RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
'मुगल महल ' के शानदार दरवाजे के सामने इस बार जो टैक्सी रुकी , उसके अन्दर से युवक निकला। इस वक्त यह बिल्कुल वही सर्वेश नजर आ रहा था , जिसका फोटो रश्मि के कमरे की दीवार पर लगा था—वही दाढ़ी-मूंछ , चश्मा और हेयर स्टाइल।
टैक्सी की पेमेंट करने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
द्वार पर खड़े वर्दीधारी दरबान ने उसे अपने परम्परागत ढंग से सेल्यूट मारा , परन्तु सेल्यूट मारते-मारते अचानक ही उसकी दृष्टि युवक के चेहरे पर पड़ी और उस क्षण न केवल उसका सैल्यूट मारने वाला हाथ, बल्कि सारा ही जिस्म बुरी तरह कांप उठा।
हैरत के असीमित भाव उसके चेहरे पर उभर आए।
दरबान के कण्ठ से चीख-सी निकल गई— "स...सर्वेश बाबू आप ?"
"हां।" धीमे से कहते हुए युवक ने हाथ बढ़ाकर स्वयं ही शीशे का दरवाजा खोला और अन्दर दाखिल हो गया , जबकि मुंह फाड़े दरबान किसी स्टैचू के समान हक्का-बक्का-सा वहीं खड़ा रह गया।
युवक तेज कदमों के साथ सीधा काउंटर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। तभी सामने से तेजी के साथ आता हुआ एक वेटर उससे टकरा गया—टकराते ही वेटर ने उसकी शक्ल देखी और बरबस ही सेल्यूट के लिए उसका हाथ उठा।
मगर एकदम ही शायद उसे यह ख्याल आ गया कि वह व्यक्ति तो मर चुका है।
वेटर के चेहरे पर हैरत के असीमित भावों के साथ ही भय के चिन्ह भी उभर आए। वह इतना डर गया था , कि ट्रे उसके हाथ से छूट गई। क्रॉकरी खनखनाकर टूटी।
“भ....भू...त …भूत!" बुरी तरह चिल्लाता हुआ वह एक तरफ को भागा।
काउंटर पर मौजूद एक सुन्दर लड़की ने क्रॉकरी टूटने और वेटर के चिल्लाने की वजह से उधर देखा तो उसके हलक से चीख निकल गई— "स...सर्वेश।"
युवक जानता था कि यह सब क्यों हो रहा है?
अत: वह तेजी के साथ काउंटर की तरफ बढ़ गया—आश्चर्य के साथ-साथ युवक ने काउंटर गर्ल के खूबसूरत चेहरे पर उभरने वाले खौफ के भाव भी स्पष्ट देखे।
अभी तक वह मुंह फाड़े किसी स्टैचू के समान खड़ी थी कि युवक उसके नजदीक पहुंचकर बोला— “मुझे मैनेजर साहब से मिलना है।"
सिट्टी-पिट्टी गुम थी उसकी। तभी तो उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकल सकी। उसकी इस अवस्था पर युवक मन-ही-मन मुस्करा उठा—एक नजर उसने अपने चारों तरफ देखा।
दरबान और टकराने वाले वेटर के अलावा होटल के स्टाफ के वहां मौजूद अन्य सभी कर्मचारी दूर खड़े , चेहरों पर काउंटर गर्ल जैसे ही भाव लिए उसे देख रहे थे।
यही स्थिति वह सर्वेश के हत्यारे की कर देना चाहता था।
उसे पूरा यकीन था कि उसकी इस हरकत से सर्वेश के हत्यारों में खलबली मच जाएगी। उसने काउण्टर गर्ल से पुन: कहा— “ मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं। ”
"क...कौन हैं आप ?" काउण्टर गर्ल बड़ी मुश्किल से कह सकी। युवक ने उल्टा सवाल किया —“ क्या आप मुझे नहीं जानती हैं ?"
"ज....जी हां।" आतंक के कारण वह कांप रही थी।
"वह मैं नहीं था , किसी और की लाश को मेरी लाश समझ लिया गया।" बड़ी ही मोहक मुस्कान के साथ युवक ने कहा— “ यकीन करो , मैं सर्वेश हूं—सर्वेंश का भूत नहीं , किसी को मुझसे डरने की जरूरत नहीं है।"
"म....मगर यदि तुम मरे नहीं थे तो क......कहां गायब हो गए थे ?" वाक्य पूरा करते-करते काउण्टर गर्ल का हलक पूरी तरह सूख गया।
"इस सवाल का जवाब मैं मैनेजर साहब को ही दूंगा , प्लीज—उन्हें सूचित करो कि मैं आया हूं।"
यन्त्रचालित-सी उसने काउण्टर पर रखे फोन का रिसीवर उठा लिया।
सम्बन्धत स्थापित होने पर काउण्टर गर्ल ने बड़ी मुश्किल से कहा— "है...हैलो सर , डॉली हियर।"
"बोलो।" दूसरी तरफ से अक्खड़ स्वर उभरा।
"स...सर-स...सर्वेश आपसे मिलना चाहता है।"
दूसरी तरफ से सामान्य स्वर में ही पूछा गया—"कौन सर्वेश ?"
