RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
“हैलो आंग्रे प्यारे।"
अपने ऑफिस में बैठा आंग्रे इंस्पेक्टर चटर्जी की आवाज सुनकर चौंक पड़ा , स्वागत के लिए खड़ा हो गया वह और हाथ बढ़ाता हुआ बोला— “ हैलो—तुम नोटों की वह गड्डी ले गए थे—क्या तीर मारकर आए हो?"
"उसे छोड़ो प्यारे।" हाथ मिलाने के बाद 'धम्म' से एक कुर्सी पर बैठता हुआ चटर्जी बोला— "तुम कहो , आज का अखबार पढ़ने के बाद सिकन्दर का सुराग देने वाला कोई मुर्गा यहां आया भी या यूं ही बैठे मक्खियां मार रहे हो ?"
"कोई नहीं आया।" आंग्रे के लहजे में निराशा थी।
"यानि मक्खियाँ मार रहे हो , कितनी मार चुके हो—पूरी तीस हुईं या नहीं ?" इस वाक्य के बीच ही में उसने जेब से निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली थी—आंग्रे ने देखा कि चटर्जी का चेहरा सफलता की वजह से चमक रहा था। उससे रहा न गया तो पूछ लिया— "तुम्हारे चेहरे से लग रहा है कि तुम किसी मामले में सफल होकर लौटे हो , क्या मुझे अपनी उपलब्धि नहीं बताओगे।"
"इस बारे में पांच मिनट बाद बात करेंगे—पहले यह बताओ कि राजाराम को जेल भेजा या नहीं ?"
"बस , तैयारी ही कर रहा था।"
"यानि अभी वह हवालात में है ?"
"हां।"
"मैं पांच मिनट में उससे बात करके आता हूं—तब तक अपनी गड्डी के इन नोटों को गिनो , चोरी की आदत है—कहीं बीच में से मैंने एकाध सरका न लिया हो।" कहने के साथ ही उसने गड्डी मेज पर डाली और तेजी के साथ उस तरफ चला गया जिधर इस थाने की हवालात थी।
चटर्जी के अंतिम शब्दों पर हौले से मुस्कराते हुए आंग्रे ने गड्डी उठाकर दराज में डाल ली और व्यग्रतापूर्वक चटर्जी के लौटने का इंतजार करने लगा—वह नहीं समझ पा रहा था कि चटर्जी राजाराम से क्यों मिलने गया है।
वह पांच मिनट से पहले ही लौट आया। आंग्रे ने देखा कि इस बार चटर्जी की आंखें ठीक कीमती हीरों की तरह चमक रही थीं। कुर्सी पर बैठते हुए चटर्जी ने कहा— "रूबी की लाश का मलबा यहीं है ?"
“उस अलमारी में , मगर उसका तुम क्या करोगे ?"
"निकालो प्यारे , अचार डालना है।"
आंग्रे उठा , अलमारी के समीप पहुंचा—जेब से चाबी निकालकर अलमारी पर लगा लॉक खोला और फिर एक लाल कपड़े की छोटी-सी गठरी उसने मेज पर लाकर रख दी—इस गठरी में घटनास्थल से बरामद रूबी की हड्डियां थीं। बैठते हुए आंग्रे ने कहा— "यह मेरी जिन्दगी का ही नहीं , बल्कि शायद क्राइम की दुनिया का पहला ही केस होगा , जिसके अन्तर्गत अदालत में मकतूल की डैडबॉडी शब्द कहकर ये हड्डियां पेश की जाएंगी—शायद ही कभी किसी को किसी की डैडबॉडी इस रूप में मिली हो—ये हड्डियां न तो यह बता सकती हैं कि ये किसके जिस्म की हैं और न ही इस लाश का पोस्टमार्टम आदि कुछ हो सकता है।"
चटर्जी ने जेब से एक फोटो निकाला , इस फोटो को उसने बीच में से मोड़ रखा था—यानि केवल माला का फोटो ही सामने था। रूपेश का नहीं—फोटो को उसी स्थिति में मेज पर रखते हुए चटर्जी ने कहा— “ जरा देखो प्यारे , इस कन्या को देखो।"
"देख रहा हूं।"
“कैसी है?"
"ठीक है , सुन्दर ही कही जाएगी—मगर इसे तुम मुझे क्यों दिखा रहे हो ?"
"अब जरा यह कल्पना करो कि उस पोटली में रखी हड्डियों को अगर 'सिस्टेमेटिक ‘ ढंग से फिट करके उन पर गोश्त और खाल का लेप कर दिया जाए तो इतनी सुन्दर कन्या बन सकती है या नहीं ?"
" 'क...क्या यह रूबी की फोटो है ?" आंग्रे उछल पड़ा।
चटर्जी ने बड़े प्यार से कहा— "राजाराम यही कहता है , अखबारों में इसका नाम गलत छप गया है—असल में इसका नाम माला है।"
"म....माला ?”
"हां।"
"म....मगर तुम यह कैसे कह सकते हो ?"
चटर्जी ने फोटो की तह खोल दी। युवती के साथ बैठे युवक को देखते ही वह सचमुच उछल पड़ा , मुंह से निकला--“रूपेश ?”
"तुमने ठीक पहचाना किबला।"
"म...मगर रूपेश और यह! ” आंग्रे अपने आश्चर्य पर काबू नहीं कर पा रहा था— "क......क्या ये दोनों पति-पत्नि हैं ?"
