Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:38 PM,
#67
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"न..नहीं रूपेश।" युवक गिड़गिड़ा उठा—"व...वीशू ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है—तुम्हारा मुजरिम मैं हूं—बदला लेना है तो मुझसे लो—वीशू मेरा कोई नहीं है—एक विधवा का आखिरी सहारा है वह—उसे छोड़ दो।"
"हुंह।" दिल में भरी घृणा जब रूपेश ने अपने चेहरे पर उड़ेली तो उसका डरावना चेहरा कई गुना ज्यादा वीभत्स हो गया। गुस्से में सुलगता हुआ वह बोला— “उसे छोड़ हूं जिसकी मौत पर तू वैसे ही तड़पेगा जैसा माला की मौत पर रूपेश तड़पा था—मरेगा तू भी कुत्ते , तेरी मौत का मंजर भी मैं अपनी आँखों से देखूंगा , मगर उसमें यह मजा नहीं आएगा , जो बच्चे की मौत पर तेरी तड़प देखने में आएगा।"
“ऐसा मत करो रूपेश—प्लीज।"
"धांय।" एक फायर करने के साथ ही रूपेश ने अट्ठहास लगाया।
युवक पूरी ताकत से चीख पड़ा— "न.....नहीँ।"
विशेष के एक पैर की रस्सी टूट चुकी थी। अब वह एकमात्र पैर पर एक कुन्दे में झूलता चीख रहा था— "मुझे बचा तो पापा....पापा।"
रूपेश हंसा— "हा-हा-हा.....उसे देख कुत्ते …देख उसे।"
"प...प्लीज़ , वीशू को छोड़ दो....उसे जाने दो।" युवक पागलों की तरह रूपेश के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाया , परन्तु रूपेश के मुंह से निकलने वाले खूनी कहकहे बुलन्द और बुलन्द होते चले गए। उसका रिवॉल्वर वाला हाथ दूसरा फायर करने की पोजीशन में आया और—धांय।”
हॉल में फायर की आवाज गूंजी , मगर ऐन वक्त पर दीवाने-से हो गए युवक ने रूपेश के दोनों पैर पकड़कर खींच लिए थे। परिणामस्वरूप न केवल निशाना चूक गया, बल्कि खुद रूपेश चारों खाने चित्त फर्श पर गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से निकलकर दूर तक फिसलता चला गया।
जिन्दगी और मौत की परवाह किए बिना युवक ने रूपेश पर जम्प लगा दी—सारे हॉल में सनसनी-सी दौड़ गई। दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र गार्ड्स ने गनें सीधी कर लीं और तभी मंच से बॉस की आवाज गूंजी—"कोई बीच में नहीं आएगा।"
सभी लोग हैरत से मंच की तरफ देखने लगे।
"हम उसका हाथ जरा देखना चाहते हैं , जिसने एक साथ रंगा-बिल्ला का न केवल मुकाबला किया , बल्कि बिल्ला को मार भी डाला—सुनो रूपेश , अपने मुजरिम से निपटने का हम तुम्हें पूरा मौका दे रहे हैं।"
रूपेश और युवक में मल्लयुद्ध तो छिड़ चुका था।
बॉस की उक्त घोषणा से युवक का साहस बढ़ा। छत पर उल्टा लटका हुआ विशेष बुरी तरह चीख रहा था , मगर फिलहाल उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था।
धड़कते दिल से सभी रूपेश और युवक को देख रहे थे—उन्हें , जो एक-दूसरे के खून के प्यासे हुए जंगली भेड़ियों की तरह भिड़े हुए थे—लड़ने के तरीके निश्चय ही युवक ज्यादा जानता वा , किन्तु कम रूपेश भी नहीं था।
शारीरिक ताकत में युवक से कुछ इक्कीस ही था।
