RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
डॉली का दिल तभी से 'धक-धक ' कर रहा था , जब से उसने मैनेजर के कमरे में होने वाली बातें सुनी थीं। जहां से उसे यह पता लगा था कि जिससे वह अपना दिल खोल बैठी है , जिसे अपना राज बता दिया है , वह सर्वेश नहीं कोई बहुरूपिया है , वहीं अपने बारे में इंस्पेक्टर चटर्जी के विचार सुनकर उसके होश उड़ गए थे।
यह महसूस करके ही उसकी हालत पतली हुई जा रही थी कि पुलिस की नजर मुझ पर है और वे मुझे उस बहुरूपिए का साथी समझ रहे हैं—उफ्फ—मैं उससे मिली ही क्यों—सर्वेश समझकर मैंने उसे राज क्यों बता दिया—पता नहीं वह कम्बख्त कौन है , किस चक्कर में है—उसके साथ व्यर्थ ही मैं भी फंस जाऊंगी।
अचानक उसके दिमाग में एक तरकीब आई।
उसने जल्दी से एक पैड और बाल-पैन उठाया—लिखा—
मैँ जान चुकी हूं कि तुम सर्वेश नहीं हो।
सुनो , दीवान और चटर्जी नाम के दो इंस्पेक्टर यहां आए—साठे जी से मिले , उनके पास तुम्हारी राइटिंग थी , जिसे चार महीने पहले सर्वेश द्वारा तैयार किए गए रजिस्टरों से मिलाकर वे जान गए हैं कि तुम सर्वेश नहीं हो—कमरे में साठे जी से होने वाली सारी बातें मैंने भी छुपकर सुन ली हैं।
मैं नहीं जानती कि तुम किस चक्कर में हो , मगर इतना जान गई हूं कि तुम जिस चक्कर में हो , सफल नहीं हो सकोगे—साठे जी और पुलिस तुम्हारी हकीकत जान गए हैं। उनकी योजना यह बनी है कि तुम पर तुम्हें सर्वेश ही होना जाहिर करके यहां सर्वेश का काम दे दिया जाए—पुलिस की नजर हर पल तुम पर रहेगी और केवल तुम्हें फंसाने के उद्देश्य से ही यह साजिश की जा रही है , अत: तुम अपने किसी मकसद में हरगिज कामयाब नहीं हो सकोगे—खैरियत चाहते हो तो सर्वेश का यह चोला उतार फेंको , जितनी जल्दी हो सके देहली से बाहर भाग जाओ , अगर तुमने ऐसा न किया तो निश्चय ही पुलिस के हत्थे चढ़ जाओगे।
पत्र लिखने के बाद उसने एक बार पढ़ा।
उसे यकीन हो गया कि इस पत्र को पढ़ने के बाद बहुरूपिया एक पल के लिए भी देहली में नहीं ठहरेगा और सर्वेश बना रहकर अपने किसी उद्देश्य में सफल होने का भूत तो उसके दिमाग से उतर ही जाएगा।
यही डॉली चाहती थी।
जब वही न रहेगा तो मामला आगे बढ़ेगा ही नहीं और जब झमेला ही खत्म हो जाएगा तो वह हर झमेले से बाहर हो जाएगी—यही सब सोचकर उसने अपने अत्यन्त विश्वसनीय वेटर को बुलाया और पत्र को एक लिफाफे में बन्द करती हुई बोली— “इस लिफाफे को तुम इसी समय सर्वेश के घर पहुचा दो।"
'"ओ oके o मैडम।" कहकर वेटर ने लिफाफा ले लिया।
चारों तरफ़ देखती हुई डॉली ने कहा— “अब तुम जाओ।"
जाने के लिए अभी वेटर मुड़ा ही था कि मुख्य द्वार खुला , रंगा-बिल्ला होटल के अन्दर प्रविष्ट हुए—उन पर दृष्टि पड़ते ही डॉली का दिल एक बार बहुत जोर से धड़का।
'धक् '
और फिर धड़कनें मानो रुक गईं।
सिट्टी-पिट्टी गुम ही गई डॉली की—मूर्खों की तरह उधर ही देखती रह गई वह , पलकें तक जैसे रंगा-बिल्ला को देखने के बाद झपकना भूल गई थीं।
वे दोनों आदमी नहीं , जिन्न नजर जाते थे—सचमुच के जिन्न।
पांच फुट दस इंच।
वे इस वक्त भी अपना परम्परागत लिबास यानि काले कपड़े पहने हुए थे , पैरों में चमकदार काले जूते जो दर्पण का भी काम कर सकें—यह महसूस करके डॉली के होश उड़ गए कि वे काउण्टर की तरफ ही चले आ रहे हैं।
चलते समय उनके कदम बिल्कुल साथ उठते थे—परेड करते जवानों की तरह।
उनकी जलती हुई आंखों को डॉली ने अपने चेहरे पर स्थिर महसूस किया—डॉली का चेहरा स्वयं ही पीला-जर्द पड़ गया। जाने क्यों किसी अनहोनी की आशंका से डॉली का दिल सूखे पत्ते-सा कांपने लगा था , स्वयं वेटर भी उन्हें देखकर ठिठक गया था।
डॉली दांत भींचकर गुर्राई—“त.....तुम जाओ बेवकूफ , यहां क्यों खड़े हो ?"
