RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"एक प्रकार से यदि यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि मैं सर्वेश की हत्या के सम्पूर्ण रहस्य से परिचित हो चुका हूं—मेरे और उनके बीच जंग भी जारी हो चुकी है।"
"जो तुम जानते हो , वह मुझे भी बताओ।" रश्मि ने सपाट स्वर में पूछा।
युवक ने संक्षेप में गोदाम में घटी घटना उसे सुना दी। सुनने के बाद रश्मि बोली — “अब तुम आगे क्या करने का विचार रखते हो ?"
"मेरा अगला आक्रमण शायद सीधा 'शाही कोबरा ' पर होगा।"
"श... 'शाही कोबरा ' पर। मगर उसे तो तुम अभी जानते भी नहीं हो ?”
युवक की आंखें शून्य में स्थिर हो गईं—बोला— “ भले ही विश्वासपूर्वक न जानता होऊं , मगर एक व्यक्ति पर मुझे शक जरूर है।"
"क...किस पर ?” रश्मि एकदम व्यग्र हो उठी।
"यह मैं तुम्हें शायद आज की रात गुजर जाने के बाद बता सकूंगा।" कहते हुए युवक की दृष्टि रश्मि की गर्दन पर चिपक गई।
बड़े ही विस्फोटक ढंग से युवक के दिमाग में विचार टकराया कि—'अगर वह रश्मि की गर्दन दबा दे तो क्या होगा।'
वह मर जाएगी।
युवक पर जुनून सवार होने लगा।
एकाएक ही वह सोचने लगा कि यदि रश्मि के जिस्म से सारे कपड़े उतार दिए जाएं तो यह बहुत खूबसूरत लगेगी।
उसके दिलो-दिमाग में बैठा कोई चीखा—उतार दे—'इसके जिस्म से कपड़े का एक-एक रेशा नोंचकर फेंक दे—गर्दन दबा दे इसकी—मार डाल—फर्श पर पड़ी इसकी निर्वस्त्र लाश बहुत सुन्दर लगेगी। '
युवक के चेहरे ने अभी वीभत्स होना शुरू किया ही था कि— "हैलो पापा!"
कमरे में दाखिल होते हुए विशेष ने कहा।
युवक के जेहन में मचल रहे भयानक विचार उसी तरह छिन्न-भिन्न हो गए जैसे गोली के दीवार से टकराते ही छर्रे बिखर जाते हैं।
विशेष अभी-अभी स्कूल से आया था।
¶¶
उस वक्त रात के दो बज रहे थे। चारों तरफ अंधेरे और सन्नाटे का साम्राज्य था और अचानक ही अंधेरे में से प्रकट होकर युवक लारेंस रोड पर स्थित न्यादर अली के बंगले के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ता नजर आया—बंगले का लोहे वाला द्वार बन्द था और उसके दूसरी तरफ खड़ा सशस्त्र चौकीदार बीड़ी में कश लगा रहा था।
युवक दरवाजे के नजदीक पहुंचा।
“कौन है ?" चौंकते हुए चौकीदार ने टॉर्च निकालते हुए पूछा।
युवक ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा— "क्या तुम मुझे नहीं पहचानते हो?”
जवाब में नजदीक आते हुए चौकीदार ने टॉर्च आन कर दी—टॉर्च के तीव्र झाग झमाके से युवक के चेहरे पर आ गिरे। युवक की आंखें चुंधिया गईं।
"त......तुम कौन हो भाई ?" बिल्कुल नजदीक जाकर चौकीदार ने पूछा।
"सिकन्दर …।" युवक ने एक झटके से कहा।
"म …मालिक ?” चौकीदार के कण्ठ से चीख-सी निकल गई— “ अ...अरे , आप तो सचमुच मालिक ही हैं …म...मगर इस वक्त—ये आपने क्या हालत बना रखी है, छोटे मालिक ?"
युवक जानता था कि दूसरे नौकरों की तरह यह चौकीदार भी न्यादर अली का पढ़ाया हुआ है। अत: बोला—"ज्यादा चीखने-चिल्लाने की कोशिश मत कर , मेरे पीछे पुलिस पड़ी हुई है—दरवाजा खोलो , मैं डैडी से कुछ बात करने आया हूं।"
हड़बड़ाते हुए चौकीदार ने बीड़ी एक तरफ फेंककर ताला खोल दिया—युवक तेजी के साथ लॉन के बीच बनी सड़क पर से गुजरता हुआ बंगले के द्वार पर पहुंचा। मुख्य द्वार पर ताला लगाने के बाद लपकता हुआ चौकीदार भी उसके नजदीक आ गया था।
युवक ने अपने बाएं हाथ की अंगुली कॉलबेल पर रख दिया।
अन्दर कहीं पियानो-सा बजा।
कई बार की कोशिश के बाद कहीं जाकर दरवाजा खुला। इस बार बंगले के जिस नौकर ने दरवाजा खोला , युवक उसे भी जानता था। आखिर इस बंगले में काफी दिन तक रह चुका था वह—इस नौकर से भी लगभग वैसा ही वार्तालाप हुआ जैसा चीकीदार से हुआ था—फिर यह नौकर और चौकीदार उसे दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे के दरवाजे पर ले गए।
नौकर ने दस्तक देते हुए न्यादर अली को 'मालिक ' कहकर पुकारा।
अन्दर लाइट ऑन हुई। दरवाजा खुला और नाइट गाउन की डोरी बांधते हुए न्यादर अली ने पूछा— "क्या बात है ?"