“व...वही, सर—जो आज से चार महीने पहले तक हमारा कैशियर था।"
"क...क्या बक रही हो ?" दूसरी तरफ से बोलने वाला दहाड़ उठा—"वह तो रेल के नीचे कटकर मर चुका है।"
"न...नो सर , वह इस वक्त काउण्टर पर मेरे पास ही खड़ा है।"
"तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है डॉली!"
"स...सॉरी सर , मैं खुद चकित हूं—वह कहता है कि मैँ सर्वेश ही हूं—जो मरा था वह कोई और था—शक्ल भी सर्वेश से बिल्कुल मिलती है, सर। वह आपसे मिलना चाहता है। ”
"जाने तुम क्या बक रही हो? भेजो उसे।"
रिसीवर रखते वक्त डॉली के सम्पूर्ण चेहरे पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थीं , बड़ी मुश्किल से कहा था उसने— “अ...आप जा सकते हैं।"
"थैंक्यू।" कहकर वह तेज और लम्बे कदमों के साथ उस कमरे की तरफ बढ़ गया , जिसके मस्तक पर लगी पीतल की शानदार प्लेट पर 'मैनेजर ' लिखा था।
किसी की परवाह किए बिना उसने मैनेजर के कमरे का दरवाजा खोला , अन्दर कदम रखते ही एक चीख-सी उसे सुनाई दी— "अ...अरे , तुम तो सचमुच सर्वेश हो ?"
"जी हां।" जिस व्यक्ति से युवक ने यह कहा वह , उसे देखते ही अचम्भे के कारण अपनी कुर्सी से उछलकर खड़ा हो गया। झटके से उठने के कारण उसकी रिवॉल्विंग चेयर अभी तक चरमरा रही थी—युवक उसके चेहरे पर भी हैरत के चिन्ह देख रहा था।
शानदार कमरे में शानदार और विशाल मेज के पीछे खड़े व्यक्ति की आयु तीस के करीब ही थी —वह सांवले रंग का आकर्षणहीन नौजवान था। चपटी नाक और सुर्ख आँखों वाले उस बदसूरत युवक के जिस्म पर कीमती सूट था।
उसके नजदीक पहुंचकर युवक ने कहा— "गुड ईवनिंग सर।"
" 'इ...ईवनिंग , मगर तुम जीवित कैसे हो सकते हो, सर्वेश ?"
"मैं स्वयं नहीं जानता।"
"हम समझे नहीं , तुम सर्वेश ही हो न ?" मैनेजर हक्का-बक्का था।
"जी हां , आप यकीन कीजिए—मैं सर्वेश ही हूं, जिसकी लाश को सबने , यहां तक कि मेरी वाइफ ने भी मेरी लाश समझा , वह किसी और की लाश रही होगी।"
"ल...लेकिन , यह सब कुछ कैसे हो सकता है—उस लाश की जेब से तुम्हारा पर्स मिला था—वे ही सब कागजात जो तुम्हारे थे—तुम्हारे कागजात किसी अन्य की जेब में कैसे पहुंच गए—और फिर यदि तुम मरे नहीं थे तो चार महीने तक कहां रहे ?"
"मैं इस किस्म के किसी भी सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं सर।"
“क्यों ?”
"क्योंकि मैं अपनी याद्दाश्त गंवा बैठा हूं।"
"क....क्या मतलब! " इस बार मैनेजर कुछ ज्यादा ही बुरी तरह चौंक पड़ा।
युवक ने शांत स्वर में वह सब कहा जो पहले ही से सोचकर वहाँ गया था—"मैं यह भी नहीं जानता कि अपनी याद्दाश्त किस तरह गंवा बैठा हूं। बस , इतना ही याद है कि मैं दीवानों की तरह एक दिन शाहदरा स्टेशन से राधू सिनेमा की तरफ जा रहा था कि स्कूल के बच्चों से भरी रिक्शा में से एक बच्चा मुझे देखकर 'पापा-पापा’ चिल्लाने लगा—वह मुझे अपने घर ले गया—वहां मुझे मालूम पड़ा कि मैं सर्वेश हूं—वह बच्चा मेरा बेटा विशेष है—मेरी पत्नी का नाम रश्मि है और एक बूढ़ी मां भी है मेरी—वाइफ ने ही बताया कि मैं यहां सर्विस करता था—सो , अपनी सर्विस पर लौट आया हूं।"
"बड़ी हैरतअंगेज कहानी है तुम्हारी! "
"मैं खुद चकित हूं, सर।"
"खैर , बैठो।" खुद को थोड़ा नियंत्रित करके मैनेजर ने कहा और अपनी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठ गया—युवक भी धीमे से मेज के इस तरफ पड़ी छ: गद्देदार कुर्सियों में से एक पर बैठ गया और बैठते ही उसकी नजर मैनेजर के पीछे वाली दीवार पर लगे एक फोटो पर पड़ी और इस फोटो को यहां देखते ही युवक बुरी तरह उछल पड़ा।
बड़े-से , खूबसूरत और कीमती फ्रेम में जड़ा यह फोटो न्यादर अली का था।
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