RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पंजाब नेशनल बैंक की मेरठ रोड पर स्थित शाखा के मैनेजर की मेज पर सौ-सौ के नए नोटों की एक गड़्डी धीमे से रखते हुए इंस्पेक्टर चटर्जी ने कहा , "मैं यह जानना चाहता हूं कि नोटों की यह गड्डी आपके बैंक ने कब और अपने किस ग्राहक को दी थी।"
"य...यह सब बताना तो बहुत कठिन है, इंस्पेक्टर।"
"जानता हूं मगर यह एक संगीन मामला है मिस्टर मेहता , जुर्म की तह तक पहुंचने के लिए हमारे पास इस गड़्डी के अलावा कोई दूसरा सूत्र नहीं है—जितना कठिन काम आपको करना पड़ेगा , उतना ही रिजर्व बैंक को भी करना पड़ता है—वहीं से यह पता लगाना भी आसान काम नहीं था कि यह गड्डी आपकी शाखा को इशू की गई थी।"
मैनेजर दुविधा में फंस गया।
"प.....प्लीज मिस्टर मेहता—ऐसा करके आप कानून की बहुत बड़ी मदद करेंगे—दरअसल यह मर्डर का मामला है—शायद आपके उसी खातेदार का मर्डर हुआ है , जिसे यह गड्डी दी गई—हमें मरने वाले का नाम-पता आपके बैंक से मालूम करना है।"
"कमाल है—लोग हत्यारे को तलाश करते हैं और आप उसके ठीक विपरीत यह मालूम करने के लिए घूम रहे हैं कि हत्या किसकी हुई है ?"
"वक्त की बात है, मिस्टर मेहता।"
"खैर—आप 'वेट ' कीजिए , मैं कोशिश करता हूं।" कहने के बाद मेज से गड्डी उठाकर मैनेजर अपने ऑफिस से बाहर चला गया—चटर्जी ने जेब से एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली और कुर्सी की पुश्त से पीठ टिकाकर धुएं के छल्ले उछालने लगा।
दस मिनट बाद मेहता ने जाकर बताया कि गड्डी के नोटों का सीरियल नम्बर वह हेड-कैशियर को लिखवा आया है। वह कोशिश कर रहा है—सफलता मिलते ही सूचना देगा।
"आप बेशक अपना काम कर सकते हैं—मैं इंतजार कर रहा हूं।" चटर्जी ने कहा और इस वाक्य के एक घण्टे बाद हैड-कैशियर ऑफिस में आया। एक कागज पर उसने खाता नम्बर , खातेदार का नाम , पता और वह तारीख नोट कर रखी थी , जिसमें यह दस हजार की गड्डी बैंक से निकाली गई।
“थैंक्यू।" कहने के बाद चटर्जी ने उस कागज पर नजर डाली और खातेदार का नाम पढ़ते ही उछल पड़ा। लिखा था— "रूपेश सान्याल।”
चटर्जी के जेहन में एकदम अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा बुरी तरह जला हुआ व्यक्ति नाच उठा और यह सोचकर उसकी खोपड़ी उलट गई कि वे दस हजार रुपए रूपेश के खाते में से निकले थे।
रूपेश के खाते में से निकले रुपए राजाराम को रूबी देती है।
स्पष्ट है कि रूपेश और रूबी मिले हुए हैं।
जोश की अधिकता के कारण अन्जाने में ही चटर्जी ने एक जोरदार मुक्का मैनेजर की मेज पर जमा दिया। मेज पर भूचाल-सा आ गया।
"क्या हुआ, इंस्पेक्टर ?" मैनेजर ने पूछा।
“थैंक्यू वेरी मच मिस्टर मेहता और तुम्हें भी बहुत-बहुत धन्यवाद मिस्टर।" चटर्जी ने सफलतावश झूमते हुए हेड-कैशियर से कहा— "तुम लोगों की वजह से मेरी एक ऐसी गुत्थी सुलझ गई है , जो कभी सुलझती नजर ही न आ रही थी।"
"यदि आपको कोई सफलता मिली है तो हम उसके लिए आप को बधाई देते हैं।" मैनेजर ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा और उन दोनों के प्रति आभार व्यक्त करके चटर्जी बैंक से बाहर निकल आया। बाहर निकलते वक्त उसने चिट पर लिखा एड्रेस भी पढ़ लिया था। बैंक
के बाहर उसकी मोटरसाइकिल खड़ी थी।
अगले कुछ ही पलों बाद मोटरसाइकिल उस एड्रेस की तरफ उड़ी चली जा रही थी—पन्द्रह मिनट बाद ही वह 'सुभाष नगर ' मौहल्ले में मकान नम्बर बावन पूछ रहा था।
फिर मकान नम्बर बावन के सामने उसने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी।
बैल बजाने पर बीस-इक्कीस की आयु के युवक ने दरवाजा खोला , चटर्जी ने उससे प्रश्न किया— “क्या यहां कोई रूपेश सान्याल रहते हैं ?"
