RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"वह नई देहली में स्थित ' 'मुगल महल '' नाम के एक फाइव स्टार होटल में काम करते थे।" रश्मि ने बताना शुरू किया तो युवक बहुत ध्यान से सुनने लगा— “ यह होटल काफी प्रसिद्ध है और शायद आपने भी नाम सुना हो। वह वहां कैशियर थे , होटल के दैनिक आय-व्यय का हिसाब रखना ही उनका काम था।" रश्मि ने आगे बताया—आज से करीब चार महीने पहले प्रतिदिन की तरह ही वह सुबह सात बजे होटल के लिए निकल गए थे—उनकी ड्यूटी सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक की थी और वह रात नौ बजे तक यहां लौट आते थे , मगर उस सारी रात वह नहीं लौटे थे , इन्तजार में मैंने सारी रात जागकर गुजार दी थी।"
"क्या सर्वेश रात को कभी गायब नहीं होता था ?"
“अक्सर तब रह जाते थे , जब दूसरा कैशियर छुट्टी पर होता था।"
"दूसरा कैशियर ?"
"जी हां , दो कैशियर थे—फाइव स्टार होटल चौबीस घण्टे खुला रहता है और कोई भी एक व्यक्ति चौबीस घण्टे की ड़्यूटी नहीं दे सकता , इसीलिए होटल का सारा ही स्टाफ डबल था , काम दो शिफ्ट में बंटा हुआ था—पहली वह , जिसमें वे थे—दूसरी रात आठ बजे से सुबह आठ तक को—यदि किसी दिन दूसरी शिफ्ट का कैशियर छुट्टी पर होता तो उसकी ड्यूटी भी इन्हें ही देनी होती थी। "
"तब फिर आपने वह रात जागकर क्यों काटी ?"
"जब ऐसा होता था तो किसी भी माध्यम से मुझे सूचना मिल जाती थी , परन्तु उस रात मुझे उनकी नाइट ड्यूटी लग जाने की कोई सूचना नहीं मिली थी—इसीलिए मैं चिन्तित रही थी और सुबह होते ही घर से बाहर निकली थी—नजदीक के टेलीफोन बूथ से उन्हें फोन किया था—उस फोन का नम्बर उन्होंने मुझे दे रखा था , जो उन्हीं की मेज पर रखा रहता था—जब मैंने फोन किया था , उस समय सुबह के करीब सात बजे थे।"
"फिर ?"
"दूसरी तरफ से फोन उठाए जाने पर मुझे एक अपरिचित आवाज सुनने को मिली थी। यह दूसरी शिफ्ट का कैशियर था—जब मैंने उसे अपना परिचय देकर उनके बारे में पूछा था तो उसने चौंके हुए स्वर में मुझे बताया था कि—सर्वेश तो तबीयत खराब होने की वजह से कल रात सात बजे ही छुट्टी कर गया था—मैं धक्क से रह गई थी—जबकि उसे बताया था कि वह अभी तक घर नहीं पहुंचे हैं तो उसने कहा था कि मैं यहां आठ बजे पहुंचा था , तब सर्वेश सीट पर नहीं था और मैनेजर ने बताया था कि तबीयत ठीक न होने की वजह से आज वह सात बजे ही छुट्टी कर गया है—मैंने व्यग्रतापूर्वक उससे रिक्वेस्ट की थी कि वह मैनेजर से पूछकर 'उनके ' अब तक घर न पहुंचने की वजह बताने की कृपा करे—उसने मुझे होल्ड करने के लिए कहा था—कुछ देर बाद उसने मुझे बताया था कि मैनेजर साहब के कथनानुसार सर्वेश सात बजे चला गया था और उनसे यही कहकर गया था कि घर जा रहा है।”
“ओह।”
"अब मेरी चिंता बढ़ गई थी , क्योंकि अब से पहले में यह सोचकर आश्वस्त थी कि उनकी ‘नाइट ड्यूटी ' लग गई होगी—मैं बुरी तरह चिंतित और बेचैन घर लौट आई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि वे कहां गए—कहां तलाश करूं—उस वक्त करीब आठ बजे थे , जब कुछ सिपाहियों के साथ दीवान नाम का इंस्पेक्टर यहां आया था।"
"द....दीवान।" युवक की आवाज कांप गई।
“हां , क्या तुम उसे जानते हो ?"
बड़ी मुश्किल से खुद को संभालकर युवक ने पूछा— “पुलिस यहां क्यों आई थी ?"
"उसने मुझे उनकी जेब का सामान दिखाकर पूछा था कि क्या मैं उस पर्स और पर्स से निकले कागजात को पहचानती हूं ? वह सारा सामान उन्हीं का था , इसीलिए मैं कांप उठी और घबराकर मैंने पूछा था कि यह सब उसके पास कैसे है—सामान में विजिटिंग कार्ड भी था और उसी के जरिए इंस्पेक्टर यहां पहुंचा था , अत: उसने पूछा था कि क्या मिस्टर सर्वेश मेरे पति हैं—‘हां’ कहने के बाद मैंने जब चीख-चीखकर उससे पूछा था तो उसने कहा कि—मुझे बहुत अफसोस के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि , मिस्टर सर्वेश इस दुनिया में नहीं रहे।"
कमरे में सन्नाटा-सा छा गया।
युवक चाहकर भी कुछ बोल नहीं सका।
रश्मि के मुखड़े पर हर तरफ वेदना-ही-वेदना नजर आ रही थी। युवक ने देखा कि उसकी झील-सी आंखों से आंसू उमड़ पड़ने के लिए बेताब थे—खुद को रोने से रोकने के प्रयास में उसका चेहरा बिगड़-सा गया था। वह कहती ही चली गई— “ बाद में इंस्पेक्टर ने बताया था कि 'उनकी ' लाश रेल की पटरी से मिली थी—इंस्पेक्टर दीवान के अनुसार शायद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।"
“आत्महत्या ?"
