RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
इसमें शक नहीं कि पत्र पढ़ने के बाद सिंगही का दिमाग चक्करघिन्नी की तरह घूम गया था—यह सूचना उसके लिए दुनिया का नौवां और सबसे महान आश्चर्य थी—फिर भी उसने स्वयं को नियंत्रित किया और गोंजालो को वहां से विदा किया।
कार्ड को उसने कई बार पढ़ा और अचानक ही बड़बड़ा उठा—“कमाल है, अलफांसे शादी कर रहा है!”
“इसमें इतने आश्चर्य की क्या बात है महामहिम?” एकाएक बाटले ने पूछा।
“क्या मतलब?”
“मेरे ख्याल से किसी की शादी होना कोई विशेष घटना तो नहीं है।”
सिंगही के होठों पर बड़ी ही अजीब-सी मुस्कान दौड़ गई, बोला—
“तुम ऐसा केवल इसलिए कह रहे हो प्रोफेसर, क्योंकि तुम अलफांसे को जानते नहीं हो।”
“मैं समझा नहीं महामहिम!”
“ये कार्ड अलफांसे के हर परिचित के लिए दुनिया का नौवां आश्चर्य है।”
“मैं अब भी नहीं समझा।”
“तुम समझ भी नहीं सकते प्रोफसर, दरअसल इस बात को समझने के लिए अलफांसे के कैरेक्टर को समझना बहुत जरूरी है और उसके कैरेक्टर को शायद सही ढंग से वे भी नहीं समझ सकते जो उसे बचपन से जानते हैं, शायद हम भी नहीं समझ पाए हैं—तभी तो यह कार्ड हमें चकित किए हुए है!”
“पता नहीं आप क्या कह रहे हैं महामहिम?”
“छोड़ो बाटले, तुम केवल इतना ही समझ लो कि यह सूचना पश्चिम से सूर्य उगने जैसी है— अलफांसे उन लोगों में से एक है जिसकी वजह से मैं आज तक विश्व सम्राट नहीं बन सका।”
प्रोफेसर बाटले कुछ देर तक चकित निगाहों से सिंगही की तरफ देखता रहा, फिर बोला—“मैं पहली बार आपके मुंह से किसी की प्रशंसा सुन रहा हूं महामहिम!”
“अलफांसे है ही प्रशंसा के काबिल—अब जरा सोचो, किसी को हमारे इस गुप्त अड्डे की जानकारी नहीं है, हम स्वयं भी इसी भ्रम के शिकार थे, परन्तु ये कार्ड जाहिर करता है कि अलफांसे से हम छुपे हुए नहीं हैं।”
“उसे कैसे पता लग गया महामहिम कि आप यहां हैं?”
“कह नहीं सकते और उसकी ऐसी ही विशेषताओं के कारण हमें मानना पड़ता है कि अलफांसे एक बहुत ही अजीबो-गरीब हस्ती का नाम है, वह बहुत चालाक है प्रोफेसर—कोई नहीं कह सकता कि वह कब, किस मकसद से, क्या चाल चल जाए—यह कार्ड और उसके पत्र की एक-एक पंक्ति अविश्वसनीय है, हमें पता लगाना होगा कि शादी की इस सूचना में कितनी सच्चाई है।”
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उसके जिस्म पर किसी हंस के से रंग का लिबास था। बेदाग, सफेद लिबास—आंखों पर गहरे काले लैंसों का चश्मा, हाथ में एक छड़ी लिए वह हीरों से जड़े एक ऊंचे सोने के बने सिंहासन पर बैठा था, उसके पैरों के समीप एक बकरा बैठा था—एकदम सफेद बकरा।
समीप ही एक उससे भी ऊंचा सिंहासन था, उस सिंहासन पर एक बूढ़ी औरत का स्टैचू था—सफेद लिबास वाले युवक का कद सात फीट था, इस हृष्ट-पुष्ट, आकर्षक और गोरे चिट्टे युवक का नाम था—वतन और कदमों में बैठे बकरे का नाम—अपोलो!
वतन—चमन का राजा, सिंगही जैसे मुजरिमों के सरताज का शिष्य—चमन नाम का यह छोटा-सा देश कभी अमेरिका का गुलाम था, इस युवक ने खुद चमन को अमेरिका के पंजे से आजाद कराया था। अब उसका देश एक मान्यताप्राप्त देश था।
दुनिया के सभी देशों के लिए आदर्श था चमन !