"तुम्हारे होने वाले बच्चे जिएं।"
"ल...लेकिन ये सब चक्कर क्या है ?" बेचैन होते हुए आंग्रे ने पूछा—"प...प्लीज चटर्जी , मुझे विस्तार से सब कुछ बताओ।"
चटर्जी ने नोटों की गड्डी के आधार पर रूपेश के कमरे तक पहुंचने की कहानी सुनाने के बाद कहा— “हम वहां से मकान मालिक के लड़के को लेकर अस्पताल पहुंचे—मेरे साथ अपने मकान मालिक के लड़के को देखकर रूपेश समझ गया कि मैं कहानी की उस तह तक पहुंच गया हूं , जिसे वह छुपा रहा था , अत: मेरे सवालों के उत्तर उसने बिना किसी हील-हुज्जत के दे दिए।"
"क्या बताया उसने ?"
"रूपेश बस्ती जिले में रहने वाले एक निर्धन परिवार का लड़का है , जो किसी वजह से गाजियाबाद में जा बसा—वह बचपन से ही महत्वाकांक्षी रहा है—बस्ती में जहां उसका घर है , वहां एक करोड़पति परिवार भी रहता है—उनके ठाट-बाट , शानो-शौकत आदि देखकर वह ईर्ष्या करता रहा है—करोड़पति का एक विद्रोही लड़का दस साल की उम्र में ही भाग गया था। जो काफी तलाश करने के बावजूद आज बीस साल गुजरने के बाद भी नहीं मिला है—पिछले तीन साल पहले वहां बाढ़ आई और वह बाढ़ सैंकड़ों अन्य लोगों के साथ उस करोड़पति परिवार के सभी बच्चों को अपने साथ बहा ले गई—ठूंठ की तरह रह गए वह करोड़पति सेठ और उनकी पत्नी—पड़ोसी होने के नाते रूपेश का वहां आना-जाना था , अत: उनके कोई भी बच्चा न रहने के कारण उनकी दौलत को हासिल करने की उसके मन में और प्रबल इच्छा हो गई। ”
"मगर सवाल था—कैसे?"
“इधर रूपेश एक दिन घूमने-फिरने देहली गया —वहां कनॉट प्लेस पर जिस लड़की से उसका आंख-मट्क्का हुआ , वह महरौली में रहने वाले एक परिवार की लड़की थी—अपने परिवार के साथ वह पिकनिक पर यहां आई हुई थी—सारे दिन की अठखेलियों के बाद उनके दिल की अदला-बदली हो गई थी—अतः रूपेश महाराज उन्हें उनके महरौली स्थित मकान तक छोड़ने गए—इस रहस्य को केवल माला ही जानती थी , उसके परिवार के अन्य लोग नहीं। "
"अब तो मुलाकातों का सिलसिला चालू हो गया—इश्क की पेंगें बढ़ने लगीं—झोंटे ऊंचे और ऊंचे होते चले गए—रूपेश ने गाजियाबाद से देहली तक का पास बनवा लिया , जिसके जरिए वह सर्विस करने वाले दूसरे 'डेली पैसेंजर्स ' की तरह आने-जाने लगा—इस तरह खर्चा भी कम पड़ता था। "
"खैर—इश्क इस मुकाम पर पहुंचा कि माला के घर भण्डाफोड़ हो गया , डांट-फटकार पड़ी—प्रेम दीवानी ने विद्रोह कर दिया—मां-बाप कम्बख्त होते क्या चीज हैं—उन्हें क्या हक है कि दो प्यार करने वालों के बीच चीन की दीवार बनें—देहली के किसी अंधेरे कोने में माला ने यह सारी रामायण रूपेश को सुनाई—अब रूपेश ने बता दिया कि वह कोई बहुत मोटी हस्ती नहीं है—गाजियाबाद में फोटोग्राफी की एक दुकान है जिस पर ग्राहक तभी जाता है जब शहर की दूसरी दुकान पर उसकी दाल न गलती हो।"
"र...रूपेश फोटोग्राफर है ?”
"सुनते रहो, प्यारे। वैसे तुमने प्वाइंट ठीक पकड़ा है—हां, तो हम कह रहे थे कि रूपेश ने अपनी हकीकत माला को बता दी—माता के सिर पर प्रेम-भूत सवार था , उसे भला इन बातों से क्या फर्क पड़ना था—टी oवी o पर देख-देखकर उसने ढेर सारे फिल्मी डायलॉग रट रखे थे , सब उगल दिए—उनमें प्यार की महिमा थी और यह था कि भला प्यार का दौलत से क्या सम्बन्ध , दौलत होती ही क्या है—हुंह—चांदी के चन्द सिक्के। उस वक्त माला को यकीन था कि अगर तराजू के एक पलड़े में उनका प्यार और दूसरे में सारे जहां से इकट्ठी करके दौलत रख दी जाए तो नीचे प्यार वाला पलड़ा ही रहेगा।"
“तुम तो उनके प्यार ही पर अटक गए , आगे बढ़ो।"
"माला और रूपेश भी आगे बढ़े और इतने आगे बढ़ आए कि उन्होंने कोर्ट में शादी कर ली—पैदा करने वाले आएं भाड़ में—न रूपेश के मां-बाप को पता था , न ही माला के घर वाले इन्वाइट किए गए , क्योंकि उस घर को हमेशा के लिए छोड़ने के बाद ही वह शादी हुई थी—अब वे पति-पत्नि बन गए।
साथ रहने लगे।
|