वेटर जैसे किसी मोहजाल से बाहर निकला।
लिफाफे को जेब में रखते हुए अभी उसने पहला कदम आगे बढ़ाया ही था कि नजदीक पहुंचकर रंगा ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर पूछा—"कहां जा रहे हो ?"
"ज....जी....? ” वेटर के प्राण खुश्क ही गए।
डॉली को काटो तो खून नहीं।
बिल्ला ने वेटर से लिफाफा लेते हुए कहा— "ये क्या है ?"
डॉली का सिर चकरा गया , चेहरा पीला-जर्द—ऐसी इच्छा हुई कि वह झपटकर बिल्ला के हाथ से लिफाफा छीन ले , मगर ऐसा करने की हिम्मत उसमें दूर-दूर तक नहीं थी , फिर भी लड़खड़ाते-से स्वर में उसने कहा— “ अ..आओ रंगा-बिल्ला , मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकती हूं ?"
"पहले यह देखते हैं कि ये वेटर तेरी क्या सेवा कर रहा था ?" कहने के साथ ही बिल्ला ने एक झटके से लिफाफा खोल लिया।
"न...नहीं...।" डॉली चीख पड़ी—“उ.....उसमें तुम्हारे मतलब की कोई चीज नहीं है ….प...प्लीज़—उसे मत खोलो बिल्ला।"
रंगा बोला —“ डॉली कुछ ज्यादा ही चीख रही है बिल्ला , इसमें शायद हमारे ही मतलब की कोई चीज है।"
बिना कुछ कहे बिल्ला ने पत्र निकाल लिया।
डॉली की आंखों के सामने अपना लिखा एक-एक शब्द चकरा उठा , दिमाग घूम गया उसका। आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा , डॉली को लगा कि वह अभी चकराकर गिर पड़ेगी।
"प...प्लीज , उसे मत पढ़ो बिल्ला।" मौत का खौफ डॉली पर कुछ इस तरह हावी हुआ कि वह गिड़गिड़ाती हुई रो पड़ी।
पत्र पढ़ते-पढ़ते रंगा-बिल्ला के चेहरे क्रूरतम हो उठे , आंखों में उभर आई हिंसक चमक।
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मुर्गी के अण्डे जितना बड़ा वह एक अण्डाकार गोला था , देखने मात्र से वह कोई छोटा बम-सा नजर आता था। मुश्किल से एक मिनट पहले उसके अन्दर से 'पिंग-पिंग ' की उतनी ही धीमी आवाज निकली थी , जितनी "टेबल वॉच ' से प्रत्येक सेकंड निकलती है। इस आवाज़ के साथ ही अण्डाकार बम के उस स्थान पर दो बार हरे रंग का एक नन्हां-सा बल्ब जलकर बुझ गया था—जहां छोटा-सा परदर्शी शीशा लगा हुआ था।
वह अण्डाकार बम जैसी वस्तु युवक और विशेष के बीच सेन्टर टेबल पर रखी थी। विशेष अपनी बड़ी-बड़ी और मासूम आंखों में दिलचस्पी लिए उसे ध्यान से देख रहा था।
जबकि युवक के होंठों पर बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी।
कमरे में खामोशी छाई रही और पांच मिनट गुजरते ही 'पिंग-पिंग ' की आवाज़ के साथ हरा बल्ब पुन: लपलपाया।
"बस।" युवक ने विशेष को बताया— “ फिर पांच मिनट बाद हर बल्ब इसी आवाज के साथ खुद-ब-खुद लपलपाएगा।"
"क्या शानदार खिलौना है, पापा। ”
"इसे हम बाजार से नहीं लाए हैं वीशू, खुद बनाया है।"
“आपने ?”
