RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
एकाएक ही उसने सपाट स्वर में कहा— "अब आप यहां से जा सकते हैं।"
जाने क्यों , रश्मि के इस वाक्य से उसके मन-मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा—पता नहीं क्यों युवक को इस घर से कहीं जाने की कल्पना अच्छी नहीं लगी—विशेष और रश्मि से वह अदृश्य लगाव-सा हो गया महसूस कर रहा था , एक नजर उसने विशेष पर डाली। अपनी मासूम आंखों से वह उसी की तरफ देख रहा था। उसकी आँखों में यह डर था कि कहीं उसके पापा पुन: कहीं चले न जाएं—युवक ने अपने मनोभावों का गला घोंटते हुए कहा— "यहां से जाना तो होगा ही रश्मि जी , क्योंकि मैं सर्वेश नहीं हूँ और यह घर मेरा नहीं है , मगर जाने से पहले मैं जानना चाहता हूं कि...।"
युवक स्वयं ही रुक गया।
रश्मि ने उसे सवालिया नजरों से देखते हुए पूछा—"क्या जानना चाहते हैं ?"
"यह कि सर्वेश की मृत्यु कैसे हुई थी ?"
इस वाक्य की रश्मि के चेहरे पर बड़ी ही तीव्र प्रतिक्रिया हुई। एकाएक ही उसका मुखड़ा हीरे से भी कई गुना ज्यादा कठोर नजर आने लगा , आंखें अन्तरिक्ष में जा टिकीं और गुर्राहट भरे स्वर में उसने कहा—"यह मेरी कहानी है, मिस्टर—मेरी और मेरे पति की व्यक्तिगत कहानी—इसमें किसी का दखल मुझे पसन्द नहीं आएगा।"
युवक ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला , मगर कह नहीं सका , क्योंकि तेजी के साथ , हवा के झोंके की तरह रश्मि कमरे से बाहर चली गई थी—युवक मूर्ख-सा , मुंह फाड़े—आश्चर्य के सागर में डूबा, हिलते हुए पर्दे को देखता रहा।
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उस वक्त शाम के सात बजे थे जब यू oपी o पुलिस की एक जीप , टायरों की तेज चरमराहट के साथ देहली में उस थाने के पोर्च में रुकी , जहां का इंचार्ज इंस्पेक्टर दीवान था—पाठक समझ ही सकते हैं कि इस जीप में इंस्पेक्टर चटर्जी और आंग्रे थे।
लगभग साथ ही वे जीप से बाहर निकले।
वातावरण में अंधेरा छा चुका था। लाइटें ऑन थीं और ठिठुरन बढ़ गई थी—उनके जीप से बाहर निकलते ही एक सिपाही उनके नजदीक आया। चटर्जी ने कहा— “ हम गाजियाबाद से आए हैं और इंस्पेक्टर दीवान से मिलना चाहते हैं।"
"वे ऑफिस में हैं।" सिपाही ने बताया।
कुछ ही देर बाद वे आँफिस में इंस्पेक्टर दीवान के सामने थे—औपचारिक परिचय के आदान-प्रदान के उपरान्त दीवान ने उन्हें बैठने के लिए कहा , वे बैठ गए।
दीवान ने कहा— "फरमाइए , मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?"
"पिछले दिनों आपने अखबार में दो फोटो छपवाए थे , एक एक्सीडेंट के बाद याददाश्त खोए युवक का और दूसरा उसके पर्स से निकली युवती की तस्वीर का।"
दीवान एकदम से सतर्क नजर जाने लगा। कुछ इस प्रकार जैसे इस विषय में उसकी अपनी व्यक्तिगत दिलचस्पी भी पैदा हो गई हो , बोला— “ जी हां।"
"आपका पता हमने अखबार से ही लिया था और अब यहां याददाश्त खोए उस व्यक्ति के बारे में आपसे कुछ जानने आए हैं।"
"उसके बारे में क्या जानना चाहते हैं आप?”
जवाब में चटर्जी ने उसे हरिद्वार पैसेंजर की घटना समेत सारी घटना सुना दी। सुनकर हैरत के कारण दीवान का बुरा हाल हो गया— "उफ्फ! उसने इतना जघन्य काण्ड कर डाला?”
