RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"मैं तब भी यही कहूंगा कि वह झूठ बोल रहा है। मैँने उससे 'सेम ' यही कहा था , जो आपसे कहा है।"
आग उगलते हुए नेत्रों से उसे घूरता रह गया चटर्जी। गुर्राया—"मैं समझ गया हूं कि तुम पूरे ढीठ हो और उसका सामना होने पर भी उसे ही झूठा कहते रहोगे—फिलहाल उसके पास भी तुम्हें झूठा साबित करने के लिए ठोस सबूत नहीं होगा।"
"आप शायद हवा में तीर चला रहे हैं ?"
"हवा में तीर तो तुम चला रहे हो बेटे। जब पुलिस तीर चलाएगी तो होश उड़ जाएंगे तुम्हारे , चटर्जी बिना सबूत के कोई बात नहीं करता है—यहां आने से पहले ही हम समझ चुके थे कि तुम खुद को सर्वेश साबित करने की भरपूर कोशिश करोगे और अब तक हम यही देख रहे थे कि अपने मकसद में कामयाब होने के लिए तुम क्या-क्या दांव फेंकते हो , क्या कहानी सुनाते हो ?"
"जो मैं हूं यह साबित करने की भला मुझे जरूरत ही क्या है ? मैँने एक शब्द भी खुद को सर्वेश साबित करने की मंशा से नहीं कहा है , केवल आपको वह घटना सुनाई , जो मेरे साथ घटी और जिसकी वजह से यह भ्रम पैदा हुआ कि सर्वेश मर चुका है।"
तभी , पानी से भरा स्टील का एक जग और पांच-छ: गिलास लिए विशेष वहां पहुंच गया—अभी उसने जग और गिलास सेंटर टेबल पर रखे ही थे कि युवक ने कहा— “मैंने तुमसे चाय लाने के लिए कहा था वीशू—पानी नहीं।"
'चाय लेकर मम्मी आ रही हैं पापा , उन्होंने कहा है कि तब तक पुलिस अंकल को पानी दो...।'
जहां विशेष के 'पापा ' कहने पर तीनों इंस्पेक्टर उस बच्चे को घूरने लगे थे , वहीं विशेष का वाक्य सुनकर युवक के समूचे जिस्म में सनसनी दौड़ गई।
'चाय लेकर रश्मि आ रही है—उफ्फ—यह क्या बेवकूफी कर रही है यह।'
'उसका लिबास ही इन कम्बख्तों को सब कुछ समझा देने के लिए काफी होगा।"'
“उ....उन्हें चाय लाने की क्या जरूरत है—म...मैं खुद ही ले आता हूं।" अजीब बौखलाए-से स्वर में कहने के साथ ही युवक खड़ा हुआ।
“ठहरो मिस्टर , यहीं बैठो।" इंस्पेक्टर दीवान के वाक्य और सर्द लहजे ने उसके रहे-सहे हौंसले भी पस्त कर दिए—"चाय लेकर उन्हीं को आने दो , तुम्हारी तारीफ के चन्द शब्द कम-से-कम उन्हें तो सुनने ही चाहिए।"
वहीं जाम होकर रह गया युवक।
सारा शरीर सुन्न पड़ गया था , जैसे असंख्य चीटियां रेंग रही हों।
उसकी इस अवस्था पर चटर्जी बड़े ही धूर्त अन्दाज में मुस्कराया।
अपने सारे मन्सूबे युवक को धराशायी होते-से महसूस हो रहे थे।
इन काइयां इंस्पेक्टरों के सामने अपनी कहानी उसे बहुत कमजोर मालूम पड़ रही थी और फिर अब , चाय लेकर किसी भी क्षण वहीं खुद रश्मि जाने वाली थी।
उसके बाद बाकी कुछ नहीं रह जाता।
कई पल की खामोशी के बाद इंस्पेक्टर चटर्जी ने कहा— "उस जघन्य जुर्म में गिरफ्तार होने से बचने का एकमात्र तरीका यही था मिस्टर—न-न बीच में मत बोलो—हमें सिर्फ यह साबित करना है कि वह जघन्य हत्याकाण्ड तुमने किया है और यह साबित करने के लिए हमारे पास पर्याप्त प्रमाण हैं।"
अन्दर से पूरी तरह टूट चुकने के बावजूद भी युवक ने कहा— “क...कैसे प्रमाण ?"
