Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:41 PM,
#76
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
अपने कमरे में सर्वेश के फोटो के सामने हाथ जोड़े खड़ी रश्मि कह रही थी—म...मैँ अकेली हूं प्राणनाथ—बहुत अकेली हूं मैं—और तुमने बहुत बड़ी दुविधा में फंसा दिया मुझे—वह तुम्हारा हत्यारा है , तुम्हारा ही भाई भी और यह भी सच है कि तुम्हारे लाल को प्राणों की बाजी लगाकर बॉस के चंगुल से निकालकर लाया था वह …ऐसा कोई सलाहकार भी मेरे पास नहीं है , जो यह राय दे सके कि तुम्हारी यह अबोध गुड़िया उसके साथ क्या सुलूक करे—अगर उसे मार देती तो हो सकता है , तुम मुझसे नफरत करने लगते। कहते कि मेरे भाई को क्यों मारा तूने और बदला न लेती तो शायद यह कहते कि तू मेरी लाश पर खाई गई कसम का बदला भी न ले सकी रश्मि।"
कमरे में खामोशी छाई रही , सर्वेश मुस्करा रहा था।
दीवानी-सी रश्मि कहती चली गई—नहीँ जानती सर्वेश कि मैंने गलत किया है या सही , तुम्हारी इस नादान गुड़िया के छोटे से दिमाग ने जो निर्णय किया , वही मैंने अपना लिया—नहीं जानती कि वह कमीना जिसे जिंदगी से बहुत ज्यादा मोह है , मेरे द्वारा बख्श दिए जाने को सजा समझेगा भी या नहीं , परन्तु रश्मि को पूरा विश्वास है कि वह चाहे जहां रहे , पश्चाताप की जो आग उसके दिल में सुलग रही है , वह उसे जलाकर राख कर देगी।"
¶¶
सिकन्दर एक कागज पर अपने मनोभावों को उतार रहा था। उसने लिखा— “ अगर मैं किसी काल्पनिक उपन्यास का आदर्श नायक होता रश्मि , तो जरूर लिखता कि तुम्हारी दी हुई सजा ने मुझे अंदर तक झकझोंर डाला है और मैं तुमसे चीख-चीखकर मौत की भीख भी मांगता—तब भी तुम मुझे न मारतीं तो दहाड़ें मार …मारकर रोता और कहता कि नहीं रश्मि , मुझे इतनी सख्त सजा मत दो—पश्चाताप की आग में सुलगने के लिए अब मैं जी नहीं सकता—प्लीज , मुझे मार डालो।
"मगर न मैंने ऐसा कुछ किया है और न ही लिखूंगा-क्योंकि सचमुच मेरे मन में ऐसी कोई भावना नहीं है—मैँ बिल्कुल आम आदमी हूं—स्वार्थी—वह , जो अपनी ही नजर से पूरी तरह गिर जाने के बावजूद भी मरना नहीं चाहता—दरअसल आदर्श भरी बातें करना जितना आसान है , अमल करना उतना ही कठिन।
"मुझे जीवित छोड़कर अपनी समझ में तुमने मुझे 'सजा ' दी है—मगर मैं कहता हूं कि मुंहमांगी मुराद मिल गई है मुझे—मेरे उन्हीं प्राणों को बचा दिया है तुमने , जिन्हें बचाने के लिए प्रगति मैदान में मैं भागा था और जिन्हें बचाने के लिए मैंने अपने 'शाही कोबरा '' होने की हकीकत तुम्हें खुद नहीं बताई। जीवनदान मिलने पर मैं खुश हूँ में सारी भाग—दौड़ इसी के लिए कर रहा था।
"सम्भव है कि इन शब्दों को पढ़कर तुम्हें मुझसे कुछ और नफ़रत हो जाए या मुझे जीवित छोड़ देने के अपने फैसले पर तुम्हें गुस्सा जाए , मगर जब तुम यह पढ़ रही होगी , तब तक मैं तुम्हारे रिवॉल्वर की रेंज से बहुत दूर निकल चुका होऊंगा।
“स्वीकार करता हूं कि मैंने जो घृणित जुर्म किए हैं …वे अक्षम्य हैं , परन्तु फिर भी मरने की मेरी कोई इच्छा नहीं है—मेरे मरने से न तुम्हारा पति वापस मिलेगा , न वीशू का पापा और न ही मेरा भाई—फिर मैं क्यों मरूं ?
