहा है। अपना नाम उसने सिकन्दर बताया था—लारेंस रोड पर रहता है , पिता का नाम क्या बताया था उसने—याद नहीं आ रहा है , खैर—उस कागज में सब कुछ दर्ज है—हम उसके घर तक पहुंच सकते हैं आंग्रे।"
"मैँ कुछ नहीं समझ पा रहा हूं चटर्जी—क्या बड़बड़ा रहे हो तुम ?"
“म.....मगर उसकी याददाश्त गुम तो नहीं लगती थी।" चटर्जी किसी पागल के समान बड़बड़ाता ही चला गया—"याददाश्त गुम—अभी कुछ दिन पहले कहां पढ़ा था मैंने—कहीं पढ़ा था कि एक युवक की याददाश्त गुम है—शायद अखबार में।"
“तुम क्या बड़बड़ा रहे हो चटर्जी ?"
"आंग्रे—प्लीज़ , अस्पताल में अखबार तो आता ही होगा —जरा पिछले दस दिन के अखबार मंगा लो , मुझे लगता है कि तुम्हारे मुजरिम की तस्वीर अखबार में मिल जाएगी।"
हालांकि आंग्रे ठीक से कुछ समझ नहीं सका था , फिर भी पिछले दस दिन के अखबार उसने मंगवा लिए—अखबार आने के बीच में चटर्जी ने उसे हरिद्वार पैसेंजर में हुई घटना विस्तारपूर्वक सुना दी। सुनकर आंग्रे के चेहरे पर हर तरफ उत्साह नजर जाने लगा।
उसे लग रहा था कि वह आज ही इस हत्याकांड के दोषी को पकड़ लेगा।
जो मामला उसे कुछ ही देर पहले बहुत चक्करदार और उलझा हुआ नजर आ रहा था , वह अचानक ही सचमुच बेहद सीधा-सादा नजर आने लगा—अखबारों को खंगालता चटर्जी एकदम उछल पड़ा— “य....यही है.....यही है, आंग्रे। ”
"ये देखो , अखबार में दो फोटो छपी हैं—एक युवक की , दूसरी उसकी जेब से निकले पर्स में से किसी युवती की—यह उसी युवक की फोटो है , जो मुझे हरिद्वार पैसेंजर में मिला था , जरा इन फोटुओं के साथ छपे मैटर को पढ़ो।"
आंग्रे ध्यान से फोटो को देखने के बाद इंस्पेक्टर दीवान द्वारा छपवाए मैटर को पढ़ने लगा , पढ़ने के बाद बोला— “अब इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि यही हत्यारा है।"
"अभी शक है आंग्रे प्यारे , अन्तिम शिनाख्त बाकी है।"
"क्या मतलब ?"
"राजाराम को ये फोटो दिखाए जाने चाहिए।"
"ठीक है , मैं देखता हूं कि फोर्स राजाराम के साथ वापस लौटी है या नहीं।" कहने के साथ ही उत्साहित आंग्रे उठकर खड़ा हो गया। कमरे से बाहर गया और पांच मिनट बाद ही राजाराम को लिए कमरे में दाखिल हुआ।
इंस्पेक्टर चटर्जी को समझने में देर नहीं लगी कि साथ वाला व्यक्ति राजाराम है—वह सहमा हुआ था—चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं , जब चटर्जी ने पुलिसिए अन्दाज में उसे ऊपर से नीचे तक घूरा तो बेचारे राजाराम की सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई। आंग्रे ने अखबार उसके सामने फेंककर कहा— "इन दोनों फोटुओं को पहचानो।"
युवक के फोटो पर दृष्टि पड़ते ही राजाराम उछल पड़ा , बोला , "अ...अरे …यह तो वही युवक है साहब , जिसकी याददाश्त गुम थी—जॉनी।"
आंग्रे सफलता की जबरदस्त खुशी के कारण अपने जिस्म के सारे रोयें खड़े महसूस कर रहा था , जबकि चटर्जी ने राजाराम से पूछा—“और वह युवती का फोटो ?"
"मैं...मैं इसे नहीं जानता साहब।"
"ध्यान से देखकर बताओ , कहीं यह वही औरत तो नहीं है , जिसने तुम्हें रुपये दिए थे ?"
राजाराम ने पूरे विश्वास के साथ कहा—"यह वह नहीं है साहब। ”
"तुम जा सकते हो।" कहने के बाद चटर्जी ने कुर्सी की पुश्त से पीठ टिका दी , राजाराम चुपचाप कमरे से बाहर चला गया , आंग्रे ने पूछा— "किसी नतीजे पर पहुंचे चटर्जी ?"
"सारा मामला हल हो चुका है।"
“कैसे ?”
"जिस हत्यारे का तुम्हारे पास नामो-निशान नहीं था , उसका फोटो सामने है , नाम और एड्रेस मैं बता रहा हूं—जाकर गिरफ्तार कर लो , अब इस केस में रखा ही क्या है ?"
"अगर यह नाम-पता गलत हुआ तो ?"
"गलत!" चटर्जी उछल पड़ा—"हां , यह बात जमती है, आंग्रे—वह नाम-पता आदि सब कुछ गलत हो सकता है और फिर जिसकी याददाश्त गुम है , वह भला अपना नाम बता ही कैसे सकता है ?"
"उसने यूं ही , जो मुंह में आया नाम बक दिया होगा।"
“ऐसा हो सकता है।" चटर्जी उससे पूरी तरह सहमत था और शायद इसीलिए वह अचानक दुबारा सतर्क नजर आने लगा था , बोला—“मेडिकल इंस्टीट्यूट अथवा इंस्पेक्टर दीवान से यह मालूम कर सकते हैं कि वह याददाश्त खोया व्यक्ति कब , किन परिस्थितियों में अस्पताल से बाहर निकला।"
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