चमन, अपोलो, वतन, उसके सफेद लिबास, काले चश्मे, छड़ी और बूढ़ी औरत के स्टैचू के बारे में विस्तार से जानने के लिए तो आपको ‘वेतन’ और ‘गुलिस्तां खिल उठा’ नाम के उपन्यास पढ़ने पड़ेंगे, मगर हां, संक्षेप में हम यहां अपने नए पाठकों को इतना जरूर बता सकते हैं कि वतन मूल रूप से भारतीय है, उसके पिता भारतीय ही थे—उन्होंने चमन का एक लड़की से विवाह किया और चमन में ही बस गए। वतन का जन्म यहीं हुआ।
तब चमन गुलाम था—अकेला वतन चमन की आजादी के किए जूझा, संघर्ष के उसी दौर में वह सिंगही का शिष्य बना, वतन अहिंसा का पुजारी है—हिंसा को नापसन्द करता है, वह सिंगही का शिष्य जरूर है, सिंगही के लिए उसके मन में असीम श्रद्धा भी है परन्तु उसके हिंसा में विश्वास और विनाशकारी प्रवृत्ति के कारण उससे नफरत करता है। बचपन में ही उसे अपने माता-पिता और युवा बहन की लाश और उनमें गिजगिजाते कीड़े देखने पड़े थे—उन लाशों से उठती सड़ांध के बीच रहना पड़ा था—तभी से उसे हिंसा से घृणा हो गई।
उसके हाथ में जो छड़ी है उसमें हड्डियों का बना एक मुगदर है, उसके माता-पिता और बहन की हड्डियों से बना मुगदर—इसी मुगदर से उसने अपने परिवार के हत्यारों से बदला लिया था— आज भी वह हर जालिम को इसी मुगदर से सजा देता है।
कड़े संघर्ष के बाद उसने अपने मुल्क को आजाद करा लिया-आज वह चमन का राजा है—चमन की जनता का प्रिय—दीन-दुखियों का रहनुमा—चमन में जगह-जगह बॉक्स लगे हैं, चमन का कोई भी नागरिक अपनी शिकायत लिखकर इन बॉक्सों में डाल सकता है।
दरबार प्रतिदिन लगता है।
सारे बॉक्स वतन के सामने खोले जाते हैं। इस वक्त भी दरबार में वे ही बॉक्स खोले जा रहे थे कि राष्ट्रपति भवन के एक कर्मचारी ने आकर सूचना दी—“एक आदमी आपसे मिलना चाहता है महाराज!”
“उसे अन्दर क्यों नहीं लाया गया?” सिंहासन पर बैठे वतन ने पूछा।
“क्योंकि वह चमन का नागरिक नहीं है महाराज!”
“फिर कहां का है?”
“इंग्लैण्ड का।”
“अपने आने की वजह क्या बताता है?”
“कहता है कि वजह आप ही को बताएगा, उसने आपसे सिर्फ इतना कहने के लिए कहा है कि उसे अलफांसे ने भेजा है।”
“अलफांसे!” कहने के साथ ही वतन सिंहासन से एक झटके के साथ खड़ा हो गया, अपोलो नाम का बकरा भी उसके साथ ही खड़ा हो गया था, अपोलो की गरदन में घण्टियों वाली माला पड़ी हुई थी।
घण्टियां टनटना उठीं।
टनटनाहट के साथ पहले अपोलो और उसके पीछे वतन सिंहासन की सीढ़ियां उतरकर हॉल में पहुंचे—और फिर तेजी के साथ हॉल के द्वार की तरफ बढ़ गए—प्रतीक्षा-कक्ष में एक अंग्रेज मौजूद था।
वतन को देखते ही अंग्रेज ससम्मान खड़ा हो गया।
“आपको अलफांसे गुरु ने भेजा है?”
“जी हां!”
“तो आप यहां क्यों बैठे हैं, आइए!”
“मेरा काम आप तक सिर्फ यह कार्ड पहुंचा देना है।” कहते हुए अंग्रेज ने अपने कोट की जेब से कार्ड निकालकर वतन को दे दिया—वतन ने लिफाफे से निकालकर कार्ड देखा, पढ़ते वक्त वतन के चेहरे पर बुरी तरह चौंकने के भाव उभरे, मुंह से अनायास ही निकाला—
“अलफांसे गुरु शादी कर रहे हैं!”
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