“हां , जो किया—उसके प्रायश्चित के रूप में मैं अपनी सारी चल-अचल सम्पति वीशू के नाम किए जा रहा हूं—इस आशय का बॉण्ड पेपर मैंने तैयार कर दिया है—सर्वेश के बदले में जो कुछ मैं तुम्हें दिए जा रहा हूं, मेरी नजर में वह सर्वेश से कुछ ज्यादा ही है। कम हरगिज नहीं—यही मेरा प्रायश्चित है।
"तुम खीर बहुत अच्छी बनाती हो। सुबह के खाने में तुमसे उसकी मांग करूंगा और वह खाने के बाद मैं इस शहर ही से नहीं , बल्कि इस मुक्त के कानून की पकड़ से भी बहुत दूर निकल जाऊंगा , विदेश में जा बसूंगा—मुझे पूरा विश्वास है , मैं वहीं अपनी बाकी जिदगी पूरी तरह सुरक्षित और खुशहाल बना लूंगा पश्चाताप की जिस आग की बात तुम करती हो , कम-से-कम मैं इस बॉण्ड पेपर पर साइन करने के बाद अपने अन्दर कहीं महसूस नहीं कर रहा हूं—इतना सब कुछ दिए जा रहा हूं कि खुश तो तुम हमेशा रहोगी और वीशू भी पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा।"
¶¶
सुबह , विशेष के माध्यम से जब रश्मि के पास सिकन्दर की 'खीर ' वाली डिमांड गई , तब एक पल को तो रश्मि के तन-बदन में आग लग गई—सोचा कि देखो इस ढीठ हत्यारे को। सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बावजूद भी खीर मांग रहा है।
जी चाहा कि सिकन्दर को कच्चा चबा जाए।
अभी जाए और गोलियों से भून डाले उसे। विशेष पर चिल्ला पड़ने के लिए उसने मुंह खोला ही था कि दिमाग के जाने किस कोने ने कहा —"क्या कर रही है रश्मि , तेरा यह व्यवहार तो उसे सुकून दे देगा …चोट तो उसे तब लगेगी जब सारे काम उलटे हों—उसकी आशाओं के विपरीत-उसे तेरे द्वारा खीर बनाए जाने की कोई उम्मीद नहीं होगी , तू बना देगी तो वह तड़प उठेगा-यह सोचकर कि आखिर सर्वेश की विधवा क्यों मेरी खातिर कर रही है—ये पहेली उस कमीने की समझ में नहीं जाएगी।'
यही सब सोचकर वह किचन में चली गई।
उधर सिकन्दर आराम से टांगें फैलाएं रेडियो पर प्रसारित होने वाले समाचार सुन रहा था। उस वक्त वह चौंका , जब रेडियो पर कहा गया— "इंस्पेक्टर चटर्जी ने अपनी सूझ-बूझ से तस्करों के एक सदस्य रूपेश को गिरफ्तार कर लिया है और रूपेश 'शाही कोबरा ' के बारे में सब कुछ बता चुका है—रूपेश के अनुसार 'मुगल महल ' के मालिक न्यादर अली का लड़का सिकन्दर ही 'शाही कोबरा ' है—सिकन्दर अभी तक फरार है और पुलिस ने उसे जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिए एक लाख रुपए इनाम देने की घोषणा की है।" इतना सुनते ही सिकन्दर ने जल्दी से रेडियों बन्द कर दिया।
एकाएक ही उसकी पेशानी पर चिंता की लकीरें उभर आईं—सारी रात उसने जागकर गुजारी थी , विशेष रूप से भारत से निकलने की स्कीम बनाने के चक्कर मैं—स्कीम उसने बना ही ली थी , परन्तु समाचार सुनने के बाद अचानाक ही गड़बड़ होती-सी महसूस हुई। जाहिर था कि पुलिस पूरी सरगर्मी से उसे तलाश कर रही होगी—फिर भी सिकन्दर हार मानने वाला नहीं था। अपने दिमाग को उसने पुलिस का घेरा तोड़कर निकलने की किसी स्कीम को सोचने में लगा दिया।
काफी सोचने के बाद उसने एक स्कीम तैयार कर ली।
तभी विशेष थाली ले आया—थाली में रोटियां और सब्जी भी थी —सिकन्दर के दिल में वैसी कोई भावना नहीं उभरी , जिसकी कल्पना करके रश्मि ने खाना तैयार किया था।
