RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
हालांकि उस वक्त वातावरण में दिन का प्रकाश फैल चुका था जब युवक ने गांधीनगर में स्थित मकान से बाहर कदम रखा , किन्तु लोग सड़क पर नहीं आए थे—इतनी सुबह उसे कहीं से कोई सवारी भी नहीं मिली थी , अतः विचारों में गुम वह पैदल ही बढ़ता चला जा रहा था—सड़क पर इक्का-दुक्का व्यक्ति ही नजर आ रहे थे।
वे जो मॉर्निंग वॉक ' के शौकीन थे। वे जो सड़क साफ कर रहे थे या वे जो साइकिल के हैण्डिल पर अखबारों का पुलिन्दा रखे थे।
वे साइकिल को काफी तेज चलाते हुए उसके समीप से गुजर जाते थे।
शायद अपने ग्राहकों तक अखबार पहुंचाने की जल्दी में थे वे।
अचानक ही बिजली की तरह युवक के दिमाग में यह विचार कौंध गया कि—सम्भव है आज के अखबारों में गाजियाबाद के भगवतपुरा मौहल्ले में हुए हत्याकांड के बारे में कुछ छपा हो ?
जरूर छपा होगा।
मगर क्या ?
मन में अखबार देखने की तीव्र इच्छा जाग्रत हो उठी—बहुत ही जबरदस्त बेचैनी के साथ उसने अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई। एक अखबार विक्रेता जाता नजर आया , युवक ने उसे रोक लिया।
उसने एक अखबार खरीदा।
अखबार विक्रेता साइकिल दौड़ाता चला गया और इधर अखबार के मुख्य पृष्ठ पर नजर पड़ते ही युवक का दिल 'धक्क ' से किसी गेंद के समान उछलकर कण्ठ में जा अटका।
सारा शरीर पसीने से भरभरा उठा उसका।
आंखों के सामने अंधेरा छा गया और यह सच है कि चलना तो दूर , अपनी टांगों पर खड़ा रहना असम्भव हो गया—इस डर से कि कहीं गिर न पड़े , वह वहीं—फुटपाथ पर बैठ गया।
अपनी बिगड़ी हुई स्थिति पर काबू पाने के लिए उसे काफी मेहनत करनी पड़ी—उसका इस प्रकार फुटपाथ पर बैठना अजीब था—इक्का-दुक्का राहगीर उसे विचित्र निगाहों से देखकर गुजरे थे , इसीलिए साहस जुटाकर पुन: खड़ा हो गया।
उसकी ऐसी अवस्था अखबार में अपने फोटो को देखकर हुई थी , उस फोटो को देखकर, जिसके नीचे लिखा था—इस हत्यारे से विशेष रूप से युवा लड़कियों को दूर रहना चाहिए , क्योंकि उन्हें देखते ही यह गर्दन दबाकर उन्हें मार डालने के लिए मचल उठता है। '
'उफ्फ—अखबार ने ऐसा खतरनाक परिचय दिया है मुझे ?'
कुछ ही देर में ये अखबार सारी देहली और उसके आसपास फैल जाएंगे-शाम तक लगभग सारे ही भारत में—हर व्यक्ति इस फोटो को घूर रहा होगा।
अब वह ज्यादा-से-ज्यादा आधे घण्टे तक सड़क पर सुरक्षित है—केवल तब तक जब तक कि सड़कें वीरान हैं—कुछ ही देर में भीड़ बढ़ने लगेगी—आधा घण्टे बाद हर सड़क पर मेला-सा लग जाएगा और फिर लाखों-करोड़ों उन व्यक्तियों में से कोई भी उसे पहचान लेगा , अतः उसे जल्दी से किसी ऐसे स्थान पर पहुंच जाना चाहिए जहां उसके अलावा कभी कोई न जा सके।
यहां आसपास ऐसा कौन-सा स्थान हो सकता है ?
बौखलाकर उसने अपने चारों तरफ देखा।
कहीं कोई स्थान नहीं था , सड़क के दोनों तरफ लोगों के मकान—ज्यादातर मुख्य द्वार अभी तक बन्द थे—युवक पर घबराहट पूरी तरह हावी हो गई—जेहन में रह-रहकर यह सवाल भी उठ रहा था कि पुलिस को आखिर मेरा फोटो कहां से मिल गया ?