"उसी हत्याकाण्ड के सिलसिले में हमें उसकी तलाश है।" सिगरेट ऐश ट्रे में मसलते हुए चटर्जी ने कहा—"होश में आने पर रूपेश नामक व्यक्ति ने हमें बताया कि लारेंस रोड पर रहने वाले सेठ न्यादर अली ने उसे सिकन्दर की देखभाल करने के लिए रखा था—सिकन्दर ने मीठी-मीठी बातें बनाकर उसे अपने विश्वास में ले लिया—दोस्त बना लिया—रूपेश के अनुसार सिकन्दर को यकीन नहीं आ रहा था कि वह न्यादर अली का लड़का है—उसके इस सन्देह को होश में आने के वक्त पहने कपड़ों पर लगी टेलर की चिट ने बल दिया—इन कपड़ों पर गाजियाबाद के 'बॉनटेक्स ' टेलर की चिट थी , जबकि न्यादर अली के यहां मौजूद कपड़ों पर देहली के ही किसी टेलर की—सिकन्दर अपने अतीत के बारे में इनवेस्टिगेशन करने के लिए बेचैन हो गया—वह जानता था कि न्यादर अली उसे किसी भी कीमत पर बंगले से बाहर नहीं निकलने देगा , अत: उसने रात ही को गायब होने की स्कीम बनाई—रूपेश को विश्वास में लेकर उसने यह वादा करा लिया कि वह उसके गायब होने का रहस्य किसी को नहीं बताएगा-रूपेश ने उससे किए गए अपने वादे को पूरी तरह निभाया भी था कि आज शाम रूपेश भी टेलर की दुकान पर पहुंच जाएगा—सिकन्दर ने कहा था कि उसे टेलर से पता लग जाएगा कि मैं कहां मिलूंगा।"
"प्रोग्राम के मुताबिक रूपेश राजाराम की दुकान पर पहुंचा और वहां से राजाराम ने उसे भगवतपुरे के उस मकान में भेज दिया।" दीवान ने लिंक जोड़ा।
“हां। ”
"क्या रूपेश ने यह भी बताया कि उस मकान में उसके साथ क्या हुआ ?"
"उसका कहना था कि सिकन्दर ने उसे बातों में उलझाकर हथौड़ी की चोट से बेहोश कर दिया , कम-से-कम सिकन्दर से उसे ख्वाबों में भी ऐसी उम्मीद नहीं थी , अत: वह बिल्कुल भी सतर्क नहीं था—उसे तभी होश आया जब वह जल रहा था।"
"उसने पूरे विश्वास के साथ कहा है कि हमलावर सिकन्दर था ?"
"हां।"
इंस्पेक्टर दीवान जाने किस सोच में डूब गया।
चटर्जी कहता ही चला जा रहा था— "अब सिकन्दर द्वारा ट्रेन में बताए गए एड्रेस से रूपेश का बयान 'टेली ' कर रहा था , इसीलिए हमने लारेंस रोड पर स्थित न्यादर अली के बंगले पर छापा मारने की योजना बनाई , मगर उसके लिए हमारे साथ देहली पुलिस का होना जरूरी है , सो आपके पास आए हैं—सोचा था कि इस मामले में आप 'इनवाल्व ' भी हैं , अत: हो सकता है कि कोई नई जानकारी दे दें और केस पर विचार-विमर्श करने से नतीजे निकल आया करते हैं।"
दीवान की मुस्कान गहरी हो गई , बोला— "मेरे पास आकर आपने नि:सन्देह बड़ी होशियारी का काम किया है।"
"हम समझे नहीं।"
“ आपके मामले की सबसे महत्वपूर्ण गुत्थी यह है कि आखिर सिकन्दर ने यह हत्या क्यों की और इस सवाल का जवाब मेरे पास है।"
"कृपया पहेलियां न बुझाएं।"
गहरी मुस्कान के साथ दीवान ने बताया—"वह जब भी किसी युवा लड़की के साथ अकेला होगा , तभी उसकी हत्या कर देगा। फर्श पर पड़ी निर्वस्त्र लाश देखने और गर्दन दबाकर युवा लड़की को मार डालने का जुनून सवार होता है उस पर।"
"क्या कह रहे हैं आप ?"