रूपेश का दांव लगा। युवक को उसने अपने दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठा लिया। किसी दांव का इस्तेमाल करने के लिए युवक अभी हाथ-पांव मार ही रहा था कि रूपेश ने उसे पूरी ताकत से फर्श पर दे मारा।
युवक का सिर बहुत ही जोर से फर्श पर टकराया।
रंगबिरंगी चिंगारियों के बाद मस्तिष्क पर गहरे काले रंग की चादर तनती चली गई और बेहोश होकर वह एक तरफ लुढ़क गया।
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Re: Hindi novel विधवा का पति
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Post by Masoom » 01 Mar 2020 18:54

जब चेतना लौट रही थी , तब उसने महसूस किया कि इस वक्त वह ढेर सारी रस्सियों के द्वारा मजबूती से एक थम्ब के साथ बंधा हुआ है—उसके मस्तिष्क पटल पर बेहोश होने से पूर्व के दृश्य उभरने लगे।
एक फियेट की ड्राइविंग सीट पर वह स्वयं था।
बहुत तेज , अंधाधुंध ड्राइविंग कर रहा था वह—तभी सामने से एक ट्रक आया। उससे भी कहीं ज्यादा तेज और अंधाधुंध।
बचने के लिए उसने स्टेयरिंग घुमाया , मगर ट्रक बिल्कुल रांग साइड पर आ गया।
एक पल …सिर्फ एक पल के लिए वह ड्राइवर का चेहरा देख पाया था , क्योंकि अगले ही पल कर्णभेदी विस्फोट के साथ कार और ट्रक
में आमने-सामने की टक्कर हो गई।
बस—उसके बाद उसे अस्पताल में होश आया था।
डॉक्टरों ने उससे नाम पूछा। वह बता नहीं सका—डॉक्टर इस नतीजे पर पहुंचे कि वह अपनी याददाश्त गंवा बैठा है—सचमुच उसे कुछ भी याद नहीं रहा था।
मगर अब उसे सब कुछ याद आ रहा था।
अपना नाम भी।
"आंखें खोलो बेटे।" व्यंग्य में दूबी एक आवाज उसके कानों से टकराई।
युवक की विचार श्रृंखला भंग हो गई—आवाज़ उसे परिचित-सी लगी थी—दर्द से कराहते हुए उसने आंखें खोल लीं—पहले उसे सब कुछ धुंधला-धुंधला-सा नजर आया—युवक को स्थान जाना-पहचाना-सा लगा।
जैसे यहां पहले भी आया हो।
"पापा...पापा।" एक बच्चे की पुकार सुनकर उसने छत की ओर देखा। बच्चे को उसने पहचान लिया—वह विशेष था—अस्पताल में होश आने से लेकर पुन: बेहोश होने तक के सभी दृश्य चलचित्र के समान मस्तिष्क पटल पर तैर गए।
"उधर देखो बेटे , अपने पेट पर।" बॉस की आवाज सारे हॉल में गूंज गई और मंच की तरफ विशेष रूप से बॉस को देखकर उसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभर आए—घबराकर उसने अपने पेट की तरफ देखा।
पेट पर कपड़े की एक बैल्ट के साथ बम बंधा हुआ था।
इस बम का पलीता बहुत लम्बा था। हॉल के सबसे दूर वाले किनारे तक—वह इस बम और विशेष रूप से लम्बे पलीते का अर्थ नहीं समझ सका। हाथ-पैर आदि थम्ब के साथ बंधे थे , स्वेच्छा से हिल तक नहीं सकता था।
बॉस की आवाज गूंजी— “तुमने रंगा के माध्यम से एक खिलौने को बम कहकर हमें दूसरा कमाल दिखाया था और उसी के जवाब में अब हम तुम्हें तुम्हारे पेट पर बंधे बम का कमाल दिखाएंगे , मगर यह खिलौना नहीं है।"
युवक के जबड़े अजीब-से अन्दाज में कस गए थे।
