RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक को वहां रहते धीरे-धीरे एक महीना गुजर गया।
विशेष और बूढ़ी मां बहुत खुश थे। रश्मि अब उसके प्रति इतनी सख्त नहीं थी। अब युवक उसकी आंखों से अपने लिए नफरत की चिंगारियां निकलते नहीं देखता , परन्तु आज तक भी यह युवक के प्रति नम्र नहीं थी—ऐसा नहीं कहा जा सकता था कि वह युवक की उपस्थिति से खुश थी।
हां , इस एक महीने में , युवक के व्यवहार आदि से रश्मि इतना समझ गई थी कि युवक कोई बहुरूपिया या जालसाज नहीं था, वह किसी दुर्भावना से यहां नहीं रह रहा था।
युवक के चरित्र में कोई बुराई महसूस नहीं की थी उसने।
उसे अपनी तरफ कभी उन नजरों से देखते नहीं पाया था , जिन्हें अनुचित कहा जा सके , वह तो यह कोशिश करती ही थी कि युवक के सामने न पड़े—रश्मि ने भी यह महसूस किया था कि युवक स्वयं अकेले में उसके सामने पड़ने से कतराता था।
मगर पिछले दस-पन्द्रह दिन से एक बात कांटे की तरह उसके मस्तिष्क में चुभ रही थी। वह यह कि इस एक महीने में युवक ने एक बार भी शेव नहीं कराई थी , उसकी दाढ़ी और मूंछें काफी बढ़ गई थीं और अब उसका चेहरा रश्मि के कमरे की दीवार पर लगे फोटो में मौजूद सर्वेश के चेहरे जैसा ही लगता था।
पिछले पांच-छ: दिन से उसने अपने हेयर स्टाइल में भी परिवर्तन कर लिया था।
फोटो में सर्वेश की आंखों पर मौजूद चश्मे जैसा ही चश्मा पहने भी रश्मि ने उसे एक रात देखा था , यानि युवक अब पूरी तरह वह सर्वेश बनने की कोशिश कर रहा था , जिसका फोटो उसके कमरे की दीवार पर लगा है।
आखिर क्यों वह पूरी तरह सर्वेश बनता जा रहा हे ?
उधर—यदि युवक के दृष्टिकोण से इस बदलाव को देखा जाए तो वह केवल पुलिस से बचने के लिए यह सब कर रहा था। हमेशा तो वह इस घर की चारदीवारी में बन्द रह नहीं सकता था। जानता था कि वहां से उसे निकलना ही होगा और किसी पुलिस वाले से टकरा जाने का पूरा खतरा था—ऐसे किसी भी समय के लिए यह खुद को सर्वेश बना रहा था।
ताकि समय आने पर खुद को सर्वेश कहकर बच सके—पुलिस साबित न कर सके कि मैं 'सिकन्दर ', 'जॉनी ' या वह हत्यारा हूं जिसे युवा लड़कियों को मारने का जुनून सवार होता है , बस—इस बदलाव के पीछे यही एक मकसद था।
¶¶
"मैं तो असफल हो ही गया हूं चटर्जी , मगर उस हत्यारे को खोज निकालने के मामले में तुम भी मात खा गए हो।" आंग्रे कह रहा था— "तुम , जिसके बारे में लोग यह कहा करते हैं कि चटर्जी जिस मामले के पीछे पड़ जाता है , उसकी बखिया उधेड़कर रख देता है—आज पूरा एक महीना हो गया है , क्या तुम उसे तलाश कर सके ?"
"ठीक कहते हो प्यारे , मानता हूं इस झमेले में मेरी खोपड़ी ने मेरा साथ नहीं दिया है।" चटर्जी बोला—“पता लगाने की हर कोशिश कर ली, एड़ी से चोटी तक का जोर लगा लिया , किन्तु उस कम्बख्त का कोई सुराग नहीं मिला। पता नहीं उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया।"
"यानि तुम भी हार मान चुके हो ?"
"चटर्जी तब तक हथियार नहीं डालेगा प्यारे , जब तक जिन्दा है।"
"क्या मतलब? "
"अंतिम सांस तक मेरी इच्छा उस तक पहुंचने की रहेगी।"
“आशावान भी रहें तो किस आधार पर , आज एक महीना हो चुका है—गधे के सींग की तरह जाने कहां गायब हो गया और अब मेरा ख्याल तो कुछ और ही है।"
"उसे भी पेश कर दो।"
"कम-से-कम मर्द के लिए अपनी शक्ल में तब्दीली करने के लिए एक महीना काफी होता है , अगर वह होशियार होगा तो अपनी शक्ल में यह तब्दीली उसने कर ली होगी और सामने पड़ने पर भी एक बार को शायद हम उसे पहचान न सकें।"
"किस किस्म की तब्दीली की बात कर रहे हो ?"