फिंगर-प्रिन्ट्स और राइटिंग से सम्बन्धित भेद खोलने के लिए चटर्जी ने अभी मुंह खोला ही था कि वहां पाजेब की आवाज गूंज उठी—'छम्म....छम्म...छम्म...।'
सभी के साथ युवक की दृष्टि भी दरवाजे की तरफ उठ गई।
दिल 'धक्क ' से धड़का और फिर मानो धड़कनें रुक गईं।
युवक का दिलो-दिमाग गैस से भरे गुब्बारे की तरह आकाश में उड़ चला।
वहां रश्मि खड़ी थी , हाथ में ट्रे लिए—ट्रे में क्रॉकरी थी , चाय से भरी केतली।
रश्मि को देखकर युवक के रोंगटे खड़े हो गए। धमनियों में बहता लहू जैसे जम गया—टांगें किसी सौ साल के बूढ़े की तरह कांप उठीं—उफ्फ—सुहागिनों के पूरे मेकअप में थी वह विधवा। हरे रंग की सच्चे गोटे की कढ़ी भारी जाल वाली साड़ी—उसी के साथ का ब्लाउज—पैरों में बिछुए—कानों से स्वर्ण बुन्दे झूल रहे थे—नाक में नथ।
मस्तक पर दमदमा रहा था सिन्दूरी सूरज—मांग अपने अंतिम सिरे तक सिन्दूर से लबालब भरी थी—पूरे मेकअप में थी रश्मि—नयनों के किनारों पर आई ब्रो तक।
लिपस्टिक से दमदमाते होंठों पर मुस्कान बिखेरे उसने मेहमानों का स्वागत किया—उस वक्त युवक की आत्मा तक कांप रही थी , जब रश्मि ने आगे बढ़कर ट्रे मेज पर रख दी।
सन्नाटे के बीच चांदी की पाजेबों की खनखनाहट गूंजी।
युवक के साथ ही जैसे वहां मौजूद हर व्यक्ति को सांप सूंघ गया था। सबसे पहले बोलने का साहस चटर्जी ने ही जुटाया। उसने रश्मि से पूछा— "आप मिसेज सर्वेश हैं न ?"
"जी हां। ”
अपने रूल से युवक की तरफ़ इशारा करके चटर्जी ने पूछा—"क्या ये ही सर्वेश हैं ?"
"जी हां।"
“ऐसा आप कैसे कह सकती हैं ?"
रश्मि बोली— “ जैसे आप यह कह सकते हैं कि आप इंस्पेक्टर चटर्जी हैं।"
चटर्जी के मन-मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा—फिर भी उसने संभलकर कहा— “मेरा मतलब ये है कि मिस्टर सर्वेश तो आज से चार महीने पहले ही...।"
"वह किसी अन्य की लाश थी।"
दीवान कह उठा—“म.....मगर आप ही ने शिनाख्त की थी।"
"जरूर की थी , उस लाश के कपड़े और जेब से निकले सामान से जो लगा, मैंने वही कहा—मुझ अभागिन ने सुहागिन होते हुए भी वहां अपनी चूड़ियां तोड़ डालीं—आप भी जानते हैं इंस्पेक्टर साहब कि उस लाश का चेहरा शिनाख्त के काबिल नहीं था —अगर आपको याद न हो तो उस लाश का फोटो देख सकते हैं।" कहने के साथ ही रश्मि ने सर्वेश की लाश का फोटो उनकी तरफ उछाल दिया।
चटर्जी के बाद फोटो को आंग्रे और दीवान ने भी देखा।
“अगर यह सर्वेश है तो क्या आपने पूछा कि तीन महीने यह कहां गुम रहा ?"
रश्मि ने वही कहानी सुना दी जो कुछ देर पहले युवक सुना चुका था। चटर्जी बहुत धैर्यपूर्वक उसे सुनता और होंठों-ही-होंठों में मुस्कराता रहा। उसके चुप होने पर पूछा— "यह सब आपको इसी ने बताया है न ?"
"जी हां।"
"और आपने यकीन कर लिया ?"
रश्मि ने बहुत शान्त स्वर में कहा— "जी नहीं।"
"फ...फिर... ?” चटर्जी चौंक पड़ा।
“ऐसी कहानी तो कोई बहुरूपिया भी सुना सकता था , इसीलिए मैंने अपने तरीके से जांच की कि ये वही हैं या नहीं , और हर जांच में ये खरे उतरे।"
"कैसी जांच ?"
“मैंने इनसे ढेर सारे सवाल किए , जिनके जवाब केवल सर्वेश को ही मालूम हो सकते हैं , पति-पत्नी के बीच ऐसी सैंकड़ों गुप्त बातें होती हैं , जिन्हें उन दोनों के अलावा कोई नहीं जान सकता—मसलन बेडरूम की बातें और ऐसी हर जांच में ये खरे उतरे हैं—शायद पुरुष को उसकी पत्नी से ज्यादा कोई नहीं जानता और अब मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि ये ही मेरे पति हैं , वे—जिन्हें मृत समझ लिया गया था …।"
एक लम्बी और ठंडी सांस भरी चटर्जी ने , बोला— “लगता है रश्मि बहन कि आप इस बहुरूपिए और जालसाज के द्वारा पूरी तरह ठग ली गई हैं।"
"आपको गलतफहमी है।"
"भ्रम का शिकार तो आप हो गई हैं , इस दरिन्दे की हकीकत सुनेंगी तो आपके पैरों तले से जमीन निकल जाएगी—सर्वेश बनकर यहां , एक और संगीन जुर्म कर चुका है यह, एक विधवा को सुहागिन बनाने का जुर्म—धोखे में डालकर गीता-सी पाक एक विधवा का सर्वस्व लूटने का जुर्म , इससे गिरा हुआ आदमी मैंने जिन्दगी में नहीं देखा।"
"म.......मैँ समझी नहीं ?"
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