“तुम्हारी मौत का यह तरीका 'शाही कोबरा ' ने चुना है—रूपेश अपने हाथ से पलीते के सिरे पर चिंगारी लगाएगा—वह चिंगारी पलीते पर धीरे-धीरे चलती हुई तुम्हारी तरफ बढ़ेगी और तुम्हारे देखते ही देखते बम तक पहुंच जाएगी—एक जबरदस्त विस्फोट होगा—और फिर तुम्हारे जिस्म के चीथड़े बिखर जाएंगे।"
मौत की ठंडी लहर के स्थान पर युवक के जिस्म में क्रोध की लहर दौड़ गई।
इस हॉल को , हॉल में मौजूदा एक-एक व्यक्ति को , यहां तक कि मंच पर मौजूद बॉस को भी जानता था वह। उसे अच्छी तरह याद आ गया कि जिस ट्रक से उसका एक्सीडेंट हुआ था—उसे वही गुल्लू नामक व्हाइट आई कैप वाला व्यक्ति ड्राइव कर रहा था।
युवक के दिमाग की सारी गुत्थियां सुलझती चली गईं। एक के बाद एक सारी वारदातें , सारी बातें उसे याद आती चली गईं। जाने किस बात को याद करके उसका सारा जिस्म असीम क्रोध एवं अत्यधिक उत्तेजनावश कांप उठा।
तभी बॉस ने कहा—"पलीते में आग लगा दो रूपेश।"
पलीते के सिरे के पास खड़े रूपेश ने लाइटर जलाया।
“ठहरो।" युवक के कण्ठ से एक विशेष भर्राटदार आवाज निकली और इस आवाज को सुनकर न सिर्फ रूपेश लड़खड़ा गया , पंक्तिबद्ध खड़े गुण्डे और दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र गार्ड उछल पड़े , बल्कि स्वयं बॉस के पैरों के तले से जमीन खिसक गई।
हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के मुंह से हैरत में डूबा स्वर निकला—"श...शाही कोबरा ?"
"हां।" युवक के मुंह से वही भर्राहटदार आवाज निकली थी— “मैं 'शाही कोबरा ' हूं—ध्यान से मेरी आवाज सुनो— मैं ही 'शाही कोबरा ' हूं।"
बुरी तरह आतंकित और बौखलाया हुआ बॉस चीख पड़ा—"ये झूठ बोलता है।"
"झूठा तू है कुत्ते—गद्दार—नमकहराम।" थम्ब से बंधा युवक दांत भींचकर गुर्रा उठा— “ इसे पकड़ लो रूपेश , यहां से भागने न पाए।"
"बेवकूफी मत करना रूपेश—यह इस हरामजादे की नई चाल है—जाने कहां से इसने 'शाही कोबरा ' की आवाज की नकल करनी सीख ली है। मैं कहता हूं क्विक , पलीते में आग लगा दो।"
"खबरदार रूपेश , यह गद्दार है—हमारी याददाश्त गुम हो गई थी—हमें मारकर यह सारे गैंग पर अपना कब्जा...।"
"धांय। मंच की ओर से एक शोला लपका।
हैरअंगेज ढंग से उछलकर गुल्लू युवक की ढाल बन गया। गोली गुल्लू के सीने में लगी और एक चीख के साथ वह वहीं शहीद हो गया।
गार्ड्स की गनें गरज उठीं।
सबका निशाना मंच पर मौजूद बॉस था , मगर गोलियां उसके चांदी के चमकदार लिबास से टकराकर छितरा गईं और अगले ही पल बॉस मंच के उसी कोने में विलीन हो गया , जिसमें से प्रकट हुआ करता था।
युवक चीख पड़ा— “वह नमकहराम भागने की कोशिश कर रहा है रूपेश , जल्दी से मंच पर पहुंचो—दाईं दीवार में एक स्विच प्लेट है—उस प्लेट का लाल रंग का बटन दबा दो , जल्दी करो।"
और रूपेश के जिस्म में जैसे बिजली भर गई।
एक ही पल पहले वह जिसकी जान का ग्राहक था , उस पल उसके आदेश का गुलाम की तरह पालन करता हुआ एक ही जम्प में मंच पर पहुंच गया।