बौखलाकर वह सड़क पर भाग पड़ा।
उसे किसी ऐसे स्थान की तलाश थी , जहां दुनिया के हर व्यक्ति की नजर से बच सके—हालांकि ऐसा कोई स्थान उसकी समझ में नहीं आ रहा था। फिर भी—पागलों की तरह वह एक से दूसरी गली में भागता फिरने लगा।
भागते हुए अचानक ही उसकी दृष्टि एक ऐसे मकान पर पड़ी जो मकान नहीं , सिर्फ मलबे का ढेर नजर आ रहा था—वह कोई पुराना मकान था , जो अपनी उम्र पूरी करने के बाद गिर चुका था और किसी वजह से जिसके मालिक ने मलबा हटाकर उसका पुन: निर्माण नहीं कराया था—मलबे के ढेर से दबा होने के बावजूद भारी मुख्य द्वार अभी गिरा नहीं था , अटका पड़ा था।
द्वार पर एक बहुत पुराना ताला भी झूल रहा था , किन्तु उसका कोई महत्व नहीं था , क्योंकि साइड में से कोई भी मलबे के ऊपर से गुजरकर अंदर जा सकता था।
इस तरफ मलबे का एक छोटा-सा पहाड़ बन गया था।
वह भागता-हांफता मलबे पर चढ़ गया।
सामान्य अवस्था में हालांकि किसी के उस मलबे के पार जाने की कोई वजह नहीं थी , परन्तु ऐसी गारंटी कोई नहीं थी कि यहां कोई पहुंचेगा ही नहीं , मगर इस वक्त युवक को किसी गारंटी की जरूरत नहीं थी , अतः दूसरी तरफ मलबे के ढेर से नीचे उतर गया।
खण्डहर ही बता रहा था कि अपने समय में मकान काफी बड़ा रहा होगा—चारों तरफ मलबा-ही-मलबा पड़ा था। दाएं कोने में एक ऐसा कमरा था जिसकी आधी दीवारें खड़ी थीं—छत का एक कोना भी जाने कैसे लटका रह गया था।
वह वहां पहुंच गया।
गन्दे कोने में एक व्यक्ति के लेटने जितनी जगह पर उसकी नजर पड़ी—इस कोने में छिपे व्यक्ति को कोई इस कमरे में आए बिना नहीं देख सकता था , अतः युवक को छिपने के लिए वही स्थान उपयुक्त लगा।
कपड़ों की परवाह किए बिना वह धम्म से उस कोने में जा गिरा।
मलबे के ढेर पर बैठा वह दो गन्दी और आधी दीवारों से पीठ टिकाए बुरी तरह हांफ रहा था—स्वयं को नियंत्रित करने में उसे काफी समय लगा।
थोड़ा संभलने के बाद उसने अखबार में छपा खुद से सम्बन्धित समाचार पढ़ा।
मोटे-मोटे शब्दों में हैडिंग बनाया गया था—‘सनसनीखेज हत्याकाण्ड।‘
युवक पढ़ता चला गया , सारी वारदात विवरण सहित लिखी थी—आंग्रे की खोजबीन पढ़कर वह चकित रह गया—आंग्रे और चटर्जी के मिलने तथा उनकी वार्ता के निष्कर्ष ने उसके होश उड़ा दिए—राजाराम के बयान ने उसके दिमाग की समस्त नसों को हिला दिया।
तात्पर्य यह कि पूरा समाचार पढ़ने के बाद उसकी घबराहट चरम सीमा पर पहुंच गई , इन सबसे जहां यह बात स्पष्ट होती थी कि रूबी किसी वजह से व्यर्थ ही उसे जॉनी सिद्ध करना चाहती थी , वहां इस समाचार ने उसे थरथराकर रख दिया कि रूपेश जीवित बच गया है और तीनों इंस्पेक्टर न्यादर अली के बंगले तक पहुंच गए।
वह उस क्षण को धन्यवाद देने लगा जिस क्षण उसके दिमाग में न्यादर अली के बंगले के लिए देहली जाने के स्थान पर शाहदरा में ही उतर जाने का विचार आया था।
मगर इस तरह कब तक बचा रह सकूंगा मैं ?
युवक का मनोबल कमजोर पड़ने लगा—उसे महसूस हो रहा था कि—कानून से भागते रहने की मेरी हर कोशिश अब बेकार जाएगी। अंतत: इन काइया इंस्पेक्टरों के चंगुल में फंस जाना ही मेरा भाग्य है।
युवक को अपने चारों तरफ अंधेरा-ही-अंधेरा नजर आने लगा—ऐसा घनघोर अंधेरा कि जिसमें हाथ को हाथ सुझाई न दे और इस अंधेरे में हल्की-सी प्रकाश की किरण बनकर उभरा—सर्वेश।
रश्मि के कमरे की दीवार पर लगा सर्वेश का वह फोटो।
'हां।' दिमाग के उसी शैतान कोने ने सलाह दी—'तुम सर्वेश बन सकते हो। पूरी तरह सर्वेश बनकर बचे रह सकते हो—फिलहाल तुम्हारा कोई परिचय नहीं है—कोई चोला नहीं है तुम पर—सर्वेश का चोला ओढ़ लो—तब शायद पुलिस भी धोखा खा जाए।'
यह बात युवक के दिमाग में बैठती चली गई कि अब केवल उस छोटे-से घर की चारदीवारी ही उसके लिए एक सुदृढ़ किला साबित हो सकती है।
'मगर अब वहां जाऊं किस मुंह से ?'
छोड़े हुए पत्र में लिखा अपना एक-एक शब्द उसे याद आने लगा—दिलो-दिमाग में एक द्वन्द-सा छिड़ गया।
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