"वह दाढ़ी-मूंछ बढ़ा सकता है , नाक की बनावट बदल सकता है—बाजार में मिलने वाले स्थाई लैंस से आंखों के रंग को बदल सकता है—हेयर स्टाइल चेंज कर सकता है।"
"तुम्हारा मतलब है—मेकअप ?"
“ ऐसा , जो मेकअप भी न कहलाया जा सके।"
"किसी भी मेकअप से तुम भले ही धोखा खा जाओ आंग्रे प्यारे , मगर चटर्जी चक्कर में आने वाला नहीं है , इंसान तो इंसान—यदि वह 'भैंस ' बनकर भी मेरे सामने आ गया तो मैं उसे पहचान लूंगा , और फिर उसे हत्यारा भी बड़े आराम से साबित कर दूंगा।"
"वह कैसे ?"
"लाख मेकअप के बावजूद वह अपने 'फिंगर-प्रिण्ट्स ' नहीं बदल सकेगा—लाख कोशिश के बावजूद अपनी 'राइटिंग ' चेंज नहीं कर सकेगा वह—हथौड़ी से प्राप्त फिगर-प्रिंट्स और 'मिट्टी के तेल ' वाले सिलसिले में मेरे पास उसकी राइटिंग है।"
"उन्हें तो तभी मिलाओगे न जब हमें किसी पर शक हो ?”
"बात के जवाब में एक बात पक्की है प्यारे , वैसे तुम्हारे इस विचार से मैं सहमत हूं कि उसने निश्चय ही अपनी शक्ल में हर सम्भव परिवर्तन किया होगा—खैर , चलता हूं प्यारे।" कहते हुए चटर्जी ने उठने के लिए कुर्सी के दोनों हत्थों पर हाथ रखे ही थे कि आंग्रे ने अनुरोध किया—“बैठो यार , ऐसी क्या जल्दी है ?"
“कचहरी जाना है।"
आंग्रे ने कहा— “कचहरी तो मुझे भी जाना है।"
"किस सिलसिले में ?"
"रूपेश को अदालत में पेश करने के बाद जेल भेजने। अब वह लगभग पूरी तरह स्वस्थ हो चुका है—जलने के कारण चेहरे पर जो बदसूरती आ गई है , वह तो हमेशा रहेगी ही।"
"उसके कर्म गोरे शरीर पर फूट पड़े हैं। "
“वैसे तुम्हें कचहरी क्यों जाना है?”
“कुछ नहीं यार , हरिद्वार पैसेंजर से पकड़े उसी मिट्टी के तेल के मामले की आज पहली तारीख है , अपना एक गवाह तो साला उड़न छू हो ही गया है—देखें , एक गवाह से काम चलेगा या नहीं ?"
"तुम्हें भी गवाह के लिए वह हत्यारा ही मिला था।"
“इतना बड़ा मामला नहीं है , एक ही गवाह काफी होगा और वह तो आएगा ही—अरे....।" बात करता-करता चटर्जी एकदम उछल पड़ा , जैसे कुछ याद आ गया हो।
बिजली के समान मस्तिष्क में जैसे कुछ कौंधा हो।
"वो मारा पापड़ वाले को! " एकाएक ही मेज पर बहुत जोर से घूंसा मारता हुआ चटर्जी चीखा— “क्लू मिल गया है आंग्रे प्यारे।"
"क...कैसा क्लू? ” चौंकते हुए आंग्रे ने पूछा।
"गवाही के सिलसिले में वह दूसरा गवाह अदालत में आज जरूर जाएगा—उसे भी नई देहली जाना था , यानि वह बता सकता है कि “ सिकन्दर ' ट्रेन से किस स्टेशन पर उतरा था।”
"क्लू तो है , मगर...।"
"मगर ?"
"उतना जोरदार नहीं है जितना तुम उछल रहे हो-मान लिया कि हमें पता लग गया कि सिकन्दर पुरानी देहली में उतरा है , तब ?”
"अभी तक तो 'क्लू ' ही नहीं मिल रहा था, मेरी जान......यह प्रकाश किरण नजर तो आई है और प्रकाश किरण नजर आना शुभ होता है।"
|