अभी उनके सवाल का कोई जवाब भी नहीं दे पाया था कि न्यादर अली युवक को देखकर चौंका और स्वयं ही कह उठा—"य...ये कौन है ?"
“अ...आपने भी मुझे नहीं पहचाना ?” युवक के लहजे में जबरदस्त व्यंग्य था।
“क्या मतलब ?"
“ऐसा बाप मैंने पहले कभी नहीं देखा , जो बेटे दाढ़ी-मूंछ , चश्मे और बदली हुई हेयर स्टाइल में पहचान ही न सके।"
"क...क्या तुम सिकन्दर हो , अरे हां …तुम सिकन्दर ही तो हो।" न्यादर अली एकदम बौखला-सा उठा था— “ मगर तुम इस वक्त यहां—इतने दिन कहां रहे तुम—और तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है ?"
"आप तो जानते ही हैं कि पुलिस मुझे तलाश कर रही है।"
"हां।"
"उसी से बचने के लिए यह भेष बदल रखा है।"
"म...मगर तू चिंता क्यों करता है बेटे , मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा—बड़े-से-बड़ा वकील तुझे बचाने के लिए अदालत में खड़ा कर दूंगा—शायद तू जानता नहीं है—जिसकी हत्या तूने की है , वह खुद मुजरिम थी—रूपेश और उसने मिलकर तेरे खिलाफ एक षड्यन्त्र रचा था—तुझे जॉनी बनाने का षड्यन्त्र। वे कमीने हमारे सिकन्दर को हमसे छीनना चाहते थे—तूने जो कुछ किया , अच्छा ही किया—तू इस तरह छुपता क्यों फिर रहा है बेटे , फिक्र मत कर—उस केस में दुनिया का कोई कानून तुझे सजा नहीं दे सकेगा।"
"मैं उसी सम्बन्ध में बातें करने आपके पास आया हूं।"
"आजा बेटे—आ।" कहकर न्यादर अली ने उसे कमरे में खींच लिया। नौकर और चौकीदार से बोला— “तुम दोनों जाओ , सिकन्दर के लौटने का जिक्र किसी से न करना।"
वे चले गए।
युवक ने घूमकर दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
न्यादर अली इस वक्त बहुत खुश नजर आ रहा था। बोला— “तूने अच्छा ही किया बेटे , जो यहां आ गया—हम तेरे बारे में सोच-सोचकर पागल हुए जा रहे थे। ”
अचानक ही उसकी तरफ़ पलटकर युवक गुर्राया—"अब यह ‘बेटा-बेटा ' की रट लगाने का नाटक बन्द करो मिस्टर 'शाही कोबरा ' और अपनी असलियत पर आ जाओ।"
"क...क्या मतलब ?" न्यादर अली चिहुंक उठा।
"क्यों! ” युवक गुर्राया— “ अपना असली नाम सुनकर पैरों तले से जमीन खिसक गई ?"
"य...ये तू कैसी बात कर रहा है, सिकन्दर बेटे? हमारा नाम 'शाही कोबरा '? य...ये भी भला कोई नाम हुआ और फिर हमारे पैरों के नीचे से जमीन क्यों खिसकेगी ?"
"अच्छी एक्टिंग कर लेते हो।"
"ए....एक्टिंग ?”
युवक ने तुरन्त ही जेब से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया , गुर्राकर—"अब अगर तुमने जरा भी चूं-पटाक की या पटरी पर नहीं आए तो मैं तुम्हारा भेजा उड़ा दूंगा।"
न्यादर अली विस्फारित नेत्रों से रिवॉल्वर को देखता रह गया। चेहरा एकदम सफेद पड़ गया था उसका , बोला—“त.....तू हमें मार देगा ?"
"हां।"
"लगता है बेटे कि तू किसी बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है।”
"गलतफहमी के शिकार तो तुम हो मिस्टर 'शाही कोबरा ', तुम अपने दिमाग में यह वहम पाल बैठे हो कि मैं तुम्हारे षड्यन्त्र में फंसकर खुद को सिकन्दर समझने लगूंगा।"
"स...सिकन्दर तो तुम हो ही।”
"मैं बहुत कुछ जान चुका हूं बेटे , और इसीलिए तुम्हारा कोई नाटक मेरे सामने नहीं चलेगा—बाकी बातें तो बाद में होंगी , पहले तुम मुझे यह बताओ कि होटल 'मुगल महल ' के मालिक तुम हो या नहीं ?"