"जी हां , वे हमारे किराएदार हैं।"
"क्या वे घर पर हैं ?"
"जीं नहीं , वे तो पिछले एक हफ्ते से कहीं बाहर गए हुए हैं।"
"बाहर कहां ?"
"म...मुझे नहीं मालूम , शायद अम्माजी को मालूम हो। मगर बात क्या है ?"
"पुलिस को ऐसा डाउट है कि शायद मिस्टर रूपेश किसी दुर्घटना के शिकार हो गए हैं , तुम थोड़ी देर के लिए अपनी माताजी को चुला दो।"
एक मिनट बाद ही एक अधेड़ आयु की महिला चटर्जी से कह रही थी— “ रूपेश तो बहू को लेकर बस्ती गया है।"
"ब...बहू …क्या मिस्टर रूपेश शादीशुदा हैं ?"
"हां.....।"
"मगर वे बस्ती क्यों गए हैं ?"
"बस्ती में रूपेश का अपना घर है—उसके मां-बाप आदि।”
"क्या आप मुझे रूपेश की पत्नी का नाम बता सकेंगी ?"
"माला।"
"मैं मकान का वह हिस्सा देखना चाहता हूं—जहां वे रहते हैं।"
"म...मगर बात क्या है—रूपेश को आखिर हुआ क्या है ?"
"मेरा नाम इंस्पेक्टर चटर्जी है और यह मेरा परिचय-पत्र है।" चटर्जी ने जेब से परिचय-पत्र निकालकर युवक को दिया , बोला—“कल गाजियाबाद के ही भगवतपुरे मोहल्ले में , एक मकान में आग लगा दी गई थी। मिस्टर रूपेश बुरी तरह जली हुई अवस्था में वहां पाए गए।"
"र...रूपेश वहां क्या कर रहा था—वह तो बस्ती गया हुआ है ?"
"यह पहेली अभी मुझे सुलझानी है।"
एकदम चौंकते हुए युवक ने कहा—"कहीं आप उस हत्याकांड की बात तो नहीं कर रहे हैं , जिसमें एक याददाश्त खोए व्यक्ति ने एक औरत को मार डाला और फिर उसके साथ ही एक जीवित व्यक्ति को भी जला डालने की कोशिश की—जी , हां , उस जले हुए व्यक्ति का नाम अखबार में रूपेश ही लिखा था , मगर वह रूपेश भला ये कैसे हो सकते हैं ?"
"मैं यही पुष्टि करना चाहता हूं कि वह रूपेश यहां रहने वाला रूपेश है या नहीं—इसीलिए आपसे उनके रहने का स्थान देखने की रिक्वेस्ट कर रहा हूं।"
“आइए।" युवक और महिला ने उसे एक कमरे के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। कमरे का दरवाजा बन्द था और उस पर गोदरेज का एक ताला लटक रहा था , चटर्जी ने पूछा— “क्या उनके पास किराए पर यही एकमात्र कमरा था ?"
"जी हां।" युवक ने बताया और आंगन में ही एक तरफ को उंगली उठाकर बोला—"उधर उनका किचन और बाथरूम हैं।"
"इस कमरे की चाबी कहां है ?"
"म...माला मुझे दे गई है , मगर उनमें से किसी के बिना हम इसे खोल नहीं सकते।"
"मैँ मानता हूं—किसी का कमरा इस तरह खोलना ठीक नहीं है—मगर इस वक्त मजबूरी हो गई है—आप कहती हैं कि वे बस्ती गए थे , जबकि मिस्टर रूपेश रहस्यमय ढंग से बुरी तरह जली हुई अवस्था में हमें गाजियाबाद से ही मिले हैं—अब सवाल यह उठता है कि उसकी पत्नी माला कहां गई , शायद उनके कमरे से बरामद किसी चीज के जरिए उसका पता लग सके।"
महिला अपने कमरे से जाकर चाबी निकाल लाई।
ताला खोलकर चटर्जी युवक और महिला के साथ कमरे में दाखिल हुआ। वहां कोई ज्यादा सामान नहीं था—एक रैक पर रखे पति-पत्नी के फोटो पर चटर्जी की नजर टिक गई।
चटर्जी ने पूछा—"वह फोटो रूपेश का ही है न ?"
"जी हां।" कहने के बाद युवक ने पूछा— "क्या वहां से ये जले हुए मिले हैं ?"
"हां।”
"ओह माई गॉड!"
"क्या फोटो में रूपेश के साथ उसकी पत्नी है ?"
"जी हां।"
बहुत ही ध्यान से चटर्जी ने उस युवती के फोटो को देखा और मन-ही-मन राजाराम द्वारा बताए गए रूबी के हुलिए से मिलाने पर उसने काफी समानता महसूस की।
अब यह बात उसे जंच रही थी कि रूबी माला ही थी।
चटर्जी ने कमरे की तलाशी लेनी शुरू की। पलंग के गद्दे से उसे 'पंजाब नेशनल बैंक' से सम्बन्धित वही पास बुक मिली—उसे कुछ देर देखने के बाद चटर्जी ने जाना कि पिछले चार साल में रूपेश ने बहुत ही छोटी-छोटी रकम जोड़कर चौदह हजार रुपए बना लिए थे और पिछले हफ्ते उसमें से तेरह हजार निकाल लिए गए।
तीन एक बार , दस एक बार।
एकाएक ही युवक की तरफ पलटता हुआ वह बोला— “लगता है कि मिस्टर रूपेश की आय बहुत ज्यादा नहीं है—क्या काम करता है वह ?”
"उनकी फोटोग्राफी की एक दुकान है—दुकान अच्छी मार्किट में न होने की वजह से ग्राहक वहां कम ही आते हैं—फिर भी—गुजारे लायक आमदनी उन्हें हो जाती है।"
चटर्जी करीब पन्द्रह मिनट तक कमरे की तलाशी लेता रहा—अन्य कोई उल्लेखनीय चीज उसके हाथ नहीं लगी। अन्त में उसने फ्रेम से रूपेश और उसकी पत्नी का फोटो निकालते हुए कहा— “इस फोटो को मैं ले जा रहा हूं—माला को ढूंढने में मदद करेगा।"
"और यह पास-बुक?"
"इसे भी , केस में शायद इसकी भी जरूरत पड़े।"
"अगर आप अस्पताल जा रहे हैं इंस्पेक्टर साहब—तो क्या रूपेश भाई को देखने मैं आपके साथ चल सकता हूं ?" युवक ने पूछा।
एक क्षण सोचने के बाद चटर्जी ने कहा— “ चलो।"
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