"हां।”
विशेष ने खुश होते हुए पूछा—"यह खिलौना आपने मेरे लिए बनाया है न पापा ?"
"सॉरी बेटे , नहीं।"
"फिर ?”
"तुम तो अभी बहुत छोटे हो वीशू, यह खिलौना हमने बड़े और गन्दे बच्चों के लिए बनाया है। वे इस बल्ब के जलने-बुझने से पूरी तरह डर सकते हैं।"
"इसमें भला डरने की क्या बात है, पापा ?"
कुछ बताने के लिए युवक ने अभी मुंह खोला ही था कि किसी ने मकान के मुख्य द्वार पर दस्तक दी , दोनों ही का ध्यान भंग हो गया , युवक ने अण्डाकार बम-सी नजर आने वाली वस्तु जेब में रखते हुए कहा— "जरा देखना वीशू—कौन है ?"
विशेष कमरे से निकलकर मुख्य द्वार की तरफ दौड़ गया।
युवक ने आगे बढ़कर एक मेज की दराज खोली , दराज से उसने एक इलेक्ट्रिक स्विच निकालकर कोट की ऊपरी जेब में डाल लिया।
अभी वह मुड़ा ही था कि कमरे में दाखिल होते हुए विशेष ने सूचना दी— "आपके होटल से एक वेटर आया है पापा , कहता है कि उसे डॉली मेमसाब ने भेजा है।"
सुनते ही रोमांच की एक तेज लहर उसके समूचे जिस्म में दौड़ गई। उसे लगा कि अब कुछ ही देर बाद दुश्मनों से वास्तविक जंग शुरू होने वाली है—उसने डॉली से रंगा-बिल्ला की सूचना भेजने के लिए कहा था और यह वेटर शायद यही सूचना लेकर आया है। यह सोचते ही वह तेजी के साथ कमरे से बाहर की तरफ लपका।
आंगन पार करते वक्त कदाचित कदम ठीक न पड़ने की वजह से वह कई बार लड़खड़ा गया , किन्तु गिरा नहीं। दरवाजे पर पहुंचकर उसने वहां खड़े वेटर से पूछा— “कहो , डॉली ने क्या संदेश भिजवाया है ?"
वेटर ने चुपचाप एक कागज उसकी तरफ बढ़ा दिया।
युवक ने व्यग्रतापूर्वक खोलकर उसे पढ़ा , लिखा था— “मैंने पता लगा लिया है सर्वेश कि इस वक्त रंगा-बिल्ला कहां हैं—तुम इस वेटर के साथ चले आओ—यह तुम्हें मेरे पास पहुंचा देगा , फिक्र न करना—वेटर मेरा विश्वसनीय है।"
पत्र जेब में डालते हुए युवक ने घूमकर विशेष से कहा —“हम जरा काम से जा रहे हैं, वीशू बेटे—दरवाजा अन्दर से बन्द कर लो।"
वीशू के स्थान पर वहां रश्मि की आवाज गूंजी— “काम से तो तुम जा रहे हो , लेकिन जरा संभलकर चला करो—आंगन में तुम्हारे कदम ठीक नहीं पड़ रहे थे।"
"क...क्या मतलब ?" कुछ भी न समझने की स्थिति में चौंकते हुए युवक ने पूछा।
अपने कमरे की तरफ जाने वाले जीने की एक सीढ़ी पर खड़ी रश्मि ने उसी गम्भीर और सौम्य स्वर में कहा— “तुम्हारे दोनों जूतों की एड़ियां घिस गई हैं—शायद इसीलिए गैलरी पार करते समय कई बार लड़खड़ा गए—मेरी सलाह है कि एड़ियां ठीक करा लो , वरना कहीं मुंह के बल गिर पड़ोगे।"
युवक रश्मि के कटाक्ष , व्यंग्य अथवा पहेली जैसे उन शब्दों का अर्थ नहीं समझ सका—रश्मि की बात का अर्थ पूछने के लिए उसके पास समय नहीं था , अतः वेटर से बोला।
"चलो।”
वह बाहर निकल गया। विशेष ने दरवाजा बन्द कर लिया।
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