RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
बादल की तरह गरजते युवक ने रश्मि को थरथराकर रख दिया। युवक के अन्दर की वेदना आज पहली बार ही फूटकर बाहर आई थी और वह वेदना ऐसी थी कि जिसके जवाब में कहने के लिए रश्मि को कुछ नहीं मिला—स्वयं उसने भी महसूस किया कि 'हक ' की बात करके उसने ठीक नहीं किया था। इस बार वह अपेक्षाकृत शान्त स्वर में बोली— "हक की बात छोड़ो , मैं मानती हूं कि तुम्हें सारे हक हैं , लेकिन...। "
“लेकिन?"
"बदला मुझे ही लेना है—मैंने कसम खाई है। "
"मैँ नहीं जानता कि वे हत्यारे कौन हैं , मगर यह कल्पना जरूर कर सकता हूं कि जिन्होंने सर्वेश की हत्या कर दी , वे जालिम और शक्तिशाली जरूर रहे होंगे—आप नारी हैं और मेरी नजर में सबसे ज्यादा कोमल नारी , आप उनसे बदला नहीं ले सकेंगी। "
रश्मि का चट्टानी स्वर—“मैं बदला लेकर रहूंगी।"
"सिर्फ जोश से बदला नहीं लिया जाता है, रश्मि जी—वे जरूर कोई बड़े मुजरिम होंगे—शक्तिशली और चालाक होंगे—लोहे को लोहा ही काट सकता है—कोई और धातु नहीं। ”
"वक्त आने पर मैं लोहा बनकर दिखा दूंगी।"
युवक को लगा कि रश्मि उस स्थान से एक इंच भी नहीं हिलेगी जहां खड़ी है। अतः कई पल तक कुछ सोचने के बाद बोला—“मैं आपसे एक समझौता कर सकता हूं। ”
"कैसा समझौता ?"
"सर्वेश के हत्यारों से मैं टकराऊंगा—मैं लोहा लूंगा उनसे , क्योंकि ऐसा करने के लिए इस चारदीवारी से बाहर निकलना होगा—आप यह नहीं कर सकेंगी और अन्त में मैं उन हत्यारों को आपके कदमों में लाकर डाल दूंगा—आप उनके खून से अपनी प्यास बुझा सकती हैँ—उनकी मौत आपके रिवॉल्वर से निकली गोली से ही होगी।"
युवक की बात रश्मि को ठीक ही लगी।
इसमें शक नहीं कि इस चारदीवारी में कैद एक नारी होने की वजह से ही वह आज तक उन हत्यारों से बदला नहीं ले सकी थी—यह बात ठीक ही थी कि उनसे टकराने के लिए एक मर्द चाहिए , अतः युवक की मदद उसे आवश्यक-सी लगी।
बोली—“क्या जरूरी है कि तुम उन्हें मेरे कदमों में लाकर डालोगे ही—यह भी तो हो सकता है कि तुम ही उन्हें मार डालो ?"
“ऐसा नहीं होगा। '"
"मैं गारण्टी चाहती हूं। ”
"जैसी गारण्टी आप चाहें...मैं देने के लिए तैयार हूं।"
एक पल खामोश रही रश्मि , फिर बोली—"वीशू और मांजी की कसम खाकर वादा करना होगा आपको। "
"मैँ तैयार हूं।"
¶¶
गाजियाबाद के कचहरी कम्पाउण्ड में न्यादर अली को देखकर इंस्पेक्टर आंग्रे चौंक पड़ा। देहली हाईकोर्ट के एक माने हुए वकील के साथ वे उसी तरफ बढ़े चले आ रहे थे। इंस्पेक्टर आंग्रे के साथ रूपेश भी था और सेठ न्यादर अली को वहां देखकर जाने क्यों उसके बदसूरत चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
नजदीक जाकर सेठ न्यादर अली ने कहा— “हैलो इंस्पेक्टर!"
"हैलो—आप यहां सेठजी ?"
"जी हां।" न्यादर अली ने अजीब-सी नजरों से रूपेश के जले हुए बदसूरत और वीभत्स चेहरे को देखते हुए कहा।
जलने के बाद रूपेश इतना भयानक हो गया था कि उसे देखकर सख्त कलेजे का आदमी भी डर सकता था।
इंस्पेक्टर आंग्रे ने पूछा— "आप यहां किस सिलसिले मेँ ?"