"दीवान की थ्योरी यही थी , मैं और मांजी पुलिस के साथ वहीं गए थे , जहां लावारिस समझी जाने वाली लाशों को पुलिस बहत्तर घंटों के लिए रखती है—लाश का फोटो तुम देख ही चुके हो—हमने उसी अवस्था में लाश देखी थी , मांजी तभी से पागल-सी हो गई हैं—हालांकि गर्दन धड़ से अलग थी—चेहरा क्षत-विक्षत था , मगर फिर भी मैं उन्हें पचनने में किसी किस्म की भूल नहीं कर सकती थी—जेब से निकले सामान के अलावा वे वही कपड़े और जूते पहने हुए थे , जो पिछले दिन सुबह पहचकर घर से निकले थे—उनकी पीठ पर मौजूद मस्से को देखने के वाद उन्हें सर्वेश ही न मानने का मेरे पास कोई कारण नहीं था।"
युवक खामोश रहा।
रश्मि कहती चली गई— “लाश को यहां लाया गया। अंतिम संस्कार कर दिया गया , मगर इस प्रश्न का जवाब मुझे नहीं सूझ रहा था कि उन्होंने आत्महत्या क्यों कर ली—मैं उनकी पत्नी हूं और अच्छी तरह जानती थी कि उन्हें कोई गम , कोई दुख नहीं था—आत्महत्या की वजह तो दूर-दूर तक नहीं थी—इसी उलझन में मुझे एक हफ्ता गुजर गया और फिर डाक से मुझे एक रहस्यमय पत्र मिला।"
"रहस्यमय पत्र ?"
"यह।" कहती हुई रश्मि ने एक पत्र युवक की तरफ बढ़ा दिया। युवक ने व्यग्रतापूर्वक उसके हाथ से पत्र लिया , खोलकर पढ़ा—
"रश्मि बहन! अगर तुम यह सोच रही हो कि सर्वेश ने आत्महत्या की है तो यह गलत है , सर्वेश की हत्या की गई है—वजह मैं नहीं जानता—हां , इतना जानता हूं कि सर्वेश की जिन्दगी में कहीं कोई ऐसा गम नहीं था , जिससे छुटकारा पाने के लिए वह आत्महत्या करता—फिर जिस सुबह उसकी लाश मिली है , उसकी पूर्व-संध्या को सात बजे मैंने सर्वेश के ऑफिस में रंगा-बिल्ला को दाखिल होते देखा था।
रंगा-बिल्ला बहुत ही खतरनाक , क्रूर, कुख्यात और पेशेवर हत्यारे हैं—वे हमेशा साथ रहते हैं और जहां उन्हें देखा जाता है , यह समझा जाता है कि यहां निश्चय ही कोई हत्या होने वाली है—जिस समय वे सर्वेश के ऑफिस में दाखिल हुए थे , उस समय उनकी आंखों में बड़ी ही जबरदस्त हिंसक चमक दिख रही थी और पांच मिनट बाद ही सर्वेश को साथ लिए वे ऑफिस से बाहर निकले—उस क्षण के बाद मैंने यही सुना कि सर्वेश इस दुनिया में नहीं हैं।
मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि रंगा-बिल्ला ने सर्वेश की हत्या करने के बाद उसकी लाश रेल की पटरी पर डाली होगी—वही दर्शाने के लिए—जो पुलिस सोच रही है—पुलिस को धोखे में डालना रंगा-बिल्ला के बाएं हाथ का खेल है।
तुम जरूर सोच रही होगी रश्मि बहन कि मैं कौन हूं और तुम्हें यह पत्र क्यों लिख रहा हूं, मैं अपना परिचय तो नहीं दे सकता , क्योंकि अभी मरना नहीं चाहता , अगर किसी माध्यम से रंगा-बिल्ला को पता लग गया कि तुम्हें इस आशय का पत्र लिखा है तो निश्चय ही मेरी लाश भी किसी रेल की पटरी पर पड़ी मिलेगी , फिर भी यह खतरनाक काम अपनी और सर्वेश की दोस्ती की खातिर कर रहा हूं।
सिर्फ इसीलिए कि वह जब भी मुझे मिलता , तुम्हारी ही प्रशंसा कर रहा होता है। सर्वज्ञ बुरी तरह तुम्हारा दीवाना था—वह तुमसे बहुत प्यार करता था। उसी के प्यार से मैंने अन्दाजा लगाया कि तुम उसे कितना चाहती होगी। कितना ख्याल रखती होगी उसका , और अब , अचानक ही तुम्हारा सब कुछ लुट गया है बहन और जाने क्यों मुझे अच्छा न लगा कि तुम्हें हकीकत पता न लगे। बस—इसीलिए यह पत्र लिख दिया है—शायद इसे तुम्हारे पास भेजकर मुझे कुछ सुकून मिल सके।
—एक भाई '
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