RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"यह तो कोई विशेष ‘क्लू ' न हुआ , इस तरह भला क्या पता लगना था ?" चटर्जी की पूरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर दीवान ने कहा।
उसी के समर्थन में आंग्रे बोला—"मैं भी चटर्जी से यही कह रहा था , मगर यह किसी की सुने तब न , लाख मना करने पर भी यह मुझे भी गाजियाबाद से शाहदरा खदेड़ ही लाया और शाहदरा स्टेशन से राधू सिनेमा की तरफ जाने वाली सड़क पर स्थित लगभग हरेक दुकान के मालिक को सिकन्दर का फोटो दिखाकर पूछता रहा कि क्या उनमें से किसी ने इसे देखा है। वही हुआ , जिसकी उम्मीद थी—यानि किसी ने यह नहीं कहा कि इसे कोई पहचान सकता है।"
"दुकानदार भला पहचानते भी कैसे—उस सड़क से हर रोज जाने कितने लोग गुजरते हैं और वैसे भी सिकन्दर एक महीने पहले वहां से गुजरा होगा—किसी दुकानदार के द्वारा उसे पहचान लिए जाने की उम्मीद करना ही मूर्खतापूर्ण है।"
हल्की-सी मुस्कान के साथ चटर्जी ने कहा— "कोई आशाजनक परिणाम नहीं निकला है , इसीलिए फिलहाल तुम दोनों को मुझे मूर्ख ठहराने का पूरा अधिकार है।"
आग्रे ने व्यंग्य-सा किया— “ तो क्या तुम्हें इस तरह से कोई परिणाम निकलने की उम्मीद थी?"
"वहां से निराश होकर हम तुम्हारे पास आ गए हैं दीवान।" आंग्रे की बात पर कोई ध्यान न देते हुए चटर्जी ने कहा— "सोचा कि जब शाहदरा तक आ ही गए हैं तो क्यों न देहली में तुम्हारी चाय पीने के बाद ही गाजियाबाद लौटें ?"
दीवान ने कुछ कहने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि मेज पर रखे टेलीफोन की घण्टी बज उठी , रिसीवर उठाकर दीवान ने कहा—"हैलो—थाना रोहतक रोड।"
"मुझे इंस्पेक्टर दीवान से बात करनी है।"
“जी , कहिए—मैं दीवान ही बोल रहा हूं।"
"क्या आप वही इंस्पेक्टर दीवान हैं , जिसने आज से करीब चार महीने पहले रेल की पटरी से 'मुगल महल' के कैशियर मिस्टर सर्वेश की लाश बरामद की थी ?"
"जी हां , आप कौन हैं ?"
"मैं 'मुगल महल ' का मैनेजर नारायण दत्त साठे बोल रहा हूं।"
"सेवा बोलिए।"
“क्या वह लाश मिस्टर सर्वेश ही की थी ?"
“नि:सन्देह , मगर आज चार महीने बाद अचानक ही आप उसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं ?”
"दरअसल आज सर्वेश यहां होटल में आया था।"
“क...क्या कह रहे हैं आप ?" दीवान कुर्सी से उछल पड़ा।
"जी हां , मैं खुद चकित हूं।.....वह खुद को सर्वेश ही कहता था और नि:सन्देह , देखने में हर कोण से वह सर्वेश ही नजर आता था—मैं और मेरा सारा स्टाफ चकित है।"
"आपसे क्या चाहता था ?"
"पुन: अपनी ड्यूटी ज्वाइन करना चाहता था।"
"इस वक्त कहां है ?"
"जा चुका है , शायद घर गया होगा।"
"क्या आप सारी घटना विस्तार से बता सकते हैं ?"
दूसरी तरफ से साठे ने सब कुछ बता दिया। याददाश्त गुम होने और शाहदरा से एक बच्चे के 'पापा ' कहकर उसे अपने घर ले जाने का वृतांत सुनकर दीवान की हालत बड़ी अजीब हो गई , बोला— “तो यह बात उसकी वाइफ ने उसे बताई है कि उसका नाम सर्वेश है और वह 'मुगल महल ' में कैशियर था ?"
"उसके बताए अनुसार तो ऐसा ही है।"
"मैं अभी गांधीनगर स्थित सर्वेश के मकान पर जाकर इस सारे मामले की छानबीन करता हूं मिस्टर साठे।"
"मैं भी यही चाहता हूं, इंस्पेक्टर—नतीजा जो भी निकले , उससे मुझे जरूर अवगत कराइएगा , ताकि मैं निर्णय कर सकूं कि कैशियर की जगह उसे देनी है या नहीं।"
“जरूर सूचित करूंगा मिस्टर साठे , मगर मेरे ख्याल से यह इस अवस्था में सही नहीं रहेगा कि आपके यहां कैशियर रह सके , क्योंकि मैं जानता हूं कि वह सर्वेश नहीं है।" कहने के बाद दूसरी तरफ से किसी जवाब की प्रतीक्षा किए बिना दीवान ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया।
चटर्जी और आंग्रे क्योंकि दूसरी तरफ से बोलने वाले की आवाज नहीं सुन पाए थे इसीलिए कुछ समझे नहीं—हां , दीवान की आंखों में उभर आई चमक , बार-बार उसके चौंकने तथा फोन रखते वक्त उसकी उत्तेजक स्थिति से उन्होंने यह अनुमान जरूर लगाया कि मामला महत्वपूर्ण है। उसके रिसीवर रखते ही चटर्जी ने पूछा— "क्या बात है ?"
"मुझे लगता है कि आप बहुत ज्यादा लकी हैं।"
चटर्जी ने चौंकते हुए पूछा— “क्या मतलब ?"
"मेरे ख्याल से सिकन्दर का पता लग गया है।" '
"क....कैसे—कहां है ?" एक साथ दोनों के मुंह से निकला।
दीवान ने फोन पर साठे से हुई बातें उन्हें विस्तारपूर्वक बता दीं। सुनने के बाद उनके दिलों में अजीब-सी उत्तेजना और जोश भर गया। दीवान ने कहा— "सिकन्दर शाहदरा स्टेशन पर उतरा , वह राधू की तरफ जा रहा था कि सर्वेश का बच्चा उसे अपने घर ले गया।"
"और तब से सिकन्दर सर्वेश बनकर वहीं रह रहा है।" बात आंग्रे ने पूरी की।
चटर्जी बोला— "मगर बड़ी अजीब बात है—सर्वेश के बच्चे ने सिकन्दर को भला अपना 'पापा ' कैसे कह दिया और फिर सर्वेश की वाइफ और मां ने सिकन्दर को सर्वेश कैसे मान लिया?"
"इस बारे में अभी क्या कहा जा सकता है ? सम्भव है कि दोनों की शक्लों में थोड़ा-बहुत साम्य हो , साठे कहता था कि वह हू-ब-हू सर्वेश ही लगता है।"
"क्या तुमने सर्वेश को नहीं देखा था ?"
"मैंने सिर्फ उसकी लाश देखी थी—चेहरा क्षत-विक्षत था।"
"कुछ भी सही , याददाश्त गुम होने और शाहदरे में यही घटना से बिल्कुल स्पष्ट है कि वह सिकन्दर है—और यह भी स्पष्ट है कि अब वह हमारे सामने खुद को सर्वेश ही साबित करने की भरपूर चेष्टा करेगा , मगर मेरा नाम भी चटर्जी है—उसकी उंगलियों के निशान और राइटिंग अब भी मेरी जेब में हैं—चलो दीवान—गांधी नगर चलते हैं।"
"चलो।" कहकर दीवान उठ खड़ा हुआ।
|