"हमें मुक्त करो।" युवक ने जोर से कहा।
हॉल में मौजूद सभी व्यक्ति उसके आदेश का पालन करने के लिए लपक पड़े।
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Post by Masoom » 01 Mar 2020 18:54

सबसे पहले एक गार्ड ने उसके जिस्म से बहुत ही सावधानी के साथ बम अलग किया और फिर रस्सियों से मुक्त होते उसे देर नहीं लगी—इस बीच रूपेश उसके हुक्म का पालन कर चुका था। युवक ने आंधी-तूफान की तरह दौड़ लगाई।
"आप सब यहां रहें , मैं उस नमकहराम को आपके सामने ही सजा देना पसन्द करूंगा।"
कहने के तुरन्त बाद युवक ने मंच के उसी भाग में जम्प लगा दी , जिसमें बॉस गुम हुआ था। रूपेश सहित हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति हक्का-बक्का-सा खड़ा रह गया , जबकि मंच के उस दरवाजे को पार करने के बाद युवक एक बहुत ही संकरी गैलरी में दौड़ा चला जा रहा था। तीन मोड़ पार करने के बाद वह खूबसूरती से सजे एक छोटे कमरे में पहुंचा।
वहां एक डैस्क और डैस्क के पीछे दो टी ○ वी ○ रखे थे।
डैस्क पर बहुत-से बटन थे।
युवक ने जल्दी से उनमें से एक बटन दबा दिया , कमरे के बीच का एक छोटा हिस्सा सरसराकर हट गया , अब वहां चक्करदार लोहे की सीढ़ी नजर आ रही थी—आंधी-तूफान की तरह उतरता हुआ वह नीचे पहुंचा।
एक काफी चौड़ी गैलरी में वह भागा चला जा रहा था।
शीघ्र ही गैलरी के अंतिम सिरे पर पहुंच गया—वहीं , जहां चमकीले लिबास वाला बॉस इस्पात के बने एक दरवाजे का हैंडिल पकड़कर उससे जूझ रहा था। गैलरी के इस सिरे से उस सिरे तक शानदार कार्पेट बिछा हुआ था।
बॉस को यूं दरवाजे से जूझता देखकर युवक के होंठों पर पैशाचिक मुस्कान उभरी। अपने स्थान पर खड़ा होकर वह गुर्राया—"सात जन्म तक जोर लगाने के बावजूद वह नहीं खुलेगा साठे , उसका लॉक हॉल के मंच पर है और वह मैं बन्द करा चुका हूं।"
चमकीले लिबास वाले ने अपना नकाब उतारकर एक तरफ फेंक दिया , वह 'मुगल महल ' का मैनेजर साठे ही था। एक झटके से रिवॉल्वर निकालकर तानता हुआ गुर्राया— “वहीं रुक जाओ सिकन्दर , वरना मैं तुम्हें शूट कर दूंगा।"
सिकन्दर इस तरह मुस्कराया , जैसे किसी छोटे-से बच्चे ने खिलौना रिवॉल्वर दिखाकर उसे धमकी दी हो , बोला— "अब मैं याददाश्त खोया हुआ युवक नहीं बेटे , इस सारे 'डैन ' का मालिक हूं— 'शाही कोबरा '—मेरी इजाजत के बिना यहां एक पत्ता भी नहीं हिल सकता—फायर करने से पहले जरा अपने पीछे का नजारा देख लो।"
बौखलाकर साठे ने पीछे देखा और इसी क्षण सिकन्दर ने झुककर फर्श पर बिछे कार्पेट को एक झटका दिया , कार्पेट के उस किनारे पर खड़ा साठे चारों खाने चित्त गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गया था।
सिकन्दर ने किसी जख्मी गोरिल्ले की तरह उस पर जम्प लगाई। हवा में लहराकर वह सीधा साठे के ऊपर जा गिरा।
साठे महसूस कर रहा था कि वह मौत के जबड़े में फंस चुका है।
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