“ह....हां बेशक हम ही हैं।"
"और मैं तुम्हारा बेटा हूं—इसीलिए 'मुगल महल ' का मैनेजर मुझे भी जरूर जानता होगा।"
“हां , जानता है—हालांकि तुम 'मुगल महल ' कभी गए नहीं हो , मगर साठे तुम्हें अच्छी तरह जानता है—तुम्हारे दोस्तों में से है वह।"
"साठे मेरा दोस्त है ?" युवक के लहजे में व्यंग्य-ही-व्यंग्य था।
"हां। ”
"फिर भी वह मुझे नहीं पहचानता—इतना ही नहीं , साठे यह भी कहता है कि तुम्हारा सिकन्दर नाम का बेटा कभी कोई था ही नहीं।"
न्यादर अली चीखता गया— "स...साठे भला ऐसा कैसे कह सकता है ?”
"उसने कहा है बेटे—किसी और से नहीं , सीधे मुझसे कहा है—उसी मुगल होटल में एक कमरा है-कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच।"
"ह...होटल में तो बहुत-से कमरे हैं।"
"वे सब किराए पर दिए जाते हैं , मगर पांच-सौ-पांच कभी नहीं दिया जाता—साल-से-साल तक वह तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे ही नाम से बुक रहता है।"
“हमारे नाम से! भला अपने ही होटल में हम कमरा बुक क्यों कराएंगे ?"
"यानि वह कमरा तुमने बुक नहीं करा रखा है ?"
"बिल्कुल नहीं।"
युवक का चेहरा गुस्से के कारण तमतमा उठा , बोला—"तुम्हें यह जानकर दुख होगा मिस्टर 'शाही कोबरा ' कि तुम्हारे ही गैंग का एक खास सदस्य रंगा इस बारे में मुझे सब कुछ बता चुका है।"
"हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि तुम क्या बक रहे हो ?"
युवक गुर्राकर बोला—"इस रिवॉल्वर से निकली गोली के भेजे से पार होते ही तुम्हारी समझ में सब कुछ आ जाएगा—तुम्हारे होटल के नीचे तहखाना है—रास्ता उस कमरे से होकर जाता है जो तुम बुक रखते हो—उस तहखाने के अन्दर एक गैंग बसता है—और फिर भी तुम उस सबसे अनभिज्ञता प्रकट कर रहे हो—इसी से जाहिर है कि 'शाही कोबरा ' तुम खुद हो—उस गैंग के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी करते हो।"
"या खुदा , हम क्या सुन रहे हैं ?"
"एक और प्वाइंट भी है मेरे पास।" युवक की आंखें जलने लगी थीं— "क्या तुम बता सकते हो कि अपने ही कथित बेटे सिकन्दर को षड्यंत्र का शिकार बनाने वाले रूपेश की जमानत तुमने क्यों ली ?"
"उससे ऐसा कुछ जानने के लालच में जो कि उसने युवक को न बताया हो। "
"यह झूठ है-रूपेश की जमानत तुमने इसीलिए ली , क्योंकि वह भी तुम्हारे ही गैंग का एक सदस्य है—यह रहस्य भी रंगा से मुझे पता लग चुका है।"
"य...यकीन करो, सिकन्दर , हमारे और तुम्हारे बीच दरार पैदा करने के लिए शायद कोई षड्यंत्र रच रहा है।"
उसकी बात पर ध्यान दिए बिना युवक ने कहा—"मुझे दो प्रमुख सवालों का जवाब चाहिए बेटे—पहला यह कि तुमने सर्वेश की हत्या क्यों की और दूसरा यह कि मुझे सिकन्दर बनाने की कोशिश क्यों कर रहे हो ?”
न्यादर अली ने कुछ कहने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि—धांय।"
एक फायर की आवाज ने सारे बंगले को झनझनाकर रख दिया।
न्यादर अली के कण्ठ से चीख निकल गई। गोली उसके सिर के परखच्चे उड़ा गई थी और बौखलाकर युवक ने जब रोशनदान की तरफ देखा तो उसे चांदी के-से चमकदार लिबास की झलक दिखाई दी। केवल एक क्षण के लिए—अगले ही पल वह गायब था।
युवक ने चमकदार लिबास वाले के हाथ में रिवॉल्वर देखा था।
इधर न्यादर अली 'धड़ाम ' से फर्श पर गिरा , उधर रिवॉल्वर संभाले युवक कमरे की एक बन्द खिड़की पर झपटा। अभी वह खिड़की को खोल ही रहा था कि किसी ने दरवाजा जोर से खटखटाया।
उसके जेहन में बड़ी तेजी से यह विचार कौंधा कि नौकर और चौकीदार उसे ही हत्यारा समझेंगे—यह समझते ही वह कुछ और ज्यादा बौखला गया—चमकदार लिबास वाले का पीछा करने के स्थान पर उसके दिमाग में खुद ही वहां से भाग निकलने का विचार उभरा।
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