रोटी आदि से सिकन्दर को कोई मतलब नहीं था। यह गपागप खीर खाने लगा और साथ ही सोचता जा रहा था कि पुलिस के घेरे को तोड़कर किस तरह भारत से बाहर निकलना है। सामने बैठे उसे विचित्र नजरों से देख रहे विशेष ने कहा—"वाकई आप मेरे पापा नहीं हो सकते।"
ठहाका लगाकर हंस पड़ा सिकन्दर— “ तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो वीशू बेटे , मैं सचमुच तुम्हारा पापा नहीं हूं।"
विशेष मासूम आंखों से उसे देखता रहा।
जाने क्या सोचकर सिकन्दर ने तकिए के नीचे से बॉंण्ड पेपर निकाला और वीशू को देता हुआ बोला— “जाओ वीशू—यह अपनी मम्मी को दे दो।" '
विशेष ने बॉंण्ड पेपर लिया और कमरे से बाहर निकल आया।
रश्मि आंगन में ही थी—विशेष ने जब बॉण्ड पेपर उसे दिया तो वह चौंक पड़ी। अभी उसका एक भी शब्द नहीं पढ़ पाई थी कि मुख्य द्वार के बाहर ब्रेकों की तीव्र चरमराहट के साथ एक पुलिस जीप रुकी। रश्मि दरवाजे की तरफ लपकी।
जीप से कूदकर चटर्जी तेजी के साथ अन्दर आता हुआ बोला —“सिकन्दर कहां है ?"
"व...वह भला अब यहां क्यों जाएगा" रश्मि ने जल्दी से कहा।
"झूठ मत बोलिए , हमें सूचना मिली है कि रात वह यहां आया था।" चटर्जी ने रश्मि को घूरते हुए सख्त लहजे में कहा। इस बीच इंस्पेक्टर दीवान भी दरवाजा पार कर चुका था , बोला— '' उसे बचाने के लिए बार-बार नाटक कर रही हैं—याद रखिए कि अब वह कुख्यात
मुजरिम 'शाही कोबरा ' है और अगर आपने हमारी मदद न की तो हम आपको गिरफ्तार करने के लिए विवश हो जाएंगे।"
रश्मि के कुछ कहने से पहले ही विशेष बोल पड़ा— “आप झूठ बोलकर अपने ऊपर पाप क्यों चढ़ाती हैं , मम्मी , 'शाही कोबरा ' उस कमरे में है।"
"व...वीशू।" रश्मि हलक फाड़कर चीख पड़ी …“तुझे कब पता लगा कि वह 'शाही कोबरा ' है ?"
"मेरे सामने सब बदमाशों ने उसे 'शाही कोबरा ' कहा था।"
चटर्जी और दीवान उस कमरे की ओर दौड़ पड़े , जिधर विशेष ने इशारा किया था। जबकि विशेष ने रश्मि के कान में कहा— "अब पुलिस को पापा का हत्यारा जिंदा नहीं मिलेगा मम्मी , मैंने उसकी खीर में जहर मिला दिया है।"
"ज...ज़हर ?” रश्मि के कण्ठ से चीख निकल गई।
नन्हें विशेष ने मासूम स्वर में कहा—"मेरे पापा को उसने जहर ही तो दिया था।"
"त..तेरे पास जहर कहां से आया ?"
"डॉक्टर अंकल के क्लिनिक से चुरा लाया था।"
तभी कमरे की तरफ से चटर्जी की आवाज आई— “ अरे यह तो मर चुका है दीवान।"
गुस्से से तमतमाती हुई रश्मि ने अचानक ही विशेष के गाल पर जोरदार चांटा मारा। विशेष एक चीख के साथ उछलकर दूर जा गिरा , जबकि उस पर लात और घूंसे बरसाती हुई रश्मि चीख रही थी —"यह सब करने के लिए तुझे किसने कहा था नासपीटे—नीच , तूने मेरी सारी तपस्या भंग कर दी—उस कुत्ते को इतनी आसान मौत देने के लिए तुझसे किसने कहा था—जा , मेरी आँखों के सामने से गारत हो जा।"
¶¶


समाप्त

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RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति - by hotaks - 05-18-2020, 02:41 PM

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