"रूपेश की जमानत के लिए आए हैं हम।"
"र...रूपेश की जमानत—और आप लेंगे ?" आंग्रे चकित रह गया—“क्या आप नहीं जानते कि आपके सिकन्दर के विरुद्ध इसी ने षड्यन्त्र रचा था—यह उसे सिकन्दर के स्थान पर जॉनी बना देना चाहता था।"
रूपेश को घूरते हुए न्यादर अली ने कहा—"हम सब कुछ जानते हैं—इसी ने हमारे बेटे को हमसे छीना है और इसीलिए हम इसकी जमानत कराना चाहते हैं।"
"म...मैं समझा नहीं, सेठजी।”
न्यादर अली ने एकाएक ही रूपेश के चेहरे से दृष्टि हटाकर इंस्पेक्टर आंग्रे की तरफ देखा , फिर बहुत ही धीमे और ठोस शब्दों में बोले— “हम ईंट का जवाब पत्थर से देने वाले लोगों में से नहीं हैं, इंस्पेक्टर—हम उन लोगों में से भी नहीं हैं जो बुराई का बदला बुराई से ही लेते हैं—हमारे सिद्धान्त जरा अलग हैं—हम बुराई को अच्छाई से खत्म करते हैं—जो हमें ईंट मारता है , हम उस पर फूतों की वर्षा करके उससे बदला लेते हैं।"
रूपेश कांप गया।
चकित भाव में इस्पेक्टर आंग्रे कह उठा—"एक बुरे आदमी से बदला लेने का बहुत ही अजीब और नायाब तरीका निकाला है आपने , आपका यह सिद्धान्त बहुत महान है सेठजी।"
न्यादर अली के होंठों पर फीकी-सी मुस्कान उभर आई। रूपेश की तरफ देखते हुए वे बोले—"शायद इसी ढंग से इसे अहसास हो कि इसने कितना बड़ा पाप किया था। शायद यह एक जवान बेटे के विरह में तड़पते बाप के दर्द का अहसास कर सके?"
इसमें शक नहीं कि रूपेश अन्दर तक हिल उठा था। उसने तो ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उसकी जमानत लेने खुद न्यादर अली आ पहुंचेगा—चाहकर भी जुबान से वह एक लफ्ज नहीं निकाल सका , जुबान तालू में कहीं जा चिपकी थी।
कम-से-कम इस वक्त रूपेश के दिल में उठते भावों का अहसास इंस्पेक्टर आंग्रे ने भी किया था और निश्चय ही आंग्रे न्यादर अली के बदला लेने के तरीके से प्रभावित हुआ।
फिर रूपेश को मजिस्ट्रेट के सम्मुख प्रस्तुत किया गया—इंस्पेक्टर आंग्रे ने उसके विरुद्ध जो चार्जशीट तैयार की थी , वह पेश की गई—रूपेश ने मजिस्ट्रेट के सामने स्वीकार कर लिया कि उसने 'सिकन्दर ' को ‘जॉनी’ बनाने का षड्यन्त्र रचा था। जो आरोप उस पर लगाए गए हैं , वे सच हैं और दौलत के लालच में वह अपनी माला को खो बैठा है।
मजिस्ट्रेट ने न्यादर अली के वकील द्वारा प्रस्तुत जमानत की अर्जी मंजूर कर ली—रूपेश को साथ लेकर न्यादर अली चला गया और मामले के इस अजीब-से मोड़ के बारे में सोचता हुआ इंस्पेक्टर आंग्रे भी बाहर निकला ही था कि इंस्पेक्टर चटर्जी टकरा गया। सामने पड़ते ही उसने कहा— “वह दूसरा गवाह आज अदालत में आया था प्यारे—उससे पता लग गया है कि सिकन्दर शाहदरा में ही उतर गया था।"
"इससे क्या नतीजा निकलेगा? ये कैसे पता लगा सकता है कि वहां से वह कहां गया ?”
"यह भी जरूर पता लगेगा बेटे—खैर, तुम बताओ कि क्या रहा—रूपेश सड़ने के लिए जेल चला गया है या नहीं ?"
"नहीं।"
"क...क्या मतलब ?" चटर्जी उछल पड़ता।
जवाब में जब आंग्रे ने उसे सब कुछ बताया तो चटर्जी की आंखें सिकुड़कर अचानक ही गोल हो गईं , बोला— “यह मामला तो कोई नया ही रंग लेता नजर जा रहा है, प्यारे।"
"कैसा रंग ?”
“ न्यादर अली वैसा आदर्शवादी नजर तो नहीं आता था , जैसा उसने काम किया है।"
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