RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक के जेहन में एक विस्फोट-सा हुआ था , डॉली को घूरता हुआ वह बोला— "क्या तुमने रश्मि को कोई पत्र लिखा था?"
“हां , क्या तुमने वह पढ़ लिया है—अरे?” जाने क्यों डॉली एकदम बुरी तरह से चौंक पड़ी। उसके चेहरे पर आतंक और दहशत के भाव उभर आए—अचानक ही वह बहुत भयभीत नजर जाने लगी थी , कांपते स्वर में बोली— “ न-नहीं , तुम सर्वेश नहीं हो सकते।"
“क्यों ?" युवक चौंक पड़ा।
"अगर तुम सर्वेश होते तो वह क्यों पूछते कि क्या वह पत्र मैंने लिखा है—नहीं , तुम सर्वेश नहीं हो—म...मैंने कोई पत्र नहीं लिखा था।" कहने के साथ ही बुरी तरह डरी हुई डॉली उठी और केबिन से बाहर निकलने के लिए अभी उसने पहला कदम उठाया ही था कि युवक ने एक झटके से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया।
डॉली के होश उड़ गए , चेहरा पीला जर्द।
"चुपचाप यहीं बैठ जाओ। " युवक गुर्राया।
"म....मुझे बख्श दो—मैं सच कहती हूं—सर्वेश की वाइफ को मैंने कोई पत्र नहीं लिखा—रंगा-बिल्ला की बातें मैंने बिल्कुल नहीं सुनी थी , सर्वेश के मर्डर के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।" बुरी तरह गिड़गिड़ाते वक्त मौत का खौफ उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था।
“मैं तुम्हें नहीं मारूंगा , यह रिवॉल्वर सिर्फ तुम्हें यहां रोकने के लिए निकाला है—आराम से बैठ जाओ , अगर तुमने मेरे सभी सवालों का सही जवाब दिया तो तुम्हें कोई खतरा नहीं है।"
डॉली बैठ गई , उसका समूचा शरीर कांप रहा था—हल्दी-से नजर आने वाले पीले चेहरे पर झिलमिला रही थीं पसीने की बूंदें।
"अगर तुम्हारे दिमाग में यह खौफ बैठ गया है कि मैं सर्वेश के हत्यारों में से कोई हूं तो उस खौफ को निकाल फेंको , मुझे उनका दुश्मन समझो। "
"अ...आप कौन हैं ?"
"में सर्वेश ही हूं।"
"क..कैसे मान लूं …अगर आप सर्वेश होते तो उस पत्र को देखते ही समझ जाते कि रश्मि बहन को वह पत्र मैंने लिखा है।"
“कैसे समझ जाता ?"
"म...मेरी राइटिंग से—सर्वेश मेरी राइटिंग को खूब पहचानता था , रजिस्टर में मेरे द्वारा की गई ग्राहकों की एण्ट्री को देखकर वह हमेशा मेरी राइटिंग की तारीफ करता था।"
"ओह!" युवक की समझ में डॉली के चौंकने का रहस्य आ गया था , वह समझ गया कि जब तक डॉली उससे आतंकित रहेगी , तब तक उसके सवालों का सही जवाब नहीं दे सकेगी , अत: अपने बारे में उसने वही कहानी डॉली को भी सुना दी , जो कुछ ही समय पहले मैनेजर को सुना चुका था।
सुनकर भौंचक्की रह गई डॉली!
आतंक , भय और मौत के खौफ के चिन्हों के स्थान पर अब उसके चेहरे पर हैरत और अविश्वास के भाव उभर आए , बोली— "क्या सच कह रहे हो , तुम सर्वेश ही हो! ”
"मैंने बिल्कुल सच कहा है डॉली। '"
"अजीब हैरतअंगेज कहानी है तुम्हारी।"
"अब तुम मुझे यह बताओ कि पत्र तुमने इस ढंग से क्यों लिखा था कि पढ़ने में किसी मर्द द्वारा लिखा गया महसूस हो ?"
“तुम्हारे हत्यारे से खुद को पूरी तरह छुपाने के लिए—यह सोचकर कि अगर किसी तरह उन्हें रश्मि बहन को मिले पत्र के बारे में पता लग भी जाए तो पत्र लेखक को वे पुरुषों में ही ढूंढते रहें , किसी नारी की तरफ ध्यान तक न जाए और मैं उनकी पहुंच से बहुत दूर रहूं।"
"अगर तुम इतना डरती थी तो ऐसा पत्र लिखने की जरूरत ही क्या थी ?"
"म...मैं विवश थी। "
"कैसी विवशता ?"
डॉली ने कुछ कहना चाहा , मगर फिर बिना कुछ कहे ही मुंह बंद कर लिया , कुछ क्षणोपरान्त बोली— “ उस विवशता को छोड़ो सर्वेश , बस यह समझो कि दिल के हाथों विवश थी—चाहकर भी मैं खुद को वह पत्र लिखने से न रोक सकी। "
"आखिर क्यों ?"
“छोड़ो भी। "
"नहीं डॉली , मैं किसी भी ऐसे प्रश्न का जवाब मालूम किए बिना न रहूंगा , जिसका ज़वाब तुम्हें मालूम हो , उस विवशता के बारे में बताओ डॉली। "
डॉली किसी दुविधा-सी में फंसी महसूस हुई , बोली— “ जिद मत करो सर्वेश , यकीन मानो कि इस सवाल का तुम्हारी इन्वेस्टिगेशन से कोई सम्बन्ध नहीं है—उल्टे मुझे एक ऐसी बात उगलनी पड़ जाएगी जो तुम्हारी याददाश्त गुम होने से पहले लाख चेष्टाओं के बावजूद भी मैं नहीं कह सकी थी और बहुत पहले ही वह बात मैं तुमसे कभी न कहने का संकल्प ले चुकी हूं।"
“कौन-सी? क्या बात है ?"
“अगर विवश ही कर रहे हो तो सुनो।" एक ठंडी सांस लेने के बाद डॉली ने कहा— "म...मैँ तुमसे मौहब्बत करती हूं।"
"ड...डॉली।" युवक के कण्ठ से चीख-सी निकल गई।
"बस , यही छोटी-सी बात थी , जो मैं तुमसे कभी न कह सकी और कभी न कहने का संकल्प भी ले लिया था। "
सन्नाटे की-सी अवस्था में युवक डॉली को देखता रह गया।
"अच्छा ये बताओ कि तुमने रंगा-बिल्ला को उस शाम सात बजे मेरे पास आते कैसे और कहां से देखा था ?"
"मैं काउंटर पर ही खड़ी थी। '"
"क्या तुमने वे बातें भी सुनी थीं , जो उन्होंने मेरे ऑफिस में मुझसे कीं ?"
"नहीं।”
"वे मुझे ऑफिस से निकालकर कहां ले गए ?"
“मैं नहीं जान सकी , उस घटना के दो हफ्ते बाद रंगा-बिल्ला पुन: ' 'मुगल महल '' में आए और एक केबिन में बैठकर शराब पीने लगे , लेकिन के बाहर छुपकर उनकी जो बातें मैंने सुनीं , उनका सार तुम्हें बता ही चुकी हूं—उससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानती।"
¶¶
|