"उसे यह बीमारी है , इस बात का प्रमाण-पत्र आपको देहली का एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉक्टर ब्रिगेंजा दे देगा और अदालत में यह एक ठोस वजह होगी।"
"क्या इस बारे में आप हमें विस्तार से बता सकते हैं ?"
दीवान ने उन्हें युवक के द्वारा गर्दन दबाकर नर्स को मार डालने की असफ़ल चेष्टा , डॉक्टर ब्रिगेजा का दृष्टिकोण और युवक के पुन: होश में आने के बाद के बयान के बारे में बता दिया। सुनकर जहां उनकी आंखों में हैरत की चमक उभर आई , वहीं सफलता के साए भी नाचने लगे।
कुछ देर तक चुप रहने के बाद चटर्जी ने कहा— “अब मैं इस सारे मामले के दूसरे ही पहलू पर सोच रहा हूं।"
"किस पहलू पर ?"
"रूबी के बारे में।" चटर्जी ने कहा— “सभी सवालों का जवाब मिल गया है—यूं कहना चाहिए कि एक प्रकार से यह समूचा केस पूर्णतया हल हो चुका है , केवल अपराधी की गिरफ्तारी बाकी है , सम्भावना है कि वह भी हो जाएगी , मगर यह सवाल अनुत्तरित है कि रूबी कौन थी—उस युवक को वह जॉनी क्यों बता रही थी.....और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि रूबी को यह बात कैसे मालूम थी कि युवक अपने बारे में पूछताछ करने राजाराम की दुकान पर ही जाएगा?"
"सम्भव है कि रूबी को उसके कपड़ों पर लगी चिट की जानकारी हो ?"
"सारी कहानी हमारे सामने है , यह जानकारी उसे किस माध्यम से रही होगी?"
इस प्रश्न पर दीवान और आंग्रे बगलें झांकने लगे—जवाब शायद खुद चटर्जी के पास भी नहीं था , इसीलिए उसने एक नया ही सवाल खड़ा किया— "और वह प्रश्न भी विचाराधीन गये है , जिसकी तलाश में युवक न्यादर अली के बंगले से फरार हुआ।"
"हम समझे नहीं।"
“ अगर युवक सचमुच न्यादर अली का लड़का सिकन्दर ही है तो उसके तन पर मिले कपड़े ही अलग टेलर द्वारा तैयार किए हुए क्यों थे , उसी टेलर द्वारा तैयार किए गए क्यों नहीं थे , जिसके न्यादर अली के बंगले में मौजूद उसके अन्य कपड़े थे ?”
"प्रश्न नि:सन्देह विचारणीय है।"
"तो क्या तुम यह कहना चाहते हो चटर्जी कि वह युवक सिकन्दर नहीं था?" अजीब दुविधा में फंसे आंग्रे ने पूछा।
"जिन सवालों का फिलहाल हमारे पास जवाब नहीं है , उनकी तह में कुछ भी हो सकता है। राजाराम कहता है कि वह युवक पहले कभी उसकी दुकान पर नहीं आया—तब सवाल यह भी उठता है कि उसकी दुकान के सिले कपड़े युवक के तन पर कैसे मिले ?"
"सवाल वाकई गहरा है।"
"इन सबका जवाब रूबी का रहस्य खुलने पर ही मिलेगा कि वह कौन थी? किस चक्कर में थी और यह अकेली ही कोई षड्यन्त्र रच रही थी या उसका कोई साथी भी था?”
“यह सब पता लगाने के लिए हमारे पास कोई 'क्लू ' कहां है ?"
"तुम उसके द्वारा राजाराम को दिए गए दस हजार रुपयों को भूल रहे हो।"
“द...दस हजार रुपए , उससे क्या होगा ?"
"वे रुपए अपने आप में खुद एक बहुत बड़ा क्लू हैं।"
चकित आंग्रे बड़बड़ाया— “रुपये भला किस रूप में 'क्लू ' बन सकते हैँ ?"
जवाब में चटर्जी ने कुछ कहा नहीं , सिगरेट में लम्बे-लम्बे कश लगाने के साथ ही वह अजीब-से रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराता रहा। दीवान उसकी इस मुस्कराहट में से तंत निकालने के लिए अपने दिमाग के कस-बल निकाले दे रहा था।
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