RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
उस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बजे थे , जब युवक ने सर्वेश के मकान के मुख्य द्वार पर धड़कते दिल से दस्तक दी—उसका ख्याल था कि रात के इस समय तक वे तीनों सो चुके होंगे , परन्तु आशा के विपरीत मकान में जाग थी।
पहली ही दस्तक के बाद अन्दर से पूछा गया—“कौन है ?”
आवाज रश्मि की थी।
इस विचारमात्र से उसके रोंगटे खड़े हो गए कि उसे पुन: यहां देखकर रश्मि क्या सोचेगी , क्या व्यवहार करेगी—फिर भी उसने जल्दी से कहा—“म...मैं हूं। ”
"मैं कौन ?"
"म...म …मुझे अपना नाम नहीं मालूम है।"
इस वाक्य के तुरन्त बाद ही एकदम कुछ इतने तीव्र झटके के साथ दरवाजा खुला कि युवक हड़बड़ा गया। सामने ही रश्मि खड़ी थी—इतना प्रकाश वहां नहीं था कि उसके चेहरे के भावों को ठीक से देख सकता।
"त...तुम फिर आ गए ?” बड़ा ही सपाट स्वर।
सकपका गया युवक। यह सच्चाई है कि इस सीधे प्रश्न का उसके पास कोई जवाब नहीं था , अत: वहां खड़ा वह सिर्फ—"मैं...मैं ” ही करता रहा।
“ आज सुबह ही तुम यहां से चले गए थे—ऐसा पत्र भी छोड़ गए थे जैसे जीवन में फिर कभी यहां नहीं आओगे और अभी ही आ गए हो—पूरे चौबीस घण्टे भी नहीं गुजरे हैं—जब आना ही था तो वह लम्बा-चौड़ा पत्र लिखकर गए क्यों थे ?"
"क...क्या बताऊं रश्मि जी , मैंने बहुत चाहा कि यहां न लौटूं मगर...।"
"फिर क्या आफत आ गई ?"
"दिल के हाथों विवश होकर आया हूं—सारे दिन वीशू का ख्याल जेहन से लिपटा रहा—म...मैँ उसके बिना नहीं रह सकता रश्मि जी।"
"तुम कोई बहुत बड़े जालसाज हो।"
"र...रश्मि जी।"
"वीशू कौन लगता है तुम्हारा? उससे क्या सम्बन्ध है? क्यों उसके लिए मरे जाने का नाटक कर रहे हो ?"
"प...प्लीज रश्मि जी , नाटक मत कहिए—उफ्फ , मैं अपने किसी अजीज को नहीं जानता , जिसकी कसम खाकर आपको यकीन दिला सकूं कि मैं नाटक नहीं कर रहा हूं—काश , मैं अपना सीना चीरकर दिखा सकता—जानता हूं कि वीशू मेरा कोई नहीं है , फिर भी जाने क्यों—पता नहीं क्यों—दीवानों की तरह यहां चला आया हूं ?"
कुछ देर शांत खड़ी रश्मि उसे देखती रही। जैसे समझने की कोशिश कर रही थी कि युवक झूठ बोल रहा है या सच? जबकि यह जानने के बाद युवक के जेहन से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था कि रश्मि को अखबार में छपे उसके फोटो के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
एकाएक रश्मि ने कहा— "अन्दर जा जाओ।"
धड़कते दिल से युवक ने चौखट पार की।
दरवाजे को पुन: बन्द करने के बाद घूमती हुई रश्मि ने कहा— "यदि सच पूछो तो इस वक्त इस घर को तुम्हारी बहुत जरूरत थी।"
"म...मेरी जरूरत!" युवक लगभग उछल ही पड़ा।
“वीशू ने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है—आज वह स्कूल भी नहीं गया—सिर्फ तुम्हें ही याद कर रहा है—उधर मांजी ने भी आपके जाने पर मुझे न जाने क्या-क्या कहा है।”
“क...क्या कहा …वीशू ने कुछ भी खाया-पिया नहीं है ?"
"इस वक्त वह बेहोशी की-सी अवस्था में है। "
"क...कहां है वीशू ?"
"स...सामने वाले कमरे में।"
युवक गन से निकली गोली के समान कमरे की तरफ भागा। उसे भागता देखकर रश्मि सोचने लगी कि क्या बिना खून का रिश्ता जुड़े ही दो व्यक्ति एक-दूसरे के लिए इतने पागल हो सकते हैँ ?
कमरे के दरवाजे पर ही ठिठक गया युवक।
पलंग पर वह प्यारा बच्चा लेटा था। सिरहाने बूढ़ी मां बैठी आँसू बहा रही थी। आहट सुनकर उसने दरवाजे की तरफ देखा , बोली —“कौन है ?"
"म....मैँ हूं, मां। " युवक खुद नहीं जानता था कि उसकी आवाज क्यों भर्रा गई।
"क.....कौ....न....स.....सर्वेश ?" वह एकदम उछल पड़ी।
विवश युवक को कहना ही पड़ा—“हां मां।"
"अरे, तू कहां चला गया था मेरे लाल—देख , तेरे बेटे ने अपनी क्या हालत बनाई है—सुबह से पानी की एक बूंद तक नहीं पी है मरदूद ने। " चीखती हुई पागलों की तरह वह युवक की तरफ दौड़ी।
युवक ने आगे बढ़कर उसे संभाला।
आलिंगनबद्ध हो गए वे। बुढ़िया फूट-फूटकर रो पड़ी। सांत्वना देने के प्रयास में खुद युवक की आंखें बरस पड़ीं। काफी देर तक उनकी यही स्थिति रही। अपने गम से उबरते ही बुढ़िया ने कहा— "उस मरदूद को तो देख, जालिम—कहीं वह अपनी जान ही न ले ले। ”
युवक बुढ़िया से अलग हुआ।
नजर बरबस ही दरवाजे की तरफ उठ गई। चौखट के बीचो-बीच संगमरमर की प्रतिमा के समान खड़ी थी वह विधवा—हैरत के साथ वह युवक को ही देख रही थी। विशेष रूप से उसके धूल से अटे पड़े कपड़ों को।
रश्मि की आंखें सूजी हुई थीं।
युवक को समझने में देर नहीं लगी कि अपने बेटे के गम में वह भी सारे दिन रोती रही है। वह तेजी के साथ पलंग की तरफ बढ़ा—नजदीक पहुंचकर विशेष पर झुका।
विशेष अर्ध-मूर्छित अवस्था में था।
रह-रहकर उसके होंठ कांप रहे थे और उनके बीच से आवाज निकल रही थी—‘पापा-पापा’—बस यही एक शब्द निकल रहा था उसके मुंह से।
"वीशू-वीशू।" युवक ने दोनों हाथों से उसके गाल थपथपाते हुए पुकारा—कई बार पुकारने पर कराह-सी विशेष के मुंह से निकली। युवक ने कहा— "देखो बेटे …हम आ गए हैं—आंखें खोलो। "
धीमे-धीमे उसने आंखें खोल दी। बहुत ही कमजोर आवाज उसके मुंह से निकली-"पापा। "
"हां बेटे—हम ही हैं—देखो , हम आ गए हैं। "
"प...पापा। " जोर से चीखकर विशेष अपनी नन्हें बांहें फैलाकर उससे लिपट गया और फूट-फूटकर रोने लगा—युवक का हृदय भयानक अंदाज में कांप उठा। कुछ उसी तरह , जिस तरह उस क्षण कांपा था, जब पहली बार उसे अहसास हुआ था कि उसने रूबी की हत्या की है।
युवक रो पड़ा।
बुढ़िया और रश्मि भी , मगर रश्मि ने किसी को पता नहीं लगने दिया था कि वह रो रही है—भले ही वह युवक चाहे जो सही , परन्तु फिलहाल यहां फरिश्ता